Books - गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां
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सूक्ष्म शरीर के अविज्ञात क्रिया कलाप
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क्या यह सम्भव है कि कोई व्यक्ति सशरीर कहीं और उपस्थित हो एवं उसके माध्यम से कहीं और किसी घटनाक्रम को घटते कई व्यक्तियों ने देखा हो व स्वयं वह भी उसकी स्वीकारोक्ति कर रहा हो ? यह एक ऐसा प्रसंग है जिस पर काफी समय से वैज्ञानिक विवाद करते रहे व गुत्थियों में उलझते रहे हैं। फिर भी इसकी यथार्थता को नकारने में वे असफल रहे हैं।
हम आर्षग्रन्थों में पौराणिक मिथकों में ऐसे कई प्रसंग देवमानवों, ऋषियों, महापुरुषों से जुड़े पढ़ते आ रहे हैं जिनमें यह वर्णन है कि एक ही व्यक्ति को एक ही समय दो या अधिक स्थानों पर एक साथ उपस्थित बताया गया है। क्या यह कपोल कल्पना मात्र है ? इस पर परामनोविज्ञान, गुह्यविज्ञान के अध्एता अपना निष्कर्ष प्रकट करते हुए कहते हैं कि यह सूक्ष्मशरीर की सत्ता का चमत्कार ही है जो हम ओ० बी० ई० (आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरीएन्स) एवं परकाया प्रवेश के घटना क्रम देखते व सुनते हैं। इतिहास के पृष्ठों में ऐसी कई घटनाऐं पृष्ठांकित हैं।
घटना १८ जुलाई १८७६ की है। न्यूयार्क के एक न्यायालय में विलियम मैक्डोनाल्ड नामक एक व्यक्ति पर मुकदमा चलाया गया। आरोप यह था कि १५ अप्रेल के दिन मेनह्ट्टन शहर में सायं ५ बजे कुछ व्यक्तियों पर प्राणघातक हमला करके उन्हें घायल कर दिया। इसकी साक्षी रूप में अभियोग पक्ष ने चार गवाह भी पेश किए जिनमें शहर का ईमानदार और सत्यनिष्ठ समझा जाने वाला एक व्यक्ति था।
दूसरी ओर प्रतिपक्ष ने कई साक्षी प्रस्तुत कर न्यायालय को यह बताया कि उक्त समय अभियुक्त मेनह्ट्टन से पाँच मील ब्रुकलीन उपनगर के एक थिएटर में प्रख्यात हिपनोटिस्ट डॉ० ह्वाइनर का "माध्यम" बना सैकड़ों व्यक्तियों के सामने संज्ञा शून्य पड़ा था। फिर यह कैसे संभव है कि वह दूसरे शहर में आकर हत्या करे ?
ज्यूरी के सामने जटिल समस्या थी। दोनों ही पक्ष अपराधी को एक ही दिन एक ही समय दो भिन्न स्थलों में उपस्थित बता रहे थे, जो सर्वथा असम्भव था। निदान स्वरूप डॉ० ह्वाइनर को बुलाया गया। डॉ० ह्वाइनर तत्कालीन समय में सम्मोहन विद्या के निष्शात् माने जाते थे। न्यायालय ने उनसे प्रश्न किया कि क्या वे मैक्डोनाल्ड को जानते हैं ? उन्होंने उत्तर में कहा 'हाँ' मैक्डोनाल्ड एक अच्छा माध्यम है और उक्त दिन वह उस पर सम्मोहन विद्या के कुछ प्रयोग कर रहा था। "क्या ऐसी स्थिति हैं सम्मोहित व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर कहीं अन्यत्र भी प्रकट हो सकता है ?'' ज्यूरी का अगला प्रश्न था। ह्वाइनर ने कहा "ऐसा संभव है।"
किन्तु न्यायालय को इतने से ही सन्तोष नहीं हुआ। उसने बचाव पक्ष से अपराध जगत के इतिहास में किसी ऐसी घटना के पक्ष में दिए गए फैसले का सबूत माँगा। प्रतिपक्ष ने रिकार्ड की पुरानी फाइल से एक ऐसा ही मामला ढूँढ निकाला। बात सन् १७७४ की है। २१ सितम्बर रविवार के दिन स्थानीय चर्च के फादर अलफोन्सेस लिगाडरी प्रात: प्रवचन देने के लिए तैयार हो रहे थे। कि अचानक कुर्सी से टकरा कर गिर पड़े और बेहोश हो गए। बड़ी मुश्किल से शाम तक होश में आए तो अपने विश्वास पात्र शिष्यों से कहने लगे कि वे बिलकुल स्वस्थ हैं और अभी अभी रोम से आ रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि रोम के पोप को उनने जहर दे दिया है। शिष्यों ने समझा कि शायद फादर सपने की बात कह रहे हों, अतः उनने उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया, किन्तु कुछ दिनों बाद जब पोप के सम्बन्धियों ने फादर अलफान्सर पर हत्या का मुकदमा चलाया, तब शिष्यों को विश्वास हुआ कि फादर जो कुछ कह रहे थे, वह सच था, मगर' उन्हें आश्चर्य इस बात का था कि शरीर से यहाँ रहते हुए भी सैकड़ों मील दूर जाकर उन्होंने हत्या कैसे की ?
इस घटना को सुन कर ज्यूरी के सदस्यों ने वादी प्रतिवादी दोनों पक्षों को सही माना पर अपराधकर्मी मैक्डोनाल्ड को यह वह कर बरी कर दिया कि अपराध सूक्ष्म शरीर ने किया है, अतः उसका दण्ड स्थूल शरीर को नहीं दिया जा सकता।
यह सच है कि सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर से पृथक्करण सम्भव है और इसके माध्यम से विश्व के किसी भी कोने का क्षण मात्र में भ्रमण किया जा सकता है, मगर दैनिक जीवन में निद्रा की स्थिति में घटने वाली इस घटना का स्मरण अधिकांश लोग नहीं रख पाते हैं। फलतः विस्मय की दृष्टि से देखते और अचम्भा करते हैं। रहस्यवाद में इस घटना को पृथकारण बाह्यकरण मूर्त्तकरण अथवा आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरियन्स (शरीर से बाहर परिभ्रमण) जैसे अनेकानेक नामों से जाना जाता है।
इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि चूँकि सूक्ष्म शरीर अथवा एस्ट्रल बॉडी में चेतना और अनुभूति के दोनों गुण होते हैं, अतः पृथक्करण की पटना जब घटती है, तो अस्थायी रूप से स्थूल शरीर अचेतन की स्थिति में आ जाता है और ठीक इसी समय भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर में चेतना और अनुभूति का स्थानान्तरण हो जाता हैं। किन्तु रहस्यवादियों का कहना है कि ऐसी स्थिति में भी दोनों शरीरों के बीच सदा एक सूक्ष्म सम्बन्ध बना रहता है। दोनों को एक दूसरे से जोड़ने वाला यह सम्पर्क सूत्र ''एस्ट्र्ल कार्ड'' कहलाता है। प्राय: ऐसी घटनाऐं प्रकाश में आती रहती हैं, जब किसी दुर्घटना अथवा आप्रेशन के दौरान व्यक्ति अपने ही निष्क्रिय स्थूल शरीर को देखता रहता है अथवा देखने की अनुभूति होती है। ऐसा एस्ट्रल बॉडी के मंच भौतिक शरीर से पृथक्करण के कारण होता है। एस्ट्रल प्रोजेक्शन की यह घटना योगियों अथवा आध्यात्मिक पुरुषों के साथ घटने वाली उस घटना से सर्वथा भिन्न है, जिसमें आध्यात्मिक शक्तिसम्पन्न व्यक्ति एक समय में विभिन्न स्थलों पर प्रकट होकर विभिन्न प्रकार के काम करते देखे जाते हैं। ''भारत के सन्त महात्मा'' पुस्तक में ऐसे कई घटनाक्रम दिए गए हैं।
सामान्य परिस्थितियों में भी स्वतः बहिर्गमन की यह घटनाऐं घटती हैं, पर यह कब और कैसे घटित होती हैं यह अविज्ञात है। कुछ व्यक्तियों में यह घटना सतत् स्वतः होती रहती है। विशेषज्ञों का विश्वास है कि इसमें व्यक्ति के आनुवंशिक कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं। रहस्यवादियों का कहना है कि शैशवावस्था और अत्यन्त बुढ़ापे की स्थिति में एस्ट्रल बॉडी और स्थूल शरीर परस्पर पूरी तरह बंधे नहीं होते, उनके बीच कुछ विलगाव होता है। यही कारण है कि इन स्थितियों में बोली अस्पष्ट व डली होती है तथा विभिन्न अंगों का पारस्परिक तालमेल भी ठीक ठीक नहीं बन पड़ता, क्योंकि एस्ट्रल शरीर पूरी तरह नियन्त्रण में नहीं होता। इसी प्रकार बीमारी उपवास, थकान, श्रम, तपश्चर्या के दौरान जब जीवनी शक्ति घट जाती है तो एस्ट्रल शरीर अपने बन्धनों से ढीला हो जाता है और भौतिक शरीर से बाहर आ जाता है। मादक द्रव्यों के सेवन से भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गहन एकाग्रता प्रबल इच्छा दारुण दुःख व मरणासन्न स्थिति में भी दोनों शरीरों का सम्पर्क सूत्र कमजोर पड़ जाता है जिससे एस्ट्रल बॉडी आंशिक अथवा पूर्णरूप से स्थूल शरीर से पृथक् हो सकता है। मृत्यु से ठीक पूर्व अथवा किसी गम्भीर संकट की पड़ी में एस्ट्रल शरीर व्यक्ति के किसी घनिष्ठ सम्बन्धी के समक्ष प्रकट होकर इसकी सूचना उसे दे सकता है। इस क्षेत्र के शोधकर्ताओं का कहना है कि एस्ट्रल शरीर का बहिर्गमन कोई असामान्य अथवा अस्वाभाविक घटना नहीं है। हर व्यक्ति के जीवन में यह घटित होता रहता है। यह बात दूसरी है कि अधिकांश व्यक्ति इसे याद नहीं रख पाते सिवाय बेसिर पैर के सपनों के।
एस्ट्रल बहिर्गमन शुरू से अन्त तक पूर्ण चैतन्य रह कर भी सम्भव है, पर यह कुछ कठिन है। इस दौरान की अनुभूतियों में भी काफी भिन्नता देखी गयी है।
सामान्य परिस्थितियों में इस प्रकार का बहिर्गमन नींद की स्थिति में होता है। कुछ घण्टे की नींद के बाद व्यक्ति को ऐसा अनुभव होता है, जैसे वह धीरे धीरे जाग रहा हो, किन्तु उसे अपनी स्थिति और अवस्थिति का भान नहीं होता। कुछ समय तक वह स्वयं को निश्चल अनुभव करता है। इसके बाद उसका एस्ट्रल शरीर हवा में अनुप्रस्थ रूप से ऊपर उठने लगता है। तत्पश्चात् धीरे-धीरे उदग्र स्थिति ग्रहण कर लेता है और वहाँ से दूर जाने की तैयारी करने लगता है। इस दशा में अभौतिक शरीर, जो अब तक जड़ जैसी अवस्था में था, चैतन्य बनने लगता है। यह चेतना स्थूल शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। अधिकांश मामलों में एस्ट्रल बॉडी के बहिर्गमन और भौतिक शरीर में उसके लौटने से पूर्व की मध्यावधि में "ब्लेक आउट अथवा अचेतना'' की एक अल्पकालिक स्थिति भी आती है।
इस आयाम में सब कुछ अत्यन्त सुस्पष्ट होता है। यहाँ तक कि सामान्य स्थान भी विशेष प्रभायुक्त दीखते हैं, जबकि वास्तविक संसार अपेक्षाकृत अवास्तविक अस्पष्ट व बिम्ब जैसा प्रतीत होता है। ज्ञान तन्तु अधिक संवेदनशील हो उठते हैं एवं बोध क्षमता बढ़ जाती है। शारीरिक दोष समाप्त हो जाते हैं। एस्ट्रल शरीर के आयाम में काल स्थान और द्रव्य का अर्थ पूरी तरह बदल जाता है। इस स्थिति में इस शरीर के लिए फिर सारे व्यवधान, सारी विघ्न बाधाऐं समाप्त हो जाती हैं। यह बन्द दरवाजे से निकल सकता है, हजारों मील की दूरी पलक झपकते तय कर सकता है। चूँकि यह शरीर सूक्ष्म होता है, अतः भौतिक संसार में यह कुछ विशेष अवसरों पर ही लोगों को दिखाई पड़ता है।
साधना द्वारा शक्ति अर्जित कर के भी एस्ट्रल बॉडी को भौतिक शरीर से पृथक् कर उस आयाम में पहुँचा जा सकता है एवं अन्य आयामों में निवास कर रही सूक्ष्म सत्ताओं से सम्पर्क साधा जा, सकता है।
बहिर्गमन के बाद कुछ समय पश्चात जब सूक्ष्म शरीर भौतिक शरीर में वापस लौटता है, तो स्थूल शरीर की चेतना इसी के साथ लौट आती है। सामान्यतः यह घटना इतने शान्त और सहज रूप में घटित होती है कि व्यक्ति को इसका आभास तक नहीं मिल पाता और कुछ क्षण तक वह अचेतन अथवा निद्रा की स्थिति में ही पड़ा रहता है। किन्तु इस समय यदि यकायक कोई तीक्ष्ण ध्वनि उत्पन्न की जाय अथवा सोते व्यक्ति को जोर से झकझोरा जाय, तो एस्ट्रल कार्ड में तीव्र हलचल उत्पन्न हो जाती है और इसी के साथ सूक्ष्म शरीर शीघ्रता से स्थूल शरीर में प्रवेश कर जाता है, जिससे भौतिक शरीर को काफी कष्ट पहुँचता है और व्यक्ति का हृदय पुरी तरह धड़कने लगता है। यही कारण है कि सोते व्यक्ति को झकझोर कर अथवा तेज आवाज देकर कभी नहीं उठाया जाता।
यद्यपि मनोवैज्ञानिक बहिर्गमन की इन घटनाओं को मात्र मतिभ्रम कह कर निजात पा लेते हैं, पर रहस्यवाद में इस विधा को वास्तविक और असीम सम्भावनाओं से युक्त बताया गया है एवं इसके माध्यम से रहस्यवादी दैनिक जीवन में घटित होने वाली अनेक प्रकार की घटनाओं की व्याख्या करते हैं, यथा स्वप्नदर्शन दूरदर्शन। इसे वे एस्ट्रल आयाम की प्रथम अनुभूति बताते हैं। भूत पिशाच एवं अन्य सूक्ष्म सत्ताओं के प्रत्यक्ष दर्शन में इसे एस्ट्रल शरीर का मूर्त्तकरण कहा गया है, उन्माद पागलपन को सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर में स्थायी स्थान परिवर्तन (डिजलोकेशन) बतलाया जाता है, अचेतन अवस्था, निद्रा बेहोशी आदि में एस्ट्रल बॉडी की अस्थायी अनुपस्थिति मानी गई है, आत्माओं के लिए माध्यम बनना पिशाचग्रस्त होना बहुव्यक्तित्व प्रदर्शन, प्राण प्रत्यावर्तन इन्हें भौतिक शरीर पर अन्य सूक्ष्म सत्ताओं द्वारा आधिपत्य की संज्ञा दी गई है, प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा रहस्यमय अनुभूति और अविज्ञात की जानकारी को श्वेच्छिक बहिर्गमन का नाम दिया गया है, मोहन-वशीकरण को सूक्ष्म शरीर पर नियन्त्रण माना गया है और एक्टोप्लाज्म, बायोफ्लक्स, बायोप्लाज्मा, प्रभामण्डल आदि को ईथरिक शरीर का स्थूल शरीर से बाहर उभार कहा गया है।
कुछ भी हो, है यह सब कुछ अतिविलक्षण एवं अदभुत। सूक्ष्म जगत के क्रिया कलापों की तो यह एक झलक मात्र है। सम्भावनाऐं असीम अपरिमित हैं। इस शक्ति समुच्चय को कुरेदा जगाया जा सके तो ऋद्धि सिद्धियों का वैभव भाण्डागार हस्तगत हो सकता है।
हम आर्षग्रन्थों में पौराणिक मिथकों में ऐसे कई प्रसंग देवमानवों, ऋषियों, महापुरुषों से जुड़े पढ़ते आ रहे हैं जिनमें यह वर्णन है कि एक ही व्यक्ति को एक ही समय दो या अधिक स्थानों पर एक साथ उपस्थित बताया गया है। क्या यह कपोल कल्पना मात्र है ? इस पर परामनोविज्ञान, गुह्यविज्ञान के अध्एता अपना निष्कर्ष प्रकट करते हुए कहते हैं कि यह सूक्ष्मशरीर की सत्ता का चमत्कार ही है जो हम ओ० बी० ई० (आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरीएन्स) एवं परकाया प्रवेश के घटना क्रम देखते व सुनते हैं। इतिहास के पृष्ठों में ऐसी कई घटनाऐं पृष्ठांकित हैं।
घटना १८ जुलाई १८७६ की है। न्यूयार्क के एक न्यायालय में विलियम मैक्डोनाल्ड नामक एक व्यक्ति पर मुकदमा चलाया गया। आरोप यह था कि १५ अप्रेल के दिन मेनह्ट्टन शहर में सायं ५ बजे कुछ व्यक्तियों पर प्राणघातक हमला करके उन्हें घायल कर दिया। इसकी साक्षी रूप में अभियोग पक्ष ने चार गवाह भी पेश किए जिनमें शहर का ईमानदार और सत्यनिष्ठ समझा जाने वाला एक व्यक्ति था।
दूसरी ओर प्रतिपक्ष ने कई साक्षी प्रस्तुत कर न्यायालय को यह बताया कि उक्त समय अभियुक्त मेनह्ट्टन से पाँच मील ब्रुकलीन उपनगर के एक थिएटर में प्रख्यात हिपनोटिस्ट डॉ० ह्वाइनर का "माध्यम" बना सैकड़ों व्यक्तियों के सामने संज्ञा शून्य पड़ा था। फिर यह कैसे संभव है कि वह दूसरे शहर में आकर हत्या करे ?
ज्यूरी के सामने जटिल समस्या थी। दोनों ही पक्ष अपराधी को एक ही दिन एक ही समय दो भिन्न स्थलों में उपस्थित बता रहे थे, जो सर्वथा असम्भव था। निदान स्वरूप डॉ० ह्वाइनर को बुलाया गया। डॉ० ह्वाइनर तत्कालीन समय में सम्मोहन विद्या के निष्शात् माने जाते थे। न्यायालय ने उनसे प्रश्न किया कि क्या वे मैक्डोनाल्ड को जानते हैं ? उन्होंने उत्तर में कहा 'हाँ' मैक्डोनाल्ड एक अच्छा माध्यम है और उक्त दिन वह उस पर सम्मोहन विद्या के कुछ प्रयोग कर रहा था। "क्या ऐसी स्थिति हैं सम्मोहित व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर कहीं अन्यत्र भी प्रकट हो सकता है ?'' ज्यूरी का अगला प्रश्न था। ह्वाइनर ने कहा "ऐसा संभव है।"
किन्तु न्यायालय को इतने से ही सन्तोष नहीं हुआ। उसने बचाव पक्ष से अपराध जगत के इतिहास में किसी ऐसी घटना के पक्ष में दिए गए फैसले का सबूत माँगा। प्रतिपक्ष ने रिकार्ड की पुरानी फाइल से एक ऐसा ही मामला ढूँढ निकाला। बात सन् १७७४ की है। २१ सितम्बर रविवार के दिन स्थानीय चर्च के फादर अलफोन्सेस लिगाडरी प्रात: प्रवचन देने के लिए तैयार हो रहे थे। कि अचानक कुर्सी से टकरा कर गिर पड़े और बेहोश हो गए। बड़ी मुश्किल से शाम तक होश में आए तो अपने विश्वास पात्र शिष्यों से कहने लगे कि वे बिलकुल स्वस्थ हैं और अभी अभी रोम से आ रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि रोम के पोप को उनने जहर दे दिया है। शिष्यों ने समझा कि शायद फादर सपने की बात कह रहे हों, अतः उनने उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया, किन्तु कुछ दिनों बाद जब पोप के सम्बन्धियों ने फादर अलफान्सर पर हत्या का मुकदमा चलाया, तब शिष्यों को विश्वास हुआ कि फादर जो कुछ कह रहे थे, वह सच था, मगर' उन्हें आश्चर्य इस बात का था कि शरीर से यहाँ रहते हुए भी सैकड़ों मील दूर जाकर उन्होंने हत्या कैसे की ?
इस घटना को सुन कर ज्यूरी के सदस्यों ने वादी प्रतिवादी दोनों पक्षों को सही माना पर अपराधकर्मी मैक्डोनाल्ड को यह वह कर बरी कर दिया कि अपराध सूक्ष्म शरीर ने किया है, अतः उसका दण्ड स्थूल शरीर को नहीं दिया जा सकता।
यह सच है कि सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर से पृथक्करण सम्भव है और इसके माध्यम से विश्व के किसी भी कोने का क्षण मात्र में भ्रमण किया जा सकता है, मगर दैनिक जीवन में निद्रा की स्थिति में घटने वाली इस घटना का स्मरण अधिकांश लोग नहीं रख पाते हैं। फलतः विस्मय की दृष्टि से देखते और अचम्भा करते हैं। रहस्यवाद में इस घटना को पृथकारण बाह्यकरण मूर्त्तकरण अथवा आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरियन्स (शरीर से बाहर परिभ्रमण) जैसे अनेकानेक नामों से जाना जाता है।
इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि चूँकि सूक्ष्म शरीर अथवा एस्ट्रल बॉडी में चेतना और अनुभूति के दोनों गुण होते हैं, अतः पृथक्करण की पटना जब घटती है, तो अस्थायी रूप से स्थूल शरीर अचेतन की स्थिति में आ जाता है और ठीक इसी समय भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर में चेतना और अनुभूति का स्थानान्तरण हो जाता हैं। किन्तु रहस्यवादियों का कहना है कि ऐसी स्थिति में भी दोनों शरीरों के बीच सदा एक सूक्ष्म सम्बन्ध बना रहता है। दोनों को एक दूसरे से जोड़ने वाला यह सम्पर्क सूत्र ''एस्ट्र्ल कार्ड'' कहलाता है। प्राय: ऐसी घटनाऐं प्रकाश में आती रहती हैं, जब किसी दुर्घटना अथवा आप्रेशन के दौरान व्यक्ति अपने ही निष्क्रिय स्थूल शरीर को देखता रहता है अथवा देखने की अनुभूति होती है। ऐसा एस्ट्रल बॉडी के मंच भौतिक शरीर से पृथक्करण के कारण होता है। एस्ट्रल प्रोजेक्शन की यह घटना योगियों अथवा आध्यात्मिक पुरुषों के साथ घटने वाली उस घटना से सर्वथा भिन्न है, जिसमें आध्यात्मिक शक्तिसम्पन्न व्यक्ति एक समय में विभिन्न स्थलों पर प्रकट होकर विभिन्न प्रकार के काम करते देखे जाते हैं। ''भारत के सन्त महात्मा'' पुस्तक में ऐसे कई घटनाक्रम दिए गए हैं।
सामान्य परिस्थितियों में भी स्वतः बहिर्गमन की यह घटनाऐं घटती हैं, पर यह कब और कैसे घटित होती हैं यह अविज्ञात है। कुछ व्यक्तियों में यह घटना सतत् स्वतः होती रहती है। विशेषज्ञों का विश्वास है कि इसमें व्यक्ति के आनुवंशिक कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं। रहस्यवादियों का कहना है कि शैशवावस्था और अत्यन्त बुढ़ापे की स्थिति में एस्ट्रल बॉडी और स्थूल शरीर परस्पर पूरी तरह बंधे नहीं होते, उनके बीच कुछ विलगाव होता है। यही कारण है कि इन स्थितियों में बोली अस्पष्ट व डली होती है तथा विभिन्न अंगों का पारस्परिक तालमेल भी ठीक ठीक नहीं बन पड़ता, क्योंकि एस्ट्रल शरीर पूरी तरह नियन्त्रण में नहीं होता। इसी प्रकार बीमारी उपवास, थकान, श्रम, तपश्चर्या के दौरान जब जीवनी शक्ति घट जाती है तो एस्ट्रल शरीर अपने बन्धनों से ढीला हो जाता है और भौतिक शरीर से बाहर आ जाता है। मादक द्रव्यों के सेवन से भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गहन एकाग्रता प्रबल इच्छा दारुण दुःख व मरणासन्न स्थिति में भी दोनों शरीरों का सम्पर्क सूत्र कमजोर पड़ जाता है जिससे एस्ट्रल बॉडी आंशिक अथवा पूर्णरूप से स्थूल शरीर से पृथक् हो सकता है। मृत्यु से ठीक पूर्व अथवा किसी गम्भीर संकट की पड़ी में एस्ट्रल शरीर व्यक्ति के किसी घनिष्ठ सम्बन्धी के समक्ष प्रकट होकर इसकी सूचना उसे दे सकता है। इस क्षेत्र के शोधकर्ताओं का कहना है कि एस्ट्रल शरीर का बहिर्गमन कोई असामान्य अथवा अस्वाभाविक घटना नहीं है। हर व्यक्ति के जीवन में यह घटित होता रहता है। यह बात दूसरी है कि अधिकांश व्यक्ति इसे याद नहीं रख पाते सिवाय बेसिर पैर के सपनों के।
एस्ट्रल बहिर्गमन शुरू से अन्त तक पूर्ण चैतन्य रह कर भी सम्भव है, पर यह कुछ कठिन है। इस दौरान की अनुभूतियों में भी काफी भिन्नता देखी गयी है।
सामान्य परिस्थितियों में इस प्रकार का बहिर्गमन नींद की स्थिति में होता है। कुछ घण्टे की नींद के बाद व्यक्ति को ऐसा अनुभव होता है, जैसे वह धीरे धीरे जाग रहा हो, किन्तु उसे अपनी स्थिति और अवस्थिति का भान नहीं होता। कुछ समय तक वह स्वयं को निश्चल अनुभव करता है। इसके बाद उसका एस्ट्रल शरीर हवा में अनुप्रस्थ रूप से ऊपर उठने लगता है। तत्पश्चात् धीरे-धीरे उदग्र स्थिति ग्रहण कर लेता है और वहाँ से दूर जाने की तैयारी करने लगता है। इस दशा में अभौतिक शरीर, जो अब तक जड़ जैसी अवस्था में था, चैतन्य बनने लगता है। यह चेतना स्थूल शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। अधिकांश मामलों में एस्ट्रल बॉडी के बहिर्गमन और भौतिक शरीर में उसके लौटने से पूर्व की मध्यावधि में "ब्लेक आउट अथवा अचेतना'' की एक अल्पकालिक स्थिति भी आती है।
इस आयाम में सब कुछ अत्यन्त सुस्पष्ट होता है। यहाँ तक कि सामान्य स्थान भी विशेष प्रभायुक्त दीखते हैं, जबकि वास्तविक संसार अपेक्षाकृत अवास्तविक अस्पष्ट व बिम्ब जैसा प्रतीत होता है। ज्ञान तन्तु अधिक संवेदनशील हो उठते हैं एवं बोध क्षमता बढ़ जाती है। शारीरिक दोष समाप्त हो जाते हैं। एस्ट्रल शरीर के आयाम में काल स्थान और द्रव्य का अर्थ पूरी तरह बदल जाता है। इस स्थिति में इस शरीर के लिए फिर सारे व्यवधान, सारी विघ्न बाधाऐं समाप्त हो जाती हैं। यह बन्द दरवाजे से निकल सकता है, हजारों मील की दूरी पलक झपकते तय कर सकता है। चूँकि यह शरीर सूक्ष्म होता है, अतः भौतिक संसार में यह कुछ विशेष अवसरों पर ही लोगों को दिखाई पड़ता है।
साधना द्वारा शक्ति अर्जित कर के भी एस्ट्रल बॉडी को भौतिक शरीर से पृथक् कर उस आयाम में पहुँचा जा सकता है एवं अन्य आयामों में निवास कर रही सूक्ष्म सत्ताओं से सम्पर्क साधा जा, सकता है।
बहिर्गमन के बाद कुछ समय पश्चात जब सूक्ष्म शरीर भौतिक शरीर में वापस लौटता है, तो स्थूल शरीर की चेतना इसी के साथ लौट आती है। सामान्यतः यह घटना इतने शान्त और सहज रूप में घटित होती है कि व्यक्ति को इसका आभास तक नहीं मिल पाता और कुछ क्षण तक वह अचेतन अथवा निद्रा की स्थिति में ही पड़ा रहता है। किन्तु इस समय यदि यकायक कोई तीक्ष्ण ध्वनि उत्पन्न की जाय अथवा सोते व्यक्ति को जोर से झकझोरा जाय, तो एस्ट्रल कार्ड में तीव्र हलचल उत्पन्न हो जाती है और इसी के साथ सूक्ष्म शरीर शीघ्रता से स्थूल शरीर में प्रवेश कर जाता है, जिससे भौतिक शरीर को काफी कष्ट पहुँचता है और व्यक्ति का हृदय पुरी तरह धड़कने लगता है। यही कारण है कि सोते व्यक्ति को झकझोर कर अथवा तेज आवाज देकर कभी नहीं उठाया जाता।
यद्यपि मनोवैज्ञानिक बहिर्गमन की इन घटनाओं को मात्र मतिभ्रम कह कर निजात पा लेते हैं, पर रहस्यवाद में इस विधा को वास्तविक और असीम सम्भावनाओं से युक्त बताया गया है एवं इसके माध्यम से रहस्यवादी दैनिक जीवन में घटित होने वाली अनेक प्रकार की घटनाओं की व्याख्या करते हैं, यथा स्वप्नदर्शन दूरदर्शन। इसे वे एस्ट्रल आयाम की प्रथम अनुभूति बताते हैं। भूत पिशाच एवं अन्य सूक्ष्म सत्ताओं के प्रत्यक्ष दर्शन में इसे एस्ट्रल शरीर का मूर्त्तकरण कहा गया है, उन्माद पागलपन को सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर में स्थायी स्थान परिवर्तन (डिजलोकेशन) बतलाया जाता है, अचेतन अवस्था, निद्रा बेहोशी आदि में एस्ट्रल बॉडी की अस्थायी अनुपस्थिति मानी गई है, आत्माओं के लिए माध्यम बनना पिशाचग्रस्त होना बहुव्यक्तित्व प्रदर्शन, प्राण प्रत्यावर्तन इन्हें भौतिक शरीर पर अन्य सूक्ष्म सत्ताओं द्वारा आधिपत्य की संज्ञा दी गई है, प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा रहस्यमय अनुभूति और अविज्ञात की जानकारी को श्वेच्छिक बहिर्गमन का नाम दिया गया है, मोहन-वशीकरण को सूक्ष्म शरीर पर नियन्त्रण माना गया है और एक्टोप्लाज्म, बायोफ्लक्स, बायोप्लाज्मा, प्रभामण्डल आदि को ईथरिक शरीर का स्थूल शरीर से बाहर उभार कहा गया है।
कुछ भी हो, है यह सब कुछ अतिविलक्षण एवं अदभुत। सूक्ष्म जगत के क्रिया कलापों की तो यह एक झलक मात्र है। सम्भावनाऐं असीम अपरिमित हैं। इस शक्ति समुच्चय को कुरेदा जगाया जा सके तो ऋद्धि सिद्धियों का वैभव भाण्डागार हस्तगत हो सकता है।