Books - अंधविश्वास को उखाड़ फेंकिये
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Language: HINDI
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जन्तर-मन्तर के चक्कर में बालक की हत्या की गई
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प्रसंग चन्दौसी का है। उस समय नगर भर में सनसनी फैल गई—जब एक स्त्री के पास से उसकी अटैची में एक बालक का शव बरामद किया गया।
स्त्री कैथल दरवाजे के पास रहती थी। बालक आंखें खोलने के पश्चात् केवल आठ वर्ष ही देख पाया था—इस शस्य श्यामला भूमि को! बालक का प्रत्येक अंग अलग-अलग काट दिया गया था।
और यह सब किया किसलिए गया? यह जानकर आपको और भी आश्चर्य होगा! उस स्त्री के कोई संतान न थी। चाहिए यह था कि इसके लिए वह किसी अच्छे डाक्टर या अस्पताल की शरण लेती, किन्तु क्या कहें अपने देश में फैले इस अन्ध विश्वास को, जो अशिक्षित लोगों की मनोभूमि में गहराई तक जड़ जमाये बैठा है। टोना टोटका तथा जन्तर-मन्तर के चक्कर में लोग आए दिन उल्टे सीधे काम करते और दुष्परिणाम भुगतते देखे जाते हैं।
यह स्त्री भी किसी ओझा के पास गई। ओझा ने बताया कि वह किसी के बालक का वध करे तो उसे सन्तान प्राप्त हो सकती है। कितनी अविवेकपूर्ण बात है। जबकि सभी ईश्वर के इस मोटे से नियम को जानते तथा मानते हैं कि बुरे काम का बुरा परिणाम होता है और अच्छे काम का अच्छा। फिर भला यह कैसे सम्भव है कि किसी का बच्चा मारकर सन्तान की प्राप्ति हो सके?
कुछ पुत्रेषणा तथा कुछ अन्ध विश्वास। दोनों ने मिलकर उसे वह जघन्य कार्य करने को प्रेरित किया जो एक नारी के लिये महान् कलंक ही साबित हुआ।
अखबार में छपी घटना के अनुसार—जब वह अटैची लेकर रिक्शे में बैठकर स्टेशन जाने लगी तो कुछ लड़कों ने उसे टोक दिया। चोर का दिल ही कितना? बदशकुनी समझ कर वह लौट पड़ी और घर में आकर किवाड़ बन्द कर लिए। यह सब मुहल्ले वालों को कुछ अजीब-सा लगा और उन्होंने छत से झांक कर देखा कि वह क्या कर रही है। उस समय वह खून से रंगी हुई धोती धो रही थी।
तत्काल ही पुलिस को खबर दी गई और घटना का रहस्योद्घाटन हुआ।
तलाशी लेने पर अटैची में से वह विकृत शव निकला। बालक को निर्ममता पूर्वक काटा गया था। बालक उसकी जिठानी का था जो पिछले तीन दिनों से गायब था।
देखने वालों ने देखा और रोमांच हो आया। महसूस करने वालों ने महसूस किया और आंखों से आंसू भर आये। कुछ ने उसे धिक्कारा—कुछ ने बुरा-भला कहा। कानून ने अपना काम किया और उसे बन्दी बना लिया गया।
किन्तु इस सबके पश्चात् भी एक प्रश्न रह जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? ममता, करुणा, दया, क्षमा, स्नेह की मूर्ति नारी इतनी कठोर कैसे हो गई?
यह परिणाम है हिन्दू जाति के कुछ अविवेकी लोगों में व्याप्त पशु बलि की प्रथा का। उससे यह भावना परिपुष्ट होती है कि किसी की जान लेकर भी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं तथा मनवांछित फल देते हैं। पशुओं का खून देखते-देखते, मानव, मानव का खून देखने तक का अभ्यस्त हो गया और इस प्रकार की घटनाओं का क्रम चल पड़ा। निज का स्वार्थ इन कुकर्मों के प्रति और भी आसक्ति उत्पन्न कर देता है। आवश्यकता है कि इन प्रकार की अन्ध मान्यताओं, गलत परम्पराओं तथा मूढ़ताओं को शीघ्र हटाया तथा मिटाया जाय।
स्त्री कैथल दरवाजे के पास रहती थी। बालक आंखें खोलने के पश्चात् केवल आठ वर्ष ही देख पाया था—इस शस्य श्यामला भूमि को! बालक का प्रत्येक अंग अलग-अलग काट दिया गया था।
और यह सब किया किसलिए गया? यह जानकर आपको और भी आश्चर्य होगा! उस स्त्री के कोई संतान न थी। चाहिए यह था कि इसके लिए वह किसी अच्छे डाक्टर या अस्पताल की शरण लेती, किन्तु क्या कहें अपने देश में फैले इस अन्ध विश्वास को, जो अशिक्षित लोगों की मनोभूमि में गहराई तक जड़ जमाये बैठा है। टोना टोटका तथा जन्तर-मन्तर के चक्कर में लोग आए दिन उल्टे सीधे काम करते और दुष्परिणाम भुगतते देखे जाते हैं।
यह स्त्री भी किसी ओझा के पास गई। ओझा ने बताया कि वह किसी के बालक का वध करे तो उसे सन्तान प्राप्त हो सकती है। कितनी अविवेकपूर्ण बात है। जबकि सभी ईश्वर के इस मोटे से नियम को जानते तथा मानते हैं कि बुरे काम का बुरा परिणाम होता है और अच्छे काम का अच्छा। फिर भला यह कैसे सम्भव है कि किसी का बच्चा मारकर सन्तान की प्राप्ति हो सके?
कुछ पुत्रेषणा तथा कुछ अन्ध विश्वास। दोनों ने मिलकर उसे वह जघन्य कार्य करने को प्रेरित किया जो एक नारी के लिये महान् कलंक ही साबित हुआ।
अखबार में छपी घटना के अनुसार—जब वह अटैची लेकर रिक्शे में बैठकर स्टेशन जाने लगी तो कुछ लड़कों ने उसे टोक दिया। चोर का दिल ही कितना? बदशकुनी समझ कर वह लौट पड़ी और घर में आकर किवाड़ बन्द कर लिए। यह सब मुहल्ले वालों को कुछ अजीब-सा लगा और उन्होंने छत से झांक कर देखा कि वह क्या कर रही है। उस समय वह खून से रंगी हुई धोती धो रही थी।
तत्काल ही पुलिस को खबर दी गई और घटना का रहस्योद्घाटन हुआ।
तलाशी लेने पर अटैची में से वह विकृत शव निकला। बालक को निर्ममता पूर्वक काटा गया था। बालक उसकी जिठानी का था जो पिछले तीन दिनों से गायब था।
देखने वालों ने देखा और रोमांच हो आया। महसूस करने वालों ने महसूस किया और आंखों से आंसू भर आये। कुछ ने उसे धिक्कारा—कुछ ने बुरा-भला कहा। कानून ने अपना काम किया और उसे बन्दी बना लिया गया।
किन्तु इस सबके पश्चात् भी एक प्रश्न रह जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? ममता, करुणा, दया, क्षमा, स्नेह की मूर्ति नारी इतनी कठोर कैसे हो गई?
यह परिणाम है हिन्दू जाति के कुछ अविवेकी लोगों में व्याप्त पशु बलि की प्रथा का। उससे यह भावना परिपुष्ट होती है कि किसी की जान लेकर भी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं तथा मनवांछित फल देते हैं। पशुओं का खून देखते-देखते, मानव, मानव का खून देखने तक का अभ्यस्त हो गया और इस प्रकार की घटनाओं का क्रम चल पड़ा। निज का स्वार्थ इन कुकर्मों के प्रति और भी आसक्ति उत्पन्न कर देता है। आवश्यकता है कि इन प्रकार की अन्ध मान्यताओं, गलत परम्पराओं तथा मूढ़ताओं को शीघ्र हटाया तथा मिटाया जाय।