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Books - गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियां

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आहार विहार से जुड़ा है मन

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मन को ग्यारहवीं इन्द्रिय कहा गया है। शरीर का केन्द्र यही है। केन्द्र से जैसे संकेत आदेश मिलते हैं, वैसे ही प्राणि मात्र का शरीर संचालित होता है। अदृश्य रूप से हमारे मन में भाँति-भाँति के विचार भाव और अनुभव भरे रहते हैं। इन गुप्त विचारों के अनुरूप ही जीवन में क्रियाशीलता आती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य का आरोग्य उसकी मनोदशा पर निर्भर करता है। मन की विकृति, कमजोरी, आघात या मानसिक दुःख के कारण स्वास्थ्य में तुरन्त गिरावट दिखाई देने लगती है।

मन की दो खुराक हैं। आहार और विहार जैसा हम अन्न खाते हैं उसका स्थूल रूप शरीर के उपयोग में आता है और सूक्ष्म भाग मन की खुराक बन जाता है। जीवन के लिए भोजन अथवा भोजन के लिए जीवन इनकी प्रतिक्रिया सर्वथा भिन्न होती है। दो व्यक्ति एक साथ एक समय एक जैसा भोजन करते हैं, पर उनके परिणाम मन के ऊपर भिन्न प्रकार की छाप डालते हैं। भोजन सम्बन्धी रुचि और मर्यादा में अन्तर उपस्थित करते हैं। खाते समय जो छाप मन पर पड़ती है उसमें भारी अन्तर पड़ता है। भोजन को औषधि, या ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करने वाला व्यक्ति अमृत समझकर श्रद्धा और प्रसन्नतापूर्वक उतनी मात्रा में खाता है जितना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। वस्तुओं के चुनाव में उसे पोषक तत्वों और गुणों का ध्यान रहता है। जबकि भोजन के लिए जीने वाला स्वाद के पीछे पड़ा रहता है। मनचाहा स्वाद न मिलने पर आहार को फेंके-फेंके फिरता है, नाक-भौं सिकोड़ता है और स्वादिष्ट वस्तु मिलने पर पेट में अधिक ठुँसता चला जाता है। मिर्च मसाले तले भुने नशीले पदार्थ तामसिक हैं। यह गुण मन को प्रभावित करता है। ऐसा आहार करने वाले प्राय: क्रोधी, तामसी, कामुक, चंचल और पतनोन्मुख प्रवृत्तियों से घिर जाते हैं। बेईमानी से दूसरों को दुःख या धोखा देकर अनीतिपूर्वक बिना परिश्रम कमाया हुआ पैसा जब पेट में जाता है, तो उससे मन अतीव उछृंखल, उद्दण्ड हो जाता है। तब वह न शास्त्र की, न धर्म की बात मानता है और न सन्त की। ऐसा आहार मन पर कुत्सित प्रभाव ही डालेगा। उसे कुसंस्कारी ही बनायेगा।

पोषण का दूसरा माध्यम है विहार। जल, वायु वस्त्र, निवास, सोना, उठना, श्रम, विनोद संयम, स्वच्छता, संगति, परिस्थिति, वातावरण आदि की मिली जुली व्यवस्था को विहार कहते हैं। इन बातों का शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। अवांछनीय विहार करने वाले उच्छृंखल लोग कभी स्वस्थ नहीं रह सकते। अकेला आहार अच्छा होने से काम नहीं चलता विहार भी ठीक होना चाहिए तभी गाड़ी के दोनों पहिए ठीक तरह लुढ़केंगे और स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

विहार का सूक्ष्म रूप भी है जो मन का पोषण करता है। यह है काम करते समय रखा जाने वाला दृष्टिकोण। सामान्य जीवन यापन भी उच्च दृष्टिकोणयुक्त हो सकता है और उसी को निकृष्ट भावना से किया जा सकता है। काम का बाहरी स्वरूप एक जैसा रहते हुए भी उसका सूक्ष्म प्रभाव विपरीत होगा और मन का पोषण उसी एक जैसे काम से भिन्न व्यक्तियों को भिन्न प्रकार का मिलेगा। व्यापार कृषि, नौकरी आदि आजीविका के माध्यमों में दृष्टिकोण की भिन्नता रहती है। एक व्यक्ति इन माध्यमों से बिना नीति-अनीति का विचार किये जितना भी जैसे भी सम्भव हो अधिक उपार्जन का प्रयत्न करता है। दूसरा व्यक्ति दूसरों का प्रयोजन सिद्ध करने के फलस्वरूप निर्वाह की व्यवस्था रखने के लिए उपार्जन करता है। अपनी ही तरह वह उनके स्वार्थों का भी ध्यान रखता है जिनके माध्यम से वह आजीविका उपार्जित की गई। शिक्षा, विनोद, व्यायाम, मैत्री, सम्भाषण खर्च, परामर्श, चिन्तन आदि सामान्य दैनिक कार्यों में वह औचित्य और मनुष्यत्व को बनाये रखता है। फलस्वरूप कहीं रोजमर्रा के काम एक प्रकार से योग साधना बन जाते हैं। इसका प्रभाव मानसिक स्थिति पर पड़ता है। यह विहार क्रम जिसे सात्विक मिला है, उसका मन न कुमार्गगामी होगा न उच्छृंखल, वह उद्धत आचरण नहीं करता। जानता है कि मेरा अस्तित्व सेवा करना है, मुझे सेवक के रूप में बनाया गया है, मेरा कर्त्तव्य आत्मा की सहायता करना है। मुझे कोई ऐसा काम न करना चाहिए, जिससे जीवात्मा के जीवन लक्ष्य में बाधा- व्यवधान उत्पन्न होता है। ऐसा समझदार मन मर्यादा तोड़कर सेवक से शासक बनने का प्रयत्न स्वत: ही नहीं करता और उसके और उच्छृंखल बनने की आशंका नहीं रहती।       प्रसिद्ध मनश्चिकित्सक डॉ० कैनन के अनुसार ''आमाशय का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क के 'आटोनेमिक' केन्द्र से होता है। सिंपैथेटिक और पैरापैथैटिक यह आटोनेमिक केन्द्र के दो भाग हैं जो पेट की क्रियाओं को संचालित करते हैं तथा पाचन रस उत्पन्न करते हैं। यदि व्यक्ति की मन: स्थिति आवेशग्रस्त और अस्त व्यस्त होती है तो उसके पेट की क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और वह हमेशा के लिए खराब रहने लगता है।'' चिकित्सा मनोविज्ञानी डॉ० केन्सडोलमोर और डाक्टर कोओ ने अपने शोध प्रबंध में यह प्रकाश डाला है कि शरीर में कोई रोग उत्पन्न हो ही नहीं सकता जब तक कि मनुष्य का मन स्वस्थ है।

एक व्यक्ति की क्रूरता, हिंस्रता और अहंवादिता के कारण ही संसार के लाखों लोग अकाल युद्ध के गाल में कवलित होते हैं वहीं दूसरी ओर एक ही व्यक्ति की परिष्कृत शुद्ध सात्विक मनःस्थिति के कारण समाज में महत्त्वपूर्ण क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जाते हैं।

मन की शक्ति अणु शक्ति से किसी प्रकार भी कम नहीं है। बल्कि उससे अधिक ही समर्थ और प्रचंड है। इतिहास पुराणों में वर्णित शाप और वरदान की घटनायें इसी मन स्थिति के विध्वंस और सृजन उपयोगों के उदाहरण हैं। मन पर देख-रेख न रखी जाय तो वह भी अन्य चोर नौकरों की तरह भोले मालिकों की हजामत बनाने का ढर्रा अपना लेगा। सरकस के शेर की तरह सधा हुआ मन मालिक का हित साधना और दर्शकों का मनोरंजन करता है। पर यदि वह उजड्ड, अनगढ़ और अनियंत्रित हो तो मालिकों से लेकर दर्शकों तक सभी के लिए संकट सिद्ध होगा। मन को साध लिया जाय तो वह पारद से रसायन बनने की तरह उपयोगी भी अत्यधिक है। उसका कुसंस्कारी रूप तो विषैले पारे की तरह है जो जिस शरीर में भी जायेगा उसे तोड़-फोड़ कर बाहर निकलेगा। मनोनिग्रह के लिए जहाँ उसे सत्परामर्श देना, समझाना बुझाना, मनन चिन्तन के आधार पर परिष्कृत करना, स्वाध्याय, सत्संग से सन्मार्गगामी बनाया जाना चाहिए, वहाँ यह भी आवश्यकता है कि उसके लिए आहार-विहार की ऐसी व्यवस्था बनाई जाय जिससे वह स्वयं उच्छृंखलता छोड़कर शालीनता को स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाय। इस तथ्य को भारतीय तत्वदर्शियों ने बहुत पहले ही जान लिया था कि मन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष दिलाने वाली सभी शक्तियों भरी पड़ी हैं, उसकी सात्विक और विधेयक शक्ति का ज्ञान होने के कारण ही ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि ''मेरा मन शिव संकल्प वाला हो।''

सतोगुणी न्यायोपार्जित सज्जनों के सम्पर्क में बना हुआ आहार मन की सत्प्रवृत्तियों को उभारता है और हर कार्य में उदात्त दृष्टिकोण का समन्वय रखने से क्रियाकलाप की छाप मन पर ऐसी सुसंस्कार डालती है जिसे परिष्कृत विहार कहा जा सके। शरीर को स्वच्छ रखने की तरह मन को सुसंस्कारी रखने के लिए भी उपयुक्त आहार-विहार की व्यवस्था रखी जानी चाहिए, तभी वह आत्मा का शासक बनने की कुचेष्टा न करके एक सदाचारी सहयोगी की तरह सेवक बना रहने के लिए सहमत हो सकेगा।
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Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
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Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
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Type: SCAN
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गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
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Articles of Books

  • गायत्री साधना के दो स्तर
  • सूक्ष्म शरीर के अविज्ञात क्रिया कलाप
  • उच्चस्तरीय साधना और उसकी सिद्धि
  • उच्चस्तरीय साधना का तत्त्वज्ञान
  • गायत्री के पाँच मुख
  • देवताओं के अधिक अंगों का रहस्य
  • गायत्री माता की दस भुजायें और उनका रहस्य
  • प्रतीक का निष्कर्ष
  • गायत्री का भावनात्मक एवं वैज्ञानिक महत्व
  • गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश
  • अनन्त आनन्द की साधना
  • पाँच कोशों की स्थिति और प्रतिक्रिया
  • पाँच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
  • चेतना के पाँच आयाम पंच कोश उपासना
  • सूक्ष्म शरीर के पाँच कोश एवं उनका वैज्ञानिक विवेचन
  • मानवी काया की चेतनसत्ता का वैज्ञानिक विवेचन वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
  • पंच कोश और उनका अनावरण
  • जीवात्मा के तीन शरीर और उनकी साधना
  • तीन शरीर और उनका कार्य क्षेत्र
  • कायसत्ता के तीन कलेवर एवं उनका अनावरण
  • चारों ओर बिखरा सूक्ष्म का सिराजा
  • अन्तराल में समाई दिव्य शक्तियाँ सिद्धियाँ
  • मनुष्य देह में भरा विलक्षण विराट
  • स्थूल शरीर का परिष्कार कर्मयोग से
  • सूक्ष्म शरीर की महती सामर्थ्य
  • सूक्ष्म शरीर की दिव्य ऊर्जा और उसकी विशिष्ट क्षमता
  • प्रमाणित तो होता है, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व
  • नौ प्राणायाम
  • सूक्ष्मीकरण की अनेक गुनी सामर्थ्य
  • सूक्ष्म शरीर का दिव्यीकरण
  • सूक्ष्म शरीर के उत्कर्ष की पृष्ठभूमि
  • सूक्ष्म शरीर का उत्कर्ष ज्ञानयोग से
  • भाव संवेदनाओं का भाण्डागार: कारण शरीर
  • कारण शरीर देव शरीर
  • कारण शरीर की विशिष्टता भाव श्रद्धा
  • कारण शरीर का उत्कर्ष भक्तियोग से
  • स्थूल शरीर की तरह ही सूक्ष्म और कारण
  • योग साधना की तीन धाराएँ
  • त्रिविध शरीरों की समन्वित साधना
  • हमारा अद्भुत विलक्षण अन्नमय कोश
  • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
  • अन्नमय कोश और चमत्कारी हार्मोन ग्रन्थियाँ
  • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
  • अन्नमय कोश का परिष्कार और प्रतिफल
  • अन्नमय कोश और उसका अनावरण
  • अन्नमय कोश की जाग्रति, आहार शुद्धि से
  • आहार के त्रिविध स्तर, त्रिविध प्रयोजन
  • आहार, संयम और अन्नमय कोश का जागरण
  • आहार विहार से जुड़ा है मन
  • आहार और उसकी शुद्धि
  • आहार शुद्धौः सत्व शुद्धौः
  • अन्नमय कोश की सरल साधना पद्धति
  • उपवास का आध्यात्मिक महत्त्व
  • उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
  • उपवास से उपत्यिकाओं का शोधन
  • उपवास के प्रकार
  • उच्चस्तरीय गायत्री साधना और आसन
  • आसनों का काय विद्युत शक्ति पर अद्भुत प्रभाव
  • आसनों के प्रकार
  • सूर्य नमस्कार की विधि
  • पंच तत्वों की साधना तत्व साधना एक महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म विज्ञान
  • तत्व शुद्धि
  • तपश्चर्या से आत्मबल की उपलब्धि
  • आत्मबल तपश्चर्या से ही मिलता है
  • तपस्या का प्रचण्ड प्रताप
  • तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
  • ईश्वर का अनुग्रह तपस्वी के लिए
  • पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
  • प्राणमय कोश और उसका विकास
  • प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन
  • प्राणमय कोश में सन्निहित प्रचण्ड जीवनी शक्ति-प्राण
  • प्राणायाम और प्राणशक्ति
  • प्राणायाम से प्राणमय कोश का परिष्कार
  • प्राणमय-कोश की साधना
  • प्राणाकर्षण की क्रियायें
  • पाँच प्राणों की साधना-पाँच कोशों की सिद्धि
  • पाँच प्राण-पाँच उपप्राणों की अद्भुत शक्ति धाराएँ
  • मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध का रहस्य
  • मुद्रा उपचार
  • मनोमय कोश का अनावरण
  • मनोमय कोश का विकास परिष्कार
  • मनोमय कोश की साधना से सर्वार्थ सिद्धि
  • मन और उसका निग्रह
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  • त्राटक
  • त्राटक-साधन से एकाग्रता शक्ति का अभिवर्द्धन
  • मनोमय कोश और आज्ञा चक्र
  • त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि की जागृति
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  • पंच तन्मात्राओं की साधनाएँ तथा सिद्धियाँ
  • पंच तन्मात्राओं का पंच ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्ध
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  • नाद साधना का क्रमिक अभ्यास
  • आनन्दमय कोश की तीन उपलब्धियाँ समाधि, स्वर्ग और मुक्ति
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