गुरू पूर्णिमा पर्व का संदेश
श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी
सद्गुरू की सामथ्य
हर गुरू सद्गुरू नहीं होता। जो बुद्धि से बोध की यात्रा कराते हैं, वही सद्गुरू होते हैं। चेतना को प्रकाशित करने की सामर्थ्य केवल सद्गुरू में ही होती है। सद्गुरू जीवन विद्या सिखाते हैं। वे शिक्षा और विद्या का समन्वय कर हमें आध्यात्मिक बना देते हैं। जीवन के अलौकिक स्वरूप को देखने की सामर्थ्य हमें गुरू प्रदान करते हैं।
सद्गुरू की प्राप्ति कैसे हो?
यदि पात्रता हो तो सद्गुरू को ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं होती, वे स्वयं ही मिल जाते हैं। गुरू को देखने के लिए ज्ञान की, श्रद्धा की आँख चाहिए। अभिमान से समर्पण की ओर बढ़ते हैं, तब सद्गुरू के साथ संबंध बनते हैं। सद्गुरू को पाने के लिए पहली आवश्यकता शिष्य के अंदर उच्चतर तत्त्व को पाने की जिज्ञासा है। दूसरी आवश्यकता अनुशासन के साथ आत्म परिमार्जन की होती है। उसके बाद संशय से समाधान की ओर चरण बढ़ते हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति का आत्माभिमान विसर्जित होता जाता है, वैसे-वैसे शिष्य पर गुरू के आशीष-अनुदान बरसते जाते हैं।