Magazine - Year 1999 - Version 2
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Language: HINDI
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कैंसर जैसी महाव्याधि का उपचार भी उपवास
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उपवास अत्यंत लाभकारी एवं महत्वपूर्ण प्रयोग है। इसके माध्यम से शारीरिक स्वास्थ्य में प्रगति, मानसिक विकास में वृद्धि एवं आत्मविस्तार में उन्नति की जा सकती है। उपवास का वैज्ञानिक महत्त्व भी है स्वास्थ्य -रक्षा एवं स्वास्थ्य- सुधार के प्रति उपवास का इतिहास बहुत प्राचीन है रोगों के उपचार हेतु उपवास का विवरण भारत, यूनान तथा अन्य देशों में पुराणी सभ्यता में मिलता है। आयुर्वेद ने तो रोगों की रोकथाम तथा स्वास्थ्य की प्राप्ति की एक मुख्य और प्रमाणिक विधि के रूप में उपवास का वर्णन किया है। अब तो आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों ने भी यह कहना प्रारम्भ कर दिया है कि उपवास का एक निश्चित वैज्ञानिक आधार है।
अधिक भोजन से अवशिष्ट पदार्थ हमारे शरीर के वसाकोशों में जमा हो जाते हैं। उनको निकालकर और शरीर को मलरहित कर रोगों की सम्भावना समाप्त करने के उद्देश्य से निश्चित समय के लिए भोजन के पूर्ण अथवा आँशिक परित्याग का नाम उपवास है। पुराणी चिकित्सक विधियों जैसे चीनी एवं यूनानी में भी उपवास को कई रोगों में स्वास्थ्य देना वाला बताया गया है। उपवास की इन्हीं विशेषताओं एवं महत्ता के कारण सारे संसार के विद्वानों ने अपने -अपने मत प्रकट किये है। आचार्य चरक के अनुसार, उपवास मियादी बुखार, आमाशय का घाव तथा अन्य अनेक पेट के रोगों के उपचार के लिए आवश्यक है। प्लेटो तथा सुकरात जैसे दार्शनिक ने भी उपवास की महत्ता को स्वीकारते हुए कहा है, शारीरिक व मानसिक शक्ति को बढ़ाने के लिए दस दिन का उपवास करना चाहिए। औषधि विज्ञान के जन्मदाता हिप्पोक्रेट्स ने उपवास को अनेक असाध्य रोगों को दूर करने वाला बतलाया है।
इसी क्रम में प्रसिद्ध अरबी चिकित्सक अबी सेन्ना ने अखंड स्वास्थ्य के लिए उपवास का उपदेश दिया है चीनी चिकित्सा शास्त्री यूशुन की मान्यता है कि उपवास संक्रामक रोगों को ठीक करता है। पेरासल्सस का दावा है कि उपवास सबसे अच्छी उपचार विधि है। हफ्मेन के एक ग्रन्थ में सभी रोगों में उपवास से मिले महान परिणामों का विस्तृत विवरण मिलता है। उपवास की महनीय महत्ता को प्रतिपादित करते हुए डॉ. एडाल्फ मेयर ने इसे सभी रोगों में सुधार की सबसे अधिक प्रभावशाली विधि माना है। डॉ. ओ. एच .एफ . वुशिन्जर के अनुसार उपवास उपचार का सर्वाधिक सुगम एवं सरल रास्ता है।
उपवास की इन्हीं विशेषताओं के आधार पर कई डॉक्टरों एवं शोध अन्वेषकों ने कई प्रकार के प्रयोग भी किये है। डॉ. जेम्स मैकेचन ने १९२५ से ५६ तक उपवास द्वारा ७१५ रोगियों का उपचार किया। डॉ. विलियम एसें ने १९६८ से ७० तक १५६ रोगियों का सफल उपचार किया।
डॉ. ग्लोरियो ने हृदय रोगों पर उपवास के लाभों का प्रयोग प्रदर्शित किया है। इसके अतिरिक्त कम परिणाम में ही सही आधुनिक चिकित्सा पद्धति में भी उपवास पर प्रयोग कर उसका बहुत अच्छा परिणाम पाया है।
इसके अलावा विश्व के हर धर्म ने शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हेतु उपवास की संस्तुति की है। हिन्दू धर्म में तो उपवास को पूजा और सेवा का सहायक माना गया है। इसका ताप,सेवा -सुमिरन के रूप में उल्लेख मिलता है। इस्लाम में रोज़ा - नमाज तथा ईसाई धर्म में फास्टिंग चेरिटी- प्रेयर को धर्म माना गया है।
श्रीरामचरितमानस में मनु- सतरूपा तथा पार्वती के प्रसंगों में महान कवि, दार्शनिक एवं युगपुरुष संत तुलसीदास ने सुखप्राप्ति एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपवास की महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया है।
इस प्राचीन महत्त्व के अलावा इसका वैज्ञानिक आधार भी है। वसाकोशों के माध्यम से इसकी भूमिका अधिक अच्छी तरह स्पष्ट की जा सकती है क्योंकि इस दौरान वसाकोशों का विशेष महत्व रहता है। प्राचीन समय में लोग अन्न का भंडार भरकर नहीं रखते थे। वे भोजन की तलाश में घूमा करते थे और कई सप्ताह तक बिना भोजन के भी रहते थे। इस समय शरीर में जमा वसा से उनको ऊर्जा मिलती थी। इस तरह वे सदा स्वस्थ, तंदुरुस्त रहते। शरीर में संचित वसा का पूर्णतः प्रयोग हो जाता था। परन्तु आजकल तो दिन की शुरुआत ही बैड टी एवं नाश्ते से करने की आधुनिक प्रथा चल पड़ी है। इससे शरीर में वसा की मात्रा उपवास के माध्यम से इन वसाओं का प्रयोग कर लिया जाता है।
जिगर और आँतों को भोजन पचाने के अलावा और भी आवश्यक कार्यों में भागीदारी निभानी पड़ती है। यदि आमाशय में भोजन प्रति ४-६ घंटे पर डाला जाएगा, तो यकृत तथा लिम्फोसाइट्स भी भोज पचाने में ही लगे रहेंगे। इस प्रकार इन अंगों को दूसरे बहुत जरूरी कार्यों के लिए समय ही नहीं मिलेगा। जब व्यक्ति बहुत दिन उपवास करता है, तब उसको संचित वसा से ऊर्जा मिलती है तथा पाचनक्रिया से मुक्ति रहने के कारण यकृत एवं आँतों को अन्य आवश्यक कार्यों का समय मिल जाता है। इससे वे रोगों से लड़ने का कार्य, रक्तनलिकाओं की सफाई आदि सुचारु रूप से कर लेते है। उपवास ठीक वैसे ही है जैसे किसी फैक्टरी की मरम्मत के लिए उसका प्रबंधक ( मस्तिष्क ) कुछ समय के लिए काम रोक दे।
एक सर्वेक्षण से स्पष्ट हुआ है कि अधिकतर लोगों ने क्रानिक ब्राँकाइटिस, दमा, गठिया, मधुमेह, आँतों के उत्तेजनापूर्ण लक्षणों आदि रोगों से मुक्ति के लिए उपवास का सहारा लिया है, अब बिना किसी औषधि के उनका स्वास्थ्य अच्छा हो रहा है। एक अन्य महत्वपूर्ण प्रयोग में उपवास के प्रभाव का विशेषकर शारीरिक एवं जैव रासायनिक परीक्षण किया गया। यह परीक्षण 75 उपवासकर्ताओं पर हुआ जो उपवासकाल में केवल सादा जल ही लेते रहे। इसमें 20 से 85 वर्ष तक कि आयु के स्त्री-पुरुष सम्मिलित थे। उपवास के उपरांत समान आयु व लिंग के जनसामान्य के 200 अन्य व्यक्तियों से उनकी तुलना की गई। इस क्रम में उनकी आगरा जाँच भी की गई- होमोग्राम सीरम शर्करा, सीरम यूरिया, सीरम पित्त रक्तवर्णक, लिपिड प्रोफाइल, प्रतिरक्षी ग्लोबुलिन्स, सीरम वित घटक, इलेक्ट्रो-कार्डियोग्राफी।
इन परीक्षणों से पता चला कि उपवास रखने वालों के वजन में 2.5 किग्रा. की कमी हुई लेकिन शारीरिक शक्ति के सभी सूचकों में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। उपवासकाल में समस्त रक्त-प्रवाह सामान्य रहा। इस दौरान नींद पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। अधिकाँश के मूत्र में किटोंन पाए गये हालाँकि आश्चर्य की बात यह थी कि असिडोसिस के लक्षण किसी में भी नहीं थे। सामान्य धारणा के विपरीत प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक क्रियाशीलता में वृद्धि हुई, हिमोग्राम प्रायः औसत स्थिति में था उपवास से शर्करा घटती है, इस धारणा के विपरीत सीरम शर्करा पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और वह सामान्य रही उपवास के दौरान रक्त यूरिया पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा और गुर्दे का कार्य सुचारु रूप से चलता रहा। सीरम एलेक्ट्रोलाइट भी सामान्य रहे, जो जल व एलेक्ट्रोलाइटस के संतुलन के सूचक है
उपवास के प्रारंभ तथा बाद में सीरम बिलिरुविन का प्रदर्शन भी आशानुरूप रहा। हेमोलिसिस में वृद्धि नहीं हुई तथा यकृत अपना कार्य सफलतापूर्वक सम्पादित करता रहा। इस अवधि में कोलेस्ट्रॉल एल. डी. एल. में उल्लेखनीय कमी पाई गयी एच. डी. एल. में वृद्धि हुई। ये परिवर्तन शरीर के अनुकूल है। नियमित उपवासकर्ताओं में प्रतिरोधी तथा विषाक्त रोगों को रोकने की क्षमता की वृद्धि के लक्षण उनमें विशेष पाए गये। यही कारण है कि इन लोगों को संक्रमण के प्रभाव से बचाने के लिए एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
इस तरह देखा जाये, तो उपवास से लाभ होना एक निश्चित वैज्ञानिक सत्य है इसके और भी अनेक लाभ दिखाई देते है। उपवास आर्थ्राइट्स, मधुमेह आदि रोगों में लाभदायक है। अधिक आयु वाले के शरीर का वजन यदि कम रहे, तो मधुमेह, हाइपरटेंशन तथा चोट लगने पर घाव नहीं भरता है। उपवास कीटोएसिडोसिस से जमा एथेरोमेट्स ( थक्को ) को निकालने में सहायता करता है प्रतिरोधी का बढ़ना संक्रमण नियंत्रण में सहायक होता है। इससे एलर्जी तथा गठिया द्वारा शरीर के जोड़ो में दर्द होना, श्वास नलिकाओं का दमा, चर्मरोग, एक्जिमा आदि कि संभावना घटती है। लिम्फोसाइट्स की संख्या तथा प्रतिरोधक क्षमता का बढ़ना एड्स की संभावना को कम करता है।
उपवासकाल की सबसे आश्चर्यजनक उपलब्धियों में से एक है कि इस दौरान कैंसर कि कोशिकाएँ भूखे मरने लगती है। शरीर के अन्य कोशों को जमा हुई वसा से ऊर्जा प्राप्त होती है इस प्रकार कैंसर कोष कई गुना बढ़ने के पहले ही कम या नष्ट होने लगते है। प्रतिरोधकता के बढ़ने से इन दूषित कोशों पर बेहतर चौकसी संभव हो पाती है, जिससे उनकी वृद्धि से शरीर मुक्त होता है। इस तरह विषाणुजन्य रोगों की रोकथाम होती है। निश्चित रूप से उपवास एक सरल-सहज एवं सुगम उपचार विधि है यह शरीर को स्वस्थ एवं निरोग रखता है उपवास की इन्हीं विशेषताओं के कारण इसका प्रचालन वर्तमान युग में बढ़ने लगा है। प्राचीनकाल के वैदिक ऋषियों ने भी निश्चित ही इन्हीं विशेषताओं को परखा एवं पहचाना होगा। संभव हो तो सप्ताह में एक दिन का उपवास निश्चिततौर पर करना चाहिए। अध्यात्मिक दृष्टि से देखा जायेगा, तो रविवार का व्रत मन व विचार को परिष्कृत करता है, तथा गुरुवार का उपवास भावना को पवित्र एवं पावन बनाये रखने में सहयोग करता है अतः मनोनुकूल दिन का चयन करके सप्ताह में एक दिन उपवास के लाभों को आत्मगत किया जाना चाहिए।