Books - गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां
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Language: HINDI
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दूसरी साधना
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प्रातःकाल जब नींद पूरी तरह खुल जाय तो अँगड़ाई लीजिए। तीन पूरे लम्बे साँस खींचकर सचेत हो जाइये।
भावना कीजिए कि आज नया जीवन ग्रहण कर रहा हूँ। नया जन्म धारण करता हूँ। इस जन्म को इस प्रकार खर्च करूँगा कि आत्मिक पूँजी में अभिवृद्धि हो। कल के दिन पिछले दिन जो भूलें हुई थी, आत्म-देव के सामने जो पश्चाताप किया था, उसका ध्यान रखता हुआ आज के दिन का अधिक उत्तमता के साथ उपयोग करूँगा।
दिन भर के कार्यक्रम की योजना बनाइये। इन कार्यों में जो खतरा सामने आने को है उसे विचारिये और उससे बचने के लिए सावधान हो जाइये। उन कार्यों से जो आत्म-लाभ होने वाला है वह अधिक हो, इसके लिए और तैयारी कीजिए। यह जन्म, यह दिन, पिछले की अपेक्षा अधिक सफल हो, यह चुनौती अपने आपको दीजिए और उसे साहसपूर्वक स्वीकार कर लीजिए। परमात्मा का ध्यान कीजिए और प्रसन्न मुद्रा में एक चैतन्य ताजगी उत्साह, आशा एवं आत्म विश्वास की भावनाओं के साथ उठकर शैय्या का परित्याग कीजिए। शैय्या के नीचे पैर रखना मानो आज के नव जीवन में प्रवेश करना है।
इस आत्म-चिन्तन की साधना से दिन-दिन शरीराभ्यास घटने लगता है। शरीर को लक्ष्य करके किए जाने वाले विचार और कार्य शिथिल होने लगते हैं तथा विचाराधारा एवं कार्य प्रणाली समुन्नत होती हैं, जिसके द्वारा आत्म-लाभ के लिए अनेक प्रकार के पुण्य आयोजन होते हैं।
भावना कीजिए कि आज नया जीवन ग्रहण कर रहा हूँ। नया जन्म धारण करता हूँ। इस जन्म को इस प्रकार खर्च करूँगा कि आत्मिक पूँजी में अभिवृद्धि हो। कल के दिन पिछले दिन जो भूलें हुई थी, आत्म-देव के सामने जो पश्चाताप किया था, उसका ध्यान रखता हुआ आज के दिन का अधिक उत्तमता के साथ उपयोग करूँगा।
दिन भर के कार्यक्रम की योजना बनाइये। इन कार्यों में जो खतरा सामने आने को है उसे विचारिये और उससे बचने के लिए सावधान हो जाइये। उन कार्यों से जो आत्म-लाभ होने वाला है वह अधिक हो, इसके लिए और तैयारी कीजिए। यह जन्म, यह दिन, पिछले की अपेक्षा अधिक सफल हो, यह चुनौती अपने आपको दीजिए और उसे साहसपूर्वक स्वीकार कर लीजिए। परमात्मा का ध्यान कीजिए और प्रसन्न मुद्रा में एक चैतन्य ताजगी उत्साह, आशा एवं आत्म विश्वास की भावनाओं के साथ उठकर शैय्या का परित्याग कीजिए। शैय्या के नीचे पैर रखना मानो आज के नव जीवन में प्रवेश करना है।
इस आत्म-चिन्तन की साधना से दिन-दिन शरीराभ्यास घटने लगता है। शरीर को लक्ष्य करके किए जाने वाले विचार और कार्य शिथिल होने लगते हैं तथा विचाराधारा एवं कार्य प्रणाली समुन्नत होती हैं, जिसके द्वारा आत्म-लाभ के लिए अनेक प्रकार के पुण्य आयोजन होते हैं।