Books - तप और योग के मार्मिक पक्ष
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Language: HINDI
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सूक्ष्म में प्रवेश
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साथियो! दूसरा चरण उससे बहुत ऊँचा है वह हमारे सूक्ष्म जगत से संबंधित है, जिसमें देवी-देवताओं का भी निवास है, जिसमें हमारे भगवान का भी निवास है, जिसमें हमारे अंतरंग जीवन की क्षमताएँ भरी पड़ी हैं, जिन्हें हम सिद्धियाँ कहते हैं। ये सभी एकाग्रता की शक्ति से ही हस्तगत होती हैं। हमारे अंतरंग जीवन में खजाने भरे पड़े हैं। ध्यान के सहारे हम अपने भीतर प्रवेश करके उनको तलाश कर सकते है। जमीन में से पानी तलाश करने वाले एक स्वामी जी थे, माधवानंद जी। उन्होंने राजस्थान में जाकर बहुत जगह बताया था कि यहाँ गड्ढा खोदिए पानी मिलेगा। पंडित नेहरू से वे मिले थे और उन्होंने उन्हें जल विभाग के हाथ सुपुर्द कर दिया था। कहा था कि स्वामी जी को ले जाइए और जहाँ ये पानी बताएँ वहाँ पर ट्यूब-वेल लगाइए जिससे राजस्थान में पानी मिल सकता है। उन्होंने बहुत से कुएँ बनवाए थे। उन्होंने जमीन में गड़ा हुआ धन बताया था, नमक बताया था, अमुक अमुक चीजें अमुक अमुक जगह होना बताया था ।
मित्रो! यह क्या है? एकाग्रता की शक्ति है। जब यही शक्ति बाहरी जीवन में प्रयुक्त होती है तो टेलीस्कोप की तरह से देखने में समर्थ हो जाती है, लेकिन जब हमारे अंतरंग जीवन में प्रवेश करती है तो सारे के सारे सूक्ष्म जगत में विद्यमान रहस्यों को खोलकर रख देती है, जिसमें देवी देवता भी शामिल हैं। चक्रों के रूप में देवता हमारे भीतर विद्यमान हैं। एक से एक बढ़िया चीजें हमारे भीतर विद्यमान हैं जिनमें कुंडलिनी भी शामिल है। हमारे भीतर दो ध्रुव हैं-एक उत्तरी ध्रुव और एक दक्षिणी ध्रुव। उत्तरी ध्रुव हमारा मस्तिष्क है, जो शक्तियों का पुंज है। इसमें अनेक लोक लोकांतर की चेतन शक्तियाँ भरी पड़ी हैं। दक्षिणी ध्रुव हमारा मूलाधारचक्र है। एक हमारा सिर वाला सहस्रारचक्र उत्तरी ध्रुव है और मूलाधार दक्षिणी ध्रुव है। पृथ्वी को जो आंतरिक ताकत मिलती है, वह उसके दोनों ध्रुवों से मिलती है। इसी तरह हमारे भीतर विद्यमान दोनों ध्रुव शक्तिशाली जेनरेटर की तरह लगे हुए हैं। उनकी शक्ति के बारे में मैं क्या कह सकता हूँ किंतु ये दोनों सोए हुए पड़े हैं। सोई हुई चीज को ठीक करने के लिए क्या बाहरी शक्ति काम कर सकती है? नहीं कर सकती। हमारे भीतर कोई चीज प्रवेश नहीं कर सकती ।
हमारे भीतर एक ही चीज प्रवेश कर सकती है और वह है-ध्यान। अगर हम अपनी मनशक्ति को ध्यान द्वारा एकाग्र करना सीख लें, ध्यान को एक ताकत बना लें तो सब कुछ हस्तगत हो सकता है। ध्यान को जहाँ कहीं भी, जिस स्थान पर भी हमने भेजा है, एक चमत्कार देखा है। ध्यान की शक्ति अगर हृदय पर लगा दी जाए और हृदय से कहा जाए कि भाईसाहब, आपको बंद होना है तो उसका धड़कना बंद हो जाता है और आदमी समाधि में चला जाता है। लोग ६-६ महीने समाधि में रह सकते हैं। बस, करना इतना होता है कि ध्यान की स्थिति में मन को कहते हैं कि भागना मत और मरना भी मत। ये दो काम मत करना। समाधि में मन चला भी जाता है ।
मित्रो! यह क्या है? एकाग्रता की शक्ति है। जब यही शक्ति बाहरी जीवन में प्रयुक्त होती है तो टेलीस्कोप की तरह से देखने में समर्थ हो जाती है, लेकिन जब हमारे अंतरंग जीवन में प्रवेश करती है तो सारे के सारे सूक्ष्म जगत में विद्यमान रहस्यों को खोलकर रख देती है, जिसमें देवी देवता भी शामिल हैं। चक्रों के रूप में देवता हमारे भीतर विद्यमान हैं। एक से एक बढ़िया चीजें हमारे भीतर विद्यमान हैं जिनमें कुंडलिनी भी शामिल है। हमारे भीतर दो ध्रुव हैं-एक उत्तरी ध्रुव और एक दक्षिणी ध्रुव। उत्तरी ध्रुव हमारा मस्तिष्क है, जो शक्तियों का पुंज है। इसमें अनेक लोक लोकांतर की चेतन शक्तियाँ भरी पड़ी हैं। दक्षिणी ध्रुव हमारा मूलाधारचक्र है। एक हमारा सिर वाला सहस्रारचक्र उत्तरी ध्रुव है और मूलाधार दक्षिणी ध्रुव है। पृथ्वी को जो आंतरिक ताकत मिलती है, वह उसके दोनों ध्रुवों से मिलती है। इसी तरह हमारे भीतर विद्यमान दोनों ध्रुव शक्तिशाली जेनरेटर की तरह लगे हुए हैं। उनकी शक्ति के बारे में मैं क्या कह सकता हूँ किंतु ये दोनों सोए हुए पड़े हैं। सोई हुई चीज को ठीक करने के लिए क्या बाहरी शक्ति काम कर सकती है? नहीं कर सकती। हमारे भीतर कोई चीज प्रवेश नहीं कर सकती ।
हमारे भीतर एक ही चीज प्रवेश कर सकती है और वह है-ध्यान। अगर हम अपनी मनशक्ति को ध्यान द्वारा एकाग्र करना सीख लें, ध्यान को एक ताकत बना लें तो सब कुछ हस्तगत हो सकता है। ध्यान को जहाँ कहीं भी, जिस स्थान पर भी हमने भेजा है, एक चमत्कार देखा है। ध्यान की शक्ति अगर हृदय पर लगा दी जाए और हृदय से कहा जाए कि भाईसाहब, आपको बंद होना है तो उसका धड़कना बंद हो जाता है और आदमी समाधि में चला जाता है। लोग ६-६ महीने समाधि में रह सकते हैं। बस, करना इतना होता है कि ध्यान की स्थिति में मन को कहते हैं कि भागना मत और मरना भी मत। ये दो काम मत करना। समाधि में मन चला भी जाता है ।