
एक मृतात्मा की भविष्यवाणी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
“मुझे अनुभव हो रहा है कि पिछले जन्म में मैं बौद्ध भिक्षु के रूप में धार्मिक जीवन बिता रहा था। सात्विक एवं परमार्थरत जीवन का प्रभाव मेरे अंतःकरण में बीज रूप में पड़ता गया और इस जन्म में कुछ विशेष योग्यता लिये उत्पन्न हुआ। पवित्र अन्तःचेतना को इस जन्म में भी दूषित नहीं होने दिया। लोभ मोह अहंकार को तृप्त करने वाले आकर्षक अवसर भी आये, किन्तु उन्हें प्रभावी होते देकर समाज सेवा एवं परमार्थ परायणता को समाप्त नहीं होने दिया।”
उपरोक्त वक्तव्य न्यूयार्क शहर के कैट्स केट्सकिल माउन्टेन क्षेत्र में रहने वाले विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न डेनियल लोगेन का है, जिन्हें प्रकारान्तर से भविष्यवक्ता भी कह सकते हैं इस संबंध में उनका कहना है कि इसमें मेरी अपनी कोई विशेषता अथवा विशिष्टता नहीं है, यदि थोड़ी है तो बस पवित्र आत्मा उतरती है, और भविष्य में घटने वाली सारी घटनाओं को मुझे स्फुट दिखाती चली जाती है। इस प्रकरण का उल्लेख दि पीपुल्स एलमेनेक नामक ग्रन्थ में डेविड वालेकनिस्की एवं इरविंग वैलेक द्वारा विस्तारपूर्वक किया गया है।
भविष्यवाणी के संदर्भ में उन्होंने सन् 74 से लेकर आने वाली ती दशाब्दियों को नारी जागरण का समय कहा है जिसमें नारियों को पुरुष के समतुल्य मान्यता मिलेगी। इसके सम्बन्ध में उन्होंने संकेत देते हुए बताया है कि 75 के प्रारम्भ होते ही यह प्रक्रिया आरम्भ होते ही यह प्रक्रिया आरम्भ हो जायेगी और अमेरिका में महिलाओं को सर्वप्रथम एकेडेमी अवॉर्ड मिलेगा। उनका यह कथन सत्य निकला।
उन्होंने आने वाले 25 वर्षों को (1975-2000) विषम काल घोषित किया और इसमें पृथ्वी के ही नहीं अपितु समूचे ब्रह्माण्ड के क्रिया−कलाप में आमूल-चूल परिवर्तन की ओर संकेत भी दिया है अपनी विशेष वेधक दृष्टि से देखकर उन्होंने विकास एवं विनाश के दोहरे प्रयोजन की भी घोषणा की। एवं 2000 के बाद आने वाले समय को उज्ज्वल भविष्य की सुखद संभावनाओं से भरा-पूरा बताया।
विनाश की ओर इंगित करते हुए कहा कि इस अवधि में मनुष्य अपने बुद्धिबल से उत्तरी ध्रुव में विभिन्न परमाणु परीक्षण करने का प्रयास करेगा जिसके कारण पृथ्वी के वातावरण में विनाशकारी परिवर्तन होंगे भूकम्प ज्वाला मुखी एवं बर्फ पिघलने के कारण तटीय देशों को जल प्लावन का खतरा बढ़ेगा किंतु फिर भी मनुष्य जाति के लिए यह प्राकृतिक आपदाएँ सर्वग्राही न सिद्ध हो सकेगी।
उनके अनुसार 1983 से 1990 के बीच किसी भागवत् सत्ता की कार्य योजना का सभी को अच्छा खासा संकेत मिलने लगेगा। प्रारम्भ में तो लोग अपरिचित रहेंगे किन्तु 90 का दशक प्रारम्भ होते ही विस्फोट जैसा प्रभाव दृष्टिगोचर होगा और समूचा विश्व उससे आप्लावित होकर और समूचा विश्व उससे आप्लावित होकर उसके बताये क्रिया–कलापों को सम्पादित करने के लिए कटिबद्ध होता नजर आयेगा। उस नवीन विचारधारा में किसी धर्म सम्प्रदाय जाति भाषा का समर्थन नहीं होगा अपितु मानवीय मूल्यों को स्थापित करना एवं मनुष्य को ध्वंस की अपेक्षा सृजन प्रयोजनों की ओर मोड़ने का ही एकमात्र उद्देश्य निहित होगा।
“1990 के दशक के प्रारम्भ से मध्य तक विचार क्राँति अपने पूर्ण यौवन में उभरकर सामने आयेगी और तथाकथित साम्यवादी तानाशाही राष्ट्रों में गृहयुद्ध होगा। जन शक्ति में वह सामर्थ्य दृष्टिगोचर होगी जिससे वह सत्ता चाहे बिठा ले अथवा उतार दे। विभिन्न राष्ट्रों का नेतृत्व ऐसे ही व्यक्ति कर सकेंगे जो स्वार्थपरता को छोड़ कर सच्चे अर्थों में परमार्थ परायणता का परिचय देंगे। यही एकमात्र कसौटी रहेगी जिसके आधार पर प्रत्येक राजनेता को कसा जाएगा
उनके अनुसार 1991-1996 के मध्य एक ऐसे शक्ति स्रोत का पता चलेगा, जिससे ऊर्जा संकट के संबंध में नया मार्गदर्शन मिलेगा। मानवीय मूल्यों को बदलते परिवेश में किस स्वरूप में अपना अस्तित्व रखना चाहिए एवं उसके परिपोषण-अभिवर्धन के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए इसका भी उत्तर इसी काल में मानव समुदाय को प्राप्त होगा।
सन् 1995 तक लोगों को यह पूर्ण विश्वास हो जाएगा कि विभिन्न औषधियों से ही मात्र रोगों का निदान संभव नहीं है। व्यक्ति की प्राण शक्ति एवं जीवनी शक्ति में कभी आने से आधि व्याधि पनपती बढ़ती एवं मनुष्य को संत्रस्त करती है। जनमानस में यह मान्यता धीर धीरे प्रगाढ़ होती चली जायेगी। “एड्स कैन्सर जैसे रोग इन्हीं कारणों से उत्पन्न होते हैं यह सभी चिकित्सक अब खुले स्वरों में कह रहे हैं।
इस प्रकार डैनियल लोगेन ने अपनी भविष्यवाणी में लगभग वही सारी बातें कही हैं जो आये दिन अपनी सूक्ष्म दृष्टि के आधार पर कहते आये है। यदि आने वाले समय में उनका उपरोक्त कथन सत्य सिद्ध होता प्रतीत हो तो उसे परोक्ष जगत में पहले ही घट चुकी भवितव्यता की स्थूल अभिव्यंजना भर माना जाना चाहिए, आश्चर्य अचम्भा जैसा कुछ नहीं क्योंकि जो कुछ घटने वाला होता है, उसका “ब्लूप्रिंट” अदृश्य जगत में बहुत पहले ही तैयार हो जाता है द्रष्टा पुरुष उसे अपनी दिव्य दृष्टि द्वारा अभिव्यक्त मात्र कर देते है। एक सामान्य और सूक्ष्म द्रष्टा में यही स्थूल अंतर है।