Books - तप और योग के मार्मिक पक्ष
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Language: HINDI
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एक ही देवता-भगवान
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मित्रो! हम भगवान को एक मानते हैं। भगवान एक है। अगर दुनिया में अनेक देवता रह गए तो आफत पैदा कर देंगे। इनमें आपस में लड़ाई हो जाएगी, मार काट मचेगी, फौजदारी हो जाएगी। इलेक्शन में प्रतिद्वंद्वी तैयार हो जाएँगे। दुनिया में अनेक देवता नहीं रह सकते। दुनिया में एक ही देवता रह सकता है और उसका नाम है-भगवान। अब प्रश्न उठता है कि भगवान को हम अपना इष्ट कैसे बनाएँ? इसको बनाने का एक ही तरीका है कि आप जीवन में यह निश्चय कीजिए कि आपको क्या बनना है? ऊँचाई के रास्ते पर चलने के लिए आपको क्या बनना है? आपको लोकहित करना है या आपको भगवान का भक्त बनना है? भगवान का भक्त बनना हो तो आपको हनुमान जी को इष्टदेव बनाने में कोई हर्ज नहीं है। यदि आपको उदात्त बनना हो और मानवता के सिद्धांतों से ओत-प्रोत होना हो तो गायत्री से बढ़िया इष्ट और क्या हो सकता है?
बेटे! ये देवियाँ देवियाँ नहीं हैं। ये भगवान की एक-एक कला है, एक-एक विशेषता है। अगर आपको सारी विशेषताओं को इकट्ठा करना हो तो आप सविता को अपना इष्ट मान सकते हैं। सविता में, सूर्य में बहुत सारी किरणें होती हैं, बहुत सी विशेषताएँ होती हैं। भगवान की दयालुता का, भगवान की नियमितता का, विश्वव्यापकता का, इन सारी की सारी विशेषताओं का सविता में समावेश है। इन विशेषताओं के समाविष्ट होने में आप एकमत हो सकते हैं। कोई इष्टदेवता आप बनाएँ चाहे न बनाएँ लेकिन अगर निराकार को मानने वाले हैं तो आपको देवता नहीं मिलेगा। अगर आप साकार को मानने वाले हैं तो देवता को बनाने के लिए बैठना नहीं पड़ता। मैं तो कहता हूँ कि आपका इष्टदेवता ऐसा होना चाहिए कि आपको अपने जीवन में पहुँचना कहाँ है, जो तदनुरूप आपके समग्र व्यक्तित्व को ढाल दे। इसके लिए आपका ''स्व'' में ध्यान एकाग्र होना चाहिए। यह योग की स्थिति है ।
बेटे! ये देवियाँ देवियाँ नहीं हैं। ये भगवान की एक-एक कला है, एक-एक विशेषता है। अगर आपको सारी विशेषताओं को इकट्ठा करना हो तो आप सविता को अपना इष्ट मान सकते हैं। सविता में, सूर्य में बहुत सारी किरणें होती हैं, बहुत सी विशेषताएँ होती हैं। भगवान की दयालुता का, भगवान की नियमितता का, विश्वव्यापकता का, इन सारी की सारी विशेषताओं का सविता में समावेश है। इन विशेषताओं के समाविष्ट होने में आप एकमत हो सकते हैं। कोई इष्टदेवता आप बनाएँ चाहे न बनाएँ लेकिन अगर निराकार को मानने वाले हैं तो आपको देवता नहीं मिलेगा। अगर आप साकार को मानने वाले हैं तो देवता को बनाने के लिए बैठना नहीं पड़ता। मैं तो कहता हूँ कि आपका इष्टदेवता ऐसा होना चाहिए कि आपको अपने जीवन में पहुँचना कहाँ है, जो तदनुरूप आपके समग्र व्यक्तित्व को ढाल दे। इसके लिए आपका ''स्व'' में ध्यान एकाग्र होना चाहिए। यह योग की स्थिति है ।