Books - अंधविश्वास को उखाड़ फेंकिये
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Language: HINDI
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सन्तान के लालची ठगों के शिकार
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घटना बम्बई की है। सेठ लखमी चन्द जी वास्तव में लखपति थे। दुर्भाग्य से सन्तान न थी जैसा कि अधिकतर धनपतियों के साथ होता है।
तथाकथित ‘‘साधु बाबा’’ ऐसे ही यजमानों की तलाश में फिरते रहते हैं। इसी फिरके के एक साधु बाबा, जो अपना नाम श्री ‘‘बल्लभानन्द महाराज’’ बताते थे वहां आये। पहले दिन ही भिक्षा मांगते समय सेठानी जी के आभूषणों तथा मूल्यवान् परिधानों से उन्होंने यह अनुमान लगा लिया कि मुर्गी मोटी है और फंस भी जायगी।
दूसरे दिन ही उन्होंने अपने चेलों के द्वारा उनके व्यक्तिगत जीवन के विषय में खोज-बीन प्रारम्भ कर दी। मुहल्ले वालों से मोटी-मोटी बातों का सहज ही पता लग जाता है।
अब एक दिन वे अवसर पाकर उनके घर पहुंचे। हाथ देखा दोनों का। बोले ‘‘आपको समस्त सुख दिये हैं ईश्वर ने। पर सन्तान का योग बड़ी मुश्किल के बाद है।’’
सेठ जी बोले ‘‘आप ठीक कहते हैं महाराज! अभी तक हम सन्तान सुख से वंचित हैं। पर वे कौन सी मुश्किलें हैं—जिनके पश्चात् ही उसका योग बनता है।
स्वामी जी बड़े ही ध्यान में मग्न होते हुए बोले—‘‘चारों धामों की पैदल यात्रा करके आवें तब आपको यह सुयोग प्राप्त हो सकता है। अनिष्टों का तथा बाधाओं का हम निवारण कर देंगे। बस पूजा में जो सामग्री लगेगी उसका व्यय मात्र आप दे देना। हम पारिश्रमिक या दक्षिणा कुछ न लेंगे।
स्वामी जी ने इस प्रकार अपनी निःस्वार्थता की छाप लगा दी दोनों के मन पर, किन्तु सेठ जी ने बताया कि चारों धाम की पदयात्रा में काफी समय लगेगा। अभी उन्होंने अपना व्यवसाय छोड़कर स्टील के बर्तनों का नया व्यवसाय प्रारम्भ किया था। अतः इतने समय के लिये अभी वे बाहर नहीं जा सकते थे। इस पर स्वामी जी अपनी उदारता को और भी विस्तार देते हुए बोले ‘‘आपको कठिनाई है तो वह भी आपके बदले हम कर लेंगे। मार्ग-व्यय आप दे देना। सेठ जी अत्यधिक प्रसन्न हुए। अब पूजा की बात ही शेष रह गई। कई दिन लगातार सम्पर्क से स्वामी के प्रति सहज विश्वास जम गया था दोनों के मन में। कुछ पुत्रेषणा जोर मार रही थी। सब ने मिलकर उनके विवेक को—जो कुछ थोड़ा बहुत था उसे—बिल्कुल ही लुप्त कर दिया और वे उनकी बातों में पूरी तरह आ गये।
स्वामी जी ने कहा कि ‘‘अपने वे सभी वस्त्राभूषण—जो आपने अपने विवाह के समय धारण किये हों ला दीजिये। रात के बारह बजे उन्हें मन्त्रों द्वारा शुद्ध करूंगा फिर आप उन्हें धारण करें। उसके पश्चात् दसवें माह ही आपको सन्तान की प्राप्ति होगी।’’ सन्तान पाने की लालसा में उन्होंने लगभग दो सौ रुपये पूजा की सामग्री के तथा पांच हजार चारों धाम की यात्रा के व्यय के दे दिये। पूजा के लिये अपने समस्त आभूषण तथा वे वस्त्र जो विवाह के समय धारण किये थे दे दिये। आभूषण लगभग पच्चीस हजार के थे। वस्त्रों की लागत भी एक हजार से कम न थी।
स्वामी जी ने रात को अपना क्रिया-काण्ड आरम्भ किया। कुछ उल्टे—सीधे मन्त्र पढ़कर तथा अग्नि प्रज्वलित करके उन दोनों को भ्रम में डाल दिया। फिर कहा कि ‘‘अब आप दोनों अपने घर के देवस्थान पर जाकर हरि स्मरण करें तब तक हम शेष कार्य पूर्ण करेंगे।’’ दोनों चले गये। इधर उन्होंने सारा सामान बांधा और चम्पत हो गये। प्रातः हो गया तब कहीं सेठ जी को होश आया और पुत्रेषणा का नशा उतरा तब, जब उन्होंने आकर देखा कि न वहां स्वामी जी हैं और न कुछ सामान ही।
तथाकथित ‘‘साधु बाबा’’ ऐसे ही यजमानों की तलाश में फिरते रहते हैं। इसी फिरके के एक साधु बाबा, जो अपना नाम श्री ‘‘बल्लभानन्द महाराज’’ बताते थे वहां आये। पहले दिन ही भिक्षा मांगते समय सेठानी जी के आभूषणों तथा मूल्यवान् परिधानों से उन्होंने यह अनुमान लगा लिया कि मुर्गी मोटी है और फंस भी जायगी।
दूसरे दिन ही उन्होंने अपने चेलों के द्वारा उनके व्यक्तिगत जीवन के विषय में खोज-बीन प्रारम्भ कर दी। मुहल्ले वालों से मोटी-मोटी बातों का सहज ही पता लग जाता है।
अब एक दिन वे अवसर पाकर उनके घर पहुंचे। हाथ देखा दोनों का। बोले ‘‘आपको समस्त सुख दिये हैं ईश्वर ने। पर सन्तान का योग बड़ी मुश्किल के बाद है।’’
सेठ जी बोले ‘‘आप ठीक कहते हैं महाराज! अभी तक हम सन्तान सुख से वंचित हैं। पर वे कौन सी मुश्किलें हैं—जिनके पश्चात् ही उसका योग बनता है।
स्वामी जी बड़े ही ध्यान में मग्न होते हुए बोले—‘‘चारों धामों की पैदल यात्रा करके आवें तब आपको यह सुयोग प्राप्त हो सकता है। अनिष्टों का तथा बाधाओं का हम निवारण कर देंगे। बस पूजा में जो सामग्री लगेगी उसका व्यय मात्र आप दे देना। हम पारिश्रमिक या दक्षिणा कुछ न लेंगे।
स्वामी जी ने इस प्रकार अपनी निःस्वार्थता की छाप लगा दी दोनों के मन पर, किन्तु सेठ जी ने बताया कि चारों धाम की पदयात्रा में काफी समय लगेगा। अभी उन्होंने अपना व्यवसाय छोड़कर स्टील के बर्तनों का नया व्यवसाय प्रारम्भ किया था। अतः इतने समय के लिये अभी वे बाहर नहीं जा सकते थे। इस पर स्वामी जी अपनी उदारता को और भी विस्तार देते हुए बोले ‘‘आपको कठिनाई है तो वह भी आपके बदले हम कर लेंगे। मार्ग-व्यय आप दे देना। सेठ जी अत्यधिक प्रसन्न हुए। अब पूजा की बात ही शेष रह गई। कई दिन लगातार सम्पर्क से स्वामी के प्रति सहज विश्वास जम गया था दोनों के मन में। कुछ पुत्रेषणा जोर मार रही थी। सब ने मिलकर उनके विवेक को—जो कुछ थोड़ा बहुत था उसे—बिल्कुल ही लुप्त कर दिया और वे उनकी बातों में पूरी तरह आ गये।
स्वामी जी ने कहा कि ‘‘अपने वे सभी वस्त्राभूषण—जो आपने अपने विवाह के समय धारण किये हों ला दीजिये। रात के बारह बजे उन्हें मन्त्रों द्वारा शुद्ध करूंगा फिर आप उन्हें धारण करें। उसके पश्चात् दसवें माह ही आपको सन्तान की प्राप्ति होगी।’’ सन्तान पाने की लालसा में उन्होंने लगभग दो सौ रुपये पूजा की सामग्री के तथा पांच हजार चारों धाम की यात्रा के व्यय के दे दिये। पूजा के लिये अपने समस्त आभूषण तथा वे वस्त्र जो विवाह के समय धारण किये थे दे दिये। आभूषण लगभग पच्चीस हजार के थे। वस्त्रों की लागत भी एक हजार से कम न थी।
स्वामी जी ने रात को अपना क्रिया-काण्ड आरम्भ किया। कुछ उल्टे—सीधे मन्त्र पढ़कर तथा अग्नि प्रज्वलित करके उन दोनों को भ्रम में डाल दिया। फिर कहा कि ‘‘अब आप दोनों अपने घर के देवस्थान पर जाकर हरि स्मरण करें तब तक हम शेष कार्य पूर्ण करेंगे।’’ दोनों चले गये। इधर उन्होंने सारा सामान बांधा और चम्पत हो गये। प्रातः हो गया तब कहीं सेठ जी को होश आया और पुत्रेषणा का नशा उतरा तब, जब उन्होंने आकर देखा कि न वहां स्वामी जी हैं और न कुछ सामान ही।