Magazine - Year 1999 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
चेतना का क्रीड़ा - कल्लोल - स्वप्नदर्शन
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अठारहवीं शताब्दी के महान योद्धा टीपू सुल्तान को अपने समय का सफलतम शासक माना जाता रहा है। इस सफलता के पीछे उन्हें समय-समय पर सम्बंधित विषयों के बारे में स्वप्न के माध्यम से मिलते रहने वाले पूर्वाभास की प्रमुख भूमिका रही है। यह रहस्योद्घाटन उस डायरी से हुआ जो सन् ७९ में श्रीरंग्पातटम के युद्ध में हुई। उनकी मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों के सम्बन्ध में उन्हें कभी स्वप्न में तो कभी अनायास बैठे बैठे ही अंतः प्रेरणा उभरती है कि अब अमुक कदम उठाने चाहिए। वैसे ही वह करते भी थे। अपनी मृत्यु तक का वर्णन उस डायरी में उन्होंने किया है।
स्वप्नों के सम्बन्ध में दी अमज न्स एंड डेवलपमेंट ऑफ साएकोएनलिसिस नामक पुस्तक में मनोवेत्ता सिगमंड फ्रायड ने बताया है कि रात्रि में व्यक्ति सो जाता है, तो उसका शरीर शिथिल हो जाता है, परन्तु मन तब भी जागृत रहता है और यही अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं के स्वप्न सजाता देखता रहता है। उसके अनुसार स्वप्न मनुष्य की दमित एवं अपूर्ण इच्छाओं की प्रतीकात्मक पूर्ति मात्र है। इससे अधिक कुछ भी नहीं है।
आधुनिक शोध- अनुसन्धान के आधार पर अब यह सिद्ध हो गया है कि स्वप्नों के सम्बन्ध में फ्रायड की उक्त मान्यता भुत उथली है। स्वप्नों के मात्र इतने बार ही कारण नहीं होते। इस संदर्भ में भारतीयों मनीषियों ने भुत पहले ही अथर्ववेद, देवज्ञकल्पद्रुम, सुत्रुत संहिता, अग्नि पूरण आदि ग्रंथों में स्वप्नों के बारे में कही अधिक छानबीन की है। कठोपनिषद् में तो मन को विद्युत शक्ति के समान माना गया है। कहा गया है सामान्य स्थिति में तामसिक स्वप्न आते है, जो अपने शरीर के विषयों तक सीमित रहते है। ऐसे स्वप्न ऊलजलूल और ऊटपटाँग हुआ करते है। संभवतः फ्रायड की विश्लेषणात्मक कल्पनाशक्ति की दौड़ यही तक चक्कर काटकर समाप्त हो जाती है।
तामसिक स्वप्न से आगे जब शरीर रजोगुण प्रधान रहता है, तो उस समय जागृत अवस्था में देखे हुए पदार्थ या दृश्य ही कुछ रूपांतर से स्वप्नावस्था में दिखाई देते है। ऐसे स्वप्न जागृत होने के बाद भी याद रहते है। इन दो प्रकार के सामान्य स्वप्नों से भिन्न एक ओर प्रकार के स्वप्न का भी शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। जिन्हें सात्विक स्वप्न कहते है। इसमें मन का सम्बन्ध जब आत्मा से होता है तब ऐसे स्वप्न आते है, सोते समय जिस किसी भी क्षण मन आत्मा से सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। सोते समय भूत, भविष्य, वर्तमान की काल - सीमा और स्थान की मर्यादा से लगता है।
सुप्रसिद्ध मनीषी सर ओलीवर लॉज ने अपनी क्रति श्सरवाइवल ऑफ मैन में कहा है कि स्वप्नों में इस तरह भविष्य की घटना दिखाई देना इसका एक प्रमाण है। उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि मन के माध्यम से हम स्वप्नावस्था में अलौकिक जगत और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को देखते और जान लेते है। उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने लिखा है कि यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के सपनों के बारे में लिखा है कि उन्हें अपने कार्य एवं भविष्य की घटना के बारे में अधिकाँश जानकारी व प्रेरणा स्वप्नों के माध्यम से ज्ञात होती है।
इसी तरह एक घटना पादरी इ. के. एलियट के जीवन से सम्बंधित है। 14 दिसंबर, 1856 में जब वे एक समुद्री यात्रा पर थे, तो उस रात एक स्वप्न देखा कि उनके चाचा का एक पत्र आया है, जिसमें लिखा है कि उनके छोटे भाई की 14 जनवरी 1847 को मृत्यु हो गयी है। नींद खुलने पर पादरी ने यह स्वप्न अपनी डायरी में नोट कर लिया और अपने सब कार्यक्रम रद्द करके घर वापस लौट पड़े। यात्रा आरम्भ करने से पूर्व भाई को टाइफ़ाइड से ग्रस्त छोड़ कर आये थे, जो आब ठीक हो गया था। घर पहुँचने पर उसे स्वस्थ पाकर उन्हें स्वप्न के कारण भ्रम का शिकार बनने पर पश्चाताप भी हुआ और आश्चर्य भी, क्योंकि स्वप्न में देखे गए घटनाक्रम इतने स्पष्ट थे कि मानस पटल से हटते-मिटते ही नहीं थे। अंततः यह स्वप्न सही सिद्ध होकर रहा। कुछ दिनों के बाद भाई फिर से बीमार पड़ा, उसे दुबारा टाइफ़ाइड हो गया था और उसी तारीख को, जिसे पादरी ने समुद्री यात्रा के समय स्वप्न में देखा था, उसका देहांत हो गया। उपनिषदों में एक चौथे प्रकार के स्वप्न का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें जो दृश्य स्वप्न में दिखाई देता है, प्रायः ज्यों-के-त्यों घटित होते है इन स्वप्नों को तुरीय स्वप्न कहा जाता है। इसमें मनश्चेतना आत्मचेतना के साथ घुल-मिल जाता है और अनागत भविष्य को भी देख लेती है। उपर्युक्त अब्राहम लिंकन की तरह ही नेपोलियन के जनरल बैकमेन हेनरी तृतीय और कैनेडी को अपनी हत्या के दृश्य स्वप्न में दिखाई दिए थे। स्वप्न का अर्थ होता है और वे महत्वपूर्ण भी होते है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चाच्र लि भी कई बार इन्हीं स्वप्न के कारण मौत के मुँह से बच निकलने में कामयाब रहे थे।
श्ड्रीमवल्ड्र नामक अपनी पुस्तक में स्टुअर्ट हालराइड ने स्वीडिश सोसायटी फॉर सैकिक्ल रिसर्च की सनाथापिका इव हेलस्ट्रोम के स्वप्न का उल्लेख किया है। उसके अनुसार ईवा को सन् 1954 में एक स्वप्न आया कि वह अपने पी. टी. आई के साथ एक हवाईजहाज में अपने गृहनगर स्टाकहोम के ऊपर उड़न भर रही है और नीचे एक चौराहे पर नीले रंग की बस भूरे रंग की हुआ करती थी। इस सपने के कुछ महीने बाद सचमुच उसका रंग भूरे से नीला कर दिया गया है। अब तो ईवा को अपना स्वप्न बरबस याद आने लगा। उसने अपनी डायरी में उस चौराहे का हाथ से काल्पनिक स्केच भी बना डाला, साथ ही यह भी उल्लेख किया कि चार नंबर की नीली बस के साथ दृस्तोम नामक स्थान पर यह दुर्घटना घटित होगी। 4 मार्च 1956 के दिन चार नवम्बर की नीली बस की टक्कर एक कार से हो गयी और वह भी उसी स्थान पर, जहाँ स्वप्न में इव ने हवाईजहाज से यह दुर्घटना घटित होते देखी थी।
श्अनएक्सप्लेंड - मिस्ट्रीज ऑफ टाइम स्पेस इन माईंड नामक पुस्तक में इस तरह की अनेक घटनाओं का उल्लेख किया है, जिनके घटित होने से पूर्व लोगों को स्वप्न के माध्यम से पूर्वाभास हो चुका था। उसके अनुसार जेम्स केस्ट्ल नामक स्पेन के एक व्यक्ति को स्वप्न में अपनी मृत्यु का पूर्वाभास मिल गया था, जिसके आधार पर उसने अपने जीवनबीमा की एक लाख डॉलर की राशी तुरंत उसके बाद ही जमा की थी। इसके कुछ सप्ताह बाद ही जेम्स आफिश से अपने घर की और पचास मील प्रति घंटा की रफ्तार से गाड़ी चलाते हुए आ रहे थे कि सामने से एक सौ मील प्रति घंटे की तीव्रगति से आ रही कार से जा टकराई। तेज गति के कारण दूसरी कार उछलकर जेम्स के कार के ऊपर जा गिरी और उसकी वही मृत्यु हो गयी। सामान्यता बीमा कंपनियों तुरंत लिए हुए बीमे के बंद होने वाली मृत्यु के मामलों में आसानी से भुगतान नहीं करती, लेकिन इस प्रसंग में कम्पनी के मैनेजर ने कहा कि वह तो एक इसी अविश्वसनीय दुर्घटना है, जिसमें शंका की कोई गुँजाइश नहीं रहती। जेम्स की पत्नी प्रसूता थी। स्वप्न भी प्रसूति के बारे में ही था कि नवजात शिशु को वह देख नहीं पाएगा सारी राशी उन्हीं को मिली।
उपयुक्त पुस्तक में ही अमेरिका के डेविड वुथ नामक व्यक्ति का उदाहरण दिया है डेविड को लगातार कई रात्रि तक एक ही स्वप्न आता रहा कि अमेरिका एयरलाइनस के एक हवाई जहाज का इंजन फेल हो गया है और वह हवा में उछलकर जमीन पर गिरते ही टूट गया और उसमें से आग की लपटें निकल रही है। बार-बार दिखने वाला यह स्वप्न इतना स्पष्ट था मानो उस दृश्य को टेलीविजन पर देख रहा हो। अंततः उसने 22 मई,1979 को फेडरल एविएसन एडमिनिस्ट्रेशन को फोन किया और विस्तार से सारे घटनाक्रम का वर्णन किया। इसके साथ ही सिनसिनाटी विश्वविद्यालय के सेकिआत्रिस्त को भी फोन पर ब्यौरा दिया। पहले तो लोगों को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन जब 26 मई, 1979 को स्वप्न में बताये गए उसी हवाई अड्डे पर डी. ब. 10 नंबर नाम का जहाज दुर्घटनाग्रस्त होकर गिर पड़ा, जिसका कारण इंजन का फेल होना पाया गया तो अधिकारियों एवं मनोवेत्ताओं को आश्चर्यचकित हुए स्वप्न की सत्यता का विश्वास करना पड़ा।
दशरथ और मायासुर का युद्ध हो रहा था। मायावी राक्षस से सभी राजा परस्त हो चुके थे। दशरथ को अपनी विजय में संदेह ही दिखाई दे रहा था तब एक नारी संग्राम में उतरी। दशरथ की अर्द्धांगिनी कैकेयी-सुता ने सारथी का पद संभाला। उस दिन
ब्रह्म सूत्र में महर्षि वेदव्यास ने स्पष्ट किया है कि स्वप्न भविष्य में घटित होनी वाली शुभ-अशुभ घटनाक्रमों को।
उस दिन कैकेयी ने उंगली पहिये में लगा दी और तब तक उस स्थिति में बनी रही, जब तक उस दिन का युद्ध समाप्त नहीं हो गया।
वह युद्ध कहते है दशरथ ने जीता था। पर यदि सच्चाई को अभिव्यक्त होने का अवसर दिया जाए, तो यह कहना पड़ेगा की वह विजय पत्नी की कर्तव्यपरायणता की विजय थी। भारतीय नारी की ये निष्ठा ही भारतीय समाज को वह शक्ति प्रदान करती है, जिनकी यशगाथाएँ आज भी विश्व - इतिहास के अन्तरिक्ष में सूर्य की भाँति देदीप्यमान है।
प्रतीक होता है योगसूत्र में भी स्वप्न की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि चेतनाओं से अचेतनावस्था में प्रविष्ट होने पर ही स्वप्न दिखते है। अवचेतन मन विराट चैतन्य से जुड़ा हुआ है। अतः अतीन्द्रिय क्षमताएँ वही से उद्भूत होती है। प्रयत्नपूर्वक उन्हें जाग्रत व विकसित किया जा सकता है। व्यष्टि मन में समष्टि मन से तादात्म्य बिठाने एवं अनागत भविष्य की दर्शन झाँकी करने की अद्भुत क्षमता है।
श्दी स्टोरी ऑफ एडगर केसी में विश्वविख्यात अतिर्दीय क्षमता संपन्न एडगर केसी के द्वारा देखे गए स्वप्न और उसके जीवन में फलितार्थ होने का सुविस्तार विवरण प्रकाशित किया है। केसी को अपने जीवन में आने वाले उतार -चढ़ाव का आभास स्वप्नों के द्वारा बहुत पहले ही हो गया था और किस तरह संकट से जूझना होगा। संपर्क क्षेत्र के लोग जानते है कि एडगर केसी के जीवन में अतिर्दीय क्षमता के विकास के साथ ही उन्हें भारी उपहास ईर्ष्या का शिकार होना पड़ा, यहाँ तक की जेल की हवा भी खानी पड़ी कारावास की यंत्रणाओं से गुजरना पड़ा। इतने पर भी वह विचलित नहीं हुए और प्रकृति प्रदत्त अपनी अतींद्रिय क्षमता के शेयर पीड़ित मानवता का दुःख -दर्द दूर करने में निरंतर प्रयत्नशील रहे। अतींद्रिय क्षमता से प्राप्त ज्ञान से वह अनेक रोगियों की चिकित्सा करने में सफल रहे। स्वप्नविज्ञान की नवीनतम खोजो ने भी अब अवचेतन मन द्वारा अतींद्रिय-क्षमताओं के जागरण का समर्थन किया है। मनोविज्ञानी फ्रायड के अनुसार, यदि स्वप्न केवल रोगात्मक जीवन से ही सम्बंधित है, तो उपर्युक्त स्वप्नों का क्या कारण है? वस्तुतः स्वप्न मन का क्रीड़ा- कल्लोल भी है और उसकी अनुभूतियाँ भी फ्रायड के सिद्धाँत का खंडन प्रख्यात मनोवैज्ञानिक कार्ल गुस्ताव जुँग करते हुए कहते है कि दैनिक जीवन कि घटनाओं और संवेदनाओं का प्रभाव मन पर होने के कारण स्वप्नों में रहता तो है, पर स्वप्न इतने तक ही सीमित नहीं है। विश्व - ब्रह्माण्ड में प्रवाहित होते रहने वाले सुक्ष्मपरिवर्तन के कारण पराचेतना में अनेक प्रतिबिम्ब तैरते रहते है। मनुष्य कि अनुभूतियाँ इनसे प्रभावित होती है और वह प्रभाव व्यक्ति की जिनकी स्थिति के साथ सम्मिलित होकर स्वप्न जैसी विचित्र प्रतिक्रिया भी उत्पन्न करता है, अर्थात् व्यक्ति कि सीमित चेतना विराट चेतना के साथ मिलकर जिस स्तर का अनुभव करती है, उसका आड़ा-टेढ़ा और सीधा-सादा परिचय स्वप्न-संकेतों के रूप में मिल जाता है। कोई स्टेशन ठीक से न पकड़ पाने के कारण रेडियो जिस तरह गड्ड-मड्ड ध्वनियाँ निकलता है, उसी प्रकार मन का आत्मचेतना से मेल-संयोग यदि सीधा व सही हो, तो स्वप्नों में स्पष्ट संकेत मिल जाते है। मन के इधर -उधर भटकते रहने पर ऊलजलूल व निरर्थक स्वप्न आते है।
यदि मन शुद्ध, सात्विक, निर्मल और परिष्कृत हो तो सूक्ष्मजगत के स्पंदनों को पकड़ने में ओर भी आसानी हो सकती है। अशुद्ध, निकृष्ट और अपरिष्कृत मन खराब रेडियो सेट की तरह व्यर्थ और निरर्थक शोर-शराबा ही उत्पन्न करेगा, जिसकी जीवन में न कोई उपयोगिता है और न ही आवश्यकता। कौन से निरर्थक, इसका कोई स्पष्ट विश्लेषण नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की मन की संरचना भिन्न-भिन्न प्रकार की हुआ करती है। फिर भी स्वप्न दिव्यसंदेशों से भरे होते है एवं निर्मल पवित्र मन में वे आगत की महत्वपूर्ण सूचनाओं को लेकर अवतरित होते है यदि यह विज्ञान समझा जा सके तो मनुष्य परोक्ष जगत की इस विभूति से अनेकानेक संकेत पाकर अपना जीवन धन्य बना सकता है।
शारीरिक सुंदरता बढ़ाने के लिए नर-नारियों में इन दिनों सौंदर्य प्रसाधनों के प्रयोग की धूम मची है। बाल्य-जीवन से लेकर बुढ़ापे की आयु तक के लोगों को इसने अछूता नहीं छोड़ा है। बेबी पाउडर तथा आफ्टर शेव–लोशन के प्रचलन को देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। सौंदर्य वृद्धि के बाह्य मापदण्डों को अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों ने अत्यंत हानिकारक बताया है, फिर भी न जाने लोग क्यों इनका अंधाधुन्ध प्रयोग करते हैं? विशेषतया महिलाएँ इन दुष्प्रवृत्तियों का अधिक शिकार बन रही हैं। भड़कीले विज्ञापनों से प्रभावित महिलाएँ अपने रूप-सौंदर्य को अधिक आकर्षक बनाने के लिए कृत विविध प्रकार के क्रीम-पउडरों का प्रचलन इसी की पुष्टि करता है। साबुन तथा टूथपेस्ट जैसी चीजें तो तुरंत शरीर में घुलकर प्रभावहीन हो जातीं हैं, लेकिन पाउडर, क्रीम, बिंदी, लिपस्टिक, मस्कारा, नाखून पालिश, शैम्पू, स्प्रे, सुरमा आदि का प्रभाव शरीर में देर तक बना रहता है, जिसके कारण ये चीजें अपना दुष्प्रभाव शरीर पर अवश्य दिखाती हैं।
नेशनल हेल्थ ऐसोसिएशन, ब्रिटेन की अध्यक्षता श्रीमती सिक वोकरडेल का कहना है कि हर सौंदर्यप्रेमी महिला अपने पूरे जीवनकाल में एक टन की मात्रा में लिपस्टिक आदि पदार्थ होठों को सुन्दर बनाने में प्रयुक्त करती हैं। इसमें से अधिकाँश हानिकारक पात्र उनके पेट में पहुँचती है। इनमें उपस्थित कुछ विषैले रसायन भी इसके साथ चले जाते हैं, जिसके कारण महिलाओं को रसौली जैसी घटक रोग का शिकार बनना पड़ता है इसी तरह वैनिशिंग क्रीम में मोम, पाउडर में चाक तथा खड़िया, क्रोमियम तत्त्व एवं सुरमा, मस्कारा, काजल, आईलाइनर एवं आइशेडस में कोलतार की उपस्थिति भी कम खतरनाक नहीं होती है। अन्यान्य खोजकर्ता वैज्ञानिकों ने भी सुरमे आदि में सीसे कि उपस्थिति पायी है। इसके प्रभाव से आँखों की ज्योति में कमी तो आती ही है, साथ-ही-साथ कैंसर जैसे जानलेवा रोग की संभावनाएँ भी बनी रहती हैं। ऊपर से चमक-दमक दिखाने वाले सौंदर्य प्रसाधन कितने खतरनाक हो सकते है, यह बात इन पदार्थों की गंभीरतापूर्वक वैज्ञानिक जाँच-परख करने के पश्चात सामने आई है। चेहरे को चमकाने में प्रयुक्त होने वाली क्रीम में विश्लेषणकर्ताओं ने पारा मिश्रण की उपस्थिति अधिक मात्रा में पाई है। यही कारण है कि पिछले दिनों ताईवान में बनी छः प्रकार की क्रीमों पर सिंगापुर, मलेशिया और हाँगकाँग जैसे देशों में प्रतिबन्ध लगा दिया गया। मलेशिया के स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों को चेतावनी दी कि उसमें आवश्यकता से अधिक मात्र में मरक्यूरिक अमोनियमक्लोराइड नामक जहरीला पदार्थ मिला हुआ है। इसके नियमित उपयोग से त्वचारोग, कंपकंपी यकृत रोग, हृदय रोग सहित अन्य अनेक बीमारियाँ हो सकती हैं। इसी तरह का निष्कर्ष आयरलैण्ड व ट्रीनटी कॉलेज डबलिन के वैज्ञानिकों ने निकला। पाया गया कि लिपस्टिक आदि प्रसाधनों में अप्राकृतिक रूप से सीसे की मात्र अधिक थी। पिछले दिनों बेनेजुएला स्वास्थ्य मंत्रालय के दो विशेषज्ञों ने गहन पर्यवेक्षणों के पश्चात् भविष्यवाणी की थी कि सन् २०१० तक विश्व के अधिकाँश मानव अपने सर के बालों को गंवा बैठेंगे। भविष्यवाणी करने वाले वैज्ञानिक थे- डॉ. लियोनार्ड गार्सिया तथा डॉ. डिकार्ली। इनके अनुसार विगत कुछ वर्षों से गंजापन बढ़ रहा है। रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग, प्रदूषण से युक्त वातावरण और आधुनिक असंयमित जीवन बालों को काला, चमकीला एवं सुन्दर बनाने वाले रसायनों का अधिक प्रयोग मनुष्य को गंजा बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा हैं।
चित्र-विचित्र फैशन बनाने व रंग-रोगन पोतने की अपेक्षा यही अच्छा है कि प्रकृति-सान्निध्य में रहा जाए और धूप-हवा को अपना काम करने दिया जाए। शुद्धजल से शरीर व कपड़ों को धोते रहा जाए। प्रकृति पर विश्वास रखना चाहिए कि जो फूलों को सहज ही इतना सुन्दर बना देती है, वह प्रकृति प्रेमी मनुष्यों को क्यों न सुन्दर बना देगी।