Books - देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर भाग-2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
संत कन्फ्यूशियस और ज्ञानी बुढ़िया
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक दिन संत कन्फ्यूशियस के पास उनके कुछ शिष्य जाकर बोले—‘‘गुरुदेव! सच्चा ज्ञानी कौन होता है?’’
कन्फ्यूशियस ने कहा—‘‘सब लोग बैठ जाओ, अभी बताते हैं।’’ यह कहकर उन्होंने शेष दिनचर्या पूरी की और कपड़े पहने। फिर सब शिष्यों को लेकर एक ओर चल पड़े।
सब लोग एक गुफा के अंदर प्रविष्ट हुए। वहां एक महात्मा निवास करते थे। जप, तप और चिंतन में अपना समय बिताया करते थे। कन्फ्यूशियस ने उनको प्रणाम किया और एक ओर बैठ गए, फिर शांत होकर पूछा—‘‘भगवन्! हम लोग आपके पास ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने आए हैं, बताइये वह कौन है, क्या है, कहां रहता है?’’
महात्मा बिगड़ उठे—‘‘तुम लोग यहां मेरी शांति भंग करने क्यों आ गए? भागो, मेरे भजन में विघ्न पड़ता है।’’ कन्फ्यूशियस शिष्यों को लेकर बाहर निकल आए। उन्होंने कहा—‘‘एक ज्ञानी तो यह है जिन्होंने संसार से आंखें मूंद ली हैं। संसार में सुख-दुःख की परिस्थितियों से अशांत एकांत में शांति की इच्छा रखने वाले यह संत छोटे दर्जे के ज्ञानी हुए।’’
और अब वे एक गांव में पहुंचे, जहां एक तेली कोल्हू चला रहा था। बैल की आंखें बंधी थीं, वह अपनी मस्त चाल में उतना दायरा न मालूम कब से नाप रहा था और तेली कोल्हू पर बैठा कोई गीत गुनगुना रहा था।
कन्फ्यूशियस ने कहा—‘‘भाई मैंने सुना है तुम ब्रह्मज्ञानी हो। हमें भी थोड़ा ब्रह्म का उपदेश कीजिए।’’ तेली ने हंसकर उत्तर दिया—‘‘भाई, यह बैल ही मेरा ब्रह्म, मेरा परमात्मा है। इसकी सेवा मैं करता हूं, यह मेरी सेवा करता है। बस हम दोनों सुखी हैं। सुख ही ब्रह्म है।’’
गुरुदेव बाहर निकले और शिष्यों को संबोधित कर कहा—‘‘मध्यम ज्ञानी प्रबुद्ध गृहस्थ के रूप में यह तेली है, जिसके मन में ज्ञान-प्राप्ति की आकांक्षा है। यह धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।’’
अब वे फिर आगे बढ़े। उन्होंने कहा—‘‘संसार की खुली परिस्थितियों का अध्ययन करने से स्थिति का उतना अच्छा ज्ञान हो सकता है, जितना पुस्तकों के पढ़ने अथवा महात्माओं के प्रवचन से नहीं हो सकता। पुस्तक तो एक व्यक्ति का दृष्टिकोण होती है, प्रवचन एक व्यक्ति की ज्ञान साधना का निष्कर्ष। इसलिए संसार को देखो और यह पता लगाओ कि स्पष्ट स्थिति कहां है और भ्रम कहां है। जो साफ हो, निर्विकार और सही हो, उसे तुम्हारी बुद्धि आप स्वीकार करेगी। फिर उसे अपने जीवन में धारण करने से कल्याण हो सकता है।’’
इस तरह बातचीत करते हुए वे एक बुढ़िया के दरवाजे पर रुके। कई लड़के बुढ़िया के आस-पास शोरगुल कर रहे थे। बुढ़िया चरखा कात रही थी। बीच-बीच में किसी बच्चे के मांगने पर पानी पिला देती, कभी किसी नटखट बालक को डांट भी देती। कभी किसी को हंस कर समझाती, फिर बच्चे खेलने लगते तो वह भी अपना चरखा कातने में मग्न हो जाती।
कन्फ्यूशियस जैसे ही वहां पहुंचे सब लड़के भाग गए। उन्होंने पूछा—‘‘माताजी! आप कृपा कर यह बताइये क्या आपने ईश्वर देखा है?’’
बुढ़िया मुस्कराई और बोली—‘‘हां-हां बेटा! वह अभी यही खेल रहा था, आपको देखते ही भाग गया। वह निरर्थक शोरगुल, बच्चों का रूठना, मेरा मनाना, फिर हंसना, फिर विनोद-यही तो ईश्वर था जो तुम्हारे यहां आते ही चला गया।’’
कन्फ्यूशियस शिष्यों को साथ लेकर घर लौट पड़े। उन्होंने बताया—‘‘निष्काम ज्ञानी के रूप में यह बुढ़िया सच्ची ज्ञानी है, जो ज्ञान का संबंध किसी उपयोग या लाभ से नहीं जोड़ती, उसे उन्मुक्त रखकर स्वयं भी मुक्त भाव का अनुभव करती है।’’
कन्फ्यूशियस ने कहा—‘‘सब लोग बैठ जाओ, अभी बताते हैं।’’ यह कहकर उन्होंने शेष दिनचर्या पूरी की और कपड़े पहने। फिर सब शिष्यों को लेकर एक ओर चल पड़े।
सब लोग एक गुफा के अंदर प्रविष्ट हुए। वहां एक महात्मा निवास करते थे। जप, तप और चिंतन में अपना समय बिताया करते थे। कन्फ्यूशियस ने उनको प्रणाम किया और एक ओर बैठ गए, फिर शांत होकर पूछा—‘‘भगवन्! हम लोग आपके पास ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने आए हैं, बताइये वह कौन है, क्या है, कहां रहता है?’’
महात्मा बिगड़ उठे—‘‘तुम लोग यहां मेरी शांति भंग करने क्यों आ गए? भागो, मेरे भजन में विघ्न पड़ता है।’’ कन्फ्यूशियस शिष्यों को लेकर बाहर निकल आए। उन्होंने कहा—‘‘एक ज्ञानी तो यह है जिन्होंने संसार से आंखें मूंद ली हैं। संसार में सुख-दुःख की परिस्थितियों से अशांत एकांत में शांति की इच्छा रखने वाले यह संत छोटे दर्जे के ज्ञानी हुए।’’
और अब वे एक गांव में पहुंचे, जहां एक तेली कोल्हू चला रहा था। बैल की आंखें बंधी थीं, वह अपनी मस्त चाल में उतना दायरा न मालूम कब से नाप रहा था और तेली कोल्हू पर बैठा कोई गीत गुनगुना रहा था।
कन्फ्यूशियस ने कहा—‘‘भाई मैंने सुना है तुम ब्रह्मज्ञानी हो। हमें भी थोड़ा ब्रह्म का उपदेश कीजिए।’’ तेली ने हंसकर उत्तर दिया—‘‘भाई, यह बैल ही मेरा ब्रह्म, मेरा परमात्मा है। इसकी सेवा मैं करता हूं, यह मेरी सेवा करता है। बस हम दोनों सुखी हैं। सुख ही ब्रह्म है।’’
गुरुदेव बाहर निकले और शिष्यों को संबोधित कर कहा—‘‘मध्यम ज्ञानी प्रबुद्ध गृहस्थ के रूप में यह तेली है, जिसके मन में ज्ञान-प्राप्ति की आकांक्षा है। यह धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।’’
अब वे फिर आगे बढ़े। उन्होंने कहा—‘‘संसार की खुली परिस्थितियों का अध्ययन करने से स्थिति का उतना अच्छा ज्ञान हो सकता है, जितना पुस्तकों के पढ़ने अथवा महात्माओं के प्रवचन से नहीं हो सकता। पुस्तक तो एक व्यक्ति का दृष्टिकोण होती है, प्रवचन एक व्यक्ति की ज्ञान साधना का निष्कर्ष। इसलिए संसार को देखो और यह पता लगाओ कि स्पष्ट स्थिति कहां है और भ्रम कहां है। जो साफ हो, निर्विकार और सही हो, उसे तुम्हारी बुद्धि आप स्वीकार करेगी। फिर उसे अपने जीवन में धारण करने से कल्याण हो सकता है।’’
इस तरह बातचीत करते हुए वे एक बुढ़िया के दरवाजे पर रुके। कई लड़के बुढ़िया के आस-पास शोरगुल कर रहे थे। बुढ़िया चरखा कात रही थी। बीच-बीच में किसी बच्चे के मांगने पर पानी पिला देती, कभी किसी नटखट बालक को डांट भी देती। कभी किसी को हंस कर समझाती, फिर बच्चे खेलने लगते तो वह भी अपना चरखा कातने में मग्न हो जाती।
कन्फ्यूशियस जैसे ही वहां पहुंचे सब लड़के भाग गए। उन्होंने पूछा—‘‘माताजी! आप कृपा कर यह बताइये क्या आपने ईश्वर देखा है?’’
बुढ़िया मुस्कराई और बोली—‘‘हां-हां बेटा! वह अभी यही खेल रहा था, आपको देखते ही भाग गया। वह निरर्थक शोरगुल, बच्चों का रूठना, मेरा मनाना, फिर हंसना, फिर विनोद-यही तो ईश्वर था जो तुम्हारे यहां आते ही चला गया।’’
कन्फ्यूशियस शिष्यों को साथ लेकर घर लौट पड़े। उन्होंने बताया—‘‘निष्काम ज्ञानी के रूप में यह बुढ़िया सच्ची ज्ञानी है, जो ज्ञान का संबंध किसी उपयोग या लाभ से नहीं जोड़ती, उसे उन्मुक्त रखकर स्वयं भी मुक्त भाव का अनुभव करती है।’’