Books - यज्ञ का ज्ञान और विज्ञान
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Language: HINDI
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यज्ञीय जीवन अर्थात मिल-बाँटकर खाना
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मित्रो! जिन आदमियों के दिलों में ईमान और भगवान होगा, वे बाँटकर ही खा सकते हैं। उनके सामने दूसरों की मुसीबतें बनी रहती हैं। वे चारों ओर देखते रहते हैं कि हमारा पिछड़ा हुआ समाज, हमारा दुखियारा समाज, हमारा गया गुजरा समाज अगर दुखी है तो हमको किस तरीके से गुजारा करना चाहिए? हमें औसत भारतीय ढंग का जीवनयापन करना चाहिए। औसत भारतीय जिस तरह से जीवनयापन करता है, हमारा खरच भी उसी हिसाब से होना चाहिए। आमदनी जो भी हो, बाकी जो बच जाएगा तो उसका क्या करेंगे? जमा करेंगे। नहीं बेटे! जमा मत करना। क्या करेंगे? परिग्रह। परिग्रह उसे कहते हैं, जहाँ 'जमाखोरी की जाती है और अकर्मण्यता उसे कहते हैं, जो कमाता नहीं है। जो कमाता नहीं है, उस आदमी का नाम अकर्मण्य है। जो आदमी काम नहीं करता, उसको हरामखोर कहते हैं और जो आदमी जमा करता रहता है, अपने लिए खरच करता रहता है, वह आदमी विलासी है और वह पत्थर का बना हुआ है। वह कौन है? जमाखोर। जमाखोर और कामचोर, दोनों ही आध्यात्मिक' दृष्टि से गालियाँ हैं। भौतिक दृष्टि से गालियाँ कोई भी हो सकती हैं। भौतिक दृष्टि से माँ-बहन की भी गाली हो सकती है। बेवकूफ नालायक भी हो सकती है। गधा, उल्लू भी हो सकती है, लेकिन आध्यात्मिक भाषा में आपको किसी को गाली देनी हो अथवा सुननी हो तो दो ही गालियाँ हैं। एक गाली है, जिसमें आदमी को हरामखोर कहा गया है। ऐसा आदमी मशक्कत नहीं करता, कमाता नहीं। दूसरी गाली वह है, जिसको हम जमाखोर कहते हैं। जमाखोर का अर्थ यह हो सकता है कि या तो वह जमा करता जाए और जरूरत से ज्यादा अपने आप के लिए खरच करता जाए।