Books - अंधविश्वास को उखाड़ फेंकिये
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Language: HINDI
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इन मूढ़ताओं का अन्त होना ही चाहिए
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यों मूर्खता प्रत्येक क्षेत्र में बुरी है पर धार्मिक क्षेत्र में फैली हुई भ्रष्टता को तो सबसे बुरे किस्म की माना जाना चाहिए। धर्म का उद्देश्य मनुष्य को अधिक पवित्र एवं सुसंस्कृत बनाना है। इसी प्रयोजन के लिए उसका इतना विशालकाय ढांचा खड़ा किया गया था। पर जब उसी क्षेत्र में ऐसी मूढ़ताएं पनपें जिससे मनुष्य अवनति के गर्त में गिरने लगे और कुकर्म करने लगे तो यह निस्सन्देह बड़ी चिन्ता की बात है।
सिद्धि और चमत्कारों के नाम पर जो अलौकिकता का कौतूहल खड़ा किया जाता है उसके पीछे सत्य का रंच मात्र में स्थान नहीं होता वरन् सारा का सारा प्रपंच ही भरा रहता है। इस तथ्य को जब तक भारतीय जनता हृदयंगम न करेगी तब तक इस मूढ़ता का दुष्परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ेगा। इस सन्दर्भ में कुछ खेदजनक समाचार नीचे पढ़िए।
करामाती बालक गिरफ्तार
मकराना (राजस्थान)। कुछ मक्कार व्यक्तियों ने यहां कुछ मील दूर एक सात वर्ष के बालक को रंगकर और तरह-तरह से प्रचार करके सिद्ध योगी प्रसिद्ध कर दिया। भभूत देकर अन्धों को आंखें देना, बड़े-बड़े रोग दूर कर देना, भाग्य बता देना आदि ऐसी विलक्षणता पूर्ण विशेषताओं के मनगढ़न्त किस्से गढ़ कर आस-पास के लोगों को सुनाने शुरू कर दिये। लोगों में यह विश्वास पैदा कर दिया कि उस बालक सिद्ध के जो दर्शन कर लेगा अथवा उसकी दी भभूत को प्राप्त कर लेगा उसके सारे दुःख दूर हो जायेंगे।
फिर क्या था अन्ध-विश्वासी ग्रामीण जनता चारों ओर से उमड़ने लगी और ‘सिद्ध बालक’ के स्थान पर इतनी भीड़ होने लगी कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा और उस चमत्कारी बालक को हिरासत में लेना पड़ा।
सभी जानते हैं कि इसी प्रकार की एक घटना पिछले वर्षों उड़ीसा प्रान्त के अंगुलि ग्राम में भी हुई थी, जहां अन्ध-विश्वासी भीड़ इतनी बढ़ी थी कि मलमूत्र की सफाई न हो सकने पर भयानक हैजा फैला था और हजारों आदमी बेमौत मर गये थे।
मनुष्यों को चमत्कारी या करामाती सिद्ध करने का धन्धा कुछ धूर्त लोग करते हैं और वे मन चाहे व्यक्ति को सिद्ध पुरुष घोषित करके उसकी आड़ में अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। जनता को ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है।
भैसों का बलिदान—‘‘यह भी एक पुन्य?’’
पौड़ी (गढ़वाल)। देवी देवताओं की पूजा की निर्मम प्रथा के अनुसार हर साल सैकड़ों वागियों (भैसों) का बलिदान होता है। इस वर्ष भी लगभग 100 वागियों को भेंट चढ़ा दिया गया।
वैसे तो यह अन्ध-विश्वास पूर्ण प्रथा ही अपने में बुरी है, फिर उससे बुरी वह रीति है जिसके अनुसार उनकी बलि दी जाती है।
अन्ध–विश्वासी गढ़वाली भैसों को खेतों में इकट्ठा करके उन्हें शराब पिलाते हैं और फिर डण्डे और खुखरी (तलवार) आदि हथियारों से उन्हें मार-मार कर भगाते हैं। यह मारना और भगाना तब तक जारी रहता है जब तक वे अबोध-अभागे पशु गिर कर मर नहीं जाते इसी निर्मम पशु-हत्या को वे देवताओं की बलि कहते हैं।
अकेला गढ़वाल ही नहीं कुमाऊं आदि अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में यह प्रथा प्रचलित है।
देवता ने बकरा नहीं खाया
खोकरा कलां (मुगेली)। देवता पर बकरा चढ़ाने के अवसर पर इस बार पण्डाजी ने बताया कि देवता बलि नहीं चाहते। जो करेगा उसी का देवता अनिष्ट करेंगे। पूजा करने वालों ने पण्डाजी के कथनानुसार बकरा लौटा दिया और नारियल आदि से पूजा की। पण्डाजी की इस सूझ-बूझ की सभी धर्म प्रेमियों ने सराहना की है और अन्यत्र के पण्डा लोगों से भी ऐसी ही धर्म बुद्धि का परिचय देने की प्रार्थना की है।
छिपा खजाना प्राप्त करने के लिए बालक की बलि
इटावा। यहां इस समाचार से बड़ी सनसनी फैल गई कि औरय्या गल्ला मंडी के एक धनलोलुप आढ़तिया ने गुप्त खजाना पाने के लिए पड़ोस के एक बालक की निर्मम बलि चढ़ा दी।
बताया जाता है कि औरय्या के एक आढ़ती ने स्वप्न देखा कि मकान के अन्धेरे तहखाने में बहुत बड़ा खजाना छिपा है। यदि नर बलि दे दी जाये तो वह प्राप्त हो सकता है।
लोभी आढ़तिया ने एक मक्कार तान्त्रिक की सलाह से पड़ोस के एक रिक्शा चालक रामा महाराज के दो वर्षीय भतीजे को किसी बदमाश से चुरवा लिया। तान्त्रिक ने घर में हवन किया और बड़ी निर्ममता पूर्वक क्रम से बच्चे की उंगलियां, हाथ, पैर, कान, जीभ आदि अंग प्रत्यंग काट-काट कर अग्नि में भेट कर दिये। बाद में उस बच्चे का लोथड़ा कसवे की खांड़ेराम तलैया में फेंक दिया गया।
रिक्शा चालक रामा महाराज ने भतीजे का पता न पाकर पुलिस में सूचना दी। उसके अनुनय विनय और सन्देह करने पर पुलिस ने आढ़तिया के घर की तलाशी ली। हवन के चिह्न हत्या के लक्षण और बच्चे के खून भरे कपड़े पाकर पुलिस ने आढ़तिया और तान्त्रिक ओझा को अपराध के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया।
ये बाबा लोग और उनके भक्तगण
कानपुर! भोगनीपुर थाने के अन्तर्गत नीगोही ग्राम में ग्रामीणों के दलों में भयानक संघर्ष हो गया जिसके परिणाम स्वरूप बहुत से लोग घायल हुए।
घटना इस प्रकार बताई जाती है कि उक्त ग्राम में एक मन्दिर है, जिसमें एक में बाबाजी अपना अधिकार जमाये बैठे थे। कुछ समय बाद हत्या के एक अभियोग में बाबाजी की कैद हो गई। अनुपस्थिति में एक अन्य बाबाजी ने उस मन्दिर पर अपना अधिकार जमाया।
किन्तु जब अभी हाल में, पुराने बाबाजी जेल से छूट कर आये तो उन्होंने पुनः नये बाबाजी से मन्दिर का कब्जा मांगा। कब्जा देने से इन्कार करने पर नये और पुराने बाबा में विवाद हो गया। वह विवाद यहां तक बढ़ गया कि गांव में नये व पुराने बाबा के अलग-अलग दो दल बन गये जिन्होंने लाठियों के भयानक संघर्ष से अपनी ‘‘गुरुभक्ति’’ का परिचय दिया।
बताया जाता है कि क्षेत्रीय पुलिस के हस्तक्षेप करने पर भक्त लोग उनसे भी भिड़ गये, जिसके फलस्वरूप आत्मरक्षा के लिये पुलिस को हवाई फायर तक करने पड़े हैं।
बालक की देवी को भेंट दी गई
रायबरेली, लाल गंज थाने के ग्राम शाहपुर में एक अबोध बालक अन्ध-विश्वास की भेंट चढ़ा दिया गया।
समाचार मिला है कि उक्त गांव के एक परिवार के दो व्यक्ति कहीं बन्दी हैं। उनकी कुशल और छुटकारे के लिये उक्त अन्ध-विश्वासी परिवार ने गांव के निवासी हनुमान यादव के पांच वर्षीय बालक को चुराकर मनौती के रूप में देवी को बलि दे दिया।
ग्राम-वासियों का कहना है कि इसी प्रकार यह परिवार पहले भी दो हरिजन बच्चों को भेट चढ़ाने की असफल कुचेष्टा कर चुका है।
धन्य है अन्ध-विश्वास
बिसाई (म.प्र.)। यहां अन्ध-विश्वास की एक घटना देखकर ऐसा मालूम होता है कि जैसे अन्ध-विश्वासों की पूजा करने के लिये हिन्दुस्तान की जनता उधार खाये फिरती है।
घटना का विवरण इस प्रकार है कि रामसहाय नामक एक स्थानीय किसान नवयुवक ने एक दिन स्वयं को साधू घोषित करके कहा कि उसे भर्तृहरि के दर्शन हो गये हैं। जो उसे एक ऐसा वरदान दे गये हैं जिससे वह अन्धों को आंखें, बांझों को बच्चे और सूखे कुओं को पानी दे सकता है।
बस फिर क्या था लोगों ने उसकी पूजा और प्रचार करना शुरू कर दिया जिसके फलस्वरूप उसके पास सैकड़ों आदमियों की भीड़ हर समय लगी रहने लगी, लोग इक्कों, तांगों और बसों पर आने लगे। फल-फूल और सैकड़ों रुपयों का चढ़ावा प्रतिदिन चढ़ने लगा। किन्तु किसी ने यह पता लगाना आवश्यक न समझा कि वह ऐसा कर भी सकता है या नहीं? कुछ समझदार समाज सुधारक वहां गये और उन्होंने वास्तविकता का पता लगाकर जनता को उस ढोंग का भण्डाफोड़ किया। फलस्वरूप उस पाखण्ड का अन्त हो गया।
सिद्धि और चमत्कारों के नाम पर जो अलौकिकता का कौतूहल खड़ा किया जाता है उसके पीछे सत्य का रंच मात्र में स्थान नहीं होता वरन् सारा का सारा प्रपंच ही भरा रहता है। इस तथ्य को जब तक भारतीय जनता हृदयंगम न करेगी तब तक इस मूढ़ता का दुष्परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ेगा। इस सन्दर्भ में कुछ खेदजनक समाचार नीचे पढ़िए।
करामाती बालक गिरफ्तार
मकराना (राजस्थान)। कुछ मक्कार व्यक्तियों ने यहां कुछ मील दूर एक सात वर्ष के बालक को रंगकर और तरह-तरह से प्रचार करके सिद्ध योगी प्रसिद्ध कर दिया। भभूत देकर अन्धों को आंखें देना, बड़े-बड़े रोग दूर कर देना, भाग्य बता देना आदि ऐसी विलक्षणता पूर्ण विशेषताओं के मनगढ़न्त किस्से गढ़ कर आस-पास के लोगों को सुनाने शुरू कर दिये। लोगों में यह विश्वास पैदा कर दिया कि उस बालक सिद्ध के जो दर्शन कर लेगा अथवा उसकी दी भभूत को प्राप्त कर लेगा उसके सारे दुःख दूर हो जायेंगे।
फिर क्या था अन्ध-विश्वासी ग्रामीण जनता चारों ओर से उमड़ने लगी और ‘सिद्ध बालक’ के स्थान पर इतनी भीड़ होने लगी कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा और उस चमत्कारी बालक को हिरासत में लेना पड़ा।
सभी जानते हैं कि इसी प्रकार की एक घटना पिछले वर्षों उड़ीसा प्रान्त के अंगुलि ग्राम में भी हुई थी, जहां अन्ध-विश्वासी भीड़ इतनी बढ़ी थी कि मलमूत्र की सफाई न हो सकने पर भयानक हैजा फैला था और हजारों आदमी बेमौत मर गये थे।
मनुष्यों को चमत्कारी या करामाती सिद्ध करने का धन्धा कुछ धूर्त लोग करते हैं और वे मन चाहे व्यक्ति को सिद्ध पुरुष घोषित करके उसकी आड़ में अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। जनता को ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है।
भैसों का बलिदान—‘‘यह भी एक पुन्य?’’
पौड़ी (गढ़वाल)। देवी देवताओं की पूजा की निर्मम प्रथा के अनुसार हर साल सैकड़ों वागियों (भैसों) का बलिदान होता है। इस वर्ष भी लगभग 100 वागियों को भेंट चढ़ा दिया गया।
वैसे तो यह अन्ध-विश्वास पूर्ण प्रथा ही अपने में बुरी है, फिर उससे बुरी वह रीति है जिसके अनुसार उनकी बलि दी जाती है।
अन्ध–विश्वासी गढ़वाली भैसों को खेतों में इकट्ठा करके उन्हें शराब पिलाते हैं और फिर डण्डे और खुखरी (तलवार) आदि हथियारों से उन्हें मार-मार कर भगाते हैं। यह मारना और भगाना तब तक जारी रहता है जब तक वे अबोध-अभागे पशु गिर कर मर नहीं जाते इसी निर्मम पशु-हत्या को वे देवताओं की बलि कहते हैं।
अकेला गढ़वाल ही नहीं कुमाऊं आदि अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में यह प्रथा प्रचलित है।
देवता ने बकरा नहीं खाया
खोकरा कलां (मुगेली)। देवता पर बकरा चढ़ाने के अवसर पर इस बार पण्डाजी ने बताया कि देवता बलि नहीं चाहते। जो करेगा उसी का देवता अनिष्ट करेंगे। पूजा करने वालों ने पण्डाजी के कथनानुसार बकरा लौटा दिया और नारियल आदि से पूजा की। पण्डाजी की इस सूझ-बूझ की सभी धर्म प्रेमियों ने सराहना की है और अन्यत्र के पण्डा लोगों से भी ऐसी ही धर्म बुद्धि का परिचय देने की प्रार्थना की है।
छिपा खजाना प्राप्त करने के लिए बालक की बलि
इटावा। यहां इस समाचार से बड़ी सनसनी फैल गई कि औरय्या गल्ला मंडी के एक धनलोलुप आढ़तिया ने गुप्त खजाना पाने के लिए पड़ोस के एक बालक की निर्मम बलि चढ़ा दी।
बताया जाता है कि औरय्या के एक आढ़ती ने स्वप्न देखा कि मकान के अन्धेरे तहखाने में बहुत बड़ा खजाना छिपा है। यदि नर बलि दे दी जाये तो वह प्राप्त हो सकता है।
लोभी आढ़तिया ने एक मक्कार तान्त्रिक की सलाह से पड़ोस के एक रिक्शा चालक रामा महाराज के दो वर्षीय भतीजे को किसी बदमाश से चुरवा लिया। तान्त्रिक ने घर में हवन किया और बड़ी निर्ममता पूर्वक क्रम से बच्चे की उंगलियां, हाथ, पैर, कान, जीभ आदि अंग प्रत्यंग काट-काट कर अग्नि में भेट कर दिये। बाद में उस बच्चे का लोथड़ा कसवे की खांड़ेराम तलैया में फेंक दिया गया।
रिक्शा चालक रामा महाराज ने भतीजे का पता न पाकर पुलिस में सूचना दी। उसके अनुनय विनय और सन्देह करने पर पुलिस ने आढ़तिया के घर की तलाशी ली। हवन के चिह्न हत्या के लक्षण और बच्चे के खून भरे कपड़े पाकर पुलिस ने आढ़तिया और तान्त्रिक ओझा को अपराध के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया।
ये बाबा लोग और उनके भक्तगण
कानपुर! भोगनीपुर थाने के अन्तर्गत नीगोही ग्राम में ग्रामीणों के दलों में भयानक संघर्ष हो गया जिसके परिणाम स्वरूप बहुत से लोग घायल हुए।
घटना इस प्रकार बताई जाती है कि उक्त ग्राम में एक मन्दिर है, जिसमें एक में बाबाजी अपना अधिकार जमाये बैठे थे। कुछ समय बाद हत्या के एक अभियोग में बाबाजी की कैद हो गई। अनुपस्थिति में एक अन्य बाबाजी ने उस मन्दिर पर अपना अधिकार जमाया।
किन्तु जब अभी हाल में, पुराने बाबाजी जेल से छूट कर आये तो उन्होंने पुनः नये बाबाजी से मन्दिर का कब्जा मांगा। कब्जा देने से इन्कार करने पर नये और पुराने बाबा में विवाद हो गया। वह विवाद यहां तक बढ़ गया कि गांव में नये व पुराने बाबा के अलग-अलग दो दल बन गये जिन्होंने लाठियों के भयानक संघर्ष से अपनी ‘‘गुरुभक्ति’’ का परिचय दिया।
बताया जाता है कि क्षेत्रीय पुलिस के हस्तक्षेप करने पर भक्त लोग उनसे भी भिड़ गये, जिसके फलस्वरूप आत्मरक्षा के लिये पुलिस को हवाई फायर तक करने पड़े हैं।
बालक की देवी को भेंट दी गई
रायबरेली, लाल गंज थाने के ग्राम शाहपुर में एक अबोध बालक अन्ध-विश्वास की भेंट चढ़ा दिया गया।
समाचार मिला है कि उक्त गांव के एक परिवार के दो व्यक्ति कहीं बन्दी हैं। उनकी कुशल और छुटकारे के लिये उक्त अन्ध-विश्वासी परिवार ने गांव के निवासी हनुमान यादव के पांच वर्षीय बालक को चुराकर मनौती के रूप में देवी को बलि दे दिया।
ग्राम-वासियों का कहना है कि इसी प्रकार यह परिवार पहले भी दो हरिजन बच्चों को भेट चढ़ाने की असफल कुचेष्टा कर चुका है।
धन्य है अन्ध-विश्वास
बिसाई (म.प्र.)। यहां अन्ध-विश्वास की एक घटना देखकर ऐसा मालूम होता है कि जैसे अन्ध-विश्वासों की पूजा करने के लिये हिन्दुस्तान की जनता उधार खाये फिरती है।
घटना का विवरण इस प्रकार है कि रामसहाय नामक एक स्थानीय किसान नवयुवक ने एक दिन स्वयं को साधू घोषित करके कहा कि उसे भर्तृहरि के दर्शन हो गये हैं। जो उसे एक ऐसा वरदान दे गये हैं जिससे वह अन्धों को आंखें, बांझों को बच्चे और सूखे कुओं को पानी दे सकता है।
बस फिर क्या था लोगों ने उसकी पूजा और प्रचार करना शुरू कर दिया जिसके फलस्वरूप उसके पास सैकड़ों आदमियों की भीड़ हर समय लगी रहने लगी, लोग इक्कों, तांगों और बसों पर आने लगे। फल-फूल और सैकड़ों रुपयों का चढ़ावा प्रतिदिन चढ़ने लगा। किन्तु किसी ने यह पता लगाना आवश्यक न समझा कि वह ऐसा कर भी सकता है या नहीं? कुछ समझदार समाज सुधारक वहां गये और उन्होंने वास्तविकता का पता लगाकर जनता को उस ढोंग का भण्डाफोड़ किया। फलस्वरूप उस पाखण्ड का अन्त हो गया।