Books - अंधविश्वास को उखाड़ फेंकिये
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Language: HINDI
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चोर—‘जिन्न’ बन बैठा
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घटना छत्तीसगढ़ की है। सन् 1965 के जुलाई का महीना था। धमधा के निकट ननकुट्टी ग्राम में कुछ लोगों द्वारा यह अफवाह फैलाई गई कि यहां एक जिन्न ने दो स्त्रियों को बेहोश करके उनके साथ बलात्कार किया है। फिर क्या था? अफवाह बिजली के समान फैलना आरंभ हुआ और फैलते-फैलते दुर्ग के गंजपारा स्थान में आकर उसने अपना विस्तृत रूप धारण किया।
अफवाह के लगभग 10 दिन बाद गंजपारा की कुछ महिलाएं रात में शौच हेतु बाहर गईं। उन्हें एक पीपल के वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति बैठा दिखाई दिया जो वहीं का नामी चोर था और जो पुलिस के डर से छिप-छिपकर अपना जीवनयापन कर रहा था। ‘ननकुट्टी वाला जिन्न यहां भी आ गया—’ यह समझकर औरतों ने जोर का चिल्लाना आरंभ किया और अपने प्राण रक्षा की दुहाई दी। शोर सुनते ही लोग वहां आ पहुंचे पर अब तो जिन्न वहां से गायब था। गंजपारा में जिन्न देखे जाने की अफवाह धीरे-धीरे पूरे शहर में फैल गई। पूरे शहर का वातावरण एक दो दिन के अन्दर ही पूरा जिन्नमय बन गया।
एक पान की दुकान से लेकर सरकारी कार्यालयों तक और सब्जी मंडी से लेकर विद्यालयों तक बस केवल जिन्न की ही चर्चा। हर गली, हर चौराहें और हर सड़क पर जहां देखिये दो चार आदमी एकत्र होकर उसी जिन्न की चर्चा में लगे हुए हैं। बच्चे और स्त्रियों की बात तो छोड़िये पढ़े-लिखे और समझदार कहलाने वाले व्यक्तियों में भी हर समय वही बात चलने लगी। लोग इस तरह से बात करने लगे मानो उनने सब कुछ घटना स्वयं अपनी आंखों देखी हो। कुछ लोगों ने तो बात को यहां तक बढ़ा दिया कि अनेक ऐसी औरतें जिन्हें जिन्न ने परेशान किया, अस्पताल में बेहोश पड़ी हुई हैं। अस्पताल और पुलिस स्टेशन के फोन की घण्टी लगातार बजने लगी और हर बार फोन पर यही जानकारी मांगी जाने लगी कि बेहोश पड़ी हुई स्त्रियों की क्या स्थिति है? थाने और अस्पताल के कर्मचारियों ने लोगों को समझाने का बहुत कुछ प्रयास किया कि सारे समाचार मिथ्या हैं। कोई भी इस तरह की स्त्री पुलिस या अस्पताल में नहीं आई हैं। फिर भी चर्चा और अफवाह घटने के बजाय बढ़ती ही रहीं।
लोगों ने तीन-तीन रात जगकर अपने घर की औरतों की रखवाली की। इस भयावह वातावरण से वे इतने भयभीत हो उठे कि कहीं जिन्न उन लोगों की औरतों को ही न उड़ा ले जाय। इस अन्ध विश्वास भरी घटना का लाभ फकीरों, सन्त-साधुओं और बाजीगरों ने खूब उठाया। उन्होंने अपने जन्तर-मन्तर संभाले और महिलाओं की रक्षा हेतु उन्हें झाड़ना, फूंकना, ताबीज बनाना और भभूत आदि देना आरंभ कर दिया। उनका कहना था कि इससे जिन्न का आक्रमण नहीं हो सकता। लोगों ने अपनी रक्षा हेतु आंखें मूंद-मूंदकर धन बहाया और कमाया उनने जिनके पास फितरत भरी बुद्धि थी। अवसर का लाभ उठाकर एक दूकानदार ने भी खूब कमाया। उसने अपनी एक बोरा हल्दी ही पुड़िया बना-बनाकर महंगे दर पर लोगों को बेच डाली। उसने कहा—‘इसमें एक बाबा ने मन्त्र फूंक दिया है और इसे जो पास में रखेगा जिन्न उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
जिन्न की गर्म अफवाह ने एक पुलिस सिपाही को भी लपेट में लेकर उसकी नौकरी ही ले ली। वह कलेक्टर के बंगले पर ड्यूटी कर रहा था। उसने अफवाह उड़ाई कि किसी भूत ने पटक-पटककर खूब उसे पीटा है। सचाई का पता लगाया गया तो असलियत साफ हुई। अफवाह फैलाने और ड्यूटी के समय सोये रहने के अपराध में उक्त सिपाही को एस.पी. श्री धारकर ने नौकरी से बरखास्त कर दिया।
बड़ी प्रयत्न के बाद पुलिस ने उस नामी चोर को पकड़ लिया जो उस रात पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा था और जिसे देखकर जिन्न की अफवाह फैली थी। पूछने पर चोर ने इस बात को स्वीकार भी किया। पुलिस ने यह ऐलान किया कि उक्त जिन्न पकड़ लिया गया है और अब किसी को तनिक भी डरने की आवश्यकता नहीं है। हजारों की भीड़ जिन्न को देखने के लिए पुलिस स्टेशन और उसके आस-पास एकत्र हो गई। पुलिस अधिकारियों ने लोगों को यह बार-बार समझाया कि वह जिन्न नहीं वरन् चलता-फिरता आदमी है। परन्तु लोग भला इतना जल्दी विश्वास कैसे कर लेते? भीड़ जिन्न देखने के लिए उमड़ती ही जा रही थी। अन्त में पुलिस अधिकारियों ने जनता का भ्रम दूर करने के लिए चोर को पुलिस की एक ऊंची गाड़ी पर लाकर खड़ा किया और सबको दिखलाया भी। फिर भी बहुतों का भ्रम दूर न हुआ और घर वापिस लौटते समय लोग आपस में काना-फूंसी करते ही रहे कि असली जिन्न को कहीं और छिपा दिया गया है और यह तो कोई दूसरा नकली दिखलाया गया है।
भूत-पलीत को ही यदि सही मान लिया जाय तो वह कोई ऐसी शक्तिशाली सत्ता नहीं जो मनुष्य का प्राण ले लेवे। परन्तु हां! भय का भूत अवश्य ऐसा है जिसमें समझदारी और विवेकशीलता से यदि काम न किया गया तो ऐसे ही नुकसान सहने पड़ते हैं और न जाने क्या से क्या भोगना पड़ता है।
असंख्यों अन्ध-विश्वासी और अविवेकी लोग इसी प्रकार भ्रम ग्रस्त होकर आये दिन ऐसी ही विडम्बनाओं के शिकार होते रहते हैं। भगवान् न जाने उन्हें कब सुबुद्धि देगा।
अफवाह के लगभग 10 दिन बाद गंजपारा की कुछ महिलाएं रात में शौच हेतु बाहर गईं। उन्हें एक पीपल के वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति बैठा दिखाई दिया जो वहीं का नामी चोर था और जो पुलिस के डर से छिप-छिपकर अपना जीवनयापन कर रहा था। ‘ननकुट्टी वाला जिन्न यहां भी आ गया—’ यह समझकर औरतों ने जोर का चिल्लाना आरंभ किया और अपने प्राण रक्षा की दुहाई दी। शोर सुनते ही लोग वहां आ पहुंचे पर अब तो जिन्न वहां से गायब था। गंजपारा में जिन्न देखे जाने की अफवाह धीरे-धीरे पूरे शहर में फैल गई। पूरे शहर का वातावरण एक दो दिन के अन्दर ही पूरा जिन्नमय बन गया।
एक पान की दुकान से लेकर सरकारी कार्यालयों तक और सब्जी मंडी से लेकर विद्यालयों तक बस केवल जिन्न की ही चर्चा। हर गली, हर चौराहें और हर सड़क पर जहां देखिये दो चार आदमी एकत्र होकर उसी जिन्न की चर्चा में लगे हुए हैं। बच्चे और स्त्रियों की बात तो छोड़िये पढ़े-लिखे और समझदार कहलाने वाले व्यक्तियों में भी हर समय वही बात चलने लगी। लोग इस तरह से बात करने लगे मानो उनने सब कुछ घटना स्वयं अपनी आंखों देखी हो। कुछ लोगों ने तो बात को यहां तक बढ़ा दिया कि अनेक ऐसी औरतें जिन्हें जिन्न ने परेशान किया, अस्पताल में बेहोश पड़ी हुई हैं। अस्पताल और पुलिस स्टेशन के फोन की घण्टी लगातार बजने लगी और हर बार फोन पर यही जानकारी मांगी जाने लगी कि बेहोश पड़ी हुई स्त्रियों की क्या स्थिति है? थाने और अस्पताल के कर्मचारियों ने लोगों को समझाने का बहुत कुछ प्रयास किया कि सारे समाचार मिथ्या हैं। कोई भी इस तरह की स्त्री पुलिस या अस्पताल में नहीं आई हैं। फिर भी चर्चा और अफवाह घटने के बजाय बढ़ती ही रहीं।
लोगों ने तीन-तीन रात जगकर अपने घर की औरतों की रखवाली की। इस भयावह वातावरण से वे इतने भयभीत हो उठे कि कहीं जिन्न उन लोगों की औरतों को ही न उड़ा ले जाय। इस अन्ध विश्वास भरी घटना का लाभ फकीरों, सन्त-साधुओं और बाजीगरों ने खूब उठाया। उन्होंने अपने जन्तर-मन्तर संभाले और महिलाओं की रक्षा हेतु उन्हें झाड़ना, फूंकना, ताबीज बनाना और भभूत आदि देना आरंभ कर दिया। उनका कहना था कि इससे जिन्न का आक्रमण नहीं हो सकता। लोगों ने अपनी रक्षा हेतु आंखें मूंद-मूंदकर धन बहाया और कमाया उनने जिनके पास फितरत भरी बुद्धि थी। अवसर का लाभ उठाकर एक दूकानदार ने भी खूब कमाया। उसने अपनी एक बोरा हल्दी ही पुड़िया बना-बनाकर महंगे दर पर लोगों को बेच डाली। उसने कहा—‘इसमें एक बाबा ने मन्त्र फूंक दिया है और इसे जो पास में रखेगा जिन्न उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
जिन्न की गर्म अफवाह ने एक पुलिस सिपाही को भी लपेट में लेकर उसकी नौकरी ही ले ली। वह कलेक्टर के बंगले पर ड्यूटी कर रहा था। उसने अफवाह उड़ाई कि किसी भूत ने पटक-पटककर खूब उसे पीटा है। सचाई का पता लगाया गया तो असलियत साफ हुई। अफवाह फैलाने और ड्यूटी के समय सोये रहने के अपराध में उक्त सिपाही को एस.पी. श्री धारकर ने नौकरी से बरखास्त कर दिया।
बड़ी प्रयत्न के बाद पुलिस ने उस नामी चोर को पकड़ लिया जो उस रात पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा था और जिसे देखकर जिन्न की अफवाह फैली थी। पूछने पर चोर ने इस बात को स्वीकार भी किया। पुलिस ने यह ऐलान किया कि उक्त जिन्न पकड़ लिया गया है और अब किसी को तनिक भी डरने की आवश्यकता नहीं है। हजारों की भीड़ जिन्न को देखने के लिए पुलिस स्टेशन और उसके आस-पास एकत्र हो गई। पुलिस अधिकारियों ने लोगों को यह बार-बार समझाया कि वह जिन्न नहीं वरन् चलता-फिरता आदमी है। परन्तु लोग भला इतना जल्दी विश्वास कैसे कर लेते? भीड़ जिन्न देखने के लिए उमड़ती ही जा रही थी। अन्त में पुलिस अधिकारियों ने जनता का भ्रम दूर करने के लिए चोर को पुलिस की एक ऊंची गाड़ी पर लाकर खड़ा किया और सबको दिखलाया भी। फिर भी बहुतों का भ्रम दूर न हुआ और घर वापिस लौटते समय लोग आपस में काना-फूंसी करते ही रहे कि असली जिन्न को कहीं और छिपा दिया गया है और यह तो कोई दूसरा नकली दिखलाया गया है।
भूत-पलीत को ही यदि सही मान लिया जाय तो वह कोई ऐसी शक्तिशाली सत्ता नहीं जो मनुष्य का प्राण ले लेवे। परन्तु हां! भय का भूत अवश्य ऐसा है जिसमें समझदारी और विवेकशीलता से यदि काम न किया गया तो ऐसे ही नुकसान सहने पड़ते हैं और न जाने क्या से क्या भोगना पड़ता है।
असंख्यों अन्ध-विश्वासी और अविवेकी लोग इसी प्रकार भ्रम ग्रस्त होकर आये दिन ऐसी ही विडम्बनाओं के शिकार होते रहते हैं। भगवान् न जाने उन्हें कब सुबुद्धि देगा।