Books - देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर भाग-2
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Language: HINDI
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आज के युग का ऋषि
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सन् 1818 का एक शीतकालीन प्रभात। पिट्सवर्ग के भौतिक संस्थान के निदेशक के निवास स्थान के सामने एक शानदार कार रुकी। उसमें से एक संभ्रान्त सा दीखने वाला व्यक्ति उतरा और कालबेल बजाई। थोड़ी देर में दरवाजा खुला। द्वार खोलने वाले बागवान से दीखने वाले आदमी, जिसके साधारण कपड़ों पर जहां-तहां मिट्टी लगी हुई थी, पैंट और शर्ट के पोंचे मोड़कर ऊपर चढ़ाये हुए थे, से आगंतुक ने पूछा—‘‘श्रीमान् निदेशक महोदय हैं।’’
‘‘जी हां।’’
‘‘क्या कर रहे हैं।’’
‘‘काम।’’
‘‘उनसे कहो ये महाशय आपसे मिलना चाहते हैं।’’ यह कहते हुए उसने अपना परिचय कार्ड उसे थमा दिया। कार्ड हाथ में लेकर उस बागवान से दीखने वाले आदमी ने पढ़ा और तुरंत बोला—‘‘वे आपसे एक घंटे बाद ही मिल सकेंगे, अभी व्यस्त हैं। आप चाहें तो भीतर चलकर उनकी प्रतीक्षा कर सकते हैं।’’
‘‘उनसे पूछ तो लो।’’
‘‘पूछ लिया’’—उसने वहीं खड़े-खड़े कहा।
आगंतुक ने समझा, किस पागल से पाला पड़ा है। किन्तु तुरंत ही उसे ध्यान आया, क्या यही विलियम कोनरेड रॉटजन तो नहीं, जिसने एक्स-रे का आविष्कार किया है। पूछने पर उत्तर मिला—‘‘जी हां, अभी मैं एक घंटे तक अपनी बगीची में काम करता हूं, उसके बाद आपसे बातचीत हो सकेगी। यदि आपको कोई एतराज न हो, तो ड्रॉइंग रूम में बैठिए। ‘‘जी बेहतर है’’—कहता हुआ एक ड्रॉइंग रूम की ओर चल पड़ा। ठीक एक घंटे बाद वे अपनी सादी किन्तु स्वच्छ, सुरुचिपूर्ण पोशाक पहने आगंतुक के सामने उपस्थित थे। ‘‘कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?’’ ‘‘सेवा तो मैं आपकी करने आया हूं। आपकी तो कृपा चाहिए। बात यह है कि आपने जो आविष्कार किया है, मैं उसे पेटेंट कराने और एकाधिकार के बारे में बात करने आया हूं। क्यों न आप हमारे पार्टनर बन जायें और हम एक कंपनी खोल दें, जिससे कि आपको अपनी महत्वपूर्ण शोध ‘रॉटजन रेज’ का लाभ मिल जाय। यदि आप चाहें तो हमारी कंपनी को वह अधिकार दे दें। बदले में आप चाहे जो रकम ले लें।’’
‘‘देखिए, श्रीमान जी, पहले आप सुधार कीजिए रॉटजन रेज नहीं ‘एक्स-रेज’। मैं मनुष्य हूं और मनुष्यता में विश्वास करता हूं। इन किरणों को मैंने नहीं पैदा किया, फिर मैं अपने नाम के साथ क्यों जोड़ूं। व्यवहार के लिए नाम रखना है, तो रॉटजन के स्थान पर ‘एक्स’ सही है। ये तो प्रकृति के दिए गए हवा, पानी की तरह पहले से ही धरती पर मौजूद हैं। इस कारण मैं अपने इस आविष्कार को व्यापार नहीं बनाना चाहता। यह चिकित्सा क्षेत्र में उपयोगी है। इस आविष्कार से मानवता का बहुत भला हो सकता है। मुझे तो आविष्कर्त्ता का श्रेय भी नहीं चाहिए। मैंने अपना कर्तव्य निभा लिया यह ही बहुत है।’’
व्यापारी ने सोचा, रॉट्जन शायद स्पष्ट रूप से जानना चाहते हैं कि उन्हें कितनी रकम मिल सकती है? ‘‘मैं आपको दस लाख डालर दे सकता हूं, अधिकार बेचने के। इनसे आप अधिक सुविधापूर्ण जीवन जी सकते हैं। स्वयं बागवानी करने की जगह नौकर रख सकते हैं।’’
रॉट्जन ने आगंतुक की बात सुनकर दृढ़तापूर्वक कहा—‘‘श्रीमान जी! मुझे आलसी और अपंग नहीं बनना है। अब आप दस लाख दें तो क्या और दस करोड़ दें तो क्या? मेरी अपनी कोई चीज हो तो दूं आपको। जो भी निर्माता चाहे इसका निर्माण करे। आप भी कीजिए। जितनी अधिक एक्स-रे मशीनें बनेंगी, खुली प्रतिद्वंद्विता में बनेंगी, खुले बाजार में बिकेंगी, जनता अधिक लाभ उठायेगी। एकाधिकार के कारण अधिक उत्पादन होने पर भी वह संस्था उसका मूल्य अधिक रखेगी। नाम, यश, वैभव, सम्पत्ति की अपेक्षा मेरे लिए मानवता की सेवा अधिक मूल्यवान है। व्यापारी इस आधुनिक ऋषि की निस्पृहता देख सिर झुकाकर चलता बना।
‘‘जी हां।’’
‘‘क्या कर रहे हैं।’’
‘‘काम।’’
‘‘उनसे कहो ये महाशय आपसे मिलना चाहते हैं।’’ यह कहते हुए उसने अपना परिचय कार्ड उसे थमा दिया। कार्ड हाथ में लेकर उस बागवान से दीखने वाले आदमी ने पढ़ा और तुरंत बोला—‘‘वे आपसे एक घंटे बाद ही मिल सकेंगे, अभी व्यस्त हैं। आप चाहें तो भीतर चलकर उनकी प्रतीक्षा कर सकते हैं।’’
‘‘उनसे पूछ तो लो।’’
‘‘पूछ लिया’’—उसने वहीं खड़े-खड़े कहा।
आगंतुक ने समझा, किस पागल से पाला पड़ा है। किन्तु तुरंत ही उसे ध्यान आया, क्या यही विलियम कोनरेड रॉटजन तो नहीं, जिसने एक्स-रे का आविष्कार किया है। पूछने पर उत्तर मिला—‘‘जी हां, अभी मैं एक घंटे तक अपनी बगीची में काम करता हूं, उसके बाद आपसे बातचीत हो सकेगी। यदि आपको कोई एतराज न हो, तो ड्रॉइंग रूम में बैठिए। ‘‘जी बेहतर है’’—कहता हुआ एक ड्रॉइंग रूम की ओर चल पड़ा। ठीक एक घंटे बाद वे अपनी सादी किन्तु स्वच्छ, सुरुचिपूर्ण पोशाक पहने आगंतुक के सामने उपस्थित थे। ‘‘कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?’’ ‘‘सेवा तो मैं आपकी करने आया हूं। आपकी तो कृपा चाहिए। बात यह है कि आपने जो आविष्कार किया है, मैं उसे पेटेंट कराने और एकाधिकार के बारे में बात करने आया हूं। क्यों न आप हमारे पार्टनर बन जायें और हम एक कंपनी खोल दें, जिससे कि आपको अपनी महत्वपूर्ण शोध ‘रॉटजन रेज’ का लाभ मिल जाय। यदि आप चाहें तो हमारी कंपनी को वह अधिकार दे दें। बदले में आप चाहे जो रकम ले लें।’’
‘‘देखिए, श्रीमान जी, पहले आप सुधार कीजिए रॉटजन रेज नहीं ‘एक्स-रेज’। मैं मनुष्य हूं और मनुष्यता में विश्वास करता हूं। इन किरणों को मैंने नहीं पैदा किया, फिर मैं अपने नाम के साथ क्यों जोड़ूं। व्यवहार के लिए नाम रखना है, तो रॉटजन के स्थान पर ‘एक्स’ सही है। ये तो प्रकृति के दिए गए हवा, पानी की तरह पहले से ही धरती पर मौजूद हैं। इस कारण मैं अपने इस आविष्कार को व्यापार नहीं बनाना चाहता। यह चिकित्सा क्षेत्र में उपयोगी है। इस आविष्कार से मानवता का बहुत भला हो सकता है। मुझे तो आविष्कर्त्ता का श्रेय भी नहीं चाहिए। मैंने अपना कर्तव्य निभा लिया यह ही बहुत है।’’
व्यापारी ने सोचा, रॉट्जन शायद स्पष्ट रूप से जानना चाहते हैं कि उन्हें कितनी रकम मिल सकती है? ‘‘मैं आपको दस लाख डालर दे सकता हूं, अधिकार बेचने के। इनसे आप अधिक सुविधापूर्ण जीवन जी सकते हैं। स्वयं बागवानी करने की जगह नौकर रख सकते हैं।’’
रॉट्जन ने आगंतुक की बात सुनकर दृढ़तापूर्वक कहा—‘‘श्रीमान जी! मुझे आलसी और अपंग नहीं बनना है। अब आप दस लाख दें तो क्या और दस करोड़ दें तो क्या? मेरी अपनी कोई चीज हो तो दूं आपको। जो भी निर्माता चाहे इसका निर्माण करे। आप भी कीजिए। जितनी अधिक एक्स-रे मशीनें बनेंगी, खुली प्रतिद्वंद्विता में बनेंगी, खुले बाजार में बिकेंगी, जनता अधिक लाभ उठायेगी। एकाधिकार के कारण अधिक उत्पादन होने पर भी वह संस्था उसका मूल्य अधिक रखेगी। नाम, यश, वैभव, सम्पत्ति की अपेक्षा मेरे लिए मानवता की सेवा अधिक मूल्यवान है। व्यापारी इस आधुनिक ऋषि की निस्पृहता देख सिर झुकाकर चलता बना।