Books - शिक्षा व्यवस्था कैसी हो?
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Language: HINDI
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गुरुकुल परंपरा का पुनर्जागरण हो
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प्राचीनकालीन गुरुकुल परंपरा को जीवित किया जाए और शिक्षा के साथ साथ अगर संभव हो तो ऐसा प्रयत्न किया जाना चाहिए कि बच्चों को बोर्डिंग में ही रखा जाए। प्राचीनकाल में गुरुकुल प्रणाली थी और बहुत ही अच्छी और बहुत ही मुनासिब प्रणाली थी। अक्सर देखा यह गया है कि घरों का वातावरण उतना अच्छा नहीं होता और प्रत्येक परिवार में उतनी सांस्कृतिक व्यवस्था नहीं होती। घर में अनेक लोग रहते हैं और अनेक तरह के लोग रहते हैं उनको अपने साथ मिला करके ही चलना पड़ता है।
हिंदुस्तान जैसे संयुक्त परिवार प्रणाली के देश में मान लीजिए कोई बाप हुक्का पीता है कैसे मना किया जाए। कोई माँ गाली देने की अभ्यस्त है और लड़ाई-झगड़ा करने की अभ्यस्त है, माँ को कैसे घर से निकाल दिया जाए? घर का वातावरण सही रखना हर के बस का काम नहीं है। किसी-किसी से ही बन पड़ता है। अच्छे वातावरण में जब तक बच्चों को नहीं रखा जाएगा, तब तक बच्चों का नैतिक, सांस्कृतिक और आत्मिक विकास नहीं हो सकता। इसीलिए पुरानी पद्धति ये थी कि जहाँ शिक्षण दिया जाए वहाँ उसका उनको संरक्षण भी दिया जाए।
ये प्रथा गुरुकुलों द्वारा संभव थी, क्योंकि वहाँ महर्षियों के आश्रम में ऋषियों की धर्मपत्नियाँ उत्कृष्ट विचारधारा वाली थीं। जहाँ के सहायक अध्यापकों से लेकर के कर्मचारियों तक सब उसी स्तर के बने हुए थे जो बच्चों के ऊपर एक स्वस्थ प्रभाव डालें। बच्चों के लिए कुमार्ग पर जाने के लिए कुछ गुंजाइश जहाँ न हो, गाली देने की कोई गुंजाइश न हो, कामचोर बनने और आलस में पड़े रहने के लिए कोई गुंजाइश न हो, बुरे लड़कों के साथ में खेलने की कोई गुंजाइश न हो। इस तरह की सारी गुंजाइश जहाँ नहीं रहती है। वहाँ का वातावरण बढ़िया बन जाता है। वातावरण का प्रभाव बच्चों के मन और मस्तिष्क पर पड़ता हुआ चला जाता है। जब बड़े होते हैं, तो श्रेष्ठ नागरिक होते चले जाते हैं। आज भी इसी तरह की शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है। बच्चों को जब माँ-बाप खाना खिलाते ही हैं, कपड़ा पहनाते ही हैं, फीस और पढ़ाई का खरच देते ही हैं, तो उनको आँखों के आगे ही रख करके खरच उठाया जाए ये क्या बात है? ऐसा भी तो हो सकता है जो खरच माँ-बाप बच्चों के लिए उठाते हैं वह खरच उस तरह की शिक्षा प्रणाली के लिए गुरुकुल को दे दिया जाए। वहाँ बच्चों की न केवल शिक्षा बल्कि सारी की सारी दिनचर्या का क्रम ढाला जाए। अपनी शिक्षा में इस तरह की क्रांति की आवश्यकता है जहाँ बच्चों की पढ़ाई से ले करके उनकी दिनचर्या, उनके विचार करने की शैली से लेकर बौद्धिक व्यवस्था, बौद्धिक ज्ञान के अभिवर्द्धन की पूरी गुंजाइश रहे।
भावी पीढ़ी के निर्माण को एक राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर दूसरे स्रोतों से खरच में कटौती करें। अच्छा हो कि अपनी भावी पीढ़ियों का निर्माण करने के लिए अगर इस सिलसिले में थोड़ा ज्यादा भी खरच उठाया जाना आवश्यक हो, तो उठा लिया जाना चाहिए। तरह-तरह के टैक्स लगाए जा सकते हैं या दूसरी चीजों पर कमी की जा सकती है, ये जो कि मनुष्य के जीवन और मरण का प्रश्न है नई पीढ़ी का प्रश्न है आदमी को बनाने का प्रश्न है। आदमी को बनाने का मतलब समाज को बनाना, राष्ट्र को बनाना, भावी व्यवस्था को बनाना, उसके लिए अगर हमको शिक्षा पर खरच भी करना पड़ता हो और टैक्स भी देना पड़ता हो और सरकार को बड़ी व्यवस्था भी बनानी पड़ती हो, तो भी इसके लिए प्रबंध किया जाना चाहिए। शिक्षा और विद्या की उपयोगिता और शिक्षा के स्वरूप के बारे में हर विचारशील आदमी को चिंतन करना चाहिए। अपनी इस राष्ट्र की प्राथमिक आवश्यकता और महती आवश्यकता का समाधान करने के लिए ऐसा हल ढूँढ़ के निकालना चाहिए, जिससे अपना देश शिक्षित बन सके साक्षर बन सके विद्यावान् बन सके गुणी बन सके और व्यक्तित्व का विकास करने वाला बन सके। ऐसे व्यक्तित्वों का विकास और ऐसी शिक्षा प्रणाली ही हमारे देश को ऊँचा उठा सकती है। हमारे धर्म और संस्कृति को और राष्ट्र को मजबूत बना सकती है और विश्व शांति का आधार बन सकती है।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥
हिंदुस्तान जैसे संयुक्त परिवार प्रणाली के देश में मान लीजिए कोई बाप हुक्का पीता है कैसे मना किया जाए। कोई माँ गाली देने की अभ्यस्त है और लड़ाई-झगड़ा करने की अभ्यस्त है, माँ को कैसे घर से निकाल दिया जाए? घर का वातावरण सही रखना हर के बस का काम नहीं है। किसी-किसी से ही बन पड़ता है। अच्छे वातावरण में जब तक बच्चों को नहीं रखा जाएगा, तब तक बच्चों का नैतिक, सांस्कृतिक और आत्मिक विकास नहीं हो सकता। इसीलिए पुरानी पद्धति ये थी कि जहाँ शिक्षण दिया जाए वहाँ उसका उनको संरक्षण भी दिया जाए।
ये प्रथा गुरुकुलों द्वारा संभव थी, क्योंकि वहाँ महर्षियों के आश्रम में ऋषियों की धर्मपत्नियाँ उत्कृष्ट विचारधारा वाली थीं। जहाँ के सहायक अध्यापकों से लेकर के कर्मचारियों तक सब उसी स्तर के बने हुए थे जो बच्चों के ऊपर एक स्वस्थ प्रभाव डालें। बच्चों के लिए कुमार्ग पर जाने के लिए कुछ गुंजाइश जहाँ न हो, गाली देने की कोई गुंजाइश न हो, कामचोर बनने और आलस में पड़े रहने के लिए कोई गुंजाइश न हो, बुरे लड़कों के साथ में खेलने की कोई गुंजाइश न हो। इस तरह की सारी गुंजाइश जहाँ नहीं रहती है। वहाँ का वातावरण बढ़िया बन जाता है। वातावरण का प्रभाव बच्चों के मन और मस्तिष्क पर पड़ता हुआ चला जाता है। जब बड़े होते हैं, तो श्रेष्ठ नागरिक होते चले जाते हैं। आज भी इसी तरह की शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है। बच्चों को जब माँ-बाप खाना खिलाते ही हैं, कपड़ा पहनाते ही हैं, फीस और पढ़ाई का खरच देते ही हैं, तो उनको आँखों के आगे ही रख करके खरच उठाया जाए ये क्या बात है? ऐसा भी तो हो सकता है जो खरच माँ-बाप बच्चों के लिए उठाते हैं वह खरच उस तरह की शिक्षा प्रणाली के लिए गुरुकुल को दे दिया जाए। वहाँ बच्चों की न केवल शिक्षा बल्कि सारी की सारी दिनचर्या का क्रम ढाला जाए। अपनी शिक्षा में इस तरह की क्रांति की आवश्यकता है जहाँ बच्चों की पढ़ाई से ले करके उनकी दिनचर्या, उनके विचार करने की शैली से लेकर बौद्धिक व्यवस्था, बौद्धिक ज्ञान के अभिवर्द्धन की पूरी गुंजाइश रहे।
भावी पीढ़ी के निर्माण को एक राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर दूसरे स्रोतों से खरच में कटौती करें। अच्छा हो कि अपनी भावी पीढ़ियों का निर्माण करने के लिए अगर इस सिलसिले में थोड़ा ज्यादा भी खरच उठाया जाना आवश्यक हो, तो उठा लिया जाना चाहिए। तरह-तरह के टैक्स लगाए जा सकते हैं या दूसरी चीजों पर कमी की जा सकती है, ये जो कि मनुष्य के जीवन और मरण का प्रश्न है नई पीढ़ी का प्रश्न है आदमी को बनाने का प्रश्न है। आदमी को बनाने का मतलब समाज को बनाना, राष्ट्र को बनाना, भावी व्यवस्था को बनाना, उसके लिए अगर हमको शिक्षा पर खरच भी करना पड़ता हो और टैक्स भी देना पड़ता हो और सरकार को बड़ी व्यवस्था भी बनानी पड़ती हो, तो भी इसके लिए प्रबंध किया जाना चाहिए। शिक्षा और विद्या की उपयोगिता और शिक्षा के स्वरूप के बारे में हर विचारशील आदमी को चिंतन करना चाहिए। अपनी इस राष्ट्र की प्राथमिक आवश्यकता और महती आवश्यकता का समाधान करने के लिए ऐसा हल ढूँढ़ के निकालना चाहिए, जिससे अपना देश शिक्षित बन सके साक्षर बन सके विद्यावान् बन सके गुणी बन सके और व्यक्तित्व का विकास करने वाला बन सके। ऐसे व्यक्तित्वों का विकास और ऐसी शिक्षा प्रणाली ही हमारे देश को ऊँचा उठा सकती है। हमारे धर्म और संस्कृति को और राष्ट्र को मजबूत बना सकती है और विश्व शांति का आधार बन सकती है।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥