Books - गीत माला भाग १५
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सद्ज्ञान की खान हो
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सद्ज्ञान की खान हो
सद्ज्ञान की खान हो माँ, कुछ ज्ञान हमें दे दो।
शरणागत आपके हैं माँ, अनुदान हमें दे दो॥
अनुदान तुम्हारे माँ, जनहित में लगा दें हम।
सोये हुए मानव के, प्राणों को जगा दें हम॥
परपीर मिटाने का, अरमान हमें दे दो॥
संसार के वैभव की नहीं, कामना हो मन में।
सत्कर्म सदाशय की, बस भावना हो मन में॥
अनुचित व उचित पथ की, पहचान हमें दे दो॥
मिट जाए मनुज मुख से, भय चिन्ता की रेखाएँ।
आँखों से किसी के भी, मोती न बिखर जाएँ॥
उल्लास उमँगों की, मुस्कान हमें दे दो॥
गुरुवर ने जो दिखलाया, उस राह पे चल दें हम।
बदलेगी फिजा सारी, खुद को जो बदल दें हम॥
दुष्प्रवृत्तियाँ दूर करें हम, वह प्राण हमें दे दो॥
संगीत विश्व की अणुरेणु में परिव्याप्त है।
(ग्रीक बिचारक पायथागोरस)
सद्ज्ञान की खान हो माँ, कुछ ज्ञान हमें दे दो।
शरणागत आपके हैं माँ, अनुदान हमें दे दो॥
अनुदान तुम्हारे माँ, जनहित में लगा दें हम।
सोये हुए मानव के, प्राणों को जगा दें हम॥
परपीर मिटाने का, अरमान हमें दे दो॥
संसार के वैभव की नहीं, कामना हो मन में।
सत्कर्म सदाशय की, बस भावना हो मन में॥
अनुचित व उचित पथ की, पहचान हमें दे दो॥
मिट जाए मनुज मुख से, भय चिन्ता की रेखाएँ।
आँखों से किसी के भी, मोती न बिखर जाएँ॥
उल्लास उमँगों की, मुस्कान हमें दे दो॥
गुरुवर ने जो दिखलाया, उस राह पे चल दें हम।
बदलेगी फिजा सारी, खुद को जो बदल दें हम॥
दुष्प्रवृत्तियाँ दूर करें हम, वह प्राण हमें दे दो॥
संगीत विश्व की अणुरेणु में परिव्याप्त है।
(ग्रीक बिचारक पायथागोरस)