Books - संस्कृति की सीता को वापस लाएँ
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Language: HINDI
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संस्कृति की सीता को वापस लाएँ
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गिद्ध-गिलहरी बन सकते हैं?
साथियो! मैं जानता हूँ कि आपके पास ताकत बहुत कम है और आप कह सकते हैं कि हमारे पास इतनी सामर्थ्य नहीं है कि हम इतना बड़ा काम कर सकें। आपको मैं याद दिलाना चाहता हूँ कि गिलहरी, जिसके पास कोई ताकत नहीं थी और जिसके पास पंजे भी नहीं थे, वह अपने बालों में धूल भरकर डालती थी। आप गिलहरी से तो कमजोर नहीं हैं। नहीं साहब! गिलहरी से तो कमजोर नहीं हैं। तो भाईसाहब! आप भी कुछ कर सकते हैं। और गिद्ध? गिद्ध तो बूढ़ा था। उसे आँख से दिखाई भी नहीं पड़ता था कि लड़ाई में पड़े। लेकिन बुड्ढा, जिसको आँखों से भी नहीं दिखाई पड़ता था और वह आदमी भी नहीं था, पक्षी था। आप तो पक्षी नहीं हैं? नहीं साहब! आदमी हैं। आप बातचीत तो कर सकते हैं? हाँ साहब! कर सकते हैं। आपके दो हाथ और दो पैर हैं, पर उस गिद्ध के तो दो ही थे। बेटे! जब बूढ़ा गिद्ध युद्ध के लिए खड़ा हो सकता है तो आप क्यों नहीं! जब ग्वाल-बाल पहाड़ उठाने के लिए अपनी सहायता देने के लिए अपनी लाठी और डंडे ले करके खड़े हो सकते थे। क्रेन उनके पास नहीं थी और न कोई ऐसी दूसरी चीज थी, जिससे कि पहाड़ उठाया जा सके। कोई संबल भी नहीं थे, कोई कुछ नहीं था। वही जानवर हाँकने की लाठियों थीं, उन्हें ले करके खड़े हो गए थे।
तो क्या पहाड़ उठ गया था? हाँ उठ गया था। क्यों? क्योंकि ऊँचे उद्देश्य के लिए भावभरे प्राणवान व्यक्ति प्राण-भरी साँस लेकर जब खड़े हो जाते हैं तो उनको भगवान की सहायता मिलती है। हमको मिलेगी? नहीं, आपको नहीं मिलेगी। क्यों? क्योंकि आप हैं चोर, आप हैं चालाक। चोर और चालाकों के लिए भगवान की सहायता सुरक्षित नहीं है। हमको मकान बनवा दीजिए हमको पैसा दे दीजिए हमारी औरत को जेवर बनवा दीजिए। चल, धूर्त कहीं का-भगवान की सहायता इन्हीं कामों के लिए रह गई है! नहीं साहब! देवी को सहायता करनी चाहिए थी। कौन है तू?? देवी का जँवाई है? चांडाल कहीं का-देवी को हमारी सहायता करनी चाहिए थी। किस बात की देवी सहायता करें? नहीं साहब! हमारी मनोकामना पूरी करें। क्यों पूरी करनी चाहिए? हमने तीन माला जप किया है। ले जा अपनी माला। माला लिए फिरता है। देवी को माला पहना देंगे, नारियल खिला देंगे। देवी को धूपबत्ती दिखा देंगे, खाना खिला देंगे और मनोकामना पूरी करा लेंगे। महाराज जी! अब तो आप देवी की निंदा कर रहे हैं। नहीं बेटे! देवी की निंदा नहीं कर रहा हूँ वरन तेरे ईमान की निंदा कर रहा हूँ। तू जिस ईमान को ले करके चला है, जिस उद्देश्य को ले करके चला है, मैं उस उद्देश्य की निंदा कर रहा हूँ। उसकी ओर से देवी को नफरत है और देवी तेरी ओर मुँह उठा करके भी नहीं देखेगी।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गिद्ध-गिलहरी बन सकते हैं?
साथियो! मैं जानता हूँ कि आपके पास ताकत बहुत कम है और आप कह सकते हैं कि हमारे पास इतनी सामर्थ्य नहीं है कि हम इतना बड़ा काम कर सकें। आपको मैं याद दिलाना चाहता हूँ कि गिलहरी, जिसके पास कोई ताकत नहीं थी और जिसके पास पंजे भी नहीं थे, वह अपने बालों में धूल भरकर डालती थी। आप गिलहरी से तो कमजोर नहीं हैं। नहीं साहब! गिलहरी से तो कमजोर नहीं हैं। तो भाईसाहब! आप भी कुछ कर सकते हैं। और गिद्ध? गिद्ध तो बूढ़ा था। उसे आँख से दिखाई भी नहीं पड़ता था कि लड़ाई में पड़े। लेकिन बुड्ढा, जिसको आँखों से भी नहीं दिखाई पड़ता था और वह आदमी भी नहीं था, पक्षी था। आप तो पक्षी नहीं हैं? नहीं साहब! आदमी हैं। आप बातचीत तो कर सकते हैं? हाँ साहब! कर सकते हैं। आपके दो हाथ और दो पैर हैं, पर उस गिद्ध के तो दो ही थे। बेटे! जब बूढ़ा गिद्ध युद्ध के लिए खड़ा हो सकता है तो आप क्यों नहीं! जब ग्वाल-बाल पहाड़ उठाने के लिए अपनी सहायता देने के लिए अपनी लाठी और डंडे ले करके खड़े हो सकते थे। क्रेन उनके पास नहीं थी और न कोई ऐसी दूसरी चीज थी, जिससे कि पहाड़ उठाया जा सके। कोई संबल भी नहीं थे, कोई कुछ नहीं था। वही जानवर हाँकने की लाठियों थीं, उन्हें ले करके खड़े हो गए थे।
तो क्या पहाड़ उठ गया था? हाँ उठ गया था। क्यों? क्योंकि ऊँचे उद्देश्य के लिए भावभरे प्राणवान व्यक्ति प्राण-भरी साँस लेकर जब खड़े हो जाते हैं तो उनको भगवान की सहायता मिलती है। हमको मिलेगी? नहीं, आपको नहीं मिलेगी। क्यों? क्योंकि आप हैं चोर, आप हैं चालाक। चोर और चालाकों के लिए भगवान की सहायता सुरक्षित नहीं है। हमको मकान बनवा दीजिए हमको पैसा दे दीजिए हमारी औरत को जेवर बनवा दीजिए। चल, धूर्त कहीं का-भगवान की सहायता इन्हीं कामों के लिए रह गई है! नहीं साहब! देवी को सहायता करनी चाहिए थी। कौन है तू?? देवी का जँवाई है? चांडाल कहीं का-देवी को हमारी सहायता करनी चाहिए थी। किस बात की देवी सहायता करें? नहीं साहब! हमारी मनोकामना पूरी करें। क्यों पूरी करनी चाहिए? हमने तीन माला जप किया है। ले जा अपनी माला। माला लिए फिरता है। देवी को माला पहना देंगे, नारियल खिला देंगे। देवी को धूपबत्ती दिखा देंगे, खाना खिला देंगे और मनोकामना पूरी करा लेंगे। महाराज जी! अब तो आप देवी की निंदा कर रहे हैं। नहीं बेटे! देवी की निंदा नहीं कर रहा हूँ वरन तेरे ईमान की निंदा कर रहा हूँ। तू जिस ईमान को ले करके चला है, जिस उद्देश्य को ले करके चला है, मैं उस उद्देश्य की निंदा कर रहा हूँ। उसकी ओर से देवी को नफरत है और देवी तेरी ओर मुँह उठा करके भी नहीं देखेगी।