Magazine - Year 1999 - Version 2
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Language: HINDI
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नियम की अवहेलना (Kahani)
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(कथावाचक गरीब ब्राह्मण कथाएँ बाँटकर ही अपना निर्वाह करते थे। इस प्रकार जीविकोपार्जन के साथ साथ सद्ज्ञान प्रचार का पुण्य प्रयोजन भी पूरा हो रहा था। धर्मग्रंथ का अध्ययन करते हुए उन्होंने एक स्थान पर पढ़ा -ज्ञानदान का प्रतिफल धन के रूप में ग्रहण नहीं करना चाहिए।
उन्हें बड़ा दुःख हुआ कि अब तक वे इस नियम की अवहेलना ही करते थे। धर्मप्रचार की लिए जब वे कथाएँ किया करते तो लोग जो दक्षिणा देते उसी से अपना गुजारा चलाते थे। अब तक जो भूल हो गयी अब न होने दूँगा। इस संकल्प के साथ उन्होंने जंगल में लकड़ी काटकर अपना गुजारा चलाना आरम्भ कर दिया। दान दक्षिणा से लोग पैसा तो चढ़ाते थे, उस धन का उपयोग वे गुरुकुल, पुस्तकालय तथा अन्य जनोपयोगी कार्यों में करने लगे।)