उज्जैन। मध्य प्रदेश से होने वाले व्यक्तिगत, सामाजिक अदनी-सी तम्बाकू की गुलामी लाभों की जानकारी दी और...
ज्ञानदीक्षा ज्ञान के उदय का पर्व ः डॉ चिन्मय पण्ड्या हरिद्वार 22 जुलाई। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शा...
जाति या लिंग के कारण किसी को ऊँचा या किसी को नीचा न ठहरा सकेंगे, छूत- अछूत का प्रश्न न रहेगा। गोरी च...
आदत पड़ जाने पर तो अप्रिय और अवांछनीय स्थिति भी सहज और सरल ही प्रतीत नहीं होती, प्रिय भी लगने लगती है...
यदि वर्तमान परिस्थिति अनुपयुक्त लगती हो और उसे सुधारने बदलने का सचमुच ही मन हो तो सड़ी नाली की तली तक...
युग परिवर्तन या व्यक्ति परिवर्तन के लिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण और समाजगत प्रवाह प्रचलन को बदलने की बात ...
भटकाव से भ्रमित और कुत्साओं से ग्रसित व्यक्ति ऐससी ललक लिप्साओं में संलग्न रहता है जिन्हें दूरदर्शित...
स्पष्ट है कि आजीविका का एक महत्वपूर्ण जनुपात अंशदान के रूप सृजन कृत्यों के लिए नियोजित करने की आवश्य...
इस तथ्य से सभी अवगत है कि खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। धूमधाम, देन दहेज की शादिय...
युग निर्माण योजना की सबसे बड़ी संपत्ति उस परिवार के परिजनों की निष्ठा है, जिसे कूटनीति एवं व्यक्तिगत...
सन १९८६ में पूज्य गुरुदेव प० श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा की गयी भविष्यवाणी
वर्तमान संकट और उसके बाद एक नए युग का सूत्रपात कैसे होगा :-युगऋषि पं० श्रीराम शर्मा आचार्य
अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रतिनिधि आद. डॉ चिन्मय पंड्या जी का अमेरिका प्रवास अखिल विश्व गायत्री पर...
समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए जीवन समर्पित कर देने वाली गायत्री साधिका स्व. श्रीमती सुधा श्रीवास...
गायत्री प्रज्ञापीठ घाटोटांड के संस्थापक सदस्य श्री रामानंद सिंह का दिनांक 18 जून 2024 को 96 वर्ष की ...
श्री सुखराम भारद्वाज, बिलासपुर। हिमाचल प्रदेश गायत्री शक्तिपीठ बिलासपुर के संस्थापक श्री सुखराम भारद...
खण्डवा। मध्य प्रदेश ‘‘इक्कसवीं सदी नारी सदी होगी।’’ परम पूज्य गुरूदेव के इसी वाक्य को केन्द्र में रख...
बूंदी। राजस्थान गायत्री शक्तिपीठ बूंदी ने डॉ. दीपाली माहेश्वरी के सहयोग से लोगों के लिए नि:शुल्क आयु...
सरायकेला। झारखण्ड दिनांक 13 जून को एमआईजी स्थित गायत्री मंदिर में नेत्रम नेत्रालय के सहयोग से नेत्र ...
मोडासा, अरवल्ली। गुजरात गायत्री परिवार युवा समूह मोडासा अपने नगर और आसपास के गाँवों में वृक्षारोपण क...
लखीमपुर खीरी। उत्तर प्रदेश युवा प्रकोष्ठ लखीमपुर ने विश्व योग दिवस से ‘प्रकृति संग योग’ की थीम पर इस...
गायत्री यज्ञ से हुआ नए भवन का लोकार्पण कठूमर, अलवर। राजस्थान कठूमर में गैलेक्सी शिक्षण संस्था द्वारा...
विचार क्रांति अभियान
चेतना के उच्च स्तर पर दिव्य उत्कर्ष की ओर प्रेरित करने वाले सामाजिक परिवर्तन, समय की धारा में व्यापक परिवर्तन करके
एक बेहतर विश्व का निर्माण कर रहा है।
नवयुग की गंगोत्री
वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित।
एक व्यक्ति द्वारा रचित 3200 पुस्तकें
क्रांतिकारी पुस्तकें आपके जीवन में परिवर्तन लाएंगी।
आपके सम्बन्धों में कायाकल्प स्तर का परिवर्तन
आत्म निर्माण एवं परिवार निर्माण
नये संस्कारों के कर्मकाण्ड द्वारा शिक्षण
जन्म दिवस, विवाह दिवस एवं दीप यज्ञ
सादा जीवन - उच्च विचार . दूसरों के लिए अधिक अपने लिए कम, यही भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है.
शान्तिकुंज समयदान और प्रतिभादान की अवधारणा का आदर्श मॉडल है.
समग्र स्वास्थ्य प्रबन्धन पद्धतियाँ
वैकल्पिक चिकित्सा प्राकृतिक आरोग्य प्रदान करती हैं.
स्वस्थ जीवन के वैदिक सूत्र
समग्र स्वास्थ्य - शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य
गायत्री जप एवं ध्यान के प्रारंभिक चरण द्वारा शुरुआत
गायत्री साधना की ऊर्जा आत्मसात करना
आत्म अनुभूति के लक्ष्य तक पहुँचना
जीवन का परिष्कार - चार अनुशासन आत्मसात करना
साधना (उपासना - जीवन साधना), स्वाध्याय, संयम और सेवा
सामान्य किन्तु प्रभावी 5 चरण
दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन हेतु और उत्थान के सही चरण (भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान)
व्यक्तित्व परिष्कार हेतु विभिन्न साधना तथा शिविर
अन्तर्निहित प्रवृत्तियों का शुद्धिकरण। शांतिकुंज में वैज्ञानिक तरीके से प्रदर्शन और व्याख्या की गई।
आध्यात्मिक विकास और आत्मशोधन के लिए व्यक्तिगत मार्गदर्शन। अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न देखें
वैदिक ऋषियों की जीवन परिवर्तनकारी परंपराएँ यहाँ पुनर्जीवित हैं।
1926 से अखंड दीपक के साथ निरंतर गायत्री मंत्र जाप। हजारों लोगों द्वारा दैनिक यज्ञ सुबह के समय एक यादगार दृश्य प्रस्तुत करता है।
गायत्री मंत्र एवं यज्ञ के वैज्ञानिक प्रभावों पर उच्च स्तरीय शोध।
एक स्वतंत्र आध्यात्मिक पत्रिका 1940 से लाखों लोगों के दिमाग को रोशन कर रहा हूँ
DIYA - डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन युवा और कॉर्पोरेट कार्यक्रमों के लिए
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15 वर्ष की आयु में— बसंत पंचमी पर्व सन् 1926 को स्वगृह— आँवलखेड़ा (आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत) में पूजास्थल में ही दादागुरु स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी के दर्शन एवं मार्गदर्शन के साथ-ही-साथ आत्मसाक्षात्कार हुआ।
सन् 1926 से निरंतर प्रज्वलित दीपक, जिसके सान्निध्य में परम पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने 24-24 लक्ष के चौबीस गायत्री महापुरश्चरण संपन्न किए, आज भी इसके बस एक झलक भर प्राप्त कर लेने से ही लोगों को दैवीय प्रेरणा और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। इसके सान्निध्य में अब तक 2400 करोड़ से भी अधिक गायत्री मंत्र का जप किया जा चुका है।
इसका आरंभ सन् 1938 में पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा किया गया था। पत्रिका का मुख्य उद्देश्य— वैज्ञानिक आध्यात्मिकता और 21वीं शताब्दी के धर्म, अर्थात वैज्ञानिक धर्म को बढ़ावा देना है।
दृढ़ निष्ठा से सतत गायत्री साधना करने से मन (अंतःकरण) तीव्र गति और चामत्कारिक प्रकार से पवित्र, निर्मल, व्यवस्थित और स्थिर होता है, जिससे साधक अपने बाह्य भौतिक जीवन की गंभीर परीक्षाओं एवं समस्याओं से जूझते हुए भी अटल आतंरिक शांति और आनंद की अनुभूति करता है।
आचार्य जी ने सिद्धांत और साधना को आधुनिक युग के अनुकूल तर्क व शब्द देकर सामाजिक परिवर्तन का जो मार्ग दिखाया है, उसके लिए आने वाली पीढ़ियाँ युगों-युगों तक कृतज्ञ रहेंगी।
मुझे ज्ञात है कि इस विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता सेनानी और लगभग ३००० पुस्तकों के लेखक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्यजी के स्वप्न को साकार रूप दिया है। इन्हें भारत में ज्ञान क्रांति का प्रवर्तक कहना उपयुक्त होगा। आचार्यश्री का विचार था कि अज्ञानता ही निर्धनता और बीमारी आदि सभी समस्याओं की जड़ है।
आचार्य जी का एकाकी पुरुषार्थ सारे संत समाज की सम्मिलित शक्ति के स्तर का है, उनने गायत्री व यज्ञ को प्रतिबंध रहित करने निमित्त जो कुछ भी किया वह शास्त्रों के अनुसार ही था। मेरा उन्हें बारम्बार नमन है।
श्रद्धेय आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने जो कार्य कर दिखाया वह अद्भुत है, युग के लिए नितांत आवश्यक है। आचार्य जी के साहित्य से मैं बहुत प्रभावित हूँ। प्रज्ञा पुराण ने विशेष रूप से मुझे अपने कार्यों में बहुत बल प्रदान किया है। उनका चिंतन राष्ट्र को शक्तिशाली बनाता और मानव मात्र को सही दिशा प्रदान करता है।
आचार्य जी द्वारा भाष्य किए गए उपनिषदों का स्वाध्याय करने के बाद उन्होंने कहा कि- ‘‘काश! यह साहित्य मुझे जवानी में मिल गया होता तो मेरे जीवन की दिशाधारा कुछ और ही होती; मैं राजनीति में न जाकर आचार्य श्री के चरणों में बैठा अध्यात्म का ज्ञान ले रहा होता।’’
विनोबा जी ने वेदों के पूज्यवर द्वारा किए गए भाष्य को ग्वालियर मेंं एक सार्वजनिक सभा में अपने सिर पर धारण करते हुए कहा- "ये ग्रन्थ किसी व्यक्ति द्वारा नहीं, शक्ति द्वारा लिखे गये हैं।"
सुप्रसिद्ध सन्त देवरहा बाबा एक सिद्ध पुरुष थे। उनने एक परिजन से कहा- ‘‘बेटा! उनके बारे में मैं क्या कहूँ? यह समझो कि मैं हृदय से सतत उनका स्मरण करता रहता हूँ। गायत्री उनमें पूर्णतः समा गयी है एवं वे साक्षात् सविता स्वरूप हैं।’’
‘‘आचार्यश्री ने गायत्री को जन-जन की बनाकर महर्षि दयानन्द के कार्यों को आगे बढ़ाया है। गायत्री और ये एकरूप हो गये हैं।’’
अपने भावभरे उद्गार पूज्यवर के सम्बन्ध में इस रूप में व्यक्त किए थे- ‘‘आचार्य जी इस युग में गायत्री के जनक हैं। उनने गायत्री को सबकी बना दिया। यदि इसे मात्र ब्राह्मणों की मानकर उन्हीं के भरोसे छोड़ दिया होता तो अब तक गायत्री महाविद्या सम्भवतः लुप्त हो गयी होती।’’