Books - गीत माला भाग १५
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सदा मन हमारा रहे
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सदा मन हमारा रहे
सदा मन हमारा रहे घर तुम्हारा,
यही कामना है यही याचना है।
चरण में तुम्हारे समर्पित रहें हम,
यही कल्पना है, यही भावना है॥
मिला प्यार निर्मल हमें तो तुम्हारा,
भले ही विमुख हो तुम्हीं से रहे हम।
तुम्हीं हो हमारे हितैषी सदा से,
मगर प्यार तुमसे भी कर ना सके हम॥
हमारे हृदय में जगे प्रेम निश्छल,
अनुष्ठान हमको यही ठानना है॥
तुम्हारी निगाहें रहीं नित्य हम पर,
मगर हम तुम्हें क्यों नहीं देख पाये।
कला जिन्दगी की सिखाते रहे तुम,
मगर हम उसे क्यों नहीं सीख पाये॥
चलें कि स तरह हम तुम्हारी नज़र में,
समझना यही है यही जानना है॥
हमें मान पद यश सताने न पाये,
कि पैसे की झिलमिल लुभाने न पाये।
हमें दुष्ट- दुर्गुण डराने न पायें,
कि श्रद्धा हमारी डिगाने न पायें॥
तुम्हीं नाव हो प्रभु तुम्हीं हो खिवैया,
यही सत्य हमको तो पहचानना है॥
मिले दृष्टि ऐसी तुम्हें जो निहारें,
सधे स्वर वही बस तुम्हें जो पुकारे।
जगे बुद्धि वही बस तुम्हें जो विचारे,
बहे आँख में जल चरण जो पखारे॥
कि जो भी है अपना बनें साधना है,
हमारे लिए प्रिय यही साधना है॥
सदा मन हमारा रहे घर तुम्हारा,
यही कामना है यही याचना है।
चरण में तुम्हारे समर्पित रहें हम,
यही कल्पना है, यही भावना है॥
मिला प्यार निर्मल हमें तो तुम्हारा,
भले ही विमुख हो तुम्हीं से रहे हम।
तुम्हीं हो हमारे हितैषी सदा से,
मगर प्यार तुमसे भी कर ना सके हम॥
हमारे हृदय में जगे प्रेम निश्छल,
अनुष्ठान हमको यही ठानना है॥
तुम्हारी निगाहें रहीं नित्य हम पर,
मगर हम तुम्हें क्यों नहीं देख पाये।
कला जिन्दगी की सिखाते रहे तुम,
मगर हम उसे क्यों नहीं सीख पाये॥
चलें कि स तरह हम तुम्हारी नज़र में,
समझना यही है यही जानना है॥
हमें मान पद यश सताने न पाये,
कि पैसे की झिलमिल लुभाने न पाये।
हमें दुष्ट- दुर्गुण डराने न पायें,
कि श्रद्धा हमारी डिगाने न पायें॥
तुम्हीं नाव हो प्रभु तुम्हीं हो खिवैया,
यही सत्य हमको तो पहचानना है॥
मिले दृष्टि ऐसी तुम्हें जो निहारें,
सधे स्वर वही बस तुम्हें जो पुकारे।
जगे बुद्धि वही बस तुम्हें जो विचारे,
बहे आँख में जल चरण जो पखारे॥
कि जो भी है अपना बनें साधना है,
हमारे लिए प्रिय यही साधना है॥