Books - देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर भाग-2
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Language: HINDI
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हिम्मत इन्सान की, मदद भगवान् की
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सन् 1939 में रूस के मुखिया स्टालिन थे। फिनलैंड के कई बंदरगाह रूस के लिए सामरिक महत्व के थे इसलिए उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर फिनलैंड को धमकी दी—‘‘यह बंदरगाह रूस को दे दिए जाएं? यदि फिनलैंड ने बात न मानी तो रूस शक्ति प्रयोग करना भी जानता है।’’
यह वैसा ही अपराध था जैसे चोरी, डकैती, अपहरण या लूट-पाट। यदि संसार में शक्ति और सैन्य बल ही सब कुछ हो तो फिर न्याय, नीति आदि सद्भावनाओं को प्रश्रय कहां मिले? पर किया क्या जाये ऐसे भी लोग इस दुनिया में हैं जो केवल शक्ति और उद्दंडता की ही भाषा समझते हैं। इनसे रक्षा की हिम्मत से ही करनी पड़ती है। स्वल्प क्षमता के लोग साहसपूर्वक संघर्ष कर बैठते हैं तो उनकी मदद भगवान् करता है। बाहर से दिखाई देने वाला राक्षसी बल केवल तब जीतता है जब अच्छाई की शक्तियां भले ही सीमित सही संघर्ष करने से भय खा जाती हैं।
फिनलैंड की कुल 2 लाख सेना रूस की 40 लाख की विशाल सेना और आधुनिक शस्त्र-सज्जा के सामने जा डटीं। रूसियों को अनुमान था प्रातः होते देर है फिनलैंड निवासियों को जीतना देर नहीं पर उनकी यह आशा महंगी पड़ी।
एक स्थान पर फिनलैंड के एक सेनाधिकारी लेफ्टिनेंट हीन सारेला को नियुक्त किया गया था। साथ में कुछ 49 सिपाही थे। हथियार भी उस समय के जब बंदूकें बनना प्रारंभ हुई थीं। रात से ही रूसी टैंकों की गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी। रूसी सेना मार्च करती हुई बढ़ी चली आ रही थी।
49 सैनिकों के आगे हजारों की सेना। सैनिकों ने हाथ ढीले कर दिए और कहा—‘‘सर! हाथी और मेमने का, भेड़िए और भेड़ का युद्ध नहीं होता। लड़ाना है तो हमें आप ही मार डालिए। युद्ध के मोर्चे पर आगे बढ़ना तो एक प्रकार से जान-बूझकर हमारी हत्या कराना है।’’
लेफ्टिनेंट सारेला का माथा ठनक गया। यह बात उसके अपने मन में आई होती तो वह गोली मार लेता। उसने कड़क कर कहा—‘‘सैनिकों! यह मत भूलो कि संसार में वही जातियां जीवित रहती हैं जो संघर्ष से नहीं घबराती। जो बाह्य-आक्रमण का मुकाबला नहीं कर सकते वह अपने सामाजिक जीवन में दृढ़ नहीं हो सकते। प्रतिरोध से घबराने वाले लोगों में अपने से ही उद्दंड और अभद्र लोग पैदा हो जाते हैं और सामाजिक शांति एवं व्यवस्था को चौपट कर डालते हैं। पाप, दुर्भाव, उद्दंडता और उच्छृंखलता मुर्दा जातियों के जीवन में पायी जाती हैं। साहसी शूरवीरों के राज्य में चोर, उठाईगीर क्या डकैत, आततायी लोग भी मजदूरी करते हैं। उनमें अंधविश्वास और रूढ़िवादिता नहीं पौरुष और पराक्रम का विकास होता है। इसलिए वे थोड़े से भी हो तो भी संसार में छाए रहते हैं। निश्चय करो तुम्हें पराधीनता का दलित जीवन जीना है या फिर शानदार जीवन की प्राप्ति के लिए संघर्ष की तैयारी करनी है।’’
सैनिकों के हृदयों में सारेला का तेजस्वी भाषण सुनकर विद्युत कौंध गई। हथियार उठाकर उन्होंने प्रतिज्ञा की—‘‘लड़ेंगे और रक्त की अंतिम बूंद तक संघर्ष करेंगे।’’
मुट्ठी भर जवान विकराल दानवी सेना से जूझ पड़े। 49 जवान दिन भर कुछ खाए पिए बिना जमीन में रेंगते शत्रुओं को मारते हुए आगे बढ़ते गए और जब उस दिन का युद्ध समाप्त हुआ तो संसार के अखबारों ने बड़े-बड़े अक्षरों में छापा—‘‘मुट्ठी भर फिनलैंड के सिपाहियों ने रूसी सेना की अग्रिम पंक्ति के बीस हजार सैनिकों को कुचलकर रख दिया।’’ 50 गाड़ियों और 120 टैंकों को भी उन्होंने ध्वस्त करके रख दिया था।
सच है जिंदा दिल कौमें बुराइयों और अपराधों के आगे घुटने नहीं टेकतीं, उनसे लड़ पड़ती हैं और विजय पाती हैं। हिम्मत करने वाले इन्सान की मदद भगवान् भी करता है। स्टालिन जैसे सशक्त व्यक्ति ने भी इस पराजय को चमत्कार ही माना था।