Books - तप और योग के मार्मिक पक्ष
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Language: HINDI
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एकाग्रता हेतु भिन्न प्रकार के ध्यान
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साथियो! संस्कार उसे कहते हैं, जो विचार और कर्म, दोनों के समन्वय से बनता है। इसलिए हमें अपना योगाभ्यास अर्थात मानसिक स्तर अर्थात अपने चिंतन को ऊँचाई की ओर ले जाने के लिए क्या प्रयत्न करना चाहिए संक्षेप में यह योग की परिभाषा है। योग को पूरा करने के लिए एक काम करना पड़ता है और उसका नाम है-ध्यान। ध्यान की अनेक क्रियाएँ हैं, जैसे हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, पाँच कर्मेंद्रियाँ हैं। पाँच तत्त्वों से हमारा शरीर बना हुआ है और योग की भी पाँच धाराएँ प्रख्यात हैं। पाँच ध्यान मुख्य हैं। इनमें से एक ध्यान तो वह है, जो हमारे शरीर में अग्नितत्त्व के रूप में स्थापित है। अग्नितत्त्व का प्रतीक हमारी ये आँखें हैं। उसमें जब हम प्रवेश करते हैं तो हमको शक्ल का ध्यान करना पड़ता है। निराकार में जब आप जाएँगे तो प्रकाश का और साकार में जाएँगे तो किसी आकार का, देवी-देवता, मूर्ति, फल-फूल किसी भी शक्ल का ध्यान करना पड़ेगा। शक्ल का ध्यान करना हमारी तन्मात्रा से संबंधित है। इनमें से रूप तन्मात्रा का उद्देश्य है -हमारे नेत्र। इसी तरह अन्यान्य तन्मात्राओं का भी अपना अपना स्वरूप और उद्देश्य है, जिनमें मन को एकाग्र किया जाता है ।
मित्रो! मेरा उद्देश्य है, मन को एकाग्र करना। मन को एकाग्र करने के लिए मैं आपको बहुत से ध्यान बताऊँगा। मन को एकाग्र करके फिर क्या करना पड़ता है? उसे किसी दिशा में बढ़ा देना पड़ता है, जिससे कि हमको अभीष्ट परिणाम प्राप्त हो सके। ध्यानयोग का एक तरीका यह है कि हम किसी शक्ल की सहायता से अपने भीतर काम करने वाला जो 'अग्नितत्त्व है अर्थात हमारी जो नेत्र इंद्रिय है अर्थात उसका जो रूप तन्मात्रा है, उसका हम ध्यान करते हैं तो कोई शक्ल का ध्यान आता है। इसी तरह रस तन्मात्रा के बारे में है। यह सब मैं आगे चलकर आपको बताऊँगा। अभी हम आपको गायत्री के पाँच मुखों के रूप में पंचतत्त्वों की, पंचकोशों की उपासना सिखाते हैं। इन पाँच योगों से क्या ताल्लुक है, यह बताते हैं ।
मित्रो! मेरा उद्देश्य है, मन को एकाग्र करना। मन को एकाग्र करने के लिए मैं आपको बहुत से ध्यान बताऊँगा। मन को एकाग्र करके फिर क्या करना पड़ता है? उसे किसी दिशा में बढ़ा देना पड़ता है, जिससे कि हमको अभीष्ट परिणाम प्राप्त हो सके। ध्यानयोग का एक तरीका यह है कि हम किसी शक्ल की सहायता से अपने भीतर काम करने वाला जो 'अग्नितत्त्व है अर्थात हमारी जो नेत्र इंद्रिय है अर्थात उसका जो रूप तन्मात्रा है, उसका हम ध्यान करते हैं तो कोई शक्ल का ध्यान आता है। इसी तरह रस तन्मात्रा के बारे में है। यह सब मैं आगे चलकर आपको बताऊँगा। अभी हम आपको गायत्री के पाँच मुखों के रूप में पंचतत्त्वों की, पंचकोशों की उपासना सिखाते हैं। इन पाँच योगों से क्या ताल्लुक है, यह बताते हैं ।