Books - संस्कृति की सीता को वापस लाएँ
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Language: HINDI
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जेबकट हमें विदेश नहीं भेजना
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मित्रो! विदेशों में जितने आदमी जाते हैं, अधिकांश व्याख्यान झाड़ने के लिए जाते हैं। वे समझते हैं कि हमें स्टेज पर बोलना आ गया तो जाने क्या आ गया! वे व्याख्यान देते हैं और इस तरह की वाणियाँ बोलते हैं और फिर कहते हैं कि हम आश्रम बनाएँगे, मंदिर बनाएँगे। आश्रम की, मंदिर की सब योजनाएँ लेकर जाते हैं और वहाँ से पाँच पच्चीस हजार रुपए इकट्ठे कर लेते हैं। आने जाने का खरच अलग से वसूल कर लेते हैं। पंद्रह हजार हवाई जहाज का किराया खरच कराया। पच्चीस हजार उसका ले लिया। महीने भर के अंदर चालीस हजार का बेचारों को चाकू मारकर चले आए। इस तरह लोग विदेश जाते हैं और दस दिन वहाँ, बीस दिन वहाँ लेक्चर झाड़ करके और यहाँ वहाँ घूम-घाम करके महीने भर की छुट्टी काट करके आ जाते हैं। साहब! मुझे भेज दीजिए। मैं ऐसा लेक्चर झाड़ना जानता हूँ कि बस मजमा बाँध दूँगा। बेटे! अगर तेरे लेक्चर को हम टेप करा करके भेज दें तो? नहीं महाराज जी! टेप कराकर मत भेजिए। मुझे ही भेज दीजिए! चल बदमाश कहीं का! इस तरीके से सारे के सारे जेबकट आदमी लेक्चर झाड़ने के लिए यहाँ से वहाँ मारे मारे डोलते हैं। यह ठीक नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥