Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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पूर्वाभास अंधविश्वास नहीं है
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पूर्वाभासों को वैज्ञानिक रूप देने वाले व इस विषय पर गंभीर अनुसंधान कार्य करने वालों में मिस्टर मैटले कैरिगंटन का नाम भी अत्यंत उल्लेखनीय है, वह प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान लंदन की ‘रॉयल फ्लाइंग कोर’ के वरिष्ठ पायलट रह चुके थे। पाश्चात्य प्राचीन दार्शनिक द्वय प्लेटो और हैराक्लिट्स ने मनोविज्ञान स्तर पर सपनों का मात्र सफेद झूठ नहीं बताया, अपितु उनकी धारणा थी कि व्यक्ति जिन भावनाओं के प्रति अधिक प्रवृत्त होता है, ठीक उसी दिशा में उसी प्रकार की प्रवृत्तियों के सपने भी अधिक आते हैं, जो अधिकांशतः देर-सबेर सत्य भी निकलते हैं।
जॉहन गॉडले को घुड़सवारी करने और ‘हार्स रेस’ देखने की बहुत अधिक ललक रहती थी, सो वह ज्यादातर सपने घुड़दौड़ और उसमें जीतने वाले घोड़ों के ही देखता था। एक बार नहीं, अपितु अनेकों बार घुड़दौड़ में जीतने वाले घोड़ों के नाम परिणाम घोषित किए जाने से पूर्व ही सपनों के माध्यम से उसे पता चल गए थे, जो कि समाचारपत्रों में प्रकाशित होने पर शत-प्रतिशत सत्य ही निकलते थे। उन्होंने अपने इन सभी पूर्वाभास जनित अनागत घटनाओं का विवरण अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “थ्योरी ऑफ प्रिडीक्शन’ में विस्तार से दिया है। इसी पुस्तक की एक घटना इस प्रकार से है।
घटना 8 मार्च 1946 की है, उन दिनों जॉहन गॉडले आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र थे। उन्होंने स्वप्न में दो विजेता घोड़ों के नाम समाचारपत्र में पढ़े। सुबह होते ही उसने अपने साथियों को उन दोनों विजेता घोड़ों के नामों को बतलाया, जो कि अगले दिन समाचारपत्र में घोषित किए जाने वाले थे। साथियों ने सपने की बात सच न मानते हुए उनका उपहास किया। इस प्रकार एक बड़ी धनराशि की शर्त रखी गई। अगले दिन जैसे ही घुड़दौड़ के परिणाम समाचारपत्रों में प्रकाशित किए गए तो पहली पंक्ति में उन्हीं दोनों विजेता घोड़ों के नाम मोटे-मोटे अक्षरों में छपे हुए पाए गए। तभी से उसके सभी साथी-संगी स्वप्नों को, पूर्वाभासों के संकेतों को महत्व देने लगे।
विश्वविद्यालयीय शिक्षा के दौरान जब वह अवकाश के दिनों अपने पैतृक घर आयरलैण्ड आया, तो यहाँ भी एक-एक करके समय-समय पर ऐसा विजेता घोड़े के एवं अन्यान्य आगत संभावनाओं के सपने देखते रहा, जो कि समाचारपत्रों को पढ़ने पर सत्य ही निकलते थे। उन्हें अपनी इस अविज्ञात विलक्षण विभूति पर स्वयं भी अत्यधिक आश्चर्य हुआ। उन्होंने तत्कालीन प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दैनिक पत्र “डेली मिरर” के कार्यालय से संपर्क किया तथा अपने गत सच निकलने वाले पूर्वाभासों की विलक्षणताओं को बतलाया। पहले तो उसे विश्वास न हुआ लेकिन प्रमाण पाने पर दैनिक पत्र का संपादकीय विभाग अत्यधिक प्रभावित हुआ और उन्हें सवैतनिक पत्रकार के रूप में सम्मान के साथ रख लिया। इस प्रकार स्वप्नों ने जॉहन गॉडले के जीवन को आमूलचूल परिवर्तित कर दिया।
दूसरी शती में एक विख्यात भविष्यवक्ता आर्टेमिडोरस का नाम अत्यंत उल्लेखनीय रहा है। इस यूनानी भविष्य दृष्टा ने सपनों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने लिखा है कि मैं रात-दिन बस सपने ही देखता और उनका विश्लेषण करता रहा। इस प्रकार विशद अध्ययन से पता चलता है कि स्वप्नों की यथार्थता व उनके पूर्वाभासों का विश्लेषण शताब्दियों पहले से ही किया जाता रहा है। वर्तमान में प्रत्यक्ष को ही सब कुछ मानने वालों के लिए सर्वाधिक रुचिकर एवं अत्याधुनिक परीक्षण पूर्वाभास के रूप में आगत संबंधी भावी रहस्यों को जानने के लिए अमेरिका स्थित न्यूयार्क नगर के प्रख्यात शोधकर्मी डाॅ.डोन ने अपने हाथ में लिए हैं।
भूत की घटित और भविष्य के अघटित अनागत रहस्यों का ज्ञान किसी भी व्यक्ति को हो सकता है, वस्तुतः इसमें चमत्कार जैसा कुछ भी नहीं है। व्यष्टि मन को समष्टि मन से जोड़ने के लिए साधना करनी होती है। जो जिस स्तर तक उस समष्टि चित्त से तादात्म्य स्थापित कर लेता है, उसकी भूत-भविष्य की दर्शन क्षमता उतनी ही अधिक बढ़ती जाती है। इस तथ्य का प्रतिपादन हमारे प्राचीन भारतीय महर्षि पातंजलि ने योग दर्शन के विभूतिपाद के 52 वें सूत्र में स्पष्ट रूप से किया है।
“क्षण तत्क्रमयोः संयमाद विवेकजं ज्ञानम्” (3152) अर्थात— समय के अत्यंत छोटे टुकड़े 'क्षण' के क्रम में चित्त संयम करने से संसार की सही स्थिति का निरीक्षण किया जा सकता है। अतः कहना न होगा, कि मनुष्य के भीतर ऐसी विशिष्ट क्षमताएँ स्वाभाविक रूप से विद्यमान हैं, जिनका समुचित विकास कर, वह काल की मानव निर्मित सीमाओं को भेधकर भूत-भविष्य की घटित-अघटित घटनाओं का प्रत्यक्ष झाँकी दर्शन कर सकता है। योग-साधनाओं द्वारा यह विकास सहज रूप में हो जाता है और तब व्यक्ति को अपनी इस अनंत विस्तृत आत्मचेतना का बोध होता है, जिसे वह विस्मृत किए रहता है। राजा महेंद्र प्रताप का राज्य अलीगढ़ जिले के मुरसान ठिकाने में था। वे आरंभिक जीवन में ही प्रगतिशीलता के संपर्क में आए और देश-धर्म के कल्याण की बात सोचने लगे। अधेड़ हो जाने पर भी उनकी कोई संतान न हुई तो संबंधी लोग दूसरा विवाह करने, किसी का लड़का गोद लेने के लिए आग्रह करने लगे। उनने इन लोगों से पीछा छुड़ाने के लिए चतुरता से काम लिया और अचानक एक दिन घोषणा कर दी कि हमारे यहाँ पुत्र हुआ है। बड़ी धूमधाम से उत्सव हुआ। नामकरण के लिए मालवीय जी को बुलाया गया। नामकरण का मुहूर्त्त आया तो राजा साहब ने घोषणा की कि मैंने एक गाँव की आमदनी अपने खर्च के लिए रखकर शेष अपने बेटे को उत्तराधिकार में देने का निश्चय किया है। यह बेटा एक विद्यालय होगा। उसका नाम प्रेम महाविद्यालय रखा गया। उसमें देश के मूर्धन्य कांग्रेस नेता पढ़ाने के लिए बुलाए गए। उनने छात्रों को देशभक्ति के ढाँचे में ढाल दिया। स्वतंत्रता-संग्राम आरंभ होते ही वे सभी छात्र आंदोलन मेें कूद पड़े। छात्र और अध्यापक सभी गिरफ्तार हो गए। विद्यालय जब्त कर लिया गया, जो स्वतंत्रता मिलने के बाद वापस किया गया। पीछे वह एक इंजीनियरिंग कॉलेज बन गया। राजा साहब गुप्त रूप से विदेश चले गए और भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रबल प्रयत्न करते रहे। स्वराज्य होने के उपरांत वे वापस लौटे।
“क्षण तत्क्रमयोः संयमाद विवेकजं ज्ञानम्” (3152) अर्थात— समय के अत्यंत छोटे टुकड़े 'क्षण' के क्रम में चित्त संयम करने से संसार की सही स्थिति का निरीक्षण किया जा सकता है। अतः कहना न होगा, कि मनुष्य के भीतर ऐसी विशिष्ट क्षमताएँ स्वाभाविक रूप से विद्यमान हैं, जिनका समुचित विकास कर, वह काल की मानव निर्मित सीमाओं को भेधकर भूत-भविष्य की घटित-अघटित घटनाओं का प्रत्यक्ष झाँकी दर्शन कर सकता है। योग-साधनाओं द्वारा यह विकास सहज रूप में हो जाता है और तब व्यक्ति को अपनी इस अनंत विस्तृत आत्मचेतना का बोध होता है, जिसे वह विस्मृत किए रहता है। राजा महेंद्र प्रताप का राज्य अलीगढ़ जिले के मुरसान ठिकाने में था। वे आरंभिक जीवन में ही प्रगतिशीलता के संपर्क में आए और देश-धर्म के कल्याण की बात सोचने लगे। अधेड़ हो जाने पर भी उनकी कोई संतान न हुई तो संबंधी लोग दूसरा विवाह करने, किसी का लड़का गोद लेने के लिए आग्रह करने लगे। उनने इन लोगों से पीछा छुड़ाने के लिए चतुरता से काम लिया और अचानक एक दिन घोषणा कर दी कि हमारे यहाँ पुत्र हुआ है। बड़ी धूमधाम से उत्सव हुआ। नामकरण के लिए मालवीय जी को बुलाया गया। नामकरण का मुहूर्त्त आया तो राजा साहब ने घोषणा की कि मैंने एक गाँव की आमदनी अपने खर्च के लिए रखकर शेष अपने बेटे को उत्तराधिकार में देने का निश्चय किया है। यह बेटा एक विद्यालय होगा। उसका नाम प्रेम महाविद्यालय रखा गया। उसमें देश के मूर्धन्य कांग्रेस नेता पढ़ाने के लिए बुलाए गए। उनने छात्रों को देशभक्ति के ढाँचे में ढाल दिया। स्वतंत्रता-संग्राम आरंभ होते ही वे सभी छात्र आंदोलन मेें कूद पड़े। छात्र और अध्यापक सभी गिरफ्तार हो गए। विद्यालय जब्त कर लिया गया, जो स्वतंत्रता मिलने के बाद वापस किया गया। पीछे वह एक इंजीनियरिंग कॉलेज बन गया। राजा साहब गुप्त रूप से विदेश चले गए और भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रबल प्रयत्न करते रहे। स्वराज्य होने के उपरांत वे वापस लौटे।