Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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मस्तिष्कीय संरचना किसी की भी कम विलक्षण नहीं
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आइन्स्टीन की सूझ-बूझ और मस्तिष्कीय प्रखरता का समस्त संसार कायल था। उनने ब्रह्मांड को एक नए स्वरूप में प्रस्तुत किया था और विश्व-व्यवस्थाओं पर नई परिभाषाओं के साथ नया प्रकाश डाला था। टाइम, स्पेस और कॉजेशन की उनकी व्याख्याएँ अद्भुत थीं, फिर भी कसौटियों ने उन्हें खरा और प्रामाणिक सिद्ध किया। उनकी न केवल विज्ञान में; वरन दर्शन व गणित में भी गहरी गति थी। उन्हें मस्तिष्कीय क्षेत्र की एक अनुपम प्रतिभा माना जाता था।
शरीरशास्त्री उनके अंतिम दिनों में यह ताना-बाना बुनने लगे थे कि इसका कारण उनकी मस्तिष्कीय संरचना में किसी विलक्षणता का समावेश हो सकता है। वे उनके मस्तिष्क की जीवित स्थिति में या मरने के उपरांत विशेष जाँच-पड़ताल करना चाहते थे। इन संदर्भ में विशेषज्ञों ने आइन्स्टीन से भेंट करने का साहस किया और इस शोध-प्रयास में उनका अभिमत पूछा एवं सहयोग चाहा।
आइन्स्टीन ने कहा—" मेरे मस्तिष्क में कोई विलक्षणता नहीं। अपने काम को महत्त्वपूर्ण मानने और उसमें समान रसास्वादन करते हुए तन्मय हो जाना ही वह उपाय है, जिसे अपनाकर कोई भी साधारण बुद्धि का आदमी अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ, अन्वेषक एवं प्रतिभावान बन सकता है। लोग कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं करते और अधूरे मन से कामों को निपटाते हैं, इसीलिए वे असफल होते रहते हैं। आप लोग तथ्य को समझें। मस्तिष्क में जादू न खोजें।"
इनकारी से उत्तर मिलने पर भी विशेषज्ञों ने अपना प्रयत्न न छोड़ा और उन्हें एक प्राइवेट कब्रिस्तान में दफनाया गया था। खोदकर उनका मस्तिष्क निकाल लिया गया और उस पर गंभीरतापूर्वक अनुसंधान होता रहा। लोगों को इस बात में बड़ी दिलचस्पी थी कि आखिर उस मस्तिष्क में क्या विशेषता पाई गई।
बात बहुत दिनों तक गुप्त न रह सकी। पता चला कि मस्तिष्क वोगारा के डाॅ. टामस हर्वे के पास है। उनने लंबे समय तक जाँच की; पर वे उसमें कुछ अनोखापन न ढूँढ़ सके।
वर्कले में युनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया के मस्तिष्क विशेषज्ञ मारियन डायमंड ने भी उस मस्तिष्क की गोपनीय खोजों में हार्वे का साथ दिया था। उनमें ग्लायल कोशिकाएँ अवश्य अधिक पाई गईं; पर वे जैवरासायनिक-प्रक्रिया से संबंधित थीं। उनके कारण मानसिक विलक्षणता उत्पन्न होने की कोई संगति नहीं बैठी।
‘डिस्कवरी’ पत्रिका में इस संबंध में विशेष जानकारियाँ छपीं; पर उसमें भी कोई ऐसा सूत्र हाथ न लगा, जिसके कारण उन्हें मस्तिष्कीय विलक्षणता का धनी माना जा सके। अंततः वही बातें सही माननी पड़ीं जो शरीर त्यागने से पूर्व आइन्स्टीन ने स्वयं कही थीं।
ऐसी ही एक घटना मास्को की है। वहाँ के 70 वर्षीय फिटर कोस्तलिन ने अपने 50 वर्ष के कार्यकाल में 250 लोकोपयोगी आविष्कार किए गए। वह एक प्रकाश कारखाने में मिकेनिक था; पर अपनी छोटी-सी प्रयोगशाला में कंप्यूटर स्तर की कितनी ही महत्त्वपूर्ण मशीनें बनाने में सफल हुआ।
उसने भी मस्तिष्कीय विशेषता वाली बात से इनकार किया था। कहा था खोपड़ी की उखाड़-पछाड़ करना बेकार है। हर व्यक्ति समान रूप से बुद्धिमान है। प्रश्न इतना भर है कि उसे अपनी क्षमता और प्रतिभा का उपयोग ठीक करना आता है या नहीं।
मस्तिष्कविज्ञानी ऐसे ही अन्य उदाहरणों से इसी नतीजे पर पहुँचे हैं कि शारीरिक विलक्षणता की बात सोचना बेकार है। प्रगति का कारण व्यक्ति का चिंतन व स्वभाव ही होता है।