Books - देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर भाग-2
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Language: HINDI
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मनुष्यता मरती नहीं
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मनुष्य न तो दानव है और न देव। वह दोनों के बीच की स्थिति है। मनुष्य यदि अच्छी दिशा में चल पड़ता है तो उसका देवत्व विकसित होने लगता है और यदि गलत राह पर चल पड़ता है तो वह दिन प्रति दिन दानव बनता चला जाता है। ऐसी स्थिति में उसकी मनुष्यता पर आवरण भले ही पड़ जाय पर वह मरती नहीं और समय पाकर वह पुनः उसे देवत्व के मार्ग पर, मानवता के सही पथ पर घसीट लाती है। वाल्मीकि, अंगुलिमाल ऐसे कितने ही उदाहरण इतिहास के पृष्ठों में भरे पड़े हैं जब मनुष्य ने खोये देवत्व को जगाया है। ऐसी ही एक घटना नेपोलियन के शासनकाल में भी घटित हुई।
फ्रांस की राज्य क्रांति के बाद पेरिस अपराधियों का गढ़ सा बन गया था। क्रांति के समय वहां जाने कहां-कहां से अपराधी आ इकट्ठे हुए थे। अपराध की घटनाएं दिन पर दिन बढ़ रही थीं। किन्तु अपराधी पकड़ में नहीं आ रहे थे। पुलिस प्रधान हेनरी परेशान था। पकड़े जाने पर भी सबूत के अभाव में अपराधियों को छोड़ देना पड़ता था।
नागरिकों के एक शिष्ट मंडल ने हेनरी से मुलाकात की और पुलिस की असफलता पर उन्होंने बड़ी खीझ प्रकट की। साथ ही इस प्रकार बढ़ते अपराध को रोकने के लिए कोई अच्छा सा तरीका काम में लेने की राय दी। हेनरी बड़ी देर तक विचार मग्न रहे। फिर उन्हें जैसे समस्या का कोई समाधान मिल गया हो, उन्होंने अपने सहकारी को बुलाया और पूछा—‘‘इस समय पेरिस का सबसे बड़ा अपराधी कौन है?’’
उत्तर मिला—‘‘मिडोक।’’
‘‘उसके विरुद्ध क्या आरोप है?’’
‘‘चोरी, चोरी के माल की खरीद, जाल-फरेब, नकली मुद्रा चलाना और क्या-क्या कुकर्म हैं जिनमें वह माहिर नहीं है।’’
‘‘उसे बुलाया जाय।’’
हेनरी मनुष्य की सहज सज्जनता के विश्वासी थे। वे सोचे लगे—‘‘मनुष्य की प्रतिभा और योग्यता यदि गलत दिशा में प्रयुक्त होने लग जाय तो वह कहर ढा देती है। यदि उसे सही दिशा में मोड़ दिया जाय तो वही व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। शायद मिडोक के साथ भी यह संभव हो सके। प्रयास करने में क्या हर्ज है।’’ उधर मिडोक भी अपने इस समाज विरोधी कर्मों को करते-करते और आत्म प्रताड़ना सहते-सहते बेजार हो चला था। वह एक सज्जन व्यक्ति की तरह जीवन-यापन करने की सोचता था किन्तु उसे राह दिखाई नहीं पड़ती थी।
फ्राकोया युनीज मिडोक पुलिस प्रधान हेनरी के सामने उपस्थित हुआ। हेनरी ने उससे कहा—‘‘देखो मि0 मिडोक! तुम बहुत योग्य और तेज आदमी हो। तुम्हारी इन विशेषताओं का लाभ अभी अपराधी उठा रहे हैं जिससे जनता को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। तुम्हारी इसी योग्यता और विशेषता का उपयोग जनता के हित में होने लगे तो तुम्हें कोई हर्ज नहीं होगा, बोलो होगा।’’
‘‘नहीं होगा।’’
‘‘तो हमें तुम्हारी आवश्यकता है, अपराधियों को रोकने के लिए। यह समझ लो कि मेरे ऊपर जो उत्तरदायित्व है वह तुम्हारा ही है। ऐसी स्थिति में तुम क्या करोगे।’’
‘‘जो आप कहेंगे।’’ प्रसन्नता के आवेग में भरकर मिडोक ने कहा।
‘‘तुम्हें अपराधियों को पकड़ने में हमारी सहायता करनी होगी। इसके लिए तुम्हें पूरा-पूरा पारिश्रमिक भी मिलेगा और श्रेय, सम्मान भी।’’
मिडोक हेनरी के बताए अनुसार काम करने पर तैयार हो गया। मिडोक ने उनके विश्वास को कभी तोड़ा नहीं। देखते ही देखते उसने कई ऐसे अपराधियों को पकड़वाया जो कभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े थे। उनके विरुद्ध पक्के सबूत भी उसने जुटाए। वह दुनिया का पहला जासूस कहलाया। उसके लिए 1812 में ‘सूरते’ नामक एक पृथक विभाग बनाया गया जिसमें उसके अतिरिक्त उसे चार सहकारी भी थे। अपराधियों को पकड़ने के लिए वह अपनी जान की बाजी लगा देता था।
अपराधी अब उसके नाम से ही कांपते थे। पंद्रह वर्ष तक उसने जनसेवा की और 1828 में वह रिटायर हुआ।
अवकाश ग्रहण करने पर उसने अपनी जीवनी लिखी जिसमें उसने यह स्पष्ट किया कि अपराध व समाज विरोधी कृत्य करने पर किस प्रकार वह अपनी भीतरी चेतनाओं द्वारा प्रताड़ित किया जाता रहा था। उस प्रताड़ना को नहीं सह पाने के कारण वह शराब का सहारा लेता था। भले आदमी का जीवन जीने के लिए वह कितना तरस गया था। जब उसे सम्मानित जीवन जीने का अवसर मिला तो वह कितना प्रसन्न हुआ। उसने रिटायर होने पर कागज का एक कारखाना भी खोला पर वह चल नहीं सका। उसमें मिडोक को बड़ा घाटा उठाना पड़ा था।
उसके अंतिम दिन बड़े कष्टों, अभावों और संघर्षों में गुजरे। उसके शुभाकांक्षी हेनरी अब जीवित नहीं रहे थे। व्यवसाय में घटा पड़ चुका था। ऊपर से उन अपराधियों ने, जिन्हें उसने पकड़वाया था, उससे बदला लेना आरंभ कर दिया था। ऐसी विकट परिस्थितियों से हार नहीं मानते हुए वह भले आदमी का जीवन जीता रहा। उसने फिर अपराधों की ओर मुंह नहीं किया। वरन् उन अपराधियों की मार व तिरस्कार सहते हुए भी उसने उन्हें अब घृणित, गर्हित काम छोड़कर मेहनत की कमाई खाने के लिए प्रेरित किया। वह उन्हें कहता—‘‘देखो, एक दिन मैं पेरिस का माना हुआ अपराधी था। मेरे पास सोना, चांदी, सिक्के शराब और दबदबा था। किन्तु वह आत्म संतोष नहीं था जिसके बिना हर व्यक्ति कंगाल रहता है। आज मेरे पास वह सब कुछ नहीं है किन्तु मैं एक भले आदमी की तरह मेहनत और ईमानदारी का जीवन जी रहा हूं। इसमें मुझे बड़ा सुख मिलता है, संतोष मिलता है। आज के कष्ट और अभाव मेरे उन पापों की ही सजा है जो मैंने पहले किए। तुम भी चाहो तो इसी प्रकार अपना जीवन सुधार सकते हो।’’
मिडोक की इन बातों को कई अपराध व्यवसायी तो हंसकर टाल देते और कुछ उसके मुंह पर ही कह देते—‘‘क्या कहने, सौ-सौ चूहे खाके बिल्ली रानी हज करने जा रही है।’’
‘‘हां तुम ठीक कहते हो कितना ही घृणित और अपराधी जीवन व्यतीत करने पर भी हमारे भीतर बैठा मनुष्य मरता नहीं वरन् हमें सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है। कपड़े पर मैल चढ़ गया तो क्या वह धुल नहीं सकता। साबुन जगाने पर वह पुनः उजला हो सकता है। पाप बहुत किए तो आगे भी पाप करते रहें, उनसे विरत न हों, यह कहां की बुद्धिमत्ता है। जितने पापों से बच सकते हैं, उतनों से तो बचें।’’
मिडोक के इन शब्दों का और उसके जीवन का उन लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा सो बात नहीं है। वे भी सोचते, निश्चित रूप से मिडोक ने वह कुछ पाया है जो हमें उपलब्ध नहीं है फलस्वरूप हम अजाना सा अनुभव करते हैं। अपराध करते समय भीतर से एक आवाज सी उठती है, मना करती सी। और वे लोग भी अपराध छोड़कर मेहनत की रूखी रोटी खाने की सोचने लगते। जिनकी आत्मा पर अभी अधिक कालिमा नहीं चढ़ी थी वे लोग उस सोचने को कार्य रूप में परिणत भी कर सके। इस प्रकार मिडोक का अपना जीवन नहीं सुधरा और भी कई अपराधी भले आदमी बन गए उससे प्रेरणा लेकर। सच है मनुष्यता कभी मरती नहीं। जिन्होंने नव-जीवन की आशा ही छोड़ दी हो उन्हें यह उदाहरण नया बल प्रदान करेगा।
फ्रांस की राज्य क्रांति के बाद पेरिस अपराधियों का गढ़ सा बन गया था। क्रांति के समय वहां जाने कहां-कहां से अपराधी आ इकट्ठे हुए थे। अपराध की घटनाएं दिन पर दिन बढ़ रही थीं। किन्तु अपराधी पकड़ में नहीं आ रहे थे। पुलिस प्रधान हेनरी परेशान था। पकड़े जाने पर भी सबूत के अभाव में अपराधियों को छोड़ देना पड़ता था।
नागरिकों के एक शिष्ट मंडल ने हेनरी से मुलाकात की और पुलिस की असफलता पर उन्होंने बड़ी खीझ प्रकट की। साथ ही इस प्रकार बढ़ते अपराध को रोकने के लिए कोई अच्छा सा तरीका काम में लेने की राय दी। हेनरी बड़ी देर तक विचार मग्न रहे। फिर उन्हें जैसे समस्या का कोई समाधान मिल गया हो, उन्होंने अपने सहकारी को बुलाया और पूछा—‘‘इस समय पेरिस का सबसे बड़ा अपराधी कौन है?’’
उत्तर मिला—‘‘मिडोक।’’
‘‘उसके विरुद्ध क्या आरोप है?’’
‘‘चोरी, चोरी के माल की खरीद, जाल-फरेब, नकली मुद्रा चलाना और क्या-क्या कुकर्म हैं जिनमें वह माहिर नहीं है।’’
‘‘उसे बुलाया जाय।’’
हेनरी मनुष्य की सहज सज्जनता के विश्वासी थे। वे सोचे लगे—‘‘मनुष्य की प्रतिभा और योग्यता यदि गलत दिशा में प्रयुक्त होने लग जाय तो वह कहर ढा देती है। यदि उसे सही दिशा में मोड़ दिया जाय तो वही व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। शायद मिडोक के साथ भी यह संभव हो सके। प्रयास करने में क्या हर्ज है।’’ उधर मिडोक भी अपने इस समाज विरोधी कर्मों को करते-करते और आत्म प्रताड़ना सहते-सहते बेजार हो चला था। वह एक सज्जन व्यक्ति की तरह जीवन-यापन करने की सोचता था किन्तु उसे राह दिखाई नहीं पड़ती थी।
फ्राकोया युनीज मिडोक पुलिस प्रधान हेनरी के सामने उपस्थित हुआ। हेनरी ने उससे कहा—‘‘देखो मि0 मिडोक! तुम बहुत योग्य और तेज आदमी हो। तुम्हारी इन विशेषताओं का लाभ अभी अपराधी उठा रहे हैं जिससे जनता को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। तुम्हारी इसी योग्यता और विशेषता का उपयोग जनता के हित में होने लगे तो तुम्हें कोई हर्ज नहीं होगा, बोलो होगा।’’
‘‘नहीं होगा।’’
‘‘तो हमें तुम्हारी आवश्यकता है, अपराधियों को रोकने के लिए। यह समझ लो कि मेरे ऊपर जो उत्तरदायित्व है वह तुम्हारा ही है। ऐसी स्थिति में तुम क्या करोगे।’’
‘‘जो आप कहेंगे।’’ प्रसन्नता के आवेग में भरकर मिडोक ने कहा।
‘‘तुम्हें अपराधियों को पकड़ने में हमारी सहायता करनी होगी। इसके लिए तुम्हें पूरा-पूरा पारिश्रमिक भी मिलेगा और श्रेय, सम्मान भी।’’
मिडोक हेनरी के बताए अनुसार काम करने पर तैयार हो गया। मिडोक ने उनके विश्वास को कभी तोड़ा नहीं। देखते ही देखते उसने कई ऐसे अपराधियों को पकड़वाया जो कभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े थे। उनके विरुद्ध पक्के सबूत भी उसने जुटाए। वह दुनिया का पहला जासूस कहलाया। उसके लिए 1812 में ‘सूरते’ नामक एक पृथक विभाग बनाया गया जिसमें उसके अतिरिक्त उसे चार सहकारी भी थे। अपराधियों को पकड़ने के लिए वह अपनी जान की बाजी लगा देता था।
अपराधी अब उसके नाम से ही कांपते थे। पंद्रह वर्ष तक उसने जनसेवा की और 1828 में वह रिटायर हुआ।
अवकाश ग्रहण करने पर उसने अपनी जीवनी लिखी जिसमें उसने यह स्पष्ट किया कि अपराध व समाज विरोधी कृत्य करने पर किस प्रकार वह अपनी भीतरी चेतनाओं द्वारा प्रताड़ित किया जाता रहा था। उस प्रताड़ना को नहीं सह पाने के कारण वह शराब का सहारा लेता था। भले आदमी का जीवन जीने के लिए वह कितना तरस गया था। जब उसे सम्मानित जीवन जीने का अवसर मिला तो वह कितना प्रसन्न हुआ। उसने रिटायर होने पर कागज का एक कारखाना भी खोला पर वह चल नहीं सका। उसमें मिडोक को बड़ा घाटा उठाना पड़ा था।
उसके अंतिम दिन बड़े कष्टों, अभावों और संघर्षों में गुजरे। उसके शुभाकांक्षी हेनरी अब जीवित नहीं रहे थे। व्यवसाय में घटा पड़ चुका था। ऊपर से उन अपराधियों ने, जिन्हें उसने पकड़वाया था, उससे बदला लेना आरंभ कर दिया था। ऐसी विकट परिस्थितियों से हार नहीं मानते हुए वह भले आदमी का जीवन जीता रहा। उसने फिर अपराधों की ओर मुंह नहीं किया। वरन् उन अपराधियों की मार व तिरस्कार सहते हुए भी उसने उन्हें अब घृणित, गर्हित काम छोड़कर मेहनत की कमाई खाने के लिए प्रेरित किया। वह उन्हें कहता—‘‘देखो, एक दिन मैं पेरिस का माना हुआ अपराधी था। मेरे पास सोना, चांदी, सिक्के शराब और दबदबा था। किन्तु वह आत्म संतोष नहीं था जिसके बिना हर व्यक्ति कंगाल रहता है। आज मेरे पास वह सब कुछ नहीं है किन्तु मैं एक भले आदमी की तरह मेहनत और ईमानदारी का जीवन जी रहा हूं। इसमें मुझे बड़ा सुख मिलता है, संतोष मिलता है। आज के कष्ट और अभाव मेरे उन पापों की ही सजा है जो मैंने पहले किए। तुम भी चाहो तो इसी प्रकार अपना जीवन सुधार सकते हो।’’
मिडोक की इन बातों को कई अपराध व्यवसायी तो हंसकर टाल देते और कुछ उसके मुंह पर ही कह देते—‘‘क्या कहने, सौ-सौ चूहे खाके बिल्ली रानी हज करने जा रही है।’’
‘‘हां तुम ठीक कहते हो कितना ही घृणित और अपराधी जीवन व्यतीत करने पर भी हमारे भीतर बैठा मनुष्य मरता नहीं वरन् हमें सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है। कपड़े पर मैल चढ़ गया तो क्या वह धुल नहीं सकता। साबुन जगाने पर वह पुनः उजला हो सकता है। पाप बहुत किए तो आगे भी पाप करते रहें, उनसे विरत न हों, यह कहां की बुद्धिमत्ता है। जितने पापों से बच सकते हैं, उतनों से तो बचें।’’
मिडोक के इन शब्दों का और उसके जीवन का उन लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा सो बात नहीं है। वे भी सोचते, निश्चित रूप से मिडोक ने वह कुछ पाया है जो हमें उपलब्ध नहीं है फलस्वरूप हम अजाना सा अनुभव करते हैं। अपराध करते समय भीतर से एक आवाज सी उठती है, मना करती सी। और वे लोग भी अपराध छोड़कर मेहनत की रूखी रोटी खाने की सोचने लगते। जिनकी आत्मा पर अभी अधिक कालिमा नहीं चढ़ी थी वे लोग उस सोचने को कार्य रूप में परिणत भी कर सके। इस प्रकार मिडोक का अपना जीवन नहीं सुधरा और भी कई अपराधी भले आदमी बन गए उससे प्रेरणा लेकर। सच है मनुष्यता कभी मरती नहीं। जिन्होंने नव-जीवन की आशा ही छोड़ दी हो उन्हें यह उदाहरण नया बल प्रदान करेगा।