Magazine - Year 1999 - Version 2
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Language: HINDI
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एक शाश्वत सांस्कृतिक प्रतीक है -कमल
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भारतीय संस्कृति में प्रतीकों का अत्यधिक महत्व है। यहाँ प्रतीकों के माध्यम से अपने इष्ट एवं लक्ष्य कि उपासना - आराधना का विधान है। इस क्रम में कमल एक शाश्वत -सांस्कृतिक प्रतीक है। कमल भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही तथ्यों का प्रतीक माना गया है। यह श्रृंगार एवं वैराग्य तथा सृष्टि व प्रलय के रूप में वर्णित होता है। यह असीम -अनंत आकाश के साथ प्राणी के सूक्ष्म अन्तः कारण का भी प्रतीक है। इसे जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि, सूर्य, चंद्रमा एवं ब्रह्माण्ड के तत्व के रूप में भी स्वीकारा गया है। शास्त्रकारों के अनुसार यह पवित्रता, निर्मलता, कोमलता,सृजन जीवन, सौंदर्य, सुरभि एवं अमरता का प्रतीक है। इसके गुण शोभा, स्नेह, आकर्षण दिव्यता, प्रेम, ज्ञान, ऊर्जा, मंगलिता, भव्यता, शीतलता आदि है। कमल के इन्हीं गुणों के कारण उसे विभिन्न धर्मों में सम्मानपूर्वक प्रतिष्ठा मिली है। यही वजह है कि इसकी महत्त्व वैदिक काल से लेकर समय तक अक्षुण्ण है।
कमल शब्द संस्कृत की श्कम धातु से बना है। श्कम का तात्पर्य है जल और अल का अर्थ है - अकलंक कृत करे वह कमल है। पदम् इसका प्रसिद्ध पर्याय है। जल से उत्पन्न होने के कारण जल कि पर्यायवाची शब्दों के साथ ज, जात अथवा जन्य प्रत्यय लगाने से कमल का पर्याय बन जाता है। इसी तरह रुह प्रत्यय का अर्थ है, अंकुरित और विकसित होना। इसी विशेषता के कारण इसे जलोरुह, सरसीरुह आदि नाम से जाना जाता है। कमल के अनेक अर्थ एवं अनेक नाम है। महाप्रलय के जलप्लावन के पश्चात् विष्णु की नाभि से सृष्टि का सृजन माना जाता है। यह पृथ्वी के सृजन का एक मूर्तिमान् रूप है। श्रीमद्भागवत पुराण, मत्स्यपुराण तथा हरिवंशपुराण में नारायण कि नाभि से कमल कि उत्पत्ति का वर्णन विभिन्न अलंकारिक रूपों में हुआ है।
ऋग्वेद में कई स्थानों पर नीलोत्पल का उल्लेख आया है। यजुर्वेद के एक मन्त्र के अनुसार बालक के माता पिता उसे कंलो कि माला पहनाकर आचार्य कुल में प्रवेश करने ले जाते है। अथर्ववेद में कमल कि दो जातियाँ पुष्कर (नीलकमल ) और पुण्डरीक ( स्वेत कमल ) का उल्लेख आया है। ऋग्वेद में जल से कमल भूमि कि उत्पत्ति का वर्णन है। वाजस्नेयी संहिता में कमल पृथ्वी का द्योतक है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार-
ष्आयो वै पुष्कर तारस्मिय्म पर्ण यथा हवाइदम पुष्करम पर्णम्प्स्वध्याहित्मेव-मियम्स्व्वाध्य्हिता सेयं योनि रानेरियम,...।
अर्थात् जल कमल है और पृथ्वी कमलपत्र है। जैसे जल पर कमलपत्र रखा रहता है उसी प्रकार जल पर पृथ्वी ठहरी हुई है। छान्दोग्य उपनिषद् में आचार्य उपकोसल को यह शिक्षा मिली, यथा पुष्कर पलाश आपो न शिल्स्यन्तेमेव विदि पापं कर्म न शिल्स्य्नती इति। अर्थात् जैसे कमल के पत्रों पर जल नहीं रुकता वैसे ही ब्रह्मा को जानने वाले पाप कर्म में लिप्त नहीं होते।
छांदोग्य उपनिषद् के अष्टम अध्याय में कमल को हृदय का प्रतीक माना गया है। आत्म्बोधोप्निषद में हृदय कमल के सम्बन्ध में कहा गया है - इस हृदय के ब्रह्मपुत्र कमल में प्रकाशित होने वाले दीपक या विद्दुत के समान देवकी पुत्र, मधुसूदन पुंडरीकाक्ष तथा अच्योत विष्णु ब्रह्म ज्ञानियों के हितैषी है। हृदय कमल में रहने वाला ब्रह्मा ही प्रज्ञा स्वरूप प्रज्ञा -मन्त्र तथा प्रज्ञा में ही रहने वाला है। कैव्ल्योप्निसाद में भी कमल का वर्णन आया है इसमें एकांत में पवित्र होकर,सुखासन में बैठकर भक्तिपूर्वक गुरु को नमन करके शोकरहित हृदय कमल का चिंतन करने का उल्लेख है।
ब्राह्मणोपनिषद् के मतानुसार लोगों को कर्मफल तथा सौभाग्य देने वाले भगवान वामदेव उनके हृदय के अष्टदल कमल में रहते है। अथर्ववेद में गर्भाशय को कमल के समान चित्रित किया गया है। सूक्ष्म जगत में ह्र्त्कामल का उल्लेख योगशास्त्र में विश्त्रतकिया रूप में हुआ है।
श्रीमद्भागवत् गीता में कमल कि निर्मलता एवं अलिप्तता को इस प्रकार प्रकट किया गया है –
ब्रम्हान्ध्यकर्मन्शंड त्वय्क्त्वकरोतियह
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रं मिवंभ्सा।
अर्थात् जो व्यक्ति अपने को ईश्वर में समर्पित करते हुए आशक्ति कि त्याग कर कार्य करता है, वह पाप से उसी प्रकार लिप्त नहीं होता जिस प्रकार जल में रहते हुए कमल पात्र लिप्त नहीं होता। श्री सूक्त में लक्ष्मी को पद्मिनी पद्द्थिता,पद्द्वानो,पद्द्सम्भ्वा आदि नामों से वर्णन किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान् राम के लिए
नवकंज लोचन कंजमुख, करकंज पद कंजारुणं के रूप में चित्रित किया है। महाकवि सूरदास ने कृष्ण के सौंदर्य का बखान करते हुए कहा है सुन्दर श्याम कमल दल लोचन सूरदास सुखदाई। मीराबाई कि भावाभिव्यक्ति सुभग शीतल कमल कोमल त्रिविध ज्वालाहरण के रूप में हुई है।
कमल कि गणना सात्विक आयुधों में की जाती है। ब्रह्मा,लक्ष्मी,गायत्री, भगवान् बुद्ध, शिव आदि देवता कमलासन कहलाते है, मत्स्यपुराण के अनुसार गणेश जी कमल पुष्प को हाथों में धारण करने वाले माने जाते है। श्री शारदा तिलक में भी गणेश जी को कमल से सम्बंधित दर्शाया गया है। शिल्पराज, अष्टभुजी, हेरंब तथा श्री तत्वनिधि ग्रन्थ में भी गणेश जी के हाथों में कमल लिए चित्रित किया गया है। भविष्यपुराण के ब्रह्मपर्व में उल्लेख आता है कि गरुड़ के छोटे भाई अरुण अपने ललाट पर अर्धचन्द्राकार कमल धारण किये भगवान् सूर्य के सारथी का कार्य करते हैं। देवताओं में से सूर्य ही एकमात्र देवता है, जिनके दोनों हाथों में कमल है। सूर्य को कमलबन्धु कमल्वाल्ल्भ आदि कहा जाता है। सूर्य के साथ कमल का विशेष संबंध है। सूर्योदय के साथ कमल खिलता है और सूर्यास्त के समय संकुचित होता है। मत्स्यपुराण व शारदातिलक में सूर्य भगवान् को लाल कमल के आसन पर स्थिर बताया गया है। वास्तुविद्द्यदिप न्व में १ पृथक आदित्य बताये गए हैं। इनमें से आदित्य गौतम,भानुमान, शाचित, भूमकेतु, संतुष्ट, सुवार्णकेतु के हाथों में कमल है। बृहत् संहिता में भी ऐसा ही वर्णन प्राप्त होता है। मिश्र,तिब्बत,चीन जापान तथा अन्य अनेक देशों तथा भाषाओं में सूर्य देवता और कमल के संबंधों पर प्रकाश मिलता है।
ब्रह्मा सृष्टिकर्ता हैं। मत्स्यपुराण के अनुसार ब्रह्मा का वर्ण कमल के भीतरी भाग के समान अरुण है। बृहत्संहिता में ब्रह्मा को कमलासन पर स्थिर कमण्डलु लिए हुए दो भुजो तथा चार मुख वाला दर्शाया गया है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में ब्रह्मा को कमलासन पर तथा विष्णु पुराण में विष्णु की नाभि का वर्णन है। ब्रह्मपुराण एवं पद्मपुराण में पुष्कर तीर्थ का संबंध भी कमल से किया गया है। स्कंदपुराण में ततो अंगुष्ठ मात्रस्तु पुरुषो दृश्यते जनैः अर्थात् कमल के मध्य में परम पुरुष अंगुष्ठ परिमाण में दृश्यमान होता है।
विष्णु पोषण के देवता है। विष्णु के पद्म का नाम पुण्डरीक है। भगवान विष्णु के सहस्र नामों के अंतर्गत पुष्कराक्ष, पद्मनाभ, पुंडरीकाक्ष का वर्णन आता है। इसके अलावा भगवान विष्णु को कमलाकार, कमलनयन आदि भी कहा जाता है। रूप मंडल ग्रन्थ में विष्णु की सभी चौबीस मूर्तियों की भुजाओं में कमल दर्शाया गया है। वैश्नवजन बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार मानते है। बृहत्संहिता में भगवान बुद्ध को पद्मासन पर बैठे हुए वर्णित किया गया है। विष्णु धर्मोत्तर व अग्निपुराण में भी भगवान बुद्ध को पद्मासन वर्णित किया गया है। शिव कल्याण के देवता है। शिव जी के हाथों में भी कही कही कमल दर्शाया गया हैं।
कमल से अत्याधिक सम्बन्धित देवी महालक्ष्मी है। ये कमल के आसन पर उपस्थित है, उनके हाथों में कमल है, उनके गले में कमलों की माला है और उनके सब अंगों की उपमा कमल से दी जाती है। श्री मद भगवत् पुराण, मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती तथा अन्य अनेक ग्रंथों में लक्ष्मी को कमल से अलंकृत किया गया है। देवमूर्ति प्रकनम में द्वादश सरस्वती स्वरूपों का वर्णन है। इन सभी स्वरूपों के चारों हाथों में कमल है। इसी तरह दुर्गा एवं गायत्री आदि अनेक देवियों को कमल से विभूषित किया गया है।
तांत्रिक विद्या के सबसे प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय यंत्र श्रीयंत्र है। भगवान शंकराचार्य की सौंदर्य लहरी के अनुसार श्रीचक्र या यंत्र में दो पद्दचक्र है एक अष्टदल कमल और दूसरा खोद्स्दल कमल। सर्वतोभाद्र चक्र में २८९ कोष्ठक है जिसके मध्य में अष्टदल कमल की स्थिति है। महानिर्वाण तंत्र में १६ पंखुड़ियों वाला कमल बताया गया है। अग्निपुराण में उल्लेखनीय दो रक्षापंक्तियों में भी कमल का स्थान है। एक अन्य यंत्र कमल यंत्र नाम से प्रसिद्धि है। स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए तथा बंध्या स्त्रियों को पुत्रलाभ हेतु कमल यंत्र धारण कराया जाता है। इस यंत्र में एक वृत्त और अष्टदल कमल बनाया जाता है। कमल आकार से युक्त असंख्य यंत्रों में से कुछ यंत्रों में आकारों साथ साथ कमलों का स्वरूप इस प्रकार है। श्यामयंत्र में भीतर अष्टदल कमल है और बाहर चौबीस दल कमल है। कालीयंत्र, धूमवतीयंत्र एवं छिन्नमस्तायंत्र में आठ पंखुड़ियों वाला कमल है। भुवनेश्वरीयंत्र में भीतर अष्टदल कमल और बाहर शोदासदल कमल है। शम्भुयंत्र में बत्तीस दल वाला कमल है रामयंत्र में दो अष्टदल, एक द्वादश दल, एक षोडशदल और बत्तीस पंखुड़ियों वाला एक पाँच कमल है। दुर्गायंत्र में एक अष्टदल और चौबीस दल कमल है।
इस प्रकार शतचक्र कमल की भाँति रूपायित है। मूलाधार में चतुर्भुज कमल है ये चारों पंखुड़ी लाल रंग की है। स्वाधिष्ठान चक्र में छह पंखुड़ी वाला कमल है। सिंदूरी जैसी गुलाबी है। मणिपुर चक्र दस पंखुड़ी वाले कमल की रूप में है। इनका रंग मेघ के समान नीलवर्ण का है। अनाहत चक्र में द्वादश दल कमल है। विशुद्ध चक्र षोडशदल कमल तथा आज्ञाचक्र दो पंखुड़ी वाले कमल के रूप में है। सहस्र चक्र सहस्रदल कमल स्वरूप है। अन्य धर्मों में भी प्रतीकात्मक रूप से कमल का वर्णन मिलता है। बौद्धधर्म के पदार्वीदस्तक के अनुसार बुद्ध के पाँव में कमल का चिन्ह है। बुद्ध की अधिकाँश प्रतिमाओं में वह खिले कमल पर पद्मासन में बैठे या खड़े दिखाए गए है। कमल उनकी अलौकिकता,महाकरुणा,अमरता एवं बुद्धत्व का प्रतीक है। सभी बोधिसत्वों के वाहन तथा आयुध कमल है। अलाव्किक्तेस्वर, पद्मिनी, तारा, पारमिता बोधिसत्वों के अतिरिक्त वज्र गर्भ,पद्द्म्फलोदभव हयग्रीव, गोरिमाहविद्द्या, चिंतामणि चक्र, यशोधरा, करुणा, मुद्रिता महामैत्रे आदि अन्य प्रसिद्ध बोधिसत्व अलंकरणों से युक्त कमलासन पर स्थिर तथा अन्य आयुधों के साथ साथ अपने हाथों में कमल धारण किये हुए है।
बौद्धगाथाओं के अनुसार सिद्धार्थ का जन्म होते हुए कमल पुष्प खिल उठे। सभी बौद्ध यंत्रों में कमल कोष और उसकी पंखुड़ियों में विभिन्न बुद्धौ और बोधिसत्वों के चित्र बनाये जाते है। सर्वाधिक मान्यता प्राप्त बौद्ध मन्त्र ष्ओंमणि पद्मेहुम हैं, अर्थात् हे कमल से स्थिर मणि! हम तुम्हारी वंदना करते है एशिया में प्रचलित महायान शाखा का प्रसिद्ध ग्रन्थ श् सर्द्धम पुंडरीक सूत्र श् है, जिसका अर्थ है -सत्यधर्म का कमल सूत्र महाविरोचन सूत्र के मतानुसार विश्वविज्ञान के मुद्रा श्वेत कमल पर स्थित है। श्वेत कमल हरदे का प्रतीक है।
बौद्ध गठाव में कमल सर्वस्व का प्रतीक है। उनके अनुसार आदिबुद्ध सृष्टि के आरंभ में कमल से निकलती हुई ज्वाला के रूप में प्रकट हुए बौद्धों का विश्वास है कि तब तब कमल की कली जल के ऊपर निकलती है। संयुक्त निकाय की तृतीय अध्याय में में भगवान बुद्ध के उपदेश का इस प्रकार उल्लेख किया गया है - भद्र! जैसे कमल जल में उत्पन्न होता है, जल में पूर्ण विकसित होता है तथा जल में ही जल की सतह तक उभरता है, परन्तु फिर भी जल से भीगता नहीं है। इसी प्रकार तथागत संसार में उत्पन्न हुए, संसार में पूरी तरह बड़े हुए, संसार से ऊपर उठे किन्तु फिर भी संसार से प्रभावित नहीं हुए। इसी भाँति जैन धर्म में भी कमल का विशिष्ट स्थान है बुद्ध के समान ही जैन तीर्थकार भी कमल पर बैठे हुए चित्रित किये गए है। जैन मंदिरों कला, स्थापत्य एवं मूर्तिकला में कमल का पर्याप्त प्रयोग मिलता है जैन परंपरा में पाँच लोकोक्तियों या पारमेष्ट्य की पूजा का विधान है। ये है अहन्त, आचार्य उपाध्याय, साधु। कमल की चार पंखुड़ियों में इन पाँच पर्मेस्त्यो को प्रस्तुत किया गया है। जैन पुराण, पद्मपुराण के अनुसार तीर्थकार की प्रतिमा की सुवर्ण के समान कमलों से पूजित प्रदर्शित करनी चाहिए। जैन परम्परा में १ देवियाँ है। उनमें से काली, गाँधारी, मानवी, बिदेवी का वाहन कमल है। वज्र श्रृंखला और गौरी देवी की भुजाओं में कमल है। भगवान् महावीर की माता द्वारा अपने गर्भकाल में देखे गए स्वप्नों में तीन तथा चौदह में से चार का संबंध कमल से है।
सुंदरता, कोमलता, कामनीयता तथा सौरभ के प्रतीक के रूप में कमल को सभी देशों में सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। संसार की सृष्टि से कमल का संबंध प्राचीन मिश्र में भी उपलब्ध है। हर्मोपोलिसस की एक लोकगाथा में श्रेष्ठतम देवता स्वयं एक कमल पर उद्भव हुए। ग्रीक रोमान काल में निर्मित एडगू के देवालय में एक शिलालेख में प्रथम आदिम देवता को महाकमल कहा गया है, जिसने अस्तित्व में आने पर संसार की रचना की, अव्लोकितेस्वर जिन्हें चीन में श्कुयान इन की रूप में पूजा जाता है। उनके धारिनो सूत्र में चार प्रथम रंगों के कमलों के ये चार लक्षण है, (१) श्वेत कमल गुणवत्ता का परिचायक है, (२) नीलकमल पृष्ठभूमि में पुनर्जन्म का प्रतीक है, (३) नीलवर्ण बोधिसत्वों के दर्शन का प्रतीक है, (४) लालकमल देवताओं के स्वर्ग में पुनर्जन्म का द्योतक है। प्राचीन मिश्र में भी कमल पुनर्जन्म का प्रतीक माना गया था। ओसोसिस देवता मृत्यु के पश्चात पुनः एक कमल से उत्पन्न हुए थे अतः मिश्र के मकबरों, कब्रों एवं ताबूतों पर कमल उत्कीर्ण किया जाता था। इसे पुनर्जन्म का प्रतीक मानते हुए यूनानी, रोमन तथा प्रारंभिक ईसाइयों की शव यात्रा में कमल का उपयोग किया जाता था।
असंदिग्ध रूप से कमल शाश्वत सांस्कृतिक प्रतीक है। इसकी विशेषता है - सूक्ष्म, अदृश्य, अलिप्तता तथा अलंकरण का सेतु होना। यह सूर्य एवं उसके प्रकाश का भी प्रतीक है यही नहीं यह अन्धकार अविवेक एवं अज्ञान की विरोध का द्योतक है। शतपथ ब्राह्मण में कमल को अग्नि का पर्याय माना गया है। तैत्तिरीय संहिता में उल्लेख है, हे कमल! तुम जल से ऊपर रहने वाले हो और अग्नि के जन्मदाता हो। तुम समुद्र को बढ़ाते हो। सर्वत्र वृधि को प्राप्त होते हुए जल में सभी प्रकार स्थित हो। द्युलोक के तेज से और पृथ्वी की विशालता से चारों ओर विस्तृत हो।
कुछ भी हो, पर यह सनातन सत्य है कि कमल कीचड़ में उत्पन्न होकर भी उससे अंशमात्र भी नहीं छुआ है। सदा पवित्र एवं पावन बना रहता है। अतः कमल का प्रतीक मनुष्य को भी सांसारिक मोहपंक में रहते हुए भी उससे अलिप्त बने रहने की सीख देता है। कमल के प्रतीक के इस रूप को ह्राद्य्गम किया जा सके, तो ही कमल रूपी सांस्कृतिक प्रतीक कि महत्ता एवं विशेषता सार्थक सिद्ध होगी।