Books - अंधविश्वास को उखाड़ फेंकिये
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Language: HINDI
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सिद्धि की इस मूढ़ता से कोरे भले
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फीरोजपुर की खबर है। एक 60 वर्षीय वृद्ध ने अपने ही डेढ़ वर्षीय पोते की नृशंस हत्या कर दी। पुलिस ने बुड्ढे को बड़ा उत्पात करते हुये गिरफ्तार किया।
हत्या का कारण कोई लोभ या लालच नहीं। कोई द्वेष रंजिश—सो भी नहीं, बच्चा कुल डेढ़ ही वर्ष का तो था। अपने ही बेटे का बेटा, उससे क्या द्वेष दुश्मनी होती? कोई ऐसा भी कारण नहीं था जिससे यह जान पड़ता कि बुड्ढे को क्रोध आ गया होगा और आवेश में हत्या कर दी होगी।
कारण गम्भीर है। उससे आज के विज्ञान और विचारशील युग में लोगों का क्षोभ और ऐसी धर्म निष्ठा से उद्विग्न होना स्वाभाविक ही है। उसे मूढ़ता और अन्ध-विश्वास की पराकाष्ठा ही कहेंगे जिसके कारण एक भोले-भाले बच्चे की हत्या कर दी गई।
बुड्ढा प्रारम्भ से ही मन्त्र-जन्त्र पर विश्वास करता था। उसके मन में बहुत पहले से ऐसी महत्वाकांक्षा थी कि कोई चमत्कारिक सिद्धि प्राप्त करले जिससे खूब धन और सम्मान का सुख प्राप्त कर सके। इस विचार से वह एक बार गांव के एक पढ़े लिखे व्यक्ति से मिला। उन सज्जन की धर्म में अटूट आस्था थी वे नियमित रूप से भगवान का भजन भी करते थे।
वृद्ध की इच्छा पर वे एक बार हंसे। फिर उसे समझाया—बाबा! ईश्वर का सम्बन्ध अन्तःकरण की पवित्रता, सच्चाई और ईमानदारी से है। हम भगवान् का ध्यान इसलिये करते हैं कि मन पाप से, लौकिक बुराइयों से बचा रहे। न करेंगे पाप, न होगी किसी से आसक्ति तो फिर जीवन में सुख शान्ति भी रहेगी और व्यवस्था भी। मुझे इस तरह की ही ईश्वर उपासना का लाभ मिला है। चमत्कार की बात भूलकर तुम भी इसी रूप में भगवान् का भजन किया करो, क्या इतना बड़ा संसार उसका चमत्कार नहीं?
अन्ध–विश्वास मन में जमा होता है तो सीधी सच्ची बात भी समझ में नहीं आती। बुड्ढे को बात जंची नहीं वह और-और लोगों के पास जाता रहा। कई गन्डे ताबीज के प्रयोग भी कुछ तान्त्रिक गुरुओं ने बताये। वह निष्फल रहे तब भी उसकी समझ में यह नहीं आया कि इस ढोंग से बचकर जीवन के अन्तिम दिन आत्म–कल्याण में बिताये। व्यर्थ की महत्त्वाकांक्षा का विचार त्यागकर अपने अगले जीवन की चारित्रिक और आध्यात्मिक तैयारी करें।
सो तो हुआ नहीं, सिद्धि का भूत और प्रचण्ड रूप धारण कर गया। माना सिद्धि जैसी कोई वस्तु होती होगी तो उसके महत्त्व और मूल्य के हिसाब से साधन कठिनाई और कुछ समय भी लगता होगा पर यहां तो उतावली थी, मूढ़ता थी, कोई विचार तो था नहीं। बाबा के मन में तुरन्त सिद्ध बनने की हड़बड़ थी। उसी के लिये पागल बने इधर-उधर भागते फिरे।
किसी ने उन्हें कह दिया कि यदि—आप अपने बच्चे का खून पीकर अमुक साधन करें तो आपको तुरन्त सिद्धि मिल सकती है। बुड्ढे की समझ में तब भी सन्देह न हुआ। आये दिन हत्यायें होती हैं। हत्यारे जेल में ठूंस दिये जाते हैं, कुछ को पाप का संताप ही खा जाता है। पागल और विक्षिप्त हो जाते हैं। भला कोई हत्यारा सिद्ध हुआ है? बुड्ढे के मन इतना भी न समाया।
हत्या का कारण कोई लोभ या लालच नहीं। कोई द्वेष रंजिश—सो भी नहीं, बच्चा कुल डेढ़ ही वर्ष का तो था। अपने ही बेटे का बेटा, उससे क्या द्वेष दुश्मनी होती? कोई ऐसा भी कारण नहीं था जिससे यह जान पड़ता कि बुड्ढे को क्रोध आ गया होगा और आवेश में हत्या कर दी होगी।
कारण गम्भीर है। उससे आज के विज्ञान और विचारशील युग में लोगों का क्षोभ और ऐसी धर्म निष्ठा से उद्विग्न होना स्वाभाविक ही है। उसे मूढ़ता और अन्ध-विश्वास की पराकाष्ठा ही कहेंगे जिसके कारण एक भोले-भाले बच्चे की हत्या कर दी गई।
बुड्ढा प्रारम्भ से ही मन्त्र-जन्त्र पर विश्वास करता था। उसके मन में बहुत पहले से ऐसी महत्वाकांक्षा थी कि कोई चमत्कारिक सिद्धि प्राप्त करले जिससे खूब धन और सम्मान का सुख प्राप्त कर सके। इस विचार से वह एक बार गांव के एक पढ़े लिखे व्यक्ति से मिला। उन सज्जन की धर्म में अटूट आस्था थी वे नियमित रूप से भगवान का भजन भी करते थे।
वृद्ध की इच्छा पर वे एक बार हंसे। फिर उसे समझाया—बाबा! ईश्वर का सम्बन्ध अन्तःकरण की पवित्रता, सच्चाई और ईमानदारी से है। हम भगवान् का ध्यान इसलिये करते हैं कि मन पाप से, लौकिक बुराइयों से बचा रहे। न करेंगे पाप, न होगी किसी से आसक्ति तो फिर जीवन में सुख शान्ति भी रहेगी और व्यवस्था भी। मुझे इस तरह की ही ईश्वर उपासना का लाभ मिला है। चमत्कार की बात भूलकर तुम भी इसी रूप में भगवान् का भजन किया करो, क्या इतना बड़ा संसार उसका चमत्कार नहीं?
अन्ध–विश्वास मन में जमा होता है तो सीधी सच्ची बात भी समझ में नहीं आती। बुड्ढे को बात जंची नहीं वह और-और लोगों के पास जाता रहा। कई गन्डे ताबीज के प्रयोग भी कुछ तान्त्रिक गुरुओं ने बताये। वह निष्फल रहे तब भी उसकी समझ में यह नहीं आया कि इस ढोंग से बचकर जीवन के अन्तिम दिन आत्म–कल्याण में बिताये। व्यर्थ की महत्त्वाकांक्षा का विचार त्यागकर अपने अगले जीवन की चारित्रिक और आध्यात्मिक तैयारी करें।
सो तो हुआ नहीं, सिद्धि का भूत और प्रचण्ड रूप धारण कर गया। माना सिद्धि जैसी कोई वस्तु होती होगी तो उसके महत्त्व और मूल्य के हिसाब से साधन कठिनाई और कुछ समय भी लगता होगा पर यहां तो उतावली थी, मूढ़ता थी, कोई विचार तो था नहीं। बाबा के मन में तुरन्त सिद्ध बनने की हड़बड़ थी। उसी के लिये पागल बने इधर-उधर भागते फिरे।
किसी ने उन्हें कह दिया कि यदि—आप अपने बच्चे का खून पीकर अमुक साधन करें तो आपको तुरन्त सिद्धि मिल सकती है। बुड्ढे की समझ में तब भी सन्देह न हुआ। आये दिन हत्यायें होती हैं। हत्यारे जेल में ठूंस दिये जाते हैं, कुछ को पाप का संताप ही खा जाता है। पागल और विक्षिप्त हो जाते हैं। भला कोई हत्यारा सिद्ध हुआ है? बुड्ढे के मन इतना भी न समाया।