Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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नारी नर बनने जा रही है
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मनुष्य आत्मा है। आत्मा न स्त्री है, न पुरुष। वह इच्छा और अभ्यास के अनुरूप अपने कलेवर बदलता रहता है। अभ्यास से अपनी काया सुहाने लगती है, इसलिए स्त्रियाँ प्रायः अगले जन्म में भी स्त्रियाँ होती हैं और पुरुष— पुरुष।
पर यह अनिवार्य नियम नहीं है। यदि कोई अपनी स्थिति से असंतुष्ट हो और दूसरे पक्ष की काया में सुविधा समझता है या उसके प्रति अधिक अनुरक्त रहता हो तो भावना के अनुरूप उसका यौन परिवर्तन भी हो सकता है। ऐसा परिवर्तन प्रायः अगले जन्म में होता है; पर यदि मन डावाँडोल रहे तो फिर परिवर्तन भी अधूरा रह जाता है और अगले जन्म में ऐसी स्थिति बनती है, जिसे मध्यवर्ती या उभयलिंगी कहा जा सके।
इनमें से कुछ जनखे हिजड़े स्तर के होते हैं; पर कुछ की दोनों प्रकार की जननेंद्रियाँ होती हैं और वे दोनों पक्षों की क्रियाएँ संपन्न करते रह सकते हैं।
कइयों को इस स्थिति में लज्जा अनुभव होती है और वे एक पक्ष में रहना चाहते हैं। इसका सीधा तरीका यह है कि इस जन्म में अपने प्रियपक्ष का अधिक चिंतन करें, उसकी उपयोगिता स्वीकारें और रुझान उसी पक्ष में रखें अगला जन्म आने पर वह अधूरी स्थिति पूर्ण हो जाएगी और इच्छित कलेवर मिल जाएगा।
पर कई तत्काल की इच्छा उत्सुकता व्यक्त करते हैं और यौन परिवर्तन का ऑपरेशन करा लेते हैं। दोनों में से जो लिंग स्पष्ट या समर्थ हो उसे रहने देते हैं और दूसरे को हटा देते हैं। पहले यह विषय गोपनीय माना जाता था; पर अब वैसा प्रचलन नहीं रहा, अस्तु लोग अपनी स्थिति स्पष्ट करने में झिझकते नहीं। कितने ही व्यक्ति जैसी भी कुछ अपनी स्थिति है, उसे बनाए रहते हैं और प्रकृति का चमत्कार बताकर अपने को आकर्षण का केंद्र बनाए रहते हैं। ऐसे दोनों पक्षों के चिह्न वाले अब बहुत दिखाई देने लगे हैं। पहले इस तथ्य को छिपाया जाता था। स्त्रियाँ दाढ़ी-मूँछ रोज बनाती थीं और अविवाहित जीवन व्यतीत करती थीं; पर अब वैसी जरूरत नहीं समझी जाती, इसलिए द्विलिंगी स्त्री-पुरुष अनेकों दिख पड़ते हैं।
यूनानी देवता हर्माफ्रोदित के बारे में मान्यता है कि एक परी उससे बहुत अधिक प्यार करती थी। वह उसके शरीर में समा गई और उसका आधा शरीर पुरुष का और आधा शरीर नारी का हो गया।
भारत में शिवजी को भी अर्धनारीनटेश्वर कहा जाता है। उनका आधा शरीर पुरुष का और आधा स्त्री का है।
उत्तरी कैरोलिना में जन्मी लेडी ओल्गा एक रूसी यहूदी की लकडी थी। जन्म से ही उसके चेहरे पर दाढ़ी-मूँछ के बाल थे। बड़ी होने पर उसकी दाढ़ी 35 इंच की हो गई जो उसके पेट को ढक लेती थी। उसकी बड़ी-बड़ी मूँछें भी थीं। 1932 में उसमें एक अद्भुत फिल्म अभिनेत्री की तरह काम किया। इसके धनी होने के कारण एक पुरुष ने उससे विवाह भी कर लिया था; पर वह अधिक समय जीवित न रहा।
डालकास्का-मिशिगन में सुनहरी दाढ़ी-मूँछों वाली ग्रेस गोलवर्ट सन् 1880 में पैदा हुई। इसकी दाढ़ी 6 इंच लंबी थी। इसी क्षेत्र में एक महिला स्टेला ग्रेगर भी दाढ़ी-मूँछों वाली थी। उसने नर्स का काम किया। सेना में भर्ती हुई और अध्यापिका भी बनी।
नीदरलैण्ड की शाशिका मारग्रेटे के भी दाढ़ी-मूँछ थी। स्वीडन की एक ऐसी ही महिला चार्ल्स सप्तम के जमाने में सेना में थी। स्विट्जरलैण्ड की जोडफिन के चेहरे पर 5 इंच की दाढ़ी थी। उसने कई देशों में अपनी इस प्रकृतिजन्य विशेषता का प्रदर्शन किया और धन कमाया।
बर्जीनिया की एनीजीन्स 1965 में जन्मी थी। विवाह उसने भी कर लिया था। शरीर से बहुत हृष्ट-पुष्ट थी और तगड़े पुरुष जैसी लगती थी।
इसी प्रकार योरोप, अमेरिका के कई देशों में लंबी दाढ़ी-मूँछों वाली महिलाएँ प्रख्यात हो चुकी हैं। इनमें उनकी गिनती नहीं है जो दिन निकलने से पूर्व अपनी हजामत बनाकर नारी जैसी लगने लगती थीं।
जार्ज डब्ल्यू लुई के सरकस में एक द्विलिंगी नारी विली क्रिस्टीना थी। उसकी एक ओर की छाती उठी हुई दूसरी और की सपाट थी। उसकी दाढ़ी-मूँछ भी निकलती थी; पर वह रोजाना शेव करके अपना स्त्रीप्रधान रूप बनाए रहती थी। उसके शरीर में नर और नारी की जननेंद्रियाँ थीं। पर्दे के पीछे जाकर 50 सेन्ट देने वाला व्यक्ति उसे नंगी करके देख सकता था। जो अतिरिक्त 50 सेन्ट दे वह उसकी इंद्रियों को छू भी सकता था।
हैरी लोस्टन के सरकस में काम करने वाली मोना हैरिस यों स्त्री के रूप में प्रख्यात थी; पर उनकी नारी जननेंद्रिय के ऊपर 5 इंच का मर्दाना शिश्न भी था।
ब्लैकपोल ब्रिटेन में जन्मी मोण्डू भी आधी नारी और आधा नर थी। उसकी दोनों ही जननेंद्रियाँ सक्रिय थीं।
अब तक जितने यौन परिवर्तन ऑपरेशन हुए हैं, उनमें से अधिकांश ऐसे थे जो नारी से नर बनने जा रहे थे। प्रकृति का नियम है कि जो पक्ष सताया जाता है, असंतुष्ट या दुःखी रहता है, उसको मिटा या घटा देती है। पिछली जनगणनाएँ बताती हैं कि पुरुष बढ़ रहे हैं और स्त्रियाँ घट रही हैं। परिणाम यह होगा कि अगणित पुरुषों को अविवाहित रहना पड़ेगा। स्त्रियों की प्रवृत्ति पुरुष की दासता से मुक्ति पाने की ओर बढ़ रही है। नारीमुक्ति आंदोलन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
चीन के निंगयो स्थान में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, उसमें केवल वे स्त्रियाँ जाती हैं जो अगले जन्म में पुरुष बनना चाहती हैं। इस मंदिर में महिलाओं की सबसे अधिक भीड़ रहती है।
हवा का रुख बताता है कि लालच या उत्पीड़न के बंधनों में बाँधकर नारी को जिस प्रकार सताया और गिराया जा रहा है, उसकी प्रतिक्रिया होकर रहेगी। नारी दुर्लभ होती जाएगी। उसके अभाव में लोग उसे देखने तक के लिए विवश होंगे।