Books - अंधविश्वास को उखाड़ फेंकिये
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Language: HINDI
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अन्ध-विश्वास ने अनेकों की जान ली
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कुछ दिन पूर्व शमशाबाद परगना (जिला गुना, मध्य प्रदेश) के रूगरू नामक ग्राम में ढोर चराने वाले एक ग्रामीण ने अपने में देवता आने की किंवदन्ती फैलाई। उसने भभूत देकर सारे रोग, पाप-ताप दूर करने और मनोवांछित फल प्राप्त करने का विश्वास दिलाया। लाखों मनुष्य गांव पहुंचे। भला तो शायद ही किसी का हुआ हो पर भीड़ बढ़ जाने से वहां हैजा अवश्य फैल गया। फलस्वरूप सैकड़ों दर्शनार्थियों और कामना पीड़ितों की जाने चली गईं।
रोग-शोक हो अथवा इच्छाएं, उनके समाधान का एक निश्चित तरीका है, बीमारी हो तो उसके लिये इलाज कराना उचित है दवाओं से एक अंश तक आराम मिलता है। या फिर अपने स्वभाव की कृत्रिमताओं को बदल कर प्राकृतिक जीवन पर उतरना पड़ता है उससे रोगवर्द्धक तत्त्व घट जाते हैं और शरीर को आराम मिलता है। यह एक वैज्ञानिक तरीका है और सही भी।
इच्छाएं भी उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य को होती हैं पर उनकी भी पूर्ति का एक वैज्ञानिक रास्ता है जैसे एक किसान ने कहा कि इस वर्ष 100 मन अनाज मिलता तो सारे कष्ट दूर हो जाते। अब इस इच्छा में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि अपने आप सौ मन अनाज पैदा करदे, वह हिम्मत किसी देवी या देवता में क्या धरती माता में नहीं जहां अन्न पैदा होता है। उसका एक तरीका है—किसान ने खेत जोता, पानी लगाया, बीज बोया, सिंचाई की, गुड़ाई की—जब दूसरे लोग आराम की सांस ले रहे थे वह तब भी खेतों से सिर धुन रहा था। भारी परिश्रम किया। समय पर सारी आवश्यक तैयारियां सम्पन्न कीं तब कहीं एक वर्ष में जाकर 100 मन गल्ला प्राप्त कर सका। तात्पर्य यह है कि पुरुषार्थ और परिश्रम के अभाव में किसी भी इच्छा की पूर्ति सम्भव नहीं। यदि कोई वैसा करने का दावा करता है तो वह ढोंगी के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। भगवान् भी नियम-व्यवस्था से बंधे हुए हैं। सूर्य, वरुण, चन्द्र, बृहस्पति आदि देवता भी चलने तक में नियमों से एक इन्च नहीं हट सकते तो फिर यह गांवों के देवता कहां से कुछ दे सकते हैं। यह थोड़ा सोचने और समझने की बात है।
पर मूढ़ अन्ध-विश्वासी जनता को क्या कहा जाय? श्रम और संयम की सीमा से बचने वाले आधे पागलों की भी कोई कमी नहीं, जो लोभ और लालच में फंसकर उसी प्रकार मूड़े जाते हैं जिस प्रकार कांटे लगे आटे के लालच में मछली प्राण गंवा देती है। उस गांव वाले के साथ कुछ धूर्त और स्वार्थी लोग भी मिल गये जिन्होंने हां में हां मिलाई कि उन्हें सचमुच उसकी भभूत से लाभ हुआ है। फिर क्या था चमत्कार की हवा सारे जिले में दूर-दूर तक फैल गई और मूर्ख जनता अपनी-अपनी कामनायें लेकर पहुंचने लगीं। कई लोग बीमारियां ठीक कराने के लिये अस्पताल छोड़कर भागे। गांव में मेला लग गया। हजारों आदमी वहां टूट पड़े।
उतने आदमियों के लिये न तो खाने और पीने के पानी का कोई प्रबन्ध और न उनकी टट्टी-पेशाब की सफाई का। जिसे जहां स्थान मिला उसने वहीं टट्टी कर दी। बासी, सूखा, डालडा-आलडा जो कुछ मिला, चबाया-खाया। अच्चा-कच्चा जो भी मिला उदरस्थ कर लिया और गन्दा पानी पिया तो फिर हैजा होना ही था। अशोक नगर में वहां से 39 व्यक्ति 7 दिन के अन्दर (10 नवम्बर से 16 नवम्बर तक) हैजे से प्रभावित होकर आये और अस्पताल में भर्ती हुए जिनमें से 5 की मृत्यु हो गई।
इसी प्रकार आस-पास के अस्पतालों में भी हैजे से प्रभावित लोग भर्ती हुए वहां भी काफी लोगों की मृत्यु हुई। विदिशा की रिपोर्ट है कि यहां 30-35 व्यक्ति हैजे से पीड़ित आये उनमें से 7 की मृत्यु हो चुकी है। बरखेड़ा ग्राम का एक आदमी वहां एक थाल भभूत भर कर ले आया और अपने यहां भभूत दान आरम्भ कर दिया। इन अन्ध-विश्वास फैलाने वालों को और कोई सफलता तो नहीं मिली पर फूल मालायें, नारियल और चढ़ाये के रूप में काफी धन हाथ अवश्य लगा।
रुगरू ग्राम के इस महात्मा का नाम रामजीलाल है और उसकी आयु बीस-बाईस वर्ष की है। इस आयु में तो प्रारम्भिक साधनायें ही नहीं पक पातीं, सिद्धि की बात और वह भी इस युग में सोचना तो बिलकुल ही गलत है। फिर यह युवक तो अनपढ़ और साधनाओं का क-ख भी नहीं जानता। वह ग्वाले का काम करता था और गाय-भैंस चराता था। गांव में एक महात्मा आये थे। उसे इसने दो-तीन दिन खाना-खिलाया। कुछ लोगों ने प्रचार कर दिया कि उन्हीं बाबा के प्रभाव से यह सिद्ध हो गया है। आजकल तो वह विदिशा में गिरफ्तार है। पर वहां पहुंचे लोगों का अनुमान है कि इस पाखण्ड के द्वारा उसने लगभग एक लाख रुपया कमाया। उसके साथ कुछ और भी लोग हैं।
मध्यप्रदेश प्रशासन ने विदिशा जिला के लोगों को इस भ्रामक प्रचार के लिये सावधान किया है कि रुगरू ग्राम के लालजीराम नामक ब्राह्मण को कोई दैवी शक्ति प्राप्त है। सूचना एवं प्रकाशन विभाग द्वारा प्रसारित एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि—‘‘उक्त व्यक्ति के बारे में सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों से जांच कराई गई तथा यह पाया गया कि इसके पास कोई दैवी शक्ति नहीं है और न ही कोई रोगी उसकी दवा अथवा मन्त्रों से स्वस्थ हुआ है।’’
फिर भी हजारों लोगों का वहां पहुंचना इस देश के लिये कलंक की ही बात है। लोगों को ऐसे अन्ध-विश्वास में पड़कर अपना सम, धन और जीवन नष्ट नहीं करना चाहिये।
रोग-शोक हो अथवा इच्छाएं, उनके समाधान का एक निश्चित तरीका है, बीमारी हो तो उसके लिये इलाज कराना उचित है दवाओं से एक अंश तक आराम मिलता है। या फिर अपने स्वभाव की कृत्रिमताओं को बदल कर प्राकृतिक जीवन पर उतरना पड़ता है उससे रोगवर्द्धक तत्त्व घट जाते हैं और शरीर को आराम मिलता है। यह एक वैज्ञानिक तरीका है और सही भी।
इच्छाएं भी उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य को होती हैं पर उनकी भी पूर्ति का एक वैज्ञानिक रास्ता है जैसे एक किसान ने कहा कि इस वर्ष 100 मन अनाज मिलता तो सारे कष्ट दूर हो जाते। अब इस इच्छा में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि अपने आप सौ मन अनाज पैदा करदे, वह हिम्मत किसी देवी या देवता में क्या धरती माता में नहीं जहां अन्न पैदा होता है। उसका एक तरीका है—किसान ने खेत जोता, पानी लगाया, बीज बोया, सिंचाई की, गुड़ाई की—जब दूसरे लोग आराम की सांस ले रहे थे वह तब भी खेतों से सिर धुन रहा था। भारी परिश्रम किया। समय पर सारी आवश्यक तैयारियां सम्पन्न कीं तब कहीं एक वर्ष में जाकर 100 मन गल्ला प्राप्त कर सका। तात्पर्य यह है कि पुरुषार्थ और परिश्रम के अभाव में किसी भी इच्छा की पूर्ति सम्भव नहीं। यदि कोई वैसा करने का दावा करता है तो वह ढोंगी के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। भगवान् भी नियम-व्यवस्था से बंधे हुए हैं। सूर्य, वरुण, चन्द्र, बृहस्पति आदि देवता भी चलने तक में नियमों से एक इन्च नहीं हट सकते तो फिर यह गांवों के देवता कहां से कुछ दे सकते हैं। यह थोड़ा सोचने और समझने की बात है।
पर मूढ़ अन्ध-विश्वासी जनता को क्या कहा जाय? श्रम और संयम की सीमा से बचने वाले आधे पागलों की भी कोई कमी नहीं, जो लोभ और लालच में फंसकर उसी प्रकार मूड़े जाते हैं जिस प्रकार कांटे लगे आटे के लालच में मछली प्राण गंवा देती है। उस गांव वाले के साथ कुछ धूर्त और स्वार्थी लोग भी मिल गये जिन्होंने हां में हां मिलाई कि उन्हें सचमुच उसकी भभूत से लाभ हुआ है। फिर क्या था चमत्कार की हवा सारे जिले में दूर-दूर तक फैल गई और मूर्ख जनता अपनी-अपनी कामनायें लेकर पहुंचने लगीं। कई लोग बीमारियां ठीक कराने के लिये अस्पताल छोड़कर भागे। गांव में मेला लग गया। हजारों आदमी वहां टूट पड़े।
उतने आदमियों के लिये न तो खाने और पीने के पानी का कोई प्रबन्ध और न उनकी टट्टी-पेशाब की सफाई का। जिसे जहां स्थान मिला उसने वहीं टट्टी कर दी। बासी, सूखा, डालडा-आलडा जो कुछ मिला, चबाया-खाया। अच्चा-कच्चा जो भी मिला उदरस्थ कर लिया और गन्दा पानी पिया तो फिर हैजा होना ही था। अशोक नगर में वहां से 39 व्यक्ति 7 दिन के अन्दर (10 नवम्बर से 16 नवम्बर तक) हैजे से प्रभावित होकर आये और अस्पताल में भर्ती हुए जिनमें से 5 की मृत्यु हो गई।
इसी प्रकार आस-पास के अस्पतालों में भी हैजे से प्रभावित लोग भर्ती हुए वहां भी काफी लोगों की मृत्यु हुई। विदिशा की रिपोर्ट है कि यहां 30-35 व्यक्ति हैजे से पीड़ित आये उनमें से 7 की मृत्यु हो चुकी है। बरखेड़ा ग्राम का एक आदमी वहां एक थाल भभूत भर कर ले आया और अपने यहां भभूत दान आरम्भ कर दिया। इन अन्ध-विश्वास फैलाने वालों को और कोई सफलता तो नहीं मिली पर फूल मालायें, नारियल और चढ़ाये के रूप में काफी धन हाथ अवश्य लगा।
रुगरू ग्राम के इस महात्मा का नाम रामजीलाल है और उसकी आयु बीस-बाईस वर्ष की है। इस आयु में तो प्रारम्भिक साधनायें ही नहीं पक पातीं, सिद्धि की बात और वह भी इस युग में सोचना तो बिलकुल ही गलत है। फिर यह युवक तो अनपढ़ और साधनाओं का क-ख भी नहीं जानता। वह ग्वाले का काम करता था और गाय-भैंस चराता था। गांव में एक महात्मा आये थे। उसे इसने दो-तीन दिन खाना-खिलाया। कुछ लोगों ने प्रचार कर दिया कि उन्हीं बाबा के प्रभाव से यह सिद्ध हो गया है। आजकल तो वह विदिशा में गिरफ्तार है। पर वहां पहुंचे लोगों का अनुमान है कि इस पाखण्ड के द्वारा उसने लगभग एक लाख रुपया कमाया। उसके साथ कुछ और भी लोग हैं।
मध्यप्रदेश प्रशासन ने विदिशा जिला के लोगों को इस भ्रामक प्रचार के लिये सावधान किया है कि रुगरू ग्राम के लालजीराम नामक ब्राह्मण को कोई दैवी शक्ति प्राप्त है। सूचना एवं प्रकाशन विभाग द्वारा प्रसारित एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि—‘‘उक्त व्यक्ति के बारे में सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों से जांच कराई गई तथा यह पाया गया कि इसके पास कोई दैवी शक्ति नहीं है और न ही कोई रोगी उसकी दवा अथवा मन्त्रों से स्वस्थ हुआ है।’’
फिर भी हजारों लोगों का वहां पहुंचना इस देश के लिये कलंक की ही बात है। लोगों को ऐसे अन्ध-विश्वास में पड़कर अपना सम, धन और जीवन नष्ट नहीं करना चाहिये।