Magazine - Year 1986 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
पत्नीव्रती पशु-पक्षी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक हाथी युगल अपने जीवनकाल में अधिकतम दो या तीन बच्चों को जन्म देता है। यह उल्लेखनीय है कि प्राकृतिक जीवों में प्रायः एक ही बार के सहजीवन से गर्भाधान की क्रिया संपन्न हो जाती है, क्योंकि उसके सहजीवन की संख्या सारे जीवन में अधिकतम पाँच से अधिक नहीं होती है। अपनी इस विशेषता के कारण कहीं भी उनकी जनसंख्या के विस्फोट की समस्या नहीं उठी। इतने जंगल कट जाने पर भी उनके लिए कभी खाद्य का अभाव नहीं पैदा हुआ।
जंगली बतखें भी पारिवारिकनिष्ठा से ओत-प्रोत होती हैं। अपनी जाति के अतिरिक्त, यह बतखों की 140 लगभग जातियों में से किसी से भी संबंध नहीं बनाती हैं।
बोनिला नर पक्षी को आजीवन मादा का बनकर रहना पड़ता है। भोजन जुटाने का काम मादा करती है, इसके बदले बच्चों के लालन-पालन का भार उसे ही वहन करना पड़ता है। हिपोकेम्पस, पाइपफिश और फोटोकोरिनस मछलियाँ इतनी दबंग होती हैं कि जिस नर को वशवर्ती बना लेती हैं, उससे दास जैसा व्यवहार करती हैं।
योरोप में गोहों की कुछ जातियाँ हैं, जो जीवन में एक ही बार हमसफर चुनती हैं। विधवा या विधुरगोह, दूसरे गोह को देखकर उस पर आक्रमण कर बैठती है। प्यार कभी दुबारा नहीं करती। कबूतर कट्टर पतिव्रती एवं पत्नीव्रती होते हैं। कुछ मछलियाँ प्रेम-प्रसंग के बाद ही विवाह करती हैं। ऐसी मछलियाँ झीलों या शांतगति वाली नदियों में ही पाई जाती हैं। ये मछलियाँ सदैव एकनिष्ठ होती हैं।
अल्बर्ट श्वाइत्जर जहाँ रहते थे, उनके समीप ही बंदरों का एक दल रहता था। दल के एक बंदर और बंदरिया में गहरी मित्रता हो गई। दोनों जहाँ जाते साथ-साथ जाते, एक कुछ खाने को पाता तो यही प्रयत्न करता कि उसका अधिकांश उसका साथी खाए। कोई भी वस्तु उनमें से एक ने कभी भी अकेले न खाई। उनकी इस प्रेम-भावना ने अल्बर्ट श्वाइत्जर को बहुत प्रभावित किया, वे प्रायः प्रतिदिन इन मित्रों की प्रणय-लीला देखने जाते और एकांत स्थान में बैठकर घंटों उनके दृश्य देखा करते। कैसे भी संकट में उनमें से एक ने भी स्वार्थ का परिचय न दिया। अपने मित्र के लिए वे प्राणोत्सर्ग तक के लिए तैयार रहते, ऐसी थी उनकी अविचल प्रेमनिष्ठा।
विधि की विडंबना— बंदरिया कुछ दिन पीछे बीमार पड़ी, बंदर ने उसकी दिन-दिन भर भूखे-प्यासे रहकर सेवा-सुश्रूषा की; पर बंदरिया बच न सकी, मर गई। बंदर के जीवन में मानो व्रजाघात हो गया। वह गुमसुम जीवन बिताने लगा।
बंदर एक स्थान पर बैठा रहता। अपने कबीले या दूसरे कबीले का कोई अनाथ बंदर मिल जाता तो वह उसे प्यार करता खाना खिलाता, भटक गए बच्चे को ठीक उसकी माँ तक पहुँचाकर आता, लड़ने वाले बंदरों को अलग-अलग कर देता। इसमें तो कई बार अतिउग्र पक्ष को मार भी देता था, पर तब तक चैन न लेता जब तक उनमें मेल-जोल नहीं करा देता। उसने कितने ही वृद्ध, अपाहिज बंदरों को पाला, कितनों का ही बोझ उठाया। बंदर की इस निष्ठा ने ही अल्बर्ट श्वाइत्जर को एकांतवादी जीवन से हटाकर सेवा-भावी जीवन बिताने के लिए अफ्रीका जाने की प्रेरणा दी। श्वाइत्जर बंदर की इस आत्मनिष्ठा को जीवन भर नहीं भूले।
“डिक-डिक” जाति का हिरन एक पत्नीव्रती होता है। वह सदैव जोड़े में रहता है। अपने जीवनकाल में वह कभी किसी अन्य हिरणी के साथ सहवास नहीं करता। शेर और हाथी के बारे में भी ऐसी ही बातें होती हैं। जोड़ा बनाने से पूर्व तो वह पूर्ण सतर्कता बरतते हैं, किंतु एक बार जोड़ा बना लेने के बाद वे तब तक इस मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते, जब तक कि नर या मादा में से किसी एक की मृत्यु न हो जाए। मृत्यु के बाद भी कई ऐसे होते हैं, जो पुनर्विवाह की अपेक्षा विधुर जीवन व्यतीत करते हैं, उस स्थिति में उनकी संवेदना नष्ट हो जाती है और वे प्रायः बहुत अधिक खूँखार हो जाते हैं। उस स्थिति में भी वे जब कभी अपनी मादा की याद में आँसू टपकाते दिखते हैं तो करुणा उभरे बिना नहीं रहती। तब पता चलता है कि जीवन का आनंद भावनाओं में है, पदार्थ में नहीं।
चिंपाजियों की भी पारिवारिक और दांपत्यनिष्ठा मनुष्य के लिए एक उदाहरण है। यह अपना निवास पेड़ों पर बनाते हैं, जोड़ा बनाने के बाद चिंपाजी अपने दांपत्य जीवन को निष्ठापूर्वक निबाहते हैं और किसी अन्य मादा या नर की ओर वे कभी भी आकृष्ट नहीं होते। नर अपने समस्त परिवार की रक्षा करता है। जब वे वृक्ष पर बने विश्रामगृह में आराम करते हैं तो वह नीचे बैठकर उनकी पहरेदारी करता है, कर्त्तव्य भावना से ओत-प्रोत चिंपाजी की तेजस्विता देखते ही बनती है।
बाघ बड़ा उत्पाती जीव है, भूख लगने पर प्राकृतिक प्रेरणा से उसे आक्रमण भी करना पड़ता है किंतु उस जैसा एकनिष्ठ पतिव्रत और पत्नीव्रत देखते ही बनता है।
कबूतर के बारे में यजुर्वेद तक का उद्धरण देते हुए बताया है— “मित्रवरुणाभ्यां कपोतान्” मित्रता, प्रेम और दांपत्यनिष्ठा हममें कपोतों जैसी हो। सारस भी ऐसा ही पक्षी है, जोड़े में कोई एक बिछुड़ जाए तो दूसरा बहुत दुःखी हो जाता है। पंडुक नर मर जाता है तो उसकी मादा उसके शव में शरीर कूट-कूटकर विलाप करती है। उसका वह आर्तनाद देखकर मनुष्य के भी आँसू आ जाते हैं और ऐसा लगता है कि मनुष्य में भी ऐसी निष्ठा होती तो उसका जीवन कितना सुखमय होता।