Books - तप और योग के मार्मिक पक्ष
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Language: HINDI
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तप और योग के मार्मिक पक्ष
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
आशीर्वाद लूट नहीं है
महाराज जी! आप तप कीजिए और आशीर्वाद देकर हमारा फायदा करा दीजिए। बेटे, आशीर्वाद माने लूट नहीं है, जो तू समझता है-''राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट।'' ऐसे किसी चीज की लूट नहीं पड़ रही है। आशीर्वाद की तो पड़ रही है? नहीं बेटे, आशीर्वाद की तो बिलकुल नहीं पड़ रही है। आशीर्वाद की बहुत कीमत है। कीमत चुकाए बिना न आशीर्वाद मिलता है, न वरदान मिलता है, न सिद्धि मिलती है, न चमत्कार मिलता है और न मनोकामना पूरी होती है। हर आदमी को हर चीज की कीमत चुकानी पड़ी है। नहीं गुरुजी, हम तो बिना कीमत चुकाए ही पाएँगे। क्या करेंगे? लूट करेंगे। कैसे? ''राम नाम लड्डू गोपाल नाम खीर। हरि का नाम मिसरी तो घोल-घोल पी।'' हाँ बेटे ये तो हो जाएगा। ये लूट अलग है। इसमें कोई एतराज नहीं है, लेकिन जो व्यक्ति कीमती चीज पाना चाहता है, उसे कीमत चुकानी पड़ेगी ।
मित्रो! अभी मैं एकाग्रता की बात कह रहा था। एकाग्रता लाने का फैसला आप करते हैं तो मैं यह कहूँगा कि आप योग के मार्ग पर चल रहे हैं और योगी बनने की कोशिश कर रहे हैं। यह हुई नंबर एक की बात-एकाग्रता की बात। अब मैं नंबर दो-योग के दूसरे वाले लक्ष्य की बात बताता हूँ। योग के दूसरे वाले भाग में शामिल होता है-ध्यान। वह क्या है? बेटे, इसका मंतव्य यह है कि भगवान के चिंतन का कोई लक्ष्य होना चाहिए। इसका नाम हैं-इष्ट। इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए। कौन सा इष्टदेव? जो भी आपने तय किया हो। महाराज जी! कौन सा इष्टदेव बनाऊँ? जो भी आपका मन हो, बना लीजिए लेकिन ध्यान पूरा कीजिए। इष्टदेव का आप ध्यान करेंगे तो क्या हो जाएगा? इष्ट माने लक्ष्य, इष्ट माने देवता। देवता पहला प्रतीक माना गया है। देवता किसी शक्ति के प्रतीक हैं, जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम। मर्यादा वाला व्यक्ति बनना है तो आपको अपना इष्टदेव राम को मानना चाहिए। आपको पूर्णपुरुष बनना है तो आपको अपना इष्टदेव कृष्ण को मानना चाहिए। अगर आपको रामभक्त बनना है तो आपको अपना इष्ट भक्त हनुमान को बनाना चाहिए ।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
आशीर्वाद लूट नहीं है
महाराज जी! आप तप कीजिए और आशीर्वाद देकर हमारा फायदा करा दीजिए। बेटे, आशीर्वाद माने लूट नहीं है, जो तू समझता है-''राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट।'' ऐसे किसी चीज की लूट नहीं पड़ रही है। आशीर्वाद की तो पड़ रही है? नहीं बेटे, आशीर्वाद की तो बिलकुल नहीं पड़ रही है। आशीर्वाद की बहुत कीमत है। कीमत चुकाए बिना न आशीर्वाद मिलता है, न वरदान मिलता है, न सिद्धि मिलती है, न चमत्कार मिलता है और न मनोकामना पूरी होती है। हर आदमी को हर चीज की कीमत चुकानी पड़ी है। नहीं गुरुजी, हम तो बिना कीमत चुकाए ही पाएँगे। क्या करेंगे? लूट करेंगे। कैसे? ''राम नाम लड्डू गोपाल नाम खीर। हरि का नाम मिसरी तो घोल-घोल पी।'' हाँ बेटे ये तो हो जाएगा। ये लूट अलग है। इसमें कोई एतराज नहीं है, लेकिन जो व्यक्ति कीमती चीज पाना चाहता है, उसे कीमत चुकानी पड़ेगी ।
मित्रो! अभी मैं एकाग्रता की बात कह रहा था। एकाग्रता लाने का फैसला आप करते हैं तो मैं यह कहूँगा कि आप योग के मार्ग पर चल रहे हैं और योगी बनने की कोशिश कर रहे हैं। यह हुई नंबर एक की बात-एकाग्रता की बात। अब मैं नंबर दो-योग के दूसरे वाले लक्ष्य की बात बताता हूँ। योग के दूसरे वाले भाग में शामिल होता है-ध्यान। वह क्या है? बेटे, इसका मंतव्य यह है कि भगवान के चिंतन का कोई लक्ष्य होना चाहिए। इसका नाम हैं-इष्ट। इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए। कौन सा इष्टदेव? जो भी आपने तय किया हो। महाराज जी! कौन सा इष्टदेव बनाऊँ? जो भी आपका मन हो, बना लीजिए लेकिन ध्यान पूरा कीजिए। इष्टदेव का आप ध्यान करेंगे तो क्या हो जाएगा? इष्ट माने लक्ष्य, इष्ट माने देवता। देवता पहला प्रतीक माना गया है। देवता किसी शक्ति के प्रतीक हैं, जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम। मर्यादा वाला व्यक्ति बनना है तो आपको अपना इष्टदेव राम को मानना चाहिए। आपको पूर्णपुरुष बनना है तो आपको अपना इष्टदेव कृष्ण को मानना चाहिए। अगर आपको रामभक्त बनना है तो आपको अपना इष्ट भक्त हनुमान को बनाना चाहिए ।