Books - देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर भाग-2
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Language: HINDI
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ईश्वर का ऋण
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अमीर मोमिन हज करने पहुंचे। वहां उन्होंने ईश्वर के सच्चे सेवक की तलाश की। वैसे वहां भगवान् के भक्तों की कोई कमी न थी पर वह किसी पहुंचे हुए भक्त की तलाश में थे। मंत्री की सहायता से शहर से दूर एक झोंपड़ी में एक फकीर से भेंट हुई। अमीर मोमिन ने उनके चरणों में अपना माथा टेक दिया। और मंत्री के द्वारा यह जानना चाहा कि इस फकीर पर किसी का कर्ज तो नहीं है यदि किसी प्रकार का कर्ज हो तो उसका भुगतान राज्य कोष से किया जा सकता है।
मंत्री के द्वारा बादशाह को पता चला कि वह एक सेठ का कर्जदार है और उनके आदेश पर उसे कर्ज से मुक्त कर दिया गया। ऐसे कितने ही संत महात्माओं की बादशाह से भेंट हुई जो किसी न किसी के कर्जदार थे। बादशाह के आदेश पर राज्यकोष से उनका कर्ज चुका दिया गया। संत-महात्माओं की ऐसी स्थिति देखकर वह अत्यंत दुःखी हुए और सोचने लगे साधारण गृहस्थ और इन महात्माओं में कोई विशेष अंतर नहीं है।
अब तो किसी पहुंचे हुए फकीर की तलाश होने लगी। मंत्री अपने बादशाह को लेकर शहर से बहुत दूर बाहर पहुंचा, जहां घने वन में केवल एक ही कुटिया दिखाई दे रही थी। मंत्री ने द्वार खटखटाया, अंदर से एक प्रश्न भरी आवाज आई-‘‘कौन?’’
‘‘आपकी सेवा में अमीर मोमिन बादशाह उपस्थित हुए हैं। कृपया द्वार खोलकर उन्हें दर्शन करने का अवसर प्रदान कीजिए।’’—मंत्री ने बड़ी नम्रता के साथ कहा।
‘‘अमीर मोमिन को यहां आने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? बादशाह से एक फकीर को क्या सरोकार?’’
द्वार पर आए हुए किसी अतिथि को खाली हाथ लौटाना ठीक नहीं है। यह सोचकर फकीर ने दरवाजा खोल दिया।
कुटिया में अंदर बैठने के लिए चटाई पड़ी हुई थी। नाममात्र का सामान था। एक ओर आसन पर फकीर बैठा हुआ था। अभिवादन कर दोनों ही पास में बिछी चटाई पर बैठ गए। काफी देर तक दोनों ओर से धार्मिक चर्चा होती रही। चलते समय बड़ी हिम्मत करके बादशाह ने पूछा—‘‘क्षमा करें। मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं कि श्रीमानजी पर किसी प्रकार कर्ज तो नहीं है। यदि हो तो राज्यकोष से उसका भुगतान किया जा सकता है।’’
‘‘कर्ज’’—फकीर ने चौंककर पूछा—‘‘मुझ पर तो इतना कर्ज है कि यदि आपका सम्पूर्ण कोष खाली कर दिया जाये फिर भी उससे मुक्ति नहीं मिल सकती।’’
‘‘फिर भी बताइये तो सही कि आप पर कितना कर्ज है? और किससे लिया? ब्याज की दर क्या थी?’’—बादशाह ने बड़े नम्र शब्दों में अपनी बात प्रस्तुत की।
फकीर ने बादशाह के कंधे पर स्नेह से हाथ रखते हुए कहा—‘‘आप सारे संसार का ऋण तो चुका सकते हैं पर ईश्वर का जो मुझ पर ऋण शेष है उसका चुकाना आसान कार्य नहीं है। ईश्वर ने मुझे मनुष्य बनाया और यह आशा की कि मैं उसकी संतानों की सेवा करूंगा। इंसान की तरह जीऊंगा और दूसरे व्यक्तियों को भी उसी राह पर चलने की प्रेरणा दूंगा पर यह सब मैं कहां कर पाया। मेरा अधिकतर जीवन आराम और विलासिता में ही बीत गया। परिवार को छोड़कर जब मैं फकीर हुआ तो ईश्वर की बंदगी करने के बजाय अपने वाले लोगों से अपनी बंदगी करवाता रहा, भला मुझ जैसा कृतघ्न व्यक्ति तुम्हें कहीं ढूंढ़े मिलेगा। मैं अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा हूं और सोचता हूं बचे हुए इस जीवन का तो सदुपयोग कर ही लूं। ईश्वर ही अच्छी तरह जानता है कि मैं कितना कर्ज उससे लेकर आया था। यह कहते-कहते फकीर का हृदय भर आया और बादशाह तथा मंत्री कुटिया से बाहर निकल आये।
मंत्री के द्वारा बादशाह को पता चला कि वह एक सेठ का कर्जदार है और उनके आदेश पर उसे कर्ज से मुक्त कर दिया गया। ऐसे कितने ही संत महात्माओं की बादशाह से भेंट हुई जो किसी न किसी के कर्जदार थे। बादशाह के आदेश पर राज्यकोष से उनका कर्ज चुका दिया गया। संत-महात्माओं की ऐसी स्थिति देखकर वह अत्यंत दुःखी हुए और सोचने लगे साधारण गृहस्थ और इन महात्माओं में कोई विशेष अंतर नहीं है।
अब तो किसी पहुंचे हुए फकीर की तलाश होने लगी। मंत्री अपने बादशाह को लेकर शहर से बहुत दूर बाहर पहुंचा, जहां घने वन में केवल एक ही कुटिया दिखाई दे रही थी। मंत्री ने द्वार खटखटाया, अंदर से एक प्रश्न भरी आवाज आई-‘‘कौन?’’
‘‘आपकी सेवा में अमीर मोमिन बादशाह उपस्थित हुए हैं। कृपया द्वार खोलकर उन्हें दर्शन करने का अवसर प्रदान कीजिए।’’—मंत्री ने बड़ी नम्रता के साथ कहा।
‘‘अमीर मोमिन को यहां आने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? बादशाह से एक फकीर को क्या सरोकार?’’
द्वार पर आए हुए किसी अतिथि को खाली हाथ लौटाना ठीक नहीं है। यह सोचकर फकीर ने दरवाजा खोल दिया।
कुटिया में अंदर बैठने के लिए चटाई पड़ी हुई थी। नाममात्र का सामान था। एक ओर आसन पर फकीर बैठा हुआ था। अभिवादन कर दोनों ही पास में बिछी चटाई पर बैठ गए। काफी देर तक दोनों ओर से धार्मिक चर्चा होती रही। चलते समय बड़ी हिम्मत करके बादशाह ने पूछा—‘‘क्षमा करें। मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं कि श्रीमानजी पर किसी प्रकार कर्ज तो नहीं है। यदि हो तो राज्यकोष से उसका भुगतान किया जा सकता है।’’
‘‘कर्ज’’—फकीर ने चौंककर पूछा—‘‘मुझ पर तो इतना कर्ज है कि यदि आपका सम्पूर्ण कोष खाली कर दिया जाये फिर भी उससे मुक्ति नहीं मिल सकती।’’
‘‘फिर भी बताइये तो सही कि आप पर कितना कर्ज है? और किससे लिया? ब्याज की दर क्या थी?’’—बादशाह ने बड़े नम्र शब्दों में अपनी बात प्रस्तुत की।
फकीर ने बादशाह के कंधे पर स्नेह से हाथ रखते हुए कहा—‘‘आप सारे संसार का ऋण तो चुका सकते हैं पर ईश्वर का जो मुझ पर ऋण शेष है उसका चुकाना आसान कार्य नहीं है। ईश्वर ने मुझे मनुष्य बनाया और यह आशा की कि मैं उसकी संतानों की सेवा करूंगा। इंसान की तरह जीऊंगा और दूसरे व्यक्तियों को भी उसी राह पर चलने की प्रेरणा दूंगा पर यह सब मैं कहां कर पाया। मेरा अधिकतर जीवन आराम और विलासिता में ही बीत गया। परिवार को छोड़कर जब मैं फकीर हुआ तो ईश्वर की बंदगी करने के बजाय अपने वाले लोगों से अपनी बंदगी करवाता रहा, भला मुझ जैसा कृतघ्न व्यक्ति तुम्हें कहीं ढूंढ़े मिलेगा। मैं अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा हूं और सोचता हूं बचे हुए इस जीवन का तो सदुपयोग कर ही लूं। ईश्वर ही अच्छी तरह जानता है कि मैं कितना कर्ज उससे लेकर आया था। यह कहते-कहते फकीर का हृदय भर आया और बादशाह तथा मंत्री कुटिया से बाहर निकल आये।