Books - देवता हमें क्या दे सकते हैं
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Language: HINDI
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मात्र क्रिया से परिणाम नहीं मिलता
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गुरुजी! ये तो बड़ा झमेला पड़ गया। हाँ बेटे, झगड़ा तो था ही। तू क्या समझता था? हम तो यह समझते थे कि ये सब प्रारंभिक वस्तुएँ हैं और उनसे ही सफलता मिल जाती है। मसलन आपके हाथ में छेनी और हथौड़ी दे दें और कहें कि इस पत्थर के टुकड़े को ले जाइए और इसमें से आप एक मूर्ति बना दीजिए। मूर्ति कितने रुपए की होती है? बहुत कीमती होती है। हमने जयपुर से एक मूर्ति मँगाई है, वह तीन हजार रुपए में आई है। इसमें कितने रुपए का पत्थर लगा होगा? मैं सोचता हूँ कोई पचास रुपए का पत्थर होगा। आप पचास रुपए का पत्थर ले लीजिए और छेनी हथौड़ी ले जाइए, घिसने के लिए रेती ले जाइए और मूर्ति बनाकर लाइए। आपको तो पत्थर ही नहीं दिखाई पड़ा और ऊपर से छेनी और हथौड़ी भी तोड़ डाली और अपनी उँगली पर भी पट्टी बाँध रहे हैं। आपने तो बताया था कि हम मूर्ति बनाएँगे तो बया बन गई आपकी मूर्ति? कहाँ बनी गुरुजी! छेनी टूट गई, हथौड़ी टूट गई और देखिए हमारी उँगली में चोट भी लग गई। बेटे, मूर्ति कहाँ गई? उसका क्या हुआ? तीन हजार की मूर्ति तो मिली नहीं? मिलती भी कैसे, मूर्तिकला का जो अभ्यास है, वह अलग है।
मित्रो! यह क्या है? यह एक टेक्निक है। मूर्तिकला छेनी हथौड़े की सहायता से विकसित तो को जाती है, पर इसके पीछे अभ्यास होता है, तब कहीं मूर्ति बनाना आता है। तब आदमी हजार रुपए महीने कमाता है। इससे कम कमाए, इससे कम नहीं कमा सकता। चित्रकार चित्र बनाते हैं। कितने का बिका ये चित्र? बहुत दाम का बिका। हम 'अखण्ड ज्योति' के कवरपेज की डिजाइन बनवाते हैं। इसके लिए हमें पाँच सौ रुपए देने पड़ते हैं। चित्रकार दो दिन में बना देता है। गुरुजी! ये तो अच्छा धंधा है। एक दिन में एक चित्र बनाने के ढाई सौ रुपया रोज कमाता है। इससे महीने में कितना कमा लेगा और साल भर में कितना कमा लेगा? गुरुजी! मैं तो वही धंधा करूँगा, बेटे कर ले। इसके लिए क्या-क्या चीज चाहिए? कागज, ब्रुश, रंग। लीजिए बनाइए चित्र। किसके लिए बनाएँ? हमारी 'अखण्ड ज्योति' के लिए बनाइए। गुरुजी! आप तो पाँच सौ रुपए तो वैसे ही दे देंगे, देखिए चित्र बनाकर लाया हूँ। बेटे! ये तूने क्या बनाया? हमारा कागज भी बरबाद कर दिया और रंग भी खराब कर दिया और ऐसे ही लकीरें बना लाया। नहीं बेटे, लकीर नहीं बनानी चाहिए।
मित्रो! कागज काम तो आता है, पर यह भी ध्यान रखिए कि क्या चीज चाहिए? यहाँ एक और शब्द लगा हुआ है। 'पर' यह इसलिए लगा हुआ है कि चित्रकला का अभ्यास होना चाहिए, जो समयसाध्य और श्रमसाध्य है। नहीं साहब! हम तो इस झगड़े में नहीं पड़ेंगे। तो क्या करेंगे? हम यह करेंगे कि क्रिया के माध्यम से परिणाम पाना चाहेंगे। बेटे, यह तो संभव नहीं, असंभव बात है, जो आपने कल्पना बना रखी है। आप इस असंभव के पीछे भागेंगे तो आपको हैरानी के सिवाय, परेशानी के सिवाय, खीझने के सिवाय, निराशा के सिवाय और कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा। अब तक आप निराश हैं तो आगे भविष्य में अगर आपका यही सिद्धांत रहा, तो मैं आपको शाप देता हूँ कि भविष्य में आपको हमेशा निराशा ही हाथ लगेगी और कभी आपको सफलता प्राप्त नहीं होगी।
मित्रो! यह क्या है? यह एक टेक्निक है। मूर्तिकला छेनी हथौड़े की सहायता से विकसित तो को जाती है, पर इसके पीछे अभ्यास होता है, तब कहीं मूर्ति बनाना आता है। तब आदमी हजार रुपए महीने कमाता है। इससे कम कमाए, इससे कम नहीं कमा सकता। चित्रकार चित्र बनाते हैं। कितने का बिका ये चित्र? बहुत दाम का बिका। हम 'अखण्ड ज्योति' के कवरपेज की डिजाइन बनवाते हैं। इसके लिए हमें पाँच सौ रुपए देने पड़ते हैं। चित्रकार दो दिन में बना देता है। गुरुजी! ये तो अच्छा धंधा है। एक दिन में एक चित्र बनाने के ढाई सौ रुपया रोज कमाता है। इससे महीने में कितना कमा लेगा और साल भर में कितना कमा लेगा? गुरुजी! मैं तो वही धंधा करूँगा, बेटे कर ले। इसके लिए क्या-क्या चीज चाहिए? कागज, ब्रुश, रंग। लीजिए बनाइए चित्र। किसके लिए बनाएँ? हमारी 'अखण्ड ज्योति' के लिए बनाइए। गुरुजी! आप तो पाँच सौ रुपए तो वैसे ही दे देंगे, देखिए चित्र बनाकर लाया हूँ। बेटे! ये तूने क्या बनाया? हमारा कागज भी बरबाद कर दिया और रंग भी खराब कर दिया और ऐसे ही लकीरें बना लाया। नहीं बेटे, लकीर नहीं बनानी चाहिए।
मित्रो! कागज काम तो आता है, पर यह भी ध्यान रखिए कि क्या चीज चाहिए? यहाँ एक और शब्द लगा हुआ है। 'पर' यह इसलिए लगा हुआ है कि चित्रकला का अभ्यास होना चाहिए, जो समयसाध्य और श्रमसाध्य है। नहीं साहब! हम तो इस झगड़े में नहीं पड़ेंगे। तो क्या करेंगे? हम यह करेंगे कि क्रिया के माध्यम से परिणाम पाना चाहेंगे। बेटे, यह तो संभव नहीं, असंभव बात है, जो आपने कल्पना बना रखी है। आप इस असंभव के पीछे भागेंगे तो आपको हैरानी के सिवाय, परेशानी के सिवाय, खीझने के सिवाय, निराशा के सिवाय और कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा। अब तक आप निराश हैं तो आगे भविष्य में अगर आपका यही सिद्धांत रहा, तो मैं आपको शाप देता हूँ कि भविष्य में आपको हमेशा निराशा ही हाथ लगेगी और कभी आपको सफलता प्राप्त नहीं होगी।