
सामूहिक पुरुषार्थ द्वारा ही अदृश्य का परिशोधन-युग शक्ति का अवतरण सम्भव
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देवसंस्कृति दिग्विजय करती चली आ रही है चतुरंगिणी सेना पच्चीस पराक्रम दिखाती हुई अपनी मंजिल के उस मुकाम पर आ पहुँची है जहाँ वे पीछे मुड़कर कुछ क्षण रुक कर सिंहावलोकन कर अपनी प्रगति की समीक्षा कर सकती है एवं इष्ट आराध्य-गुरु सत्ता इस संधि काल में दिये गये महत्त्वपूर्ण दायित्वों पर एक दृष्टि डाल सकती है-युग परिवर्तन करने के लिए अवतरित महाशक्ति का अवतरण इस माध्यम से विगत दिनों कहा कहा हुआ, किस किस रूप में यह प्रकाश, सद्ज्ञान, सत्कर्म एवं सद्भावनाओं कि स्थापना के रूप में घर घर तक पहुँचा व कैसे इसने मानवीय आस्थाओं में प्रविष्ट अवांछनीयताओं की जड़े समूल काटने में मदद की? ये एक सुनिश्चित है कि अब तक जितने भी अवतार हुए है मत्स्यावतार से भगवान बुद्ध तक सभी में व्यक्ति-दृश्य असुरताओं से लड़ना पड़ा जो कि अपेक्षाकृत एक सुगम कार्य था किन्तु इस युग में जबकि असुरता जन जन के मनों में मानवीय आस्थाओं में आधिपत्य जमा चुकी हो, वैसे ही प्रकाश पूर्ण और प्रखर सत्ता की आवश्यकता भी थी जो भावनाओं की गहराई उतरकर इतना महत्त्वपूर्ण कार्य कर सके दशावतार की प्रज्ञावतार की अश्वमेधिक लीला को सर्व समर्थ गायत्री महाशक्ति ब्राह्मीचेतना के अभूतपूर्व क्रिया−कलाप के रूप में देखा जाना चाहिए एवं उसका अवतरण सुनिश्चित रूप में इस भारत भूमि पर से ही हुआ समझा जाना चाहिए
शक्ति का प्राकट्य एक तथ्य है और उसकी सक्रियता द्वारा समस्त युग को प्रभावित करना दूसरा पक्ष है। देवात्माएँ भगवत् सत्ता के इस प्रयोजन को पूरा करने के लिए ही चिरकाल से अवतरित होती चली आई है। गायत्री माह शक्ति को व्यापक बनाने के लिए, हर घर को आस्तिकता के ऋतम्भरा प्रज्ञा के प्रकाश से आलोकित करने के लिए युग सैनिकों की एक पूरी कुमुक पूरी तरह सन्नद्ध हर मोर्चे पर लड़ने को तैयार खड़ी है। चूँकि असुर का रूप धर कर-कभी बड़प्पन-प्रदर्शन ठाठ बाठ दहेज कि धूमधाम भरी अपव्यय वाली शक्ल लेकर सामने आ खड़ा होता है नैतिकता के पतन से लेकर के आप अपना रूप बदल कर अपराधी नशे ग्रसित की सी मानसिकता एवं निष्ठुरता के पिशाच वाले रूप में कभी नजर आता है उससे कैसे लड़ा जाय, ये समझने के लिये भी लक्ष्मण स्तर की मेधा तपः ऊर्जा एवं आत्मबल चाहिए। राम रावण युद्ध में मेघनाथ भेष बदल बदलकर रूप बदल बदलकर आक्रमण कर रहा था। किन्तु अपने आराध्य श्री राम के साथ जंगल में एकाकी तक तप करने वाले लक्ष्मण को किसी तरह की कठिनाई इसमें आ नहीं रही थी। उनने अपनी दिव्य दृष्टि से मायावी असुर को ढूँढ़ निकाला वह उसके तांत्रिक अनुष्ठान को भंग कर उसका संहार कर रावण का बचा शेष मनोबल भी तोड़ डाला। आज का लक्ष्मण जो आस्था संकट के युद्ध में मायावी असुर के आक्रमण के भूमि पर खड़ा है-वही तपोबल व दिव्य दृष्टि की अपेक्षा रखता है एवं उसके गायत्री महाशक्ति की साधना से मिल सकती है। गायत्री उपासना के व्यापक विस्तार से वह प्रयोजन पूर्ण हुआ माना जाना चाहिए, जिससे की सतयुगी सम्भावना ही साकार की ही जा सके।
1989 की बसंत पंचमी परम पूज्य गुरुदेव ने 240 करोड़ प्रतिदिन गायत्री जप के ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान का युग संधि महापुरश्चरण का शुभारंभ किये जाने का उल्लेख किया एवं उसकी प्रथम पूर्णाहुति 1995 में किये जाने कि बात कही थी, तब बहुतों को आज की स्थिति की कल्पना भी नहीं थी। यह भी आभास नहीं था कि यह पुरुषार्थ किस प्रकार किन रूपों में बन पड़ेगा? कैसे इतनी लम्बी यात्रा पूरी होगी? किन्तु सहजता से कुछ लाख व्यक्तियों से आरम्भ हुआ आज 6 करोड़ विश्वासी गायत्री परिजनों का आधार भूत संकल्प बन चुका है। पूरे विश्व की आबादी 6 अरब समग्र भारत की 19 करोड़ हिन्दू कही जाने वाली जन शक्ति की 65 करोड़ तो है ही ऐसे में यह मात्र दसवाँ भाग पूरा हुआ ही समझा जाना चाहिए। युग परिवर्तन की आशा की अपेक्षा कैसे रखी जाय जबकि कल्पना हमारे अधिष्ठाता युगऋषि पूज्य वर की विश्व को गायत्रीमय बनाने की थी वह नूतन सृष्टि के सृजेता विश्वामित्र के रूप वह इसका आभास सबको अपने जीवित रहते एवं सूक्ष्म-कारण शरीर से विगत पाँच वर्षों में करा चुके है। यदि सारे विश्व को ही गायत्रीमय बनाना है तो सारे वातावरण को इस व्यापक रूप में मथने डालने की आवश्यकता पड़ेगी अपने अपने समय में श्रीराम, श्रीकृष्ण व बुद्ध ने अपने परिधि के क्षेत्र को आन्दोलित करके रख दिया था इस प्रकार एक-सी विचार धारा और आदर्श निष्ठा के संस्कारों से ओत प्रोत से वातावरण से ही वे शक्ति व प्रेरणाएँ निराश्रित हो सकेगी जिनसे चिरकाल तक मानवीय आस्थाओं में शान्ति और प्रशाँता के, सहयोग और सहकारिता के, धर्म-लीपी और सदाचार के समाविष्ट होने के अवधारणा हो सकती है।
वैज्ञानिक अनुसंधान भी आज एक निष्कर्ष में पहुँचे है कि किसी क्षेत्र विशेष के लोगों की एक विशिष्ट प्रकार की विचारों की अटूट निष्ठा एवं उनके मस्तिष्क से होने वाले” मस्तिष्कीय विकिरण ब्रेनरे डियेशन से सघन तरंगें वहाँ के वातावरण में छा जाती है, और चिरकाल तक बनी रहती है इससे उनने एक” आइडियोस्फियर” बनने और उसके माइक्रो से मेक्रोकेंस्मास में बदल कर प्रभावित वातावरण बनाने भूमिका की महत्ता भी प्रतिपादित कि है। अनुसंधान ये भी बताते है कि एक बार किसी वातावरण को शक्तिशाली भावनाओं में मथ दिया जाय तो वह चिरकाल तक लोगों को प्रभावित करने वाली परिस्थितियाँ उस वातावरण में पैदा हो जाती है आज प्रायः यही प्रयोग पुनः दोहराया जा रहा है, जब घर घर गायत्री की सच्चिन्तन की वह यज्ञ की सत्कर्म की प्रेरणा पहुँचा कर उज्ज्वल भविष्य की स्थापना हेतु संस्कारों का घर घर अभिवर्धन करने की एक अस्त्र के रूप में प्रयुक्त कर इससे वातावरण में छायी विक्षिप्तता, चारित्रिक पतन वाली मानसिकता घुटन पैदा करने वाली अनास्था कि विभीषिका से मोर्चा लेने के लिए वह वातावरण निर्मित किया जा रहा है जिससे श्रेष्ठ विचारों से दुश्चिंतन की काट सम्भव हो सके युग शक्ति गायत्री के अवतरण यही मूल परिजन है इसे इस युग की जागृत आत्माओं को समागत वातावरण बनाकर पूरा करना ही पड़ेगा, चाहे इसमें उन्हें अपनी सम्पूर्ण शक्ति क्यों न झोंक देनी पड़े
नवरात्रि की वेला संधिवेला कहलाती है। उन दिनों सूक्ष्मजगत कहलाती है उन दिनों सूक्ष्मजगत विशिष्ट कम्पनों से अनुप्राणित रहता है वातावरण में असुरता भी अपना प्रभाव दिखाने की जोर आज़माइश करती है व श्रेष्ठता भी, देवत्व भी उन दिनों वातावरण में प्रचुर मात्रा में विद्यमान् होता है। सामूहिक अनुष्ठानों द्वारा संधिकाल की विशिष्ट तप प्रक्रिया द्वारा आहार का संयम अपनाते हुए विशिष्ट रूप अनुष्ठान संपन्न कर उन दिनों यही प्रयास किया जाता है कि एकाकी नहीं सामूहिक रूप में किये गये साधनात्मक पुरुषार्थ को बल मिले। पुरश्चरण इसी स्तर के जप पुरुषार्थ माने गये है जिनमें ढेर सारी एक विचारधारा की साधक मनः स्थिति की जनशक्ति मिलकर अपनी समन्वित विचार तरंगों से श्रेष्ठ वातावरण का निर्माण करे। संधिकाल की नवरात्रि वेला में यदि यह पुरुषार्थ किया जा रहा हो तो यह प्रक्रिया और भी बलवती होती चली जाती है एवं सारे वातावरण के आंदोलित होकर उससे माहौल को फिजा को एक “एरा” को ही बदल डालने की शक्ति उत्पन्न होती देखी जा सकती है। मनः स्थिति प्रचण्ड बल,द्वारा अपने योग्य वातावरण का निर्माण करती है व वैसा ही झंझावात आवेश पूरे परिकर में बनाने की शक्ति रखती है यह एक नितान्त सत्य है। मनुष्य ही वातावरण बनाता और ढालता है और उसी में एक समग्र तत्कालीन मानवजाति ढलती चली जाती है यह ऐतिहासिक तथ्य है। प्रचण्ड मनःशक्ति व भावविह्वलता के आधार पर किये गये ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान जैसे शक्ति साधना स्तर के पुरुषार्थी आश्वमेधिक स्तर के प्रयोगों से चिरकाल से प्रवाहित होते रहने वाले संस्कारों की ऋषि कालीन-सतयुगी विचार-चिन्तन की विलक्षण फौज न जाने ब्रह्माण्ड के किस कोने से दौड़ती आती चली जाती है और बादलों की तरह आच्छादित हो बरसने लगती है।
सामूहिकता के आधार पर की गयी गायत्री साधना में असत् में सत् अंधकार में प्रकाश तथा अज्ञान में ज्ञान की स्थापना की वह विलक्षण शक्ति है जो अपने आप में अनूठी है। यदि एकाकी साधना द्वारा वह साधक का ब्रह्मवर्चस् जगाती है तो सामूहिक उपासना, प्रार्थना में सारे वातावरण को हिला देने की शक्ति होती है इसी आधार पर अगले दिनों सभी धर्म सम्प्रदायों के व्यक्तियों द्वारा सामूहिक स्तर पर अपनी अपनी उपासना के प्रयोग मानव मात्र के उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना के निमित्त एक ही संयम किये जाने का प्रयोग पूरे भारत के महानगरों कस्बों देहातों में प्रयोग स्तर पर आँवलखेड़ा की प्रथम पूर्णाहुति तक बारबार सम्पन्न किये जाने की योजना बनी है ताकि युग परिवर्तन का माहौल बन सके। किसी को अपना धर्म बदलने उपासना पद्धति में परिवर्तन करने की जरूरत नहीं है धियो यो नः प्रचोदयात् की भावना से सब एक साथ सन्मार्ग पर चले इस संज्ञा व सूक्त की भाव श्रद्धा के साथ उज्ज्वल भविष्य का पथ सभी के लिए एक साथ प्रशस्त हो इसी चिंतन चेतना के उदात्तीकरण के साथ यह सामूहिक प्रयोग जप उपासना दीपयज्ञों अनुष्ठानों आदि रूप में सम्पन्न किये जाते रहेंगे एवं देखते देखते सारा वातावरण गायत्रीमय विवेक श्रद्धा से परिपूरित होता देखा जा सकेगा। गायत्री महामंत्र की प्रेरणा सभी को समान रूप से अनुष्ठान के पूर्व के आगामी सात माहों में यह भी प्रयोग किया जा रहा है कि इसके विभिन्न भाषाओं में अनुवादों का मंत्र व भावार्थ का सीमित ही सही बड़े व्यापक पैमाने पर लेखन का क्रम चल पड़े जो मंत्र जप सके वे जपे किन्तु जो लिख सके वे पाँच ही सही पर अपनी अपनी भाषा में उसी भावचेतना से अनुप्राणित हो मंत्र? के भावार्थ का भी लेखन करें। वे उर्दू गुरु अंग्रेजी तमिल तेलगू असमी बंगाली कन्नड़ मलयालम मलयाली गुजराती किसी भी भाषा में हो सकता है बच्चों से लेकर बूढ़ों तक इस अभियान में सम्मिलित हो प्रसुप्त संस्कारों को जगाने की प्रक्रिया को साकार कर सकते है यह प्रयोग सारे भारत व विश्व में एक साथ चल पड़े तो देखते देखते वातावरण के बदलने युग शक्ति के व्यापक होने की सुखद कल्पना सहज की जा सकती है।
जड़े यदि बनी रही तो यह टहनी कटने पर भी कुछ उद्देश्य पूरा होता नहीं है। जड़े नई कोपलें उगाती रहती है वह वृक्ष पनपता रहता है। प्रथम विश्व युद्ध इस सभी के द्वितीय दशक में लड़ा गया तुरन्त बाद ही दूसरा विश्व युद्ध चौथे दशक में लड़ा गया दूसरे के बाद तीसरी तैयारी महाविनाश की विभीषिका इन दिनों बड़ी चढ़ी दिखाई देती है प्रत्यक्ष भोगवादी लिप्सा के परिणाम सामने होते हुए भी चिन्तन का रुझान उसी ओर जाता दिखाई देता है सब जानते है कि स्वच्छता का समुचित प्रबन्ध न किया जाने पर ही सड़न से मक्खी मच्छर पैदा होते बीमारी फैलती है लाखों उपचार के बावजूद ढीठ मच्छर अपना उत्पाद वैसा ही फैलाता ही दिखाई देते है वे मलेरिया छः जैसे रोग आधुनिकतम चिकित्सा साधनों के बावजूद साधन सम्पन्न देशों में दिखाई दे रहे है। वस्तुतः प्रत्यक्ष उपचार सब कुछ नहीं है गंदगी नमी का निराकरण होने पर (खाली) का अभिवर्धन करने हेतु युग ऋषि द्वारा एक सौ आठ अश्वमेधों का शृंखला चलाई गई है जिसका प्रथम चरण आगामी जुलाई माह के शिकागो (यू. एस. ए.) अश्वमेध (28,29,30,जुलाई 95) में समाप्त हो अपनी प्रथम पूर्णाहुति द्वारा नवम्बर में एक कड़ी के रूप में समाप्त होगा इसी के साथ साथ आगामी शृंखला के वर्ष के बाद प्रारम्भ होने तक तथा अब से आँवलखेड़ा पूर्णाहुति तक घर घर तक गायत्री महाशक्ति की स्थापना का आस्तिकता के बीजारोपण का सूक्ष्म जगत के अनुकूलन के नियमित शब्द शक्ति के प्रयोगों का क्रम अनवरत चलता रहेगा दीपयज्ञों-छोटे कुण्डीय यज्ञ संस्कार महोत्सव की शृंखला इस
ऊर्जा के विस्तरण की प्रक्रिया पूरी करेगी। सामूहिक विपत्ति टालने के लिए इन दिनों इससे कम में काम नहीं चल सकता है।
इसी वर्ष दीपावली के दिन खग्रास सूर्यग्रहण है जो भारत में भी देखा जा सकेगा। इस ग्रहण के साथ सौर कलंकों सूर्य पर पड़ने वाले धब्बों (सन स्पॉट्स) की संख्या इस सदी के अन्त तक बढ़ती चली जाएगी। सौर-ऊर्जा का यदि गायत्री द्वारा संयोजन कर उसका सुनियोजित विस्तार विज्ञान सम्मत आश्वमेधिक प्रयोगों द्वारा किये जाने का क्रम चलता रहा तो निश्चित ही सारी मानव जाति को आसन्न विभीषिकाओं से मुक्ति दिलाई जा सकेगी। सज्जनों की संयुक्त शक्ति जागे संघर्ष शक्ति दुर्गा शक्ति का अवतरण हो तथा युगशक्ति गायत्री की प्रेरणा से सभी अनुप्राणित हो सतयुग की वापसी का सरंजाम बनाएँ ऐसी ही कुछ इन आकांक्षा है बुद्धिमानी इसी में है कि सभी समय के प्रवाह के साथ चलते हुए इस विराट साँस्कृतिक अभियान से जुड़े जिसमें हर जाति वर्ग वर्ण संप्रदाय लिंग के व्यक्ति सम्मिलित होते देखे जा सकेंगे यदि इस युग वातावरण को विचारक्रांति गायत्री उपासना व यज्ञों संस्कारों के विस्तार द्वारा गायत्रीमय बनाया जा सके तो युगशक्ति का यह अवतरण सम्ल सार्थक होकर रहेगा उससे अपने राष्ट्र एवं विश्व को चिरकाल तक समृद्ध सशक्त एवं सुसंस्कारित सुगठित बनाये रखने वाली ऊष्मा का उत्पादन भी संभव हो सकेगा। जितने अधिक व्यक्ति जोड़े जा सकेंगे अंतः करण से कटिबद्ध हो सकेंगे उतना ही युगशक्ति का अवतरण तथा सही समय पर इस धरती पर ऋषि युग्म का आने का सुयोग्य सौभाग्य व सबका उससे जुड़ना सार्थक माना जाएगा
*समाप्त*