Books - गीत माला भाग १५
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सूर्यदेव आप अनवरत
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सूर्यदेव आप अनवरत
सूर्यदेव आप अनवरत प्रकाश दो हमें।
शक्ति का अजस्र स्रोत आसपास दो हमें॥
यज्ञ से प्रभो हमें सुबुद्धि प्राप्त हो सकें।
दुष्प्रवृत्ति दुष्टता पुनः न व्याप्त हो सकें॥
तेज का वही प्रखर विशद विभास दो हमें॥
प्रेरणा भरे पुनीत भव्य कर्म के लिये।
शक्ति भर सके विरोध की अधर्म के लिये॥
रोम- रोम में सुमन्यु का निवास दो हमें॥
एक पल कभी न आत्म- बल अदम्य घट सके ।।
रश्मि हम बनें प्रगाढ़ अन्धकार छुट सके॥
स्वर्ण भेर का वही सुखद सुहास दो हमें॥
व्यक्ति में चरित्र की पवित्रता प्रधान हो।
सन्त के लिये न दण्ड का कहीं विधान हो॥
हम सृजन सहाय हों वही विकास दो हमें॥
हम कुबुद्धि त्यागकर सहज सुमार्ग पर चलें।
हम तपे गले युगानुकूल रूप में ढलें॥
शब्द- शब्द में सरल विमल सुवास दो हमें॥
देखकर विभीषिका हृदय नहीं हताश हो।
पथ के लिये अनास्था न मृत्यु पाश हो॥
वह अटूट आस्था वही विश्वास दो हमें॥
सूर्यदेव आप अनवरत प्रकाश दो हमें।
शक्ति का अजस्र स्रोत आसपास दो हमें॥
यज्ञ से प्रभो हमें सुबुद्धि प्राप्त हो सकें।
दुष्प्रवृत्ति दुष्टता पुनः न व्याप्त हो सकें॥
तेज का वही प्रखर विशद विभास दो हमें॥
प्रेरणा भरे पुनीत भव्य कर्म के लिये।
शक्ति भर सके विरोध की अधर्म के लिये॥
रोम- रोम में सुमन्यु का निवास दो हमें॥
एक पल कभी न आत्म- बल अदम्य घट सके ।।
रश्मि हम बनें प्रगाढ़ अन्धकार छुट सके॥
स्वर्ण भेर का वही सुखद सुहास दो हमें॥
व्यक्ति में चरित्र की पवित्रता प्रधान हो।
सन्त के लिये न दण्ड का कहीं विधान हो॥
हम सृजन सहाय हों वही विकास दो हमें॥
हम कुबुद्धि त्यागकर सहज सुमार्ग पर चलें।
हम तपे गले युगानुकूल रूप में ढलें॥
शब्द- शब्द में सरल विमल सुवास दो हमें॥
देखकर विभीषिका हृदय नहीं हताश हो।
पथ के लिये अनास्था न मृत्यु पाश हो॥
वह अटूट आस्था वही विश्वास दो हमें॥