Books - कर्मकांड प्रदीप
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Language: HINDI
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रस्म पगड़ी
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रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिसे दस्तार भी कहते हैं) बाँधी जाती है। क्योंकि पगड़ी इस क्षेत्र के समाज में इज़्जत का प्रतीक है, इसलिए इस रस्म से दर्शाया जाता है। परिवार के मान- सम्मान और कल्याण की जिम्मेदारी अब इस पुरुष के कन्धों पर है। साथ ही जो लोग पगड़ी पहनाते हैं, वे आश्वासन देते हैं कि भले ही घर के सबसे मह्त्वपूर्ण व्यक्ति का सहारा घर से छूट गया हो, अब इस घर के दुःख में, आवश्यकता में हम लोग साथ खड़े होंगे। इससे घर के जिम्मेदार व्यक्ति को खोने का शोक कम होता है। रस्म पगड़ी का संस्कार या तो अन्तिम संस्कार के तीसरे, चौथे दिन या फिर तेहरवीं को आयोजित किया जाता है। वैसे समयाभाव के कारण रस्म पगड़ी से पूर्व घर में तर्पण यज्ञादि का क्रम भी पूरा कर लेना चाहिए। पुरातन शास्त्रों में भी तीसरे- चौथे दिन आशौच शुद्धि हो जाती है। आने- जाने वाले परिजनों- परिवारीजनों को भी इस सामाजिक बन्धन से मुक्ति मिल जाती है। समय और परिस्थिति के अनुसार भी यही अनुकूल रहता है। (यज्ञ- कर्मकाण्ड प्रकरण में दिये गये मन्त्रों का उपयोग करेंं)
मङ्गलाचरण, षट्कर्म, पृथ्वीपूजन, तिलक, कलावा, कलश व दीपपूजन, गुरु- गायत्री का आवाहन एवं स्वस्तिवाचन करें- यम आवाहन- ॐ सुगन्नुपन्थां प्रदिशन्नऽएहि ज्योतिष्मध्येह्यजरन्नऽआयुः। अपैतु मृत्युममृतं मऽआगाद् वैवस्वतो नोऽ अभयं कृणोतु। ॐ यमाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
पितृ आवाहन- (दिवङ्गत आत्मा का चित्र) ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पिता महेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः अक्षन्न पितरो मीमदन्तपितरो तीतृपन्त पितरः पितरः सुन्धध्वम्। ॐ पितृभ्यो नमः॥
सर्वदेव नमस्कारः, पञ्चोपचार / षोडशोपचारपूजनम्, स्वस्तिवाचनम् के बाद सामूहिक गायत्री मन्त्र का पाठ (१२ या २४ बार) करें।
प्रार्थना मङ्गल मन्दिर खोलो मङ्गल मन्दिर खोलो दयामय। जीवन बीता बड़े वेग से, द्वार खड़ा शिशु भोलो। मिटा अँधेरा ज्योति प्रकाशित, शिशु को गोद में ले लो। नाम तुम्हारा रटा निरन्तर, बालक से प्रिय बोलो। दिव्य आश से बालक आया, प्रेम अमिय रस घोलो ।।
परिजनों द्वारा कुल परम्परा के अनुसार तिलक, पगड़ी इत्यादि करें- तत्पश्चात् शान्तिपाठ कर पुष्पांजलि करते हुए सभी लोग परिवारजनों को आश्वस्त करते हुए बाहर होते हैं।
मङ्गलाचरण, षट्कर्म, पृथ्वीपूजन, तिलक, कलावा, कलश व दीपपूजन, गुरु- गायत्री का आवाहन एवं स्वस्तिवाचन करें- यम आवाहन- ॐ सुगन्नुपन्थां प्रदिशन्नऽएहि ज्योतिष्मध्येह्यजरन्नऽआयुः। अपैतु मृत्युममृतं मऽआगाद् वैवस्वतो नोऽ अभयं कृणोतु। ॐ यमाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
पितृ आवाहन- (दिवङ्गत आत्मा का चित्र) ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पिता महेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः अक्षन्न पितरो मीमदन्तपितरो तीतृपन्त पितरः पितरः सुन्धध्वम्। ॐ पितृभ्यो नमः॥
सर्वदेव नमस्कारः, पञ्चोपचार / षोडशोपचारपूजनम्, स्वस्तिवाचनम् के बाद सामूहिक गायत्री मन्त्र का पाठ (१२ या २४ बार) करें।
प्रार्थना मङ्गल मन्दिर खोलो मङ्गल मन्दिर खोलो दयामय। जीवन बीता बड़े वेग से, द्वार खड़ा शिशु भोलो। मिटा अँधेरा ज्योति प्रकाशित, शिशु को गोद में ले लो। नाम तुम्हारा रटा निरन्तर, बालक से प्रिय बोलो। दिव्य आश से बालक आया, प्रेम अमिय रस घोलो ।।
परिजनों द्वारा कुल परम्परा के अनुसार तिलक, पगड़ी इत्यादि करें- तत्पश्चात् शान्तिपाठ कर पुष्पांजलि करते हुए सभी लोग परिवारजनों को आश्वस्त करते हुए बाहर होते हैं।