Books - गीत माला भाग १५
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समय को साधने वाले
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समय को साधने वाले
समय को साधने वाले, अमर इतिहास रचते हैं।
समय जो चूक जाते हैं, सदा ही हाथ मलते हैं॥
समय को साधने से अस्थियाँ भी वज्र बनती है।
समय की साध, वानर- देह में बजरंग ढलती है॥
उन्हें मंजिल मिली है, जो समय के साथ चलते हैं॥
समय की दृष्टि में कोई नहीं छोटा, बड़ा होता।
समय को प्रिय वही जो, साथ में तनकर खड़ा होता॥
समय साधक गिलहरी, गिद्ध तक हो याद रखते हैं॥
समय ऐसा ही, फिर से अब युगों के बाद आया है।
उछलते प्राणवानों को, समय ने फिर बुलाया है॥
समय आवाज देकर, सुन रहा है कौन सुनते हैं॥
समय कटिबद्ध युगपीड़ा, पतन को दूर करने को।
समय प्रतिबद्ध है अब, मनुज का चिन्तन बदलने को॥
समय को देखना है, कौन अपने को बदलते हैं॥
व्यक्ति निर्माण से ही, नया युग- निर्माण होना है।
मनुज में ही पुनः, देवत्व का उत्थान होना है॥
सृजन का समय है, कितने सृजन की साध करते हैं॥
नए युग के सृजन का, यह समय जो चूक जायेंगे।
बताओ! किस तरह? निर्माण करके श्रेय पाएँगे॥
समय को साधने वाले, समय की शान बनते हैं॥
समय को साधने वाले, अमर इतिहास रचते हैं।
समय जो चूक जाते हैं, सदा ही हाथ मलते हैं॥
समय को साधने से अस्थियाँ भी वज्र बनती है।
समय की साध, वानर- देह में बजरंग ढलती है॥
उन्हें मंजिल मिली है, जो समय के साथ चलते हैं॥
समय की दृष्टि में कोई नहीं छोटा, बड़ा होता।
समय को प्रिय वही जो, साथ में तनकर खड़ा होता॥
समय साधक गिलहरी, गिद्ध तक हो याद रखते हैं॥
समय ऐसा ही, फिर से अब युगों के बाद आया है।
उछलते प्राणवानों को, समय ने फिर बुलाया है॥
समय आवाज देकर, सुन रहा है कौन सुनते हैं॥
समय कटिबद्ध युगपीड़ा, पतन को दूर करने को।
समय प्रतिबद्ध है अब, मनुज का चिन्तन बदलने को॥
समय को देखना है, कौन अपने को बदलते हैं॥
व्यक्ति निर्माण से ही, नया युग- निर्माण होना है।
मनुज में ही पुनः, देवत्व का उत्थान होना है॥
सृजन का समय है, कितने सृजन की साध करते हैं॥
नए युग के सृजन का, यह समय जो चूक जायेंगे।
बताओ! किस तरह? निर्माण करके श्रेय पाएँगे॥
समय को साधने वाले, समय की शान बनते हैं॥