Books - देवता हमें क्या दे सकते हैं
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Language: HINDI
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अपनी योग्यता बढ़ाइए
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मित्रो! बेसिलसिले की बातें, बेतुकी बातें को आप करते रहेंगे और पीछे शिकायतें करते रहेंगे कि हमारी मनोकामना पूरी नहीं हुई। मैं कल भी नाराज हो रहा था इसी बात पर। आपको निराशा तो होगी, पर इससे बाद में पूरे अध्यात्म विज्ञान पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। आदमी अध्यात्म विज्ञान के प्रति नफरत करते चले जाएँगे और इसके प्रति जनसाधारण में जो श्रद्धा थी, वो खत्म हो जाएगी। क्यों? क्योंकि आपकी मनोकामना पूरी नहीं को सकती। आपकी मनोकामना पूरी करने की दो शर्तें हैं। क्या दो शर्तें हैं? साथियों! भगवान ने, देवताओं ने, ऋषियों ने दुनिया में एक से एक बड़ी मनोकामनाएँ पूरी की हैं, पर उसकी दो शर्तें पूरी करनी पड़ी हैं। एक तो आदमी की योग्यता बढ़ी-चढ़ी होनी चाहिए। आपको क्या मिलता है? हम तो साहब प्राइमरी स्कूल के मास्टर है। तो आप कहाँ तक पढे हैं? हमने साहब मैट्रिक पास किया है और बी० टी० सी० पास की है। इसीलिए हमको २५० रुपए मिलते हैं। तो अब आप क्या चाहते हैं? हमको बड़ी नौकरी मिल जाए। अच्छा तो आप एक काम कर लीजिए। आप बी० ए० कर लीजिए, बी० एड० कर लीजिए। फिर हमारे पास आना तो हम कोशिश करेंगे, किसी से सिफारिश करेंगे और आपको नौकरी दिला देंगे। नहीं साहब, बी० ए० बी० एड० तो हम नहीं कर सकते, आप हमें ७५० रुपए की तनख्वाह दिला दीजिए। बेटे, हम कैसे दिला दें, जो कायदा-कानून नहीं है, नियम नहीं है, उसे कैसे करा देंगे?
मित्रो! आदमी के अपनी मनोकामना पूरी करानी हैं तो उसे अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी। आप अपनी योग्यता बढ़ाइए। आदमी की जितनी योग्यता होती है, उतनी ही उसकी तरक्की होती, पैसा मिलता है और मिलता है, मान-सम्मान। योग्यता आप बढ़ाते नहीं तो फिर किस तरह से आपकी सहायता करेंगे? दूसरी शर्त है-आप अपने में परिश्रम का माद्दा बढ़ाइए। आप में परिश्रम का माद्दा कम है। आपको जितना परिश्रम करना चाहिए, जिस स्तर का पुरुषार्थ करना चाहिए, उतना नहीं करते। मनोयोग और श्रम दोनों को मिलाकर परिश्रम की क्वालिटी बनती है। आप क्वालिटी क्यों नहीं बनाते? नहीं साहब, हम तो आठ घंटे काम करते हैं। आठ घंटे आपके ढ़ाई घंटे के बराबर हैं। आप आठ घंटे मनोयोग के साथ काम कीजिए तो वह दस घटे के बराबर हो जाएगा, अट्ठाइस घंटे के बराबर होगा।
मित्रो! 'इफीशिएन्सी' अर्थात दक्षता का भी ध्यान रखिए। नहीं साहब! हम तो उसे सीनिआरिटि' कहते हैं। बेटे, सीनिआरिटि ही नहीं काम करती, इफीशिएन्सी भी काम करती है। इफीशिएन्सी आप बढ़ाइए न, कुछ पुरुषार्थ बढ़ाइए न, फिर हम देखें कि कौन है जो आपका रास्ता रोकता है। देखेंगे कौन आदमी आपकी तरक्की को रोकता है। आपकी तरक्की को कोई रोकता हो, तो आप इस्तीफा दे देना और हमारे पास आ जाना। हमारे पास जो लोग काम करते है वे पूरे श्रम और मनोयोग से करते हैं। वे जिस काम को करते हैं, पूरे मन से करते हैं। हमको कहीं लगा दीजिए। क्या मिलता है आपको? ६५० रुपए मिलते हैं। अच्छा तो हम आपको ७५० रुपए दिलाएँगे और जगह दिला देंगे, परंतु आप तो परिश्रम की क्वालिटी नहीं बढ़ाते। अपनी योग्यता बढ़ाते नहीं हैं और मनोकामनाएँ लिए फिरते हैं।
मित्रो! ये मनोकामनाएँ अवैज्ञानिक हैं। अवैज्ञानिक बातें क्या निभेंगी कभी? अवैज्ञानिक बातें न कभी निभी थीं, न कभी निभेंगी। आप क्या कह रहे थे? मैं यह कह रहा था कि आपको जो सबसे श्रेष्ठ धंधा, व्यवसाय बताया है, वह अध्यात्म है। अध्यात्म का व्यवसाय इससे ज्यादा शानदार, इससे ज्यादा फायदेमंद, इससे ज्यादा कीर्ति दिलाने वाला अर्थात तीन तरह के फायदे दिलाने वाला धन्धा और कहीं नहीं है। व्यवसायों में सिर्फ एक तरह का फायदा होता है। क्या? पैसा मिल जाता है और कोई बहुत फायदे या धंधा? और कोई धंधा नहीं है। जिसको आप व्यवसाय कहते हैं, वह केवल एक ही फायदा कराता है। हम क्या कराते हैं? हम बेटे, ये धंधा जो पैसे वाला है, ये तो गौण है, बाहर वाला है। इसके अलावा हम तीन फायदे करा सकते हैं। उस अध्यात्म के बारे में बता रहे हैं, जिसको सिखाने के लिए हमने आपको यहाँ बुलाया है। जिसके लिए हम आपको अनुष्ठान कराते हैं। हमारे इस अध्यात्म को आप समझ लें तो मैं फिर आपकी गाड़ी आगे बढ़ाऊँ। आप क्या सिखाना चाहते हैं? आप समझिए तो सही। आप तो वहीं रहते है। कहीं? हमारी मनोकामनाएँ, भजन और माला। बेटे, ये तो गलत है।
मित्रो! आदमी के अपनी मनोकामना पूरी करानी हैं तो उसे अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी। आप अपनी योग्यता बढ़ाइए। आदमी की जितनी योग्यता होती है, उतनी ही उसकी तरक्की होती, पैसा मिलता है और मिलता है, मान-सम्मान। योग्यता आप बढ़ाते नहीं तो फिर किस तरह से आपकी सहायता करेंगे? दूसरी शर्त है-आप अपने में परिश्रम का माद्दा बढ़ाइए। आप में परिश्रम का माद्दा कम है। आपको जितना परिश्रम करना चाहिए, जिस स्तर का पुरुषार्थ करना चाहिए, उतना नहीं करते। मनोयोग और श्रम दोनों को मिलाकर परिश्रम की क्वालिटी बनती है। आप क्वालिटी क्यों नहीं बनाते? नहीं साहब, हम तो आठ घंटे काम करते हैं। आठ घंटे आपके ढ़ाई घंटे के बराबर हैं। आप आठ घंटे मनोयोग के साथ काम कीजिए तो वह दस घटे के बराबर हो जाएगा, अट्ठाइस घंटे के बराबर होगा।
मित्रो! 'इफीशिएन्सी' अर्थात दक्षता का भी ध्यान रखिए। नहीं साहब! हम तो उसे सीनिआरिटि' कहते हैं। बेटे, सीनिआरिटि ही नहीं काम करती, इफीशिएन्सी भी काम करती है। इफीशिएन्सी आप बढ़ाइए न, कुछ पुरुषार्थ बढ़ाइए न, फिर हम देखें कि कौन है जो आपका रास्ता रोकता है। देखेंगे कौन आदमी आपकी तरक्की को रोकता है। आपकी तरक्की को कोई रोकता हो, तो आप इस्तीफा दे देना और हमारे पास आ जाना। हमारे पास जो लोग काम करते है वे पूरे श्रम और मनोयोग से करते हैं। वे जिस काम को करते हैं, पूरे मन से करते हैं। हमको कहीं लगा दीजिए। क्या मिलता है आपको? ६५० रुपए मिलते हैं। अच्छा तो हम आपको ७५० रुपए दिलाएँगे और जगह दिला देंगे, परंतु आप तो परिश्रम की क्वालिटी नहीं बढ़ाते। अपनी योग्यता बढ़ाते नहीं हैं और मनोकामनाएँ लिए फिरते हैं।
मित्रो! ये मनोकामनाएँ अवैज्ञानिक हैं। अवैज्ञानिक बातें क्या निभेंगी कभी? अवैज्ञानिक बातें न कभी निभी थीं, न कभी निभेंगी। आप क्या कह रहे थे? मैं यह कह रहा था कि आपको जो सबसे श्रेष्ठ धंधा, व्यवसाय बताया है, वह अध्यात्म है। अध्यात्म का व्यवसाय इससे ज्यादा शानदार, इससे ज्यादा फायदेमंद, इससे ज्यादा कीर्ति दिलाने वाला अर्थात तीन तरह के फायदे दिलाने वाला धन्धा और कहीं नहीं है। व्यवसायों में सिर्फ एक तरह का फायदा होता है। क्या? पैसा मिल जाता है और कोई बहुत फायदे या धंधा? और कोई धंधा नहीं है। जिसको आप व्यवसाय कहते हैं, वह केवल एक ही फायदा कराता है। हम क्या कराते हैं? हम बेटे, ये धंधा जो पैसे वाला है, ये तो गौण है, बाहर वाला है। इसके अलावा हम तीन फायदे करा सकते हैं। उस अध्यात्म के बारे में बता रहे हैं, जिसको सिखाने के लिए हमने आपको यहाँ बुलाया है। जिसके लिए हम आपको अनुष्ठान कराते हैं। हमारे इस अध्यात्म को आप समझ लें तो मैं फिर आपकी गाड़ी आगे बढ़ाऊँ। आप क्या सिखाना चाहते हैं? आप समझिए तो सही। आप तो वहीं रहते है। कहीं? हमारी मनोकामनाएँ, भजन और माला। बेटे, ये तो गलत है।