
गड़रिये से राजा
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“मुझे इस सुनहरे रंग के मेमने की आवश्यकता है। तुम इसके बदले जितना धन चाहोगे मैं देने को तैयार हूँ। “ परशिया के राजा ने हंगरी के राजा मत्थियस के गड़रिये को प्रलोभन देते हुए कहा।
मैं राजसिंहासन के सम्मुख असत्य भाषण नहीं कर सकता। यह सब राजा की भेड़े हैं। मैं उनकी आज्ञा के बिना एक भी भेड़ देने को तैयार नहीं हूँ गड़रिये ने उत्तर दिया।
गड़रिया बड़ा ईमानदार और सत्यवादी था। हुआ यह कि एक दिन परशिया के राजा अपनी अविवाहिता युवा पुत्री के साथ मत्थियस के अतिथि बने। बातों ही बातों में गड़रिये की चर्चा चल पड़ी। मत्थियस ने अतिथि को बताया मेरे गड़रिये की प्रशंसा परशिया के राजा को अच्छी न लगी। उसने कहा- “देखना एक दो दिन में ही मैं उससे झूठ बुलवा दूँगा
“असम्भव ऐसा हो ही नहीं सकता”
यदि मैं उससे असत्य भाषण न करवा सका तो आधा राज्य हार जाऊँगा। इस प्रकार की प्रतिज्ञा मैं आपके सामने करता हूँ। “मत्थियस ने जोश में कहा।
रात्रि के भोजनोपरान्त परशिया का राजा अपने शयन कक्ष में आया और पलंग पर लेटे-लेटे काफी राज तक यहीं सोचता रहा
कि इस गड़रिये से कैसे असत्य भाषण करवाया जाय। फिर उसे ध्यान आया कि आज शाम को जब वह भेड़े चराकर वापस लाया था तब उनमें एक छोटा-सा मेमना सुनहरे रंग का था। यदि अधिक धन का प्रलोभन देकर उसे खरीद लिया जाय तो उसे मेमने के गायब होने की कोई कल्पित कहानी गढ़कर राजा के सम्मुख कहनी होगी। जिससे मत्थियस का अहं चूर चूर हो जाएगा।
कंचन से अधिक प्रलोभन कामिनी का होता है। ऐसा सोचकर राजा ने अपनी अपूर्व सुंदरी कन्या को गड़रिये के पास भेजा। उसे अपने ऊपर पूर्ण विश्वास था कि हमारा वार खाली न जाएगा। बड़े-बड़े ईमानदार और संयमी व्यक्ति भी कंचन और कामिनी के प्रभाव में आकर फिसलते देखे गए है। फिर यह तो एक साधारण-सा पशुपालक है। राजकन्या गड़रिये के पास जाकर कहने लगी-तुम्हारी भेड़ों में यह छोटा-सा मेमना देखने में कितना सुन्दर लगता है। काश! यह प्यारा मेमना मेरे पास होता तो मैं इसे और लाड़ दुलार से रखती। इसके केश और मेरी केश राशि में कितना साम्य है। तुम यह मेमना मुझे दे दो। इसके बदले तुम जितना द्रव्य चाहोगे मैं तुम्हें अपने पिता से दिलवा दूँगी और मैं सदा तुम्हारी आज्ञा का पालन करूँगी मैं तुम्हारी लिए एक शीतल पेय भी लायी हूँ।”
गड़रिये को उस समय प्यास लग रही थी। उसने राज कुमारी के हाथ से जल पात्र लेते हुए कहा- ‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम चाहती हो। पर मैं किसी भी मूल्य पर अपनी ईमानदारी और जिम्मेदारी बेच नहीं सकूँगा।”
गड़रिये ने पात्र को होठ से लगाया और उसे रिक्त करके राजकुमारी को वापस कर दिया। वह समझ गया कि वह मधुर पेय जल नहीं तीखी मदिरा है। शनैः शनैः उसे मूर्छा आने लगी। मौका पाकर राजकुमारी ने उस मेमने को उठा लिया और राजभवन वापस आ गई। पिता ने जब पुत्री की गोद में मेमना देखा तो वह खुशी से चीख पड़ा- “बेटी! तुमने आज मेरे मन की मुराद पूरी कर दी अब मैं मत्थियस को लज्जित कर सकूँगा।”
राजभवन में मत्थियस, परशिया के राजा, उनकी युवा पुत्री तथा अन्य कई मंत्री भी बैठे चर्चा कर रहे थे। उसी समय गड़रिया आया। उसने सबको उचित अभिवादन कर बड़े शिष्टाचार के साथ कहा-राजन् आज मैंने सुनहरे मेमने को उससे भी सुन्दर मेमने से बदल लिया है। मेरा विश्वास है कि अपने लिए यह घाटे का सौदा नहीं है और यह सुन्दर मेमना यह रहा। “गड़रिये ने राजपुत्री की ओर संकेत करते हुए कहा।
सारी बात सामने आई। परशिया के राजा का सारा प्रयास व्यर्थ गया। एक सामान्य से गड़रिया की ईमानदारी और सत्यवादिता पर सब मुग्ध थे। परशिया नरेश पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार आधा हार चुके थे।
मत्थियस ने यह जीता हुआ राज्य गड़रिये को देते हुए कहा - “वत्स! तुम्हारी कर्तव्य निष्ठा से मैं प्रसन्न हूँ आज तुमने मेरे सम्मान की बहुत बड़ी रक्षा की है। में भी तुम्हें अपने राज्य का एक भाग पुरस्कार स्वरूप प्रदान करता हूँ और अब तुम दोनों खण्डों के राजा हुए।”
परशिया का राजा खड़ा हो गया। उसने कहा - “ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। मैं ऐसे ही वर की तलाश अपनी लड़की के लिए कर रहा था। मुझे ऐसा साहसी और सत्यव्रती युवक बहुत खोज के बाद पहली बार मिला है। अतः मैं अपनी कन्या का हाथ भी इसके हाथों में सौंप कर निश्चिंत हो जाना चाहता हूँ।
परशिया के राजा ने अपनी पुत्री का हाथ उस गड़रिये के हाथ में देकर बड़ी प्रसन्नता और संतोष का अनुभव किया। गड़रिये से राजा बनने वाले सम्राट इनोसेन्थ की कथा गाथा अभी भी मध्य एशिया के देशों में बड़ी भाव-श्रद्धा के साथ कही सुनी जाती है।