Books - तप और योग के मार्मिक पक्ष
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Language: HINDI
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पाँच प्रकार के ध्यान
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पहला ध्यान हमने अग्नितत्त्व का बताया है, जिसका माध्यम नेत्र हैं। दूसरा ध्यान है नाद का। ''नादयोग'' किसे कहते हैं? नादयोग के दो हिस्से हैं। एक हिस्सा वह है, जो गाने के माध्यम से, संगीत के माध्यम से करते हैं। जब हम गाना सुनकर कानों को बंद कर लेते हैं तो बाद में कई तरह की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। कभी घंटे की आवाज, घड़ियाल की आवाज, कभी अमुक की आवाज, बादल गरजने की आवाज, पानी बरसने की आवाज, शंख बजने की आवाज सुनाई देती है। यह सब नादयोग का हिस्सा है। नादयोग का दूसरा हिस्सा वह है, जिसमें शब्द के साथ-साथ में हम लय हो जाते हैं। इसमें अखण्ड कीर्तन भी शामिल है, संगीत भी शामिल है, ओंकार की ध्वनि भी शामिल है ।
नादयोग कानों के माध्यम से शब्दों को सुनने की एक प्रक्रिया है, जो कबीर पंथ में सिखाई जाती है और कई मतावलम्बियों में सिखाई जाती है। नाथ संप्रदाय में सिखाई जाती हैं। वह तो मैं नहीं सिखाना चाहूँगा, लेकिन शब्द के माध्यम से अपने आप को लय कर देना, मन को, ध्यान को एकाग्र कर देना, यह भी एक तरीका हैं। इसके लिए ओंकार की ध्वनि सबसे श्रेष्ठ माध्यम है। अहमदाबाद में एक योगाश्रम है, जहाँ ओंकार की ध्वनि के साथ आदमी के मन को लय करना सिखाया जाता है। मन को लय करते करते साधक वहाँ पहुँच जाते हे, जहाँ पर हम अपने मन को ले जाना चाहते हैं। इसमें भगवान तक पहुँचने की वह समाधि अवस्था भी आ सकती है, जो हर साधक का लक्ष्य है। अभी मैं आपको इसकी प्रक्रिया सिखाने की व्याख्या कर रहा हूँ, विधियों नहीं सिखा रहा, वरन समझा रहा हूँ। इनमें पाँचों का समन्वय हो सकता है और पाँचों में से एक को लेकर भी आगे बढ़ सकते हैं। यह ध्यानयोग की बात मैं आपको बता रहा हँ ।
अगला योग हमारी नासिका से संबंधित है। तीसरी इंद्रिय है-नाक। नाक से हमें क्या करना पड़ता है? नाक से जब हम साँस अंदर खींचते हैं तो सामान्य प्राणायाम करना पड़ता है और प्राणायाम में ध्यान करना पड़ता है। प्राणायाम क्या है? एक ध्यान है। प्राणायाम में पाँच तत्त्वों में ध्यान ही ध्यान करते रहिए। जब हम साँस भीतर खींचते हैं तो ध्यान करते हैं कि साँस भीतर जा रही है, अब यह यहाँ तक पहुँच गई, इतनी देर तक रुकी रही, इतनी देर तक बाहर निकली, यह सब ध्यान का हिस्सा है। बाहर कितनी देर तक रुकी हुई है, यह सब ध्यान का हिस्सा है। जब हम प्राणायाम के माध्यम से ध्यान करते हैं तो साँस माध्यम बनती है। इससे मन का निग्रह करते हैं, मन को भागने से रोकते हैं, काबू में लाते हैं, मन को एक काम में लगा देते हैं। तब क्या हो जाता है, प्राणयोग होता है ।
बिंदुयोग हो गया, प्राणयोग हो गया, नादयोग हो गया। अब अगला योग आता है, जो हमारी जीभ का है। जीभ का क्या है? बेटे, जीभ का जो ध्यान है, वह जप है। जप किससे होता है? शब्द से। और शब्द कहाँ से निकलता है? हमारी वाणी से निकलता है। इसे जपयोग कहते हैं। जप के भी दो भाग हैं-जिह्वा का एक भाग उच्चारण करता है तो दूसरा भाग स्वाद चखता है। जिह्वा का जो भाग स्वाद चखता है, उसके लिए दूसरा अभ्यास कराते हैं और उसका नाम है-'खेचरी मुद्रा'। इस तरह जीभ का उच्चारण वाला अभ्यास है-जपयोग एवं स्वाद वाला अभ्यास है-खेचरी मुद्रा। खेचरी मुद्रा वाले अभ्यास से रसानुभूति होती है। रस के माध्यम से हम ध्यान को एकाग्र करते हैं। मन के एकाग्र होने के पश्चात हमारे पास इतना बड़ा हथियार आ जाता है कि उसकी तुलना में और कोई हथियार नहीं है। ये सारे के सारे पाँच ध्यान हैं, पाँच योग हैं, जो पाँचों इंद्रियों के माध्यम से हम आपको यहाँ सिखाते हैं। ये गायत्री की पंचकोशीय साधना से आसान हैं, जिनको हम सिखाते हैं।
मित्रो! हमने आपकी उपासना में इन्हें कैसे समन्वय किया हुआ है और समन्वय के साथ-साथ इसकी कैसे वृद्धि होनी चाहिए यह सब आगे अच्छी तरह से समझाने की कोशिश करेंगे। अभी तो हम इसकी भूमिका बता रहे हैं, कल से मैं आपको बताऊँगा कि इन पाँचों योगों का सम्मिश्रण हमने किस तरह से किया हुआ है? गायत्री उपासना में ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र करने के लिए जो पहला उसूल आता है, उसको हमने आपको पहले भी बताया है, उसे आप न भूले होंगे। ध्यान के लिए गीता में जो उपाय बताए गए हैं, यदि उन्हें आप अपनाएँ तो आपका ध्यान सार्थक हो जाए। गीता में अर्जुन पूछता है कि से भगवान! यह मन तो हवा की तरह है, भाग जाता है, काबू में नहीं आता, रोकने से भी नहीं रुकता। इसको कैसे रोकें? तो उन्होंने जो उपाय बताए उनके नाम हैं-वैराग्य और अभ्यास ।
नादयोग कानों के माध्यम से शब्दों को सुनने की एक प्रक्रिया है, जो कबीर पंथ में सिखाई जाती है और कई मतावलम्बियों में सिखाई जाती है। नाथ संप्रदाय में सिखाई जाती हैं। वह तो मैं नहीं सिखाना चाहूँगा, लेकिन शब्द के माध्यम से अपने आप को लय कर देना, मन को, ध्यान को एकाग्र कर देना, यह भी एक तरीका हैं। इसके लिए ओंकार की ध्वनि सबसे श्रेष्ठ माध्यम है। अहमदाबाद में एक योगाश्रम है, जहाँ ओंकार की ध्वनि के साथ आदमी के मन को लय करना सिखाया जाता है। मन को लय करते करते साधक वहाँ पहुँच जाते हे, जहाँ पर हम अपने मन को ले जाना चाहते हैं। इसमें भगवान तक पहुँचने की वह समाधि अवस्था भी आ सकती है, जो हर साधक का लक्ष्य है। अभी मैं आपको इसकी प्रक्रिया सिखाने की व्याख्या कर रहा हूँ, विधियों नहीं सिखा रहा, वरन समझा रहा हूँ। इनमें पाँचों का समन्वय हो सकता है और पाँचों में से एक को लेकर भी आगे बढ़ सकते हैं। यह ध्यानयोग की बात मैं आपको बता रहा हँ ।
अगला योग हमारी नासिका से संबंधित है। तीसरी इंद्रिय है-नाक। नाक से हमें क्या करना पड़ता है? नाक से जब हम साँस अंदर खींचते हैं तो सामान्य प्राणायाम करना पड़ता है और प्राणायाम में ध्यान करना पड़ता है। प्राणायाम क्या है? एक ध्यान है। प्राणायाम में पाँच तत्त्वों में ध्यान ही ध्यान करते रहिए। जब हम साँस भीतर खींचते हैं तो ध्यान करते हैं कि साँस भीतर जा रही है, अब यह यहाँ तक पहुँच गई, इतनी देर तक रुकी रही, इतनी देर तक बाहर निकली, यह सब ध्यान का हिस्सा है। बाहर कितनी देर तक रुकी हुई है, यह सब ध्यान का हिस्सा है। जब हम प्राणायाम के माध्यम से ध्यान करते हैं तो साँस माध्यम बनती है। इससे मन का निग्रह करते हैं, मन को भागने से रोकते हैं, काबू में लाते हैं, मन को एक काम में लगा देते हैं। तब क्या हो जाता है, प्राणयोग होता है ।
बिंदुयोग हो गया, प्राणयोग हो गया, नादयोग हो गया। अब अगला योग आता है, जो हमारी जीभ का है। जीभ का क्या है? बेटे, जीभ का जो ध्यान है, वह जप है। जप किससे होता है? शब्द से। और शब्द कहाँ से निकलता है? हमारी वाणी से निकलता है। इसे जपयोग कहते हैं। जप के भी दो भाग हैं-जिह्वा का एक भाग उच्चारण करता है तो दूसरा भाग स्वाद चखता है। जिह्वा का जो भाग स्वाद चखता है, उसके लिए दूसरा अभ्यास कराते हैं और उसका नाम है-'खेचरी मुद्रा'। इस तरह जीभ का उच्चारण वाला अभ्यास है-जपयोग एवं स्वाद वाला अभ्यास है-खेचरी मुद्रा। खेचरी मुद्रा वाले अभ्यास से रसानुभूति होती है। रस के माध्यम से हम ध्यान को एकाग्र करते हैं। मन के एकाग्र होने के पश्चात हमारे पास इतना बड़ा हथियार आ जाता है कि उसकी तुलना में और कोई हथियार नहीं है। ये सारे के सारे पाँच ध्यान हैं, पाँच योग हैं, जो पाँचों इंद्रियों के माध्यम से हम आपको यहाँ सिखाते हैं। ये गायत्री की पंचकोशीय साधना से आसान हैं, जिनको हम सिखाते हैं।
मित्रो! हमने आपकी उपासना में इन्हें कैसे समन्वय किया हुआ है और समन्वय के साथ-साथ इसकी कैसे वृद्धि होनी चाहिए यह सब आगे अच्छी तरह से समझाने की कोशिश करेंगे। अभी तो हम इसकी भूमिका बता रहे हैं, कल से मैं आपको बताऊँगा कि इन पाँचों योगों का सम्मिश्रण हमने किस तरह से किया हुआ है? गायत्री उपासना में ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र करने के लिए जो पहला उसूल आता है, उसको हमने आपको पहले भी बताया है, उसे आप न भूले होंगे। ध्यान के लिए गीता में जो उपाय बताए गए हैं, यदि उन्हें आप अपनाएँ तो आपका ध्यान सार्थक हो जाए। गीता में अर्जुन पूछता है कि से भगवान! यह मन तो हवा की तरह है, भाग जाता है, काबू में नहीं आता, रोकने से भी नहीं रुकता। इसको कैसे रोकें? तो उन्होंने जो उपाय बताए उनके नाम हैं-वैराग्य और अभ्यास ।