Books - अंधविश्वास को उखाड़ फेंकिये
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Language: HINDI
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साधु बाबाओं के कुचक्र में पिसी अबोध महिला
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जिला शहडोल के ग्राम रौनेरा की बात है। एक सज्जन ने अपने गांव की एक बड़ी ही दर्दनाक घटना सुनाई जो इस प्रकार थी—
कुछ दिन हुए उनके गांव में एक साधु मण्डली आई थी। पड़ाव पड़ा और नित्य ही भांग, गांजा, हलवा, रबड़ी तथा खीर का क्रम चलने लगा। ग्रामीण जनता स्वाभाविक ही भोली-भाली तथा धर्म के नाम पर अन्ध श्रद्धा रखने वाली होती है। बाबाजी की चढ़ोतरी दिन-दिन बढ़ती ही जा रही थी।
वे कहते जा रहे थे कि—‘‘हमारे घर के पास वही एक परिवार रहता है। बेचारे तीन ही प्राणी हैं। वृद्धा मां, पुत्र किशनलाल तथा पुत्र वधू रुकमा। विवाह को पूरे 14 वर्ष हो चुके, अभी तक उन्होंने संतान का मुख न देखा था। उन्हें भी जैसे ही खबर लगी कि साधु बाबा के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति भी सम्भव है—वैसे ही वे उनके डेरे के चक्कर लगाने लगीं। बाबाजी रोज तरह-तरह के टोने टोटके तथा जन्तर-मन्तर बताते। मेरी पत्नी ने उसे काफी समझाया—किन्तु वह न मानी। कुछ तो पुत्रेषणा जोर मार रही थी और कुछ दिन रात का सास का ‘बांझ’ तथा ‘निपूती’ कहना भी सहन न होता था।
जब बाबजी ने देखा कि उस पर उनका पूरा जादू चल चुका है, तो अवसर पाकर उन्होंने उससे कहा कि वह रात को 12 बजे—एक थाली में सिन्दूर—चावल, पुष्प और पता नहीं क्या–क्या सामान लेकर आवे।
पुत्र की लालसा ने उसे इतना विवेकहीन बना दिया था कि वह उनके कहे अनुसार नियत समय पर पहुंच गई, उसे बताया गया था कि प्रति मावस की रात बाबाजी के शरीर में साक्षात् भगवान आते हैं।
इधर—उसका पति जो पास के छोटे कारखाने में काम पर जाता था—उस दिन भी रात पाली पर काम करने गया हुआ था। किन्तु अचानक ही उसके पेट में—कभी-कभी हो उठने वाला वायु के गोले का दर्द उठ पड़ा और वह छुट्टी लेकर चला गया। घर पर पत्नी को न पाकर मां से पूंछा। मालूम पड़ा कि किसी विशेष पूजा के लिये बाबाजी के पास गई है।
पति की स्वाभाविक शंका जागी और वह उनके डेरे की ओर चल दिया।
साधु लोग रहते तो आखिर तम्बुओं में ही थे। पक्का मकान तो था नहीं जो पूरी-पूरी नजरबन्दी हो पाती। किशनलाल ने जो कुछ पर्दों की दरारों में से देखा—उससे उसका रक्त खौलने लगा।
इधर जब वह भी देर तक न लौटा तो बेचारी वृद्धा हमारे घर आई। हम भी उस स्थिति में सिवाय उन्हें ढूंढ़ने जाने के और क्या कर सकते थे।
घर से निकले ही थे कि उधर से रुदन का स्वर आता हुआ सुनाई दिया। किशनलाल अपनी पत्नी को मारता हुआ ला रहा था। उसका गुस्सा उस समय इतना बढ़ा हुआ था कि लगता था कि अब इसे समाप्त करके ही दम लेगा। वहां भी उन बाबाओं को खूब मारकर आ रहा था।
सारा मोहल्ला एकत्रित हो गया। सब समझा-समझा कर हार गये किन्तु वह अपनी पत्नी को फिर घर में रखने को राजी न हुआ तो नहीं हुआ।
अब बेचारी घर-घर में मेहनत करके अपना गुजारा चलाती है। एक सज्जन ने अपनी एक कोठरी दे दी है उसे। दिन भर दूसरों का कूटना पीसना करके—रात को रूखा-सूखा खाकर सो रहती है। यह है अब उसका जीवन, पुत्र की लालसा में पति को भी खो बैठी बेचारी।
उसकी कथा सुनकर हम सबके ही नेत्र अश्रु पूरित हो गये। न जाने कितनी बेबस, अशिक्षित तथा विवेकहीन महिलायें ऐसी प्रवंचनाओं की शिकार होती रहती हैं। यह तो एक ही गाथा है।
कुछ दिन हुए उनके गांव में एक साधु मण्डली आई थी। पड़ाव पड़ा और नित्य ही भांग, गांजा, हलवा, रबड़ी तथा खीर का क्रम चलने लगा। ग्रामीण जनता स्वाभाविक ही भोली-भाली तथा धर्म के नाम पर अन्ध श्रद्धा रखने वाली होती है। बाबाजी की चढ़ोतरी दिन-दिन बढ़ती ही जा रही थी।
वे कहते जा रहे थे कि—‘‘हमारे घर के पास वही एक परिवार रहता है। बेचारे तीन ही प्राणी हैं। वृद्धा मां, पुत्र किशनलाल तथा पुत्र वधू रुकमा। विवाह को पूरे 14 वर्ष हो चुके, अभी तक उन्होंने संतान का मुख न देखा था। उन्हें भी जैसे ही खबर लगी कि साधु बाबा के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति भी सम्भव है—वैसे ही वे उनके डेरे के चक्कर लगाने लगीं। बाबाजी रोज तरह-तरह के टोने टोटके तथा जन्तर-मन्तर बताते। मेरी पत्नी ने उसे काफी समझाया—किन्तु वह न मानी। कुछ तो पुत्रेषणा जोर मार रही थी और कुछ दिन रात का सास का ‘बांझ’ तथा ‘निपूती’ कहना भी सहन न होता था।
जब बाबजी ने देखा कि उस पर उनका पूरा जादू चल चुका है, तो अवसर पाकर उन्होंने उससे कहा कि वह रात को 12 बजे—एक थाली में सिन्दूर—चावल, पुष्प और पता नहीं क्या–क्या सामान लेकर आवे।
पुत्र की लालसा ने उसे इतना विवेकहीन बना दिया था कि वह उनके कहे अनुसार नियत समय पर पहुंच गई, उसे बताया गया था कि प्रति मावस की रात बाबाजी के शरीर में साक्षात् भगवान आते हैं।
इधर—उसका पति जो पास के छोटे कारखाने में काम पर जाता था—उस दिन भी रात पाली पर काम करने गया हुआ था। किन्तु अचानक ही उसके पेट में—कभी-कभी हो उठने वाला वायु के गोले का दर्द उठ पड़ा और वह छुट्टी लेकर चला गया। घर पर पत्नी को न पाकर मां से पूंछा। मालूम पड़ा कि किसी विशेष पूजा के लिये बाबाजी के पास गई है।
पति की स्वाभाविक शंका जागी और वह उनके डेरे की ओर चल दिया।
साधु लोग रहते तो आखिर तम्बुओं में ही थे। पक्का मकान तो था नहीं जो पूरी-पूरी नजरबन्दी हो पाती। किशनलाल ने जो कुछ पर्दों की दरारों में से देखा—उससे उसका रक्त खौलने लगा।
इधर जब वह भी देर तक न लौटा तो बेचारी वृद्धा हमारे घर आई। हम भी उस स्थिति में सिवाय उन्हें ढूंढ़ने जाने के और क्या कर सकते थे।
घर से निकले ही थे कि उधर से रुदन का स्वर आता हुआ सुनाई दिया। किशनलाल अपनी पत्नी को मारता हुआ ला रहा था। उसका गुस्सा उस समय इतना बढ़ा हुआ था कि लगता था कि अब इसे समाप्त करके ही दम लेगा। वहां भी उन बाबाओं को खूब मारकर आ रहा था।
सारा मोहल्ला एकत्रित हो गया। सब समझा-समझा कर हार गये किन्तु वह अपनी पत्नी को फिर घर में रखने को राजी न हुआ तो नहीं हुआ।
अब बेचारी घर-घर में मेहनत करके अपना गुजारा चलाती है। एक सज्जन ने अपनी एक कोठरी दे दी है उसे। दिन भर दूसरों का कूटना पीसना करके—रात को रूखा-सूखा खाकर सो रहती है। यह है अब उसका जीवन, पुत्र की लालसा में पति को भी खो बैठी बेचारी।
उसकी कथा सुनकर हम सबके ही नेत्र अश्रु पूरित हो गये। न जाने कितनी बेबस, अशिक्षित तथा विवेकहीन महिलायें ऐसी प्रवंचनाओं की शिकार होती रहती हैं। यह तो एक ही गाथा है।