• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ब्रह्म वर्चस् साधना का उपक्रम
    • पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
    • गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
    • साधना की क्रम व्यवस्था
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
    • ध्यान धारणा का आधार और प्रतिफल
    • दिव्य-दर्शन का उपाय अभ्यास
    • 1. ध्यान भूमिका में प्रवेश
    • 2. (क) पंचकोशों का स्वरूप
    • 2. (ख) अन्नमय कोश
    • 2. (ग से च) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (छ) प्राणमय कोश
    • 2. (झ, ञ, ट) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (ठ) मनोमय कोश
    • 2. (ड से त) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (थ) विज्ञानमय कोश
    • 2. (द से प) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (फ) आनन्दमय कोश
    • 2. (ब, भ, म) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (क) कुण्डलिनी के पांच नाम पांच स्तर
    • 2. (ख) कुण्डलिनी ध्यान धारणा के पांच चरण
    • 2. (ग) जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
    • 2. (घ) चक्र श्रृंखला का वेधन—जागरण
    • 2. (ई, ङ) आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
    • 2. (च) अन्तिम चरण-परिवर्तन
    • 3. (क, ख) समापन शान्ति पाठ
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ब्रह्म वर्चस् साधना का उपक्रम
    • पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
    • गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
    • साधना की क्रम व्यवस्था
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
    • ध्यान धारणा का आधार और प्रतिफल
    • दिव्य-दर्शन का उपाय अभ्यास
    • 1. ध्यान भूमिका में प्रवेश
    • 2. (क) पंचकोशों का स्वरूप
    • 2. (ख) अन्नमय कोश
    • 2. (ग से च) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (छ) प्राणमय कोश
    • 2. (झ, ञ, ट) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (ठ) मनोमय कोश
    • 2. (ड से त) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (थ) विज्ञानमय कोश
    • 2. (द से प) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (फ) आनन्दमय कोश
    • 2. (ब, भ, म) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (क) कुण्डलिनी के पांच नाम पांच स्तर
    • 2. (ख) कुण्डलिनी ध्यान धारणा के पांच चरण
    • 2. (ग) जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
    • 2. (घ) चक्र श्रृंखला का वेधन—जागरण
    • 2. (ई, ङ) आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
    • 2. (च) अन्तिम चरण-परिवर्तन
    • 3. (क, ख) समापन शान्ति पाठ
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान - धारणा

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


2. (क) कुण्डलिनी के पांच नाम पांच स्तर

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 20 22 Last
कुण्डलिनी जागरण ध्यान धारणा के साथ ही ध्यान भूमिका में प्रवेश का प्रथम चरण जुड़ा हुआ है। उसकी व्याख्या पंचकोशी ध्यान के क्रम में दी जा चुकी है। अस्तु यहां कुण्डलिनी जागरण के विशिष्ट ध्यान प्रयोग से ही व्याख्या का प्रारम्भ किया गया है।

कुण्डलिनी शक्ति की व्याख्या, विवेचना, परिभाषा पांच नामों से की जाती है—(1) प्राण विद्युत (2) जीवनी शक्ति (3) योगाग्नि (4) अन्तःऊर्जा (5) ब्रह्म-ज्योति। इन शब्दों में जो संकेत सन्निहित है उनसे न केवल उसके स्वरूप एवं प्रतिफल का बोध होता है, वरन् क्रमिक विकास का भी पता चलता है। जैसे-जैसे यह जागरण प्रक्रिया प्रखर होती जाती है वैसे-वैसे ही उसके स्तर निखरते-उभरते चले आते हैं और एक के बाद दूसरी अधिक गहरी एवं अधिक समर्थ विभूति का प्रमाण परिचय मिलता है। शरीर शास्त्र की दृष्टि से कुण्डलिनी का विश्लेषण प्राण विद्युत एवं जीवनी शक्ति के रूप में किया जाता है। ज्ञान तन्तुओं को सचेतन रखने वाली—मस्तिष्क को सक्षम बनाये रहने वाली और काया के घटक अवयवों को सक्रिय बनाये रहने वाली बिजली को प्राणि विद्युत कहते हैं। यह यान्त्रिक बिजली से मिलती-जुलती है। उसे यन्त्रों से नापा जाना जा सकता है फिर भी उसमें जैव तत्वों का सम्मिश्रण है। विचारणा और भावना से प्रभावित होने और उन्हें प्रभावित करने की ऐसी विशेष क्षमता है जो यान्त्रिक बिजली में नहीं पाई जाती।

प्राण विद्युत की न्यूनाधिकता के आधार पर मनुष्य का साहस, पराक्रम, संकल्प और आत्म-विश्वास घटना-बढ़ता है। प्रतिभा इन्हीं विशेषताओं का समन्वय है जो उत्साह बनकर मन में और स्फूर्ति बन कर शरीर में विविध प्रकार की हलचलें करती दिखाई पड़ती हैं। इसी विद्युत की न्यूनाधिकता के आधार पर पारस्परिक आदान-प्रदान चलते हैं। एक दूसरे को प्रभावित करते एवं प्रभावित होते हैं। प्रतिभाशाली लोग अपने सम्पर्क क्षेत्र को ही नहीं समूचे वातावरण पर छाप छोड़ते और उन्हें मोड़ने-मरोड़ने में सफल होते हैं। यही प्राण विद्युत जब आन्तरिक उत्कृष्टता के साथ जुड़ता है तो मनुष्य महामानवों जैसी गतिविधियां अपनाने के लिए एकाकी चल पड़ता है। उसे न किसी परामर्श सहयोग की आवश्यकता होती है और न किसी विरोध-अवरोध का कोई प्रभाव पड़ता है। साहसिकता अपने आप में एक प्रचण्ड शक्ति है जो प्रचण्ड मनोबल के रूप में काम करती है और स्वल्प साधनों के होने पर भी महान् प्रयोजन पूरे कराने के लिए बढ़ाती घसीटती चली जाती है।

यह प्राण विद्युत शरीर में सौन्दर्य चुम्बकत्व आकर्षण पैदा करता है और कलपुर्जों में उत्साह भरता है। इसकी उपयुक्त मात्रा जहां भी होगी वहां आलस्य और प्रमाद ठहर न सकेंगे। अस्त–व्यस्तता की अव्यवस्था की कुरूपता भी वहां दृष्टिगोचर न होगी। प्रगतिशील जीवन इसी उत्साह और स्फूर्ति के समन्वय से आरम्भ होता है और जिस भी दिशा में अन्तःकरण चाहे उसी में बढ़ता चला जाता है कुण्डलिनी जागरण की आरम्भिक सिद्धियां इसी स्तर की देखी जाती हैं। उन्हें संजोने वाली इसी विद्युत शक्ति के रूप में कुण्डलिनी का प्रथम परिचय मिलता है।

इस महाशक्ति का दूसरा नाम है—जीवनी-शक्ति। जीवनी-शक्ति का सामान्य अर्थ उस शक्ति भण्डार से समझा जाता है जिसके आधार पर मनुष्य सुदृढ़ रहता है। सामर्थ्यवान् और दीर्घजीवी होता है। कठिनाइयों और अभावों एवं संकटों के बीच भी धैर्यपूर्वक अपनी स्थिरता बनाये रहता है। बीमारियों से लड़कर उन्हें भगाने में अथवा लम्बे समय तक उनके रहते हुए भी निर्वाह करते रहने में यही शक्ति काम करती है। इसके अभाव में मनुष्य खोखला रहता है और तनिक से प्रतिकूल आघात पड़ने पर चित्त-पट्ट हो जाता है। चार दिन की बीमारी के बाद हफ्तों चारपाई पकड़े रहता है और महीनों में कुछ करने लायक बनता है। तनिक-सी प्रतिकूलता आने पर इतना घबराता है मानो संसार भर की विपत्ति इकट्ठी होकर इसी के सिर पर गिर पड़ी है। आवेशग्रस्त अधीर मनुष्य आत्म-हत्या एवं दूसरों पर घात करने तक में नहीं चूकते। उनका विवेक समाप्त हो जाता है और आत्मरक्षा के नाम पर ऐसा कुछ कर गुजरते हैं जिसके लिए सदा के लिए मात्र पश्चाताप ही करना शेष रह जाय। धैर्य साहस और विवेक का समन्वित सुयोग मनःक्षेत्र पर छाई हुई जीवनी-शक्ति का ही प्रतिफल है।

समझा जाता है कि भोजन अथवा सुविधाओं के आधार पर लोग दीर्घजीवी होते हैं। यह आंशिक सत्य है। प्रकृति के अनुकूल चलना अच्छी आदत है। किन्तु बात इतने से ही नहीं बनती। प्रतिकूलताओं के बीच रहने वालों की बलिष्ठता बनी रहने का फिर कोई कारण नहीं रह जाता है। घोर शीत के उत्तरी ध्रुव प्रदेश में चिरकाल से रहती चली आ रही एक्सिमो जाति का अस्तित्व कैसे बना हुआ है? इस प्रश्न का उत्तर आहार-विहार की सुव्यवस्था के रूप में नहीं दिया जा सकता है। रूस के उजेविकिस्तान में सौ से लेकर पौने दो सौ वर्ष तक मनुष्य अभी भी जीवित रहते हैं। इसका कारण अन्न-जल सुविधा साधन अथवा रहन-सहन के सामान्य नियमों को आगे रखकर नहीं दिया जा सकता। यह सब जीवनी-शक्ति के दिव्य भण्डार की प्रचुरता के ही चमत्कार हैं। इस शक्ति के रहते प्रकृति के विपरीत आहार-विहार करते रहने पर भी सुदृढ़ बने रहा जा सकता है। हिमाच्छादित प्रदेशों में—रहने वाले योगियों का भोजन आहार शास्त्र की दृष्टि से कुपोषण स्तर का कहा जा सकता है फिर भी वे आश्चर्यजनक दीर्घजीवन प्राप्त करते हैं। कई आसुरी वृत्ति के लोग भी हर प्रकार की उच्छृंखलता बरतते हैं और दैत्यों की तरह बलिष्ठ बने रहते हैं। इन तथ्यों के पीछे झांकते जीवनी शक्ति के भाण्डागार को देखा जा सकता है। शरशैय्या पर पड़े हुए भीष्म ने बहुत समय उपरान्त इच्छा मृत्यु का वरण किया यह मनुष्य की संकल्प-शक्ति ही थी जिसने कष्टग्रस्त शरीर को भी जीवन धारण किये रहने का आदेश दिया और उसने उसको ठीक तरह निभा दिया। जीवन को धारण किये रहने और सुदृढ़ बनाये रहने में चेतना के साथ लिपटी हुई वह दिव्य क्षमता ही काम करती है जिसे जीवनी-शक्ति अथवा जीवट कहते हैं। वास्तविक बलिष्ठता इसी आन्तरिक विशेषता के आधार पर आंकी जाती है। अन्यथा इसकी कमी रहने पर शरीर से हट्टे-कट्टे होते हुए भी कितने ही व्यक्ति हर दृष्टि से बहुत ही दुर्बल और कायर देखे जा सकते हैं। पुरुषों की तुलना में यह क्षमता आमतौर से स्त्रियों में अधिक पाई जाती है। इसी के आधार पर वे बार-बार प्रसव कष्ट सहती और बच्चों को दूध पिलाते रहने पर भी मौत के मुंह में जाने से बची रहती हैं।

जीवन-शक्ति एक विशेष सामर्थ्य है जो शरीर को जीवित रखने में—जीवन को समर्थ और सरस बनाये रहने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करती है फिर भी वह रक्त-मांस से उत्पन्न नहीं होती। उसका स्रोत आत्मा की गहन परतों के साथ जुड़ा होता है। वहां से उछल कर वह ऊपर आती और शरीर और मन को अपने अनुदान देकर बलिष्ठ बनाती है। कुण्डलिनी को जीवन क्षेत्र में प्रखरता प्रकट करते हुए जब देखा जाता है तब उसे जीवनी-शक्ति कहते हैं। कुण्डलिनी का एक महत्वपूर्ण अंश जीवनी-शक्ति के रूप में भी प्राण विद्युत की तरह सामान्य जीवन में अपना परिचय देता देखा जाता है।

कुण्डलिनी का तीसरा नाम है—योगाग्नि। यह तपश्चर्या के आधार पर प्रयत्नपूर्वक प्रकट की जाती है। तपाने से हर वस्तु गरम होती है और गर्मी के सहारे उठने और फैलने वाली ऊर्जा के सम्बन्ध में विज्ञान के आरम्भिक विद्यार्थियों को भी जानकारी रहती है। व्यायाम से शरीर बल और अध्ययन से बुद्धि बल, व्यवसाय से धन बल बढ़ता है। इसी प्रकार आत्मिक पुरुषार्थ की तपश्चर्या से जो प्रखरता प्रकट होती है उसे योगाग्नि कहते हैं। आत्मा और परमात्मा का, व्यवहार और आदर्श का, कर्म और विवेक का—परस्पर जुड़ना योग कहलाता है। दो शक्ति धाराओं के मिलने से तीसरा अद्भुत प्रवाह उत्पन्न होता है। बिजली के ऋण और धन धाराएं पृथक रहने तक निःचेष्ट पड़ी रहती हैं, पर जब वे मिलती हैं तो प्रचण्ड शक्ति प्रवाह उत्पन्न होता है। व्यवहार एवं आदर्श का समन्वय करने वाले तप प्रयास की ऊर्जा से जो दरिद्रता उत्पन्न होती है उसे योगाग्नि कहते हैं। शाप, वरदान से दूसरों को प्रभावित कर सकना इसी से बन पड़ता है। असामान्य व्यक्तित्व से जुड़ी रहने वाली चमत्कारी सिद्धियों का प्रादुर्भाव प्रकटीकरण भी इसी उत्पादन से होता है। यह योगाग्नि कुण्डलिनी का ही एक रूप है।

अन्तःऊर्जा कुण्डलिनी का चौथा नाम है। शरीरगत ऊर्जा पुरुषार्थ के विभिन्न रूपों में देखी जा सकती है। मनोगत ऊर्जा बुद्धि—विवेक की सूझ बूझ के—सत्साहस के रूप में प्रकट होती है। इससे आगे की ऊंचाई, गहराई कक्षा को अन्तःऊर्जा अर्थात् आत्मबल कहते हैं। आत्मिक अवरोधों के साथ संघर्ष करना और उन्हें परास्त करना आत्मबल के अतिरिक्त और किसी प्रकार सम्भव नहीं होता। निष्कृष्ट योनियों में रहते-रहते जो कुसंस्कार पशु-प्रवृत्तियों के रूप में चेतना की गहराई तक घुसे रहते हैं उनके उभार प्रायः विवेक बुद्धि को बुरी तरह उलट देते हैं। आदर्शवादी चिन्तन एक कोने में रखा रह जाता है और भीतर से उठने वाले आंधी-तूफान को अपना उपद्रव करने के लिए अवसर मिल जाता है। इन विकृतियों, दुर्बलताओं से जूझने का प्रधान अस्त्र आत्मबल ही होता है। चारों ओर के अवांछनीय प्रवाह प्रायः दुर्बल जीवात्मा को अपनी ओर घसीट ले जाते हैं। उन्हें निरस्त करके आत्मा के संकेतों को सुनने और उन पर चलना आत्मबल की क्षमता से ही सम्भव होता है। वायुमण्डल की परिधि को—पृथ्वी की आकर्षण क्षमता को—चीर कर राकेट अन्तरिक्ष में प्रवेश करने के लिए चलते हैं तो उन्हें आरम्भ में भारी शक्ति साथ लेकर चलना होता है। उत्कृष्ट जीवन की कल्पना करते और ललचाते रहना तो सरल है, पर उस मार्ग पर चल पड़ने का साहस जुटाना अति कठिन है। लोभ, मोह की आन्तरिक दुर्बलताएं और स्नेही स्वजनों से लेकर चारों ओर फैले हुए अविचारी वातावरण का दबाव यह दोनों मिलकर आत्मिक प्रगति के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठा सकना असम्भव कर देते हैं। इन अवरोधों से आत्मबल ही जूझता है और उसी की प्रचुरता से उत्कृष्ट जीवन की योजना बनाने से लेकर साधन जुटाने तक का सारा सरंजाम जमा करना सम्भव होता है।

ऊंचे उठने के लिए शक्ति चाहिए, पानी के पम्प—वजन उठाने के क्रेन—यही काम करते हैं। बन्दूक की गोली से लेकर ऊंची कूद तक के विभिन्न प्रयोजनों में इसी सामर्थ्य की आवश्यकता पड़ती है। पतनोन्मुख प्रगति की निम्नगामी प्रवृत्तियां तो पानी के निचली दिशा में बहने की तरह स्वयमेव गतिशील बनी रहती हैं पर यदि उत्कृष्टता की दिशा में बढ़ना हो—अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने हों तो आत्मबल के बिना कुछ महत्वपूर्ण परिणाम निकलेगा नहीं। कुण्डलिनी का चौथा नाम अन्तःऊर्जा इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए रखा गया है।

कुण्डलिनी का पांचवां नाम ब्रह्म-ज्योति है। शरीर, मन और भाव संस्थान के स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीरों के आगे आत्मसत्ता और ब्रह्मसत्ता का ही क्षेत्र आत्मा है। आत्म-ज्योति और ब्रह्म-ज्योति इसी क्षेत्र की उपलब्धियां हैं। हृदय गुफा में अंगुष्ठ मात्र प्रकाश का वर्णन उपनिषदों एवं साधना शास्त्र के अनेक ग्रन्थों में भरा पड़ा है। इसी दिव्य-ज्योति के दर्शन के लिए कितने ही साधन विधान बताये गये हैं। इसी ज्योति की अधिक स्पष्टता को आत्म-दर्शन एवं आत्म-साक्षात्कार कहा गया है। विज्ञानमय कोश को—अन्तःकरण को—जीवात्मसत्ता का केन्द्र स्थल कहा गया है। कुण्डलिनी का आभास विज्ञानमय कोश में आत्म-ज्योति के रूप में होता है।

सहस्रार को ब्रह्मलोक कहा गया है। परब्रह्म का साक्षात्कार करने के स्थान को ब्रह्मरन्ध्र कहते हैं। इसी रन्ध्र गुफा में ब्रह्म छिपा रहता है। जब बाहर निकल कर आता है तो उससे ब्रह्म-दर्शन का लाभ मिलता है। यही ब्रह्म-ज्योति है। वह ध्यान धारणा में ज्योति रूप में भी प्रकट हो सकती है। इसे प्रतीक दर्शन कहा जायगा। वस्तुतः ब्रह्म-ज्योति देखी नहीं अनुभव की जाती है। आत्मा की अनुभूति होती है कि ब्रह्मसत्ता का समावेश आत्मसत्ता में हो चला उसने अपना स्थान और अधिकार उपलब्ध कर लिया। ईश्वर की प्रेरणा ही जब क्रिया रूप धारण करती चले तो समझना चाहिए कि ब्रह्म-ज्योति का प्रभाव जीवनसत्ता के क्षेत्र में बढ़ता चला जा रहा है।

आत्म-ज्योति आत्म क्षेत्र में दबी हुई विभूतियों को उभारती है और उनके सहारे मनुष्य को दिव्य-देवोपम बनने का अवसर मिलता है। उसे दिव्य जीवन जीते हुए देखा जा सकता है। ब्रह्म-ज्योति का प्रकटीकरण इससे ऊंची स्थिति है। उसे ब्रह्म वर्चस् के रूप में आत्मसत्ता पर छाया हुआ देखा जा सकता है। ईश्वरीय अनुग्रह एवं अनुदान इसी क्षेत्र में उतरते हैं। ब्रह्म सम्बन्ध इसी मिलन बिन्दु पर बनता है। आत्मा और परमात्मा के बीच आदान-प्रदान की सुव्यवस्था इसी धरातल पर बनती है। सहस्रार को परमात्मा का निवास माना गया है। कैलाशवासी शिव, शेषशायी विष्णु, कमलासन पर विराजमान ब्रह्मा की स्थिति सहस्रार की ओर ही संकेत करती है। यों ईश्वर का एक अंश तो हर जीवन में विद्यमान है, पर उसके स्तर एवं परिमाण का परिचय ब्रह्म-ज्योति की अधिकाधिक प्रखरता के आधार पर मिलता है। लेटेन्ट लाइट-डिवाइन लाइट—के रूप में पाश्चात्य अध्यात्म विज्ञानी भी इसी प्रकाश की सर्वोपरि गरिमा स्वीकार करते हैं। सविता यही है। ब्रह्म के तेजस्वी स्वरूप को ही सविता कहते हैं। सविता गायत्री का प्राण है। जागृत कुण्डलिनी की मूलाधार स्थिति जीवसत्ता—इसी सहस्रार स्थित ब्रह्मसत्ता से मिलने के लिए आतुरतापूर्वक ऊर्ध्वगमन करती है। आत्म–ज्योति का ब्रह्म-ज्योति में मिल जाना—यही है जीवन-लक्ष्य और यही है कुण्डलिनी जागरण का अन्तिम चरण। इस स्थिति में पहुंचने पर साधक की अन्तःस्थिति सविता के समतुल्य बन जाता है। अवतारी महामानव, देवदूत, परमहंस, जीवन मुक्त मनुष्य इसी स्तर के होते हैं। ब्रह्म-ज्योति की सम्वेदना को प्रत्यक्ष अनुभव में लाना ही ज्योति दर्शन है। इसी को ईश्वर प्राप्ति भी कहा जा सकता है। कुण्डलिनी की दिव्य-चेतना अन्ततः इसी स्थिति में जा पहुंचती है। इसी की प्रार्थना ‘‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’’ की प्रार्थना में की गई है।

कुण्डलिनी के पांच नाम—(1) प्राण विद्युत (2) जीवनी-शक्ति (3) योगाग्नि (4) अन्तःऊर्जा (5) ब्रह्म-ज्योति आत्मिक प्रखरता के क्रमिक विकास का परिचय देती एवं मार्ग-दर्शन करती है।

ध्यान करें—यह शरीर महाशक्ति का एक उपकरण है। मूलाधार क्षेत्र में शक्ति बीज, शक्ति सिन्धु स्थित है। उस स्थल पर संकल्प के आघात अथवा मांस-पेशियों को कड़ा-ढीला करने से सारे शरीर में जैवीय विद्युत की सिहरन का अनुभव होता है। चित्र-विचित्र चिनगारियों जैसी अनुभूति होती है।
First 20 22 Last


Other Version of this book



ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान - धारणा
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

वाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • ब्रह्म वर्चस् साधना का उपक्रम
  • पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
  • गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
  • साधना की क्रम व्यवस्था
  • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
  • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
  • ध्यान धारणा का आधार और प्रतिफल
  • दिव्य-दर्शन का उपाय अभ्यास
  • 1. ध्यान भूमिका में प्रवेश
  • 2. (क) पंचकोशों का स्वरूप
  • 2. (ख) अन्नमय कोश
  • 2. (ग से च) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (छ) प्राणमय कोश
  • 2. (झ, ञ, ट) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (ठ) मनोमय कोश
  • 2. (ड से त) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (थ) विज्ञानमय कोश
  • 2. (द से प) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (फ) आनन्दमय कोश
  • 2. (ब, भ, म) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (क) कुण्डलिनी के पांच नाम पांच स्तर
  • 2. (ख) कुण्डलिनी ध्यान धारणा के पांच चरण
  • 2. (ग) जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
  • 2. (घ) चक्र श्रृंखला का वेधन—जागरण
  • 2. (ई, ङ) आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
  • 2. (च) अन्तिम चरण-परिवर्तन
  • 3. (क, ख) समापन शान्ति पाठ
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj