Books - यज्ञ का ज्ञान और विज्ञान
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Language: HINDI
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परिग्रही-पत्थरदिल मनुष्य
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मित्रो! आप अपनी कमाई कमा तो सकते हैं, पर आप खा नहीं सकते, क्योंकि मनुष्य एक समाज है, समुदाय है। आप हजारों रुपए महीना कमाते हैं। भाई साहब! छोटा बच्चा दूध के लिए चिल्लाता है। नहीं साहब!-हम कमाते हैं, यह नहीं कमाता है। अतः हम तो इसको नहीं पीने देंगे। तो आप बच्चे को दूध नहीं देना चाहते? हाँ साहब! हम नहीं देना चाहते। बच्चा मर जाए तो हमें इससे क्या लेना देना। हम कमाते हैं, इसलिए हमीं खाएँगे। नहीं बेटे! ऐसा नहीं हो सकता। नहीं साहब! हम मिठाई लाए हैं तो बैठकर आराम से खाएँगे। और जो आपके पाँच बच्चे हैं, वे? बच्चे जब आएँगे और हमसे माँगेंगे कि पिताजी हमको भी मिठाई दे दीजिए तब हम उन्हें मारेंगे और कहेंगे कि तुम कोई कमाते हो? हम तो हजारों रुपए महीना कमाते हैं, सो हम खाएँगे। अगर आप ऐसे आदमियों में से हैं, जो अपने छोटों को, अपने बच्चों को और अपने घरवालों को इनकार कर देते हैं और यह कहते हैं कि आपका कोई हक कोई हिस्सा नहीं है। हमने कमाया है और हम खाएँगे। अगर आपका ऐसा ख्याल है तो मैं मान सकता हूँ कि आप इनसान नहीं हो सकते और आपका कलेजा इनसान का नहीं हो सकता। आपको पत्थर का बना होना चाहिए और चट्टान का बना होना चाहिए। वे आदमी, जो कमाते तो बहुत हैं, लेकिन सारे का सारा खरचा अपने लिए कर डालते हैं, उनको मैं और क्या कह सकता हूँ? उनको चोर कहिए। नहीं बेटे! मैं चोर तो नहीं कह सकता, पर एक शब्द उनके लिए कह सकता हूँ कि ऐसे आदमी पत्थर के बने हुए हैं, चट्टान के बने हुए हैं, लोहे के बने हुए हैं, अष्टधातु के बने हुए हैं। भगवान ने इनका कलेजा ऐसा बनाया है, जिसमें न कहीं दया है, न धर्म है, न कोई ईमान है और न भगवान है।