Books - यज्ञ का ज्ञान और विज्ञान
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Language: HINDI
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संचय करना पाप है
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मित्रो! आपको अपने में से कटौती करनी पड़ेगी; चाहे वह सरकारी टैक्स के रूप में चुकता कीजिए अथवा धर्म-परंपरा के नाम पर दान करके कटौती कीजिए अथवा अध्यात्म सिद्धांत के अनुसार अपरिग्रही हो जाइए। हमारे यहाँ शास्त्रों में मनुष्य जाति के लिए पाँच पाप और पाँच पुण्य बताए गए हैं। कौन-कौन से पाँच पुण्य हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। ये पाँच पुण्य हैं, छठवाँ और कोई नहीं है और पाँच ही पाप हैं दुनिया में; इससे उलटा कर दीजिए वे पाप हैं। उन सारे पापों और पुण्यों की व्याख्या तो मैं यहाँ पर नहीं करता, पर जो यज्ञाग्नि से संबंध रखता है, उस पुण्य की बात कहता हूँ। उसका नाम है-अपरिग्रह। अपरिग्रह पुण्य हैं और परिग्रह पाप है। आप मालदार आदमी हैं, मुबारक है आपको, पर आपके परिग्रह को आध्यात्मिकता की कसौटी पर हम अच्छा नहीं मानेंगे। आपका परिग्रह निंदनीय है। क्यों साहब! हमने कमाया और जमा कर लिया तो क्या बात हो गई? भाई साहब! हमने मान लिया कि आपने बेईमानी से नहीं कमाया है, मेहनत से कमाया है, लेकिन मैं कहता हूँ कि भगवान ने इतनी सामर्थ्य आपको दी थी कि आप इतना कमा सके लेकिन उस भगवान ने कुछ ऐसा दिल आपको क्यों नहीं दिया जिससे पड़ोसी के दुःख को देख करके आपकी आँखों में आँसू आ जाते। ऐसा दिल आपको भगवान ने क्यों नहीं दिया? आपको योग्यता तो दे दी, पुरुषार्थ भी दे दिया, पराक्रम भी दे दिया, बुद्धि भी दे दी, कला-कौशल भी दे दिया। बहुत सी चीजें आपको दे दीं, आपको भाग्यवान बना दिया, पर आपका यह अधूरापन कैसे रह गया? कमाने की योग्यता के साथ-साथ में आपको ऐसा दिल मिला है, जिसको हम चट्टान का दिल कह सकते हैं, पत्थर का दिल कह सकते हैं। नहीं साहब! हमारा दिल तो माँस का दिल है। नहीं, आपका दिल माँस का नहीं हो सकता। अगर आपका दिल माँस का रहा होता, तब आपके भीतर करुणा रही होती, दया रही होती और जब आप ही आप अपनी कमाई खाते तो आपको उलटी हो जाती, कै हो जाती।