Books - देवता हमें क्या दे सकते हैं
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Language: HINDI
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अंदर की खुशी-एक दिव्य वरदान
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मित्रो! खुशियों के तरीके दो है। एक खुशी बाहर से आती है-मसलन खाना। खाने के समय कोई जायकेदार चीज मिल जाए तो यह एक बाह्य खुशी है। साहब क्या खाकर आए? पेड़े खाकर आए, लड्डू खाकर आए, अच्छा ठीक और एक खुशी जो होती है कि आप सिनेमा देखकर आए। ये कौन सी खुशियाँ हैं? ये चीजें मिलने की वजह से खुशियाँ होती हैं। ये खुशियाँ होती तो हैं, पर थोड़ी देर के लिए ही ठहरती हैं, फिर गायब हो जाती हैं। सिनेमा देखकर आए-गायब, मिठाई खाकर आए गायब। थोड़ी देर में ही ये खारी खुशियाँ गायब हो जाती हैं। ये टिकाऊ नहीं होती। टिकाऊ चीज क्या होती है? जो चीज भीतर से निकलती है, उसका नाम है-'शांति'। शांति का ही दूसरा नाम संतोष है। शांति के बारे में जो आपने सुन रखा है, उस चैन को शांति नहीं कहते। कोई मुसीबत न आए हल्ला-गुल्ला न मचे, कोलाहल न हो, इसे शांति नहीं कहते। नहीं साहब! शांति उसे भी कहते हैं कि काली कमली लेकर चले जाएँगे और कहीं गुफा में रहेंगे, जहाँ कोई झंझट, घोटाला न हो कोई बोले-चाले नहीं। हर तरफ शांति हो। बेटे, ये मान्यता गलत है। यह शांति की परिभाषा नहीं है। शांति की प्राथमिक परिभाषा यह है कि आदमी को संतोष रहता है। संतोष किसको रहेगा? संतोष सिर्फ एक आदमी को रहेगा, जिसने अपने जीवन का क्रम ऐसा बना लिया है कि जिससे उसके अंदर अंतर्द्वन्द्व नहीं रहते।
अंतर्द्वन्द्व क्या है? अंतर्द्वन्द्व बेटे दो साँड़ों की लड़ाई की तरह है। दो साँड़ों की लड़ाई देखी है न आपने? हाँ गुरुजी! जब दो साँड़ लड़ते हैं तो खेत को, दुकान को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। एक बार तो दो खोमचे वाले बैठे थे और दो साँड़ लड़ते हुए आ गए। फिर क्या हुआ? उन्होंने खोमचे वालों का सामान फैला दिया और मुसाफिरों को धक्के मारे। और क्या हुआ? और गुरुजी! उसने दीवार में टक्कर मारी और धकेल वाले को उछाल दिया। एक दिन हमने खेत में लड़ते हुए साँड़ देखे। वो क्या करते थे? गुरुजी! वे दोनों ऐसे लड़े कि बेचारी गेहूँ की फसल और धान की फसल को चौपट करके धर दिया। लड़ते-लड़ते वे सब चौपट कर गए।
मित्रो! साँड़ कहाँ होते हैं? साँड़ हमारे भीतर रहते है। साँड़ कौन होते हैं? एक तो वे जिन्हें अवांछनीयता कहते हैं, अनैतिकता कहते हैं। बेटे, हमारे भीतर एक नैतिक पक्ष है और एक अनैतिक पक्ष है। दोनों के भीतर कोहराम मचता रहता है। दोनों के बीच लड़ाई चलती रहती है। यह लड़ाई कभी बद नहीं होती। एक कहता है कि आप मान जाइए दूसरा कहता है कि आप मान जाइए। दोनों ही नहीं मानते। हमारे भीतर जो शैतान बैठा हुआ हैं, वो भी नहीं मानता और अंदर बैठे भगवान से कहते हैं कि आप ही चुप हो जाइए, तो वो भी नहीं मानता। दोनों के भीतर जो कोहराम मचता रहता है, अंतर्द्वन्द्व चलता रहता है, उसकी वजह से हमारे भीतर अशांति पैदा होती है। हर जगह अशांति, हर जगह नाराजगी, हर जगह असंतोष-हमारे भीतर छाया रहता है।
आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांतिः।।
अंतर्द्वन्द्व क्या है? अंतर्द्वन्द्व बेटे दो साँड़ों की लड़ाई की तरह है। दो साँड़ों की लड़ाई देखी है न आपने? हाँ गुरुजी! जब दो साँड़ लड़ते हैं तो खेत को, दुकान को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। एक बार तो दो खोमचे वाले बैठे थे और दो साँड़ लड़ते हुए आ गए। फिर क्या हुआ? उन्होंने खोमचे वालों का सामान फैला दिया और मुसाफिरों को धक्के मारे। और क्या हुआ? और गुरुजी! उसने दीवार में टक्कर मारी और धकेल वाले को उछाल दिया। एक दिन हमने खेत में लड़ते हुए साँड़ देखे। वो क्या करते थे? गुरुजी! वे दोनों ऐसे लड़े कि बेचारी गेहूँ की फसल और धान की फसल को चौपट करके धर दिया। लड़ते-लड़ते वे सब चौपट कर गए।
मित्रो! साँड़ कहाँ होते हैं? साँड़ हमारे भीतर रहते है। साँड़ कौन होते हैं? एक तो वे जिन्हें अवांछनीयता कहते हैं, अनैतिकता कहते हैं। बेटे, हमारे भीतर एक नैतिक पक्ष है और एक अनैतिक पक्ष है। दोनों के भीतर कोहराम मचता रहता है। दोनों के बीच लड़ाई चलती रहती है। यह लड़ाई कभी बद नहीं होती। एक कहता है कि आप मान जाइए दूसरा कहता है कि आप मान जाइए। दोनों ही नहीं मानते। हमारे भीतर जो शैतान बैठा हुआ हैं, वो भी नहीं मानता और अंदर बैठे भगवान से कहते हैं कि आप ही चुप हो जाइए, तो वो भी नहीं मानता। दोनों के भीतर जो कोहराम मचता रहता है, अंतर्द्वन्द्व चलता रहता है, उसकी वजह से हमारे भीतर अशांति पैदा होती है। हर जगह अशांति, हर जगह नाराजगी, हर जगह असंतोष-हमारे भीतर छाया रहता है।
आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांतिः।।