Books - कर्मकांड प्रदीप
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Language: HINDI
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गृहप्रवेश- वास्तु शान्ति प्रयोग
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नये- पुराने निर्मित मकान, दुकान आदि में निवास प्रारम्भ करने के पूर्व या रहने के समय गृह प्रवेश या वास्तु शान्ति का प्रयोग सम्पन्न करना प्रायः अनिवार्य- सा माना जाता है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए इस कर्मकाण्ड की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की जा रही है-
सर्वप्रथम षट्कर्म, तिलक, रक्षासूत्र, कलशपूजन, दीपपूजन, देवावाहन पूजन, सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन, रक्षाविधान तक की प्रक्रिया पूरी करके पूजावेदी पर वास्तुपुरुष का आवाहन- पूजन सम्पन्न करें।
॥ वास्तुपुरुषपूजन॥
ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीहि अस्मान् स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे॥ -ऋ० ७.५४.१
ॐ भूर्भुवः स्वः। वास्तुपुुरुषाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। गन्धाक्षतं, पुष्पाणि, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
अर्थात्- हे वास्तोष्पते (गृहपालक देव)! आप हमें जगाएँ। हमारे घर में पुत्र- पौत्र आदि द्विपदों, गौ, अश्व आदि चतुष्पदों को नीरोग एवं सुखी करें। जो धन हम आपसे माँगें, वह हमें प्रदान करें। ततो नमस्कारं करोमि-
ॐ विशन्तु भूतले नागाः, लोकपालाश्च सर्वतः। मण्डलेऽ त्रावतिष्ठन्तु, ह्यायुर्बलकराः सदा॥ वास्तुपुरुष देवेश ! सर्वविघ्न- विदारण। शान्तिं कुरु सुखं देहि, यज्ञेऽस्मिन्मम सर्वदा॥
अर्थात्- धरती पर जो नाग लोकपालगण आदि रहते हैं, वे आयु और बल प्रदान करने वाले इस वास्तुमण्डल में विराजमान हों। हे देवों के स्वामी वास्तुपुरुष! सभी विघ्न्नों को नष्ट करने वाले आप इस यज्ञ में उपस्थित होकर मुझे सर्वदा सुख और शान्ति प्रदान करें।
॥ विशेषाहुतिः॥
तत्पश्चात् अग्निस्थापन, प्रदीपन आदि करते हुए २४ बार गायत्री मन्त्र की विशेष आहुति समर्पित करें। इसके बाद खीर, मिष्टान्न या केवल घृत से ५ बार विशेष आहुति समर्पित करें।
ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीहि अस्मान् स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये इदं न मम॥- ऋ०७.५४.१
अर्थात्- हे वास्तोष्पते (गृह पालक देव)! आप हमें जगाएँ। हमारे घर में पुत्र- पौत्र आदि द्विपदों, गौ, अश्व आदि चतुष्पदों को नीरोग एवं सुखी करें। जो धन हम आपसे माँगें, वह हमें प्रदान करें।
ॐ वास्तोष्पते प्रतरणो न एधि गयस्फानो गोभिरश्वेभिरिन्दो। अजरासस्ते सख्ये स्याम पितेव पुत्रान् प्रति नो जुषस्व स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये इदं न मम॥ -ऋ०७.५४.२
अर्थात्- हे वास्तोष्पते! आप हमारे लिए कल्याणकारी धन का विस्तार करें। हे सोम! हम आपकी कृपा से गौओं और घोड़ों के साथ नीरोग रहें। आप हमारा पुत्रवत् पालन करें।
ॐ वास्तोष्पते शग्मया संसदा ते सक्षीमहि रण्वया गातुमत्या। पाहि क्षेम उत योगे वरं नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये इदं न मम॥ -ऋ०७.५४.३
अर्थात्- हे वास्तोष्पते! हम आपसे सुखकर, रमणीय एवं ऐश्वर्य- सम्पन्न स्थान प्राप्त करें। हमें प्राप्त हुए और प्राप्त होने वाले श्रेष्ठ धन की आप रक्षा करें। हमें सदा कल्याणकारी साधनों से सुरक्षित रखें।
ॐ अमीवहा वास्तोष्पते विश्वा रूपाण्याविशन्। सखा सुशेव एधि नः स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये इदं न मम। -ऋ० ७.५५.१
अर्थात्- हे वास्तोष्पते (गृह पालक)! आप हमारे हर प्रकार से मित्र हैं, हमारे हर प्रकार के रोगों का नाश करें।
ॐ वास्तोष्पते ध्रुवा स्थूणां सन्नं सोम्यानाम्।
द्रप्सो भेत्ता पुरां शश्वतीनाम् इन्द्रो मुनीनां सखा स्वाहा।
इदं वास्तोष्पतये इदं न मम। -ऋ० ८.१७.१४
अर्थात्- हे वास्तोष्पते (गृहस्वामी)! घर के स्तम्भ मजबूत हो,सोमयज्ञ करने वाले याजकों को देह- रक्षक शक्ति की प्राप्ति हो। राक्षसों के अनेक नगरों को उजाड़ने वाले सोमपायी इन्द्रदेव मुनियों के सखा हों।
तत्पश्चात् पूर्णाहुति आदि का क्रम सम्पन्न करें।
सर्वप्रथम षट्कर्म, तिलक, रक्षासूत्र, कलशपूजन, दीपपूजन, देवावाहन पूजन, सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन, रक्षाविधान तक की प्रक्रिया पूरी करके पूजावेदी पर वास्तुपुरुष का आवाहन- पूजन सम्पन्न करें।
॥ वास्तुपुरुषपूजन॥
ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीहि अस्मान् स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे॥ -ऋ० ७.५४.१
ॐ भूर्भुवः स्वः। वास्तुपुुरुषाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। गन्धाक्षतं, पुष्पाणि, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
अर्थात्- हे वास्तोष्पते (गृहपालक देव)! आप हमें जगाएँ। हमारे घर में पुत्र- पौत्र आदि द्विपदों, गौ, अश्व आदि चतुष्पदों को नीरोग एवं सुखी करें। जो धन हम आपसे माँगें, वह हमें प्रदान करें। ततो नमस्कारं करोमि-
ॐ विशन्तु भूतले नागाः, लोकपालाश्च सर्वतः। मण्डलेऽ त्रावतिष्ठन्तु, ह्यायुर्बलकराः सदा॥ वास्तुपुरुष देवेश ! सर्वविघ्न- विदारण। शान्तिं कुरु सुखं देहि, यज्ञेऽस्मिन्मम सर्वदा॥
अर्थात्- धरती पर जो नाग लोकपालगण आदि रहते हैं, वे आयु और बल प्रदान करने वाले इस वास्तुमण्डल में विराजमान हों। हे देवों के स्वामी वास्तुपुरुष! सभी विघ्न्नों को नष्ट करने वाले आप इस यज्ञ में उपस्थित होकर मुझे सर्वदा सुख और शान्ति प्रदान करें।
॥ विशेषाहुतिः॥
तत्पश्चात् अग्निस्थापन, प्रदीपन आदि करते हुए २४ बार गायत्री मन्त्र की विशेष आहुति समर्पित करें। इसके बाद खीर, मिष्टान्न या केवल घृत से ५ बार विशेष आहुति समर्पित करें।
ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीहि अस्मान् स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये इदं न मम॥- ऋ०७.५४.१
अर्थात्- हे वास्तोष्पते (गृह पालक देव)! आप हमें जगाएँ। हमारे घर में पुत्र- पौत्र आदि द्विपदों, गौ, अश्व आदि चतुष्पदों को नीरोग एवं सुखी करें। जो धन हम आपसे माँगें, वह हमें प्रदान करें।
ॐ वास्तोष्पते प्रतरणो न एधि गयस्फानो गोभिरश्वेभिरिन्दो। अजरासस्ते सख्ये स्याम पितेव पुत्रान् प्रति नो जुषस्व स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये इदं न मम॥ -ऋ०७.५४.२
अर्थात्- हे वास्तोष्पते! आप हमारे लिए कल्याणकारी धन का विस्तार करें। हे सोम! हम आपकी कृपा से गौओं और घोड़ों के साथ नीरोग रहें। आप हमारा पुत्रवत् पालन करें।
ॐ वास्तोष्पते शग्मया संसदा ते सक्षीमहि रण्वया गातुमत्या। पाहि क्षेम उत योगे वरं नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये इदं न मम॥ -ऋ०७.५४.३
अर्थात्- हे वास्तोष्पते! हम आपसे सुखकर, रमणीय एवं ऐश्वर्य- सम्पन्न स्थान प्राप्त करें। हमें प्राप्त हुए और प्राप्त होने वाले श्रेष्ठ धन की आप रक्षा करें। हमें सदा कल्याणकारी साधनों से सुरक्षित रखें।
ॐ अमीवहा वास्तोष्पते विश्वा रूपाण्याविशन्। सखा सुशेव एधि नः स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये इदं न मम। -ऋ० ७.५५.१
अर्थात्- हे वास्तोष्पते (गृह पालक)! आप हमारे हर प्रकार से मित्र हैं, हमारे हर प्रकार के रोगों का नाश करें।
ॐ वास्तोष्पते ध्रुवा स्थूणां सन्नं सोम्यानाम्।
द्रप्सो भेत्ता पुरां शश्वतीनाम् इन्द्रो मुनीनां सखा स्वाहा।
इदं वास्तोष्पतये इदं न मम। -ऋ० ८.१७.१४
अर्थात्- हे वास्तोष्पते (गृहस्वामी)! घर के स्तम्भ मजबूत हो,सोमयज्ञ करने वाले याजकों को देह- रक्षक शक्ति की प्राप्ति हो। राक्षसों के अनेक नगरों को उजाड़ने वाले सोमपायी इन्द्रदेव मुनियों के सखा हों।
तत्पश्चात् पूर्णाहुति आदि का क्रम सम्पन्न करें।