Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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अध्यात्मवाद के फलितार्थ
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सृष्टि के प्रारंभ से ही मनुष्य ने अपने साथियों के साथ मिलकर समाज में रहने के लिए कुछ नियम एवं नियंत्रण कायम किया है। विभिन्न उच्च ज्ञान प्राप्त लोगों ने अपनी-अपनी रुचि एवं अनुभव के आधार पर मनुष्य के चरित्र एवं व्यवहार को सुव्यवस्थित रखने के लिए अनेक नियम बनाए हैं। इन नियमों का पालन उनके लिए ही लाभदायक है, जो इन पर चलते हैं।
ये आचार संहिता क्रियाशीलता एवं उद्देश्यों के हैं। जुडाइज्म, ईसाई एवं मुस्लिम आदि संगठनों के अलग-अलग आचार संहिता हैं। प्राचीनकाल एवं अर्वाचीन— दोनों में चरित्र पर प्रभाव डालने का कार्य धार्मिक संस्थाएँ करती हैं। कहीं-कहीं सरकार भी इस ओर ध्यान देती है। आजकल दिनों-दिन लोगों का चरित्रबल उन संहिताओं के विपरीत घट रहा है।
अनेक विद्वानों के अनुसार चरित्रबल बढ़ाने के लिए अध्यात्मवाद उपयोगी है। इससे चरित्र और व्यवहार आदर्श बनते हैं। यह सभी समाजों (संगठनों) के लिए उपयुक्त है, क्योंकि यह किसी से भेद और पक्षपात नहीं करता। इसमें भावनाएँ एवं धारणाएँ अंतर्मन से होती हैं, इसलिए इससे समाजों का सर्वाधिक कल्याण होगा। इससे मानवमात्र अधिक उन्नत एवं सुखी होगा।
प्लूटिनस (आदि अनेक विद्वानों) ने कहा है कि अध्यात्मवाद ही आदर्श चरित्र एवं व्यवहार प्रदान करता है। यदि मनुष्य एक बार सही जीवनक्रम बना ले, तो नीतिशास्त्र और सच्चरित्रता मनुष्य को सभ्य एवं उन्नत बना सकते हैं। इस माध्यम से ही मनुष्य सर्वोच्च सत्ता से एकता स्थापित करता है, उसकी शक्तियों का ज्ञान पाता है एवं उपयोग में लाता है। प्रकृति के विरुद्ध चलने से मनुष्य दुखी होता है।
प्लूटिनस नित्य विश्व की भलाई की बात सोचता था। उसके अनुसार सर्वत्र अच्छाइयाँ हैं, मनुष्य उन्हें ग्रहण करे और उत्कृष्ट बने। यह सरल जीवन से मिलती है। ईश्वर अंतःदर्शन से मिलता है। उसका कुछ अंश प्रत्येक मनुष्य में है। उसे महसूस करने पर वह अच्छा बनता है। इससे उसे शांति और संतोष प्राप्त होते हैं।
शेल्डन चेने का कथन है कि प्लूटिनस के सभी विश्वासों और उपदेशों का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा है। उसका उपदेश है कि नीतिशास्त्र का रहस्यमय सिद्धांत ईश्वर से संपर्क बनाना है। इससे दूर रहने के कारण ही झगड़े, छीना-झपटी, आक्रमण के भाव, स्वार्थता, निर्दयता, दुर्व्यवहार आदि अनेक बुराइयाँ मनुष्य में आती हैं। अधिकांश लोग रहस्यवाद के आदर्शों के अनुसार नहीं चलते। प्रत्येक मनुष्य के भीतर कुछ रहस्यमय अनुभव होते हैं, जो उसकी भावनाओं एवं जीवन को जाने-अनजाने प्रभावित करते हैं।
बुरे मनुष्यों में भी कभी-कभी प्यार, सद्भाव, दया और अच्छा व्यवहार जागृत होते हैं। यह आंतरिक पुकार होती है, जो उन्हें नीतिमय कार्यों को करने की प्रेरणा देती है। प्रत्येक की आत्मा से नीतिमय आचरण अपनाने की प्रेरणा होती है। जिन लोगों ने आत्मा उन्नति कर ली है और उस सर्वोच्च सत्ता से संपर्क कायम कर लिया है, उन्हें यह प्रेरणा अधिक होती है। रहस्यवादी इसमें सबसे अधिक अनुभवी होते हैं।
नैतिक सद्भावनाएँ वास्तव में अंतःकरण से आती हैं और प्रेम व सहानुभूति प्रकट करती हैं। यही अध्यात्म का सार है, जो ईश्वरीय प्रेरणाएँ देती हैं। ये मनुष्य द्वारा अर्जित नहीं है। अध्यात्मवादी अनुभव अंतः नैतिक आचरण के मूल हैं, जो प्रत्येक मनुष्य के अंतःमन या आत्मा में छिपे रहते हैं और समय आने पर उभरते हैं। इस तरह अध्यात्म का सार ‘प्रेम’ सर्वोच्च सत्ता का मानव को उपहार है।
तत्त्वज्ञ प्लूटिनस, बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म आदि सब मानते हैं कि सार्वभौम सत्ता प्रत्येक मनुष्य के भीतर है और समस्त प्रेरणाओं को देती है। एरवार्ट के अनुसार ईसाई धर्म भी इसे मानता है। इस तरह रहस्यवादी चेतना सब लोगों में शक्तिमान है। स्टेसी का कथन है कि रहस्यवादी चेतना व शक्तिशाली प्रेरक, (नैतिक और सामाजिक दृष्टि से) है। रहस्यवादी के अनुसार वह सार्वभौम सत्ता ही सबको सदाचार की प्रेरणा देती है, जिससे मानव सभ्य और परोपकारी बनता है। उद्योग, व्यवसाय, विज्ञान, प्रशासन, कला, चरित्र और धर्म का आधुनिक विकास भी उस सर्वोच्च सत्ता की उपस्थिति का बोध कराता है। उसकी सहायता के बिना ये उन्नतियाँ संभव नहीं हैं। अध्यात्मवादी का दृष्टिकोण मानव को आशाएँ एवं अच्छाइयाँ प्रदान कराता है।
प्लूटिनस के अध्यात्मवादी अनुभवों और सिद्धांतों ने विश्व को नया मार्गदर्शन दिया है। उसके अनुसार इससे आत्मा सौंदर्यता से भर जाता है और स्वार्थपरक जीवन त्याग देता है। उसे भरपूर अंतःदर्शन होता है और ईश्वर को अपने भीतर देखता है। वह परम सौंदर्य से जुड़ जाता है और सर्वत्र उसे ईश्वर दिखाई देता है।
प्लूटिनस का कथन है कि अध्यात्मवादी को मनोभाव एवं बौद्धिक प्रकाश मिलता है, जिससे वह असीम आनंद का अनुभव करता है। इससे वह ईश्वर को प्राप्त करता है। उसे बार-बार यह अनुभव होता है। डॉ. वुके और एरवार्ट के अनुसार इसके लिए मनुष्य को बहुत दिनों तक तैयारी करनी पड़ती है। उसे अपने शरीर और मन की सफाई करनी पड़ती है एवं इस योग्य उन्हें बनाना पड़ता है। संत टेरेसा को यह अंतःदर्शन कुछ घंटों की प्रार्थना एवं योग से हो गया था, जो एक अपवाद है।
आमतौर पर सर्वोच्च सत्ता के ज्ञान एवं भावों से स्वयं को प्रकाशित करने के लिए कठिन अभ्यास एवं साधना करनी पड़ती है। रोसीक्रुशन दर्शन के अनुसार अंतःदर्शन को विकसित करने के लिए धीरे-धीरे अभ्यास कराया जाता है। सभी मतों के अनुसार यह अभ्यास आवश्यक है। सब मनुष्य प्रयास और अभ्यास करने पर अंतःदर्शन कर सकते हैं। हमारे जीवन में अनेक बार ऐसे अवसर आते हैं, जब हम भौतिक कठिनाइयों में घिर जाते हैं और उनसे निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखता। ऐसे अवसरों पर अनेकों को अचानक यह अंतःप्रकाश मिलता है और उनकी कठिनाई का हल निकल आता है।
यह अंतःप्रकाश मन या ज्ञान की उपज नहीं हैं, वरन यह अंतःकरण का प्रकाश है जो कि सर्वोच्च सत्ता से संबंध स्थापित होने पर होता है। विचार के अनुसार प्रकृति का बाह्य स्वरूप ही हम जानते हैं; परंतु अंतःदर्शन से उसके गूढ़ रहस्यों का ज्ञान होता है। इससे सार्वभौम एकत्व का हमें ज्ञान होता है। यही स्व प्रकाश है।
देखा जाए तो आज मनुष्य पदार्थ विज्ञान की उन्नति करने और उपयोग करने में लगा है एवं आदर्शवाद को भूल गया है। आदर्शवाद सत्य के निकट है और पदार्थज्ञान सत्य से परे है। सत्य की प्राप्ति के लिए हम आदर्शवाद को अपनावें। रहस्यवाद समस्त आदर्शों का भंडार है। यह मन और इंद्रियों के अलावा अपने भीतर और विश्व का भी सही ज्ञान कराता है। अध्यात्मवाद से ही हम अभौतिक विश्व के रहस्य को स्थाई रूप से एवं सत्य के आधार पर जान सकते हैं। यह चेतना को जागृत करता है और पदार्थवाद से संबंध स्पष्ट करता है। पदार्थवाद और आदर्शवाद के बीच व्यवस्थित एवं मधुर संबंध स्थापित करने से ही हम विश्व व मनुष्य की प्रकृतियों को ठीक से जान सकते हैं।
यह सत्य का ज्ञान कराता है एवं उसे व्यवहार व सिद्धांतों में उपयोग में लाने का तरीका बतलाता है। यह मानव जीवन का उद्देश्य एवं विश्व में उसका स्थान (महत्त्व) का भी बोध करता है। प्लेटो का कथन है कि पदार्थ जगत में जो कुछ हम जानते हैं, वह सब इस दुनिया के बाहर स्थित पदार्थों की मात्र नकल है। आदर्शवाद के अनुसार अध्यात्म के सिद्धांतों का सार यही है कि सत्य एक है और वह यह है कि विश्व ‘अद्वैतवाद’ का प्रतीक है। अध्यात्मवादी के अनुभव के अनुसार अद्वैतवाद ही सत्य है, जो मनुष्य द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।